अनिल अम्बानी रंगे हाथों पकड़े गए : 1000 करोड़ बच गए

Written by शुक्रवार, 03 मार्च 2017 11:59

जैसा कि हम सभी जानते हैं कि विशालकाय कारपोरेट हाउस अपनी मर्जी से सरकारें बनाते-बिगाड़ते हैं, बवाल खड़े करवाते हैं और अपना उल्लू सीधा करते रहते हैं. कैसे करते हैं यह आपको इस लेख में समझेगा.

हालाँकि अधिकाँश मामले खुलकर सामने नहीं आ पाते, परन्तु जो कुछ भी “खुरचन” हमारे सामने आ पाती है, उसमें सुब्रत रॉय, विजय माल्या अथवा जिंदल या दर्डा समूह की कारगुजारियाँ दिख ही जाती हैं. सुप्रीम कोर्ट द्वारा ऐसी ही एक “कलाकारी” हाल ही में पकड़ में आई है. अनिल धीरूभाई अम्बानी समूह अर्थात ADAG द्वारा ऊर्जा खरीदी अनुबंध मामले में अपने पक्ष में नीतियों को घुमाकर सीधा-सीधा 1000 करोड़ रूपए कमाने की कोशिश करने का मामला सामने आया है. हालाँकि अखिल भारतीय पावर इंजीनियर फेडरेशन द्वारा समय पर चिल्लाचोट मचा देने के कारण यह सौदा रद्द हो गया, परन्तु यदि किसी का ध्यान नहीं गया होता तो 1000 करोड़ रूपए अनिल अम्बानी ने एक दिन में ही कमा लिए होते. चौंक गए न!!! आगे पूरा किस्सा पढ़िए...

रिलायंस के “ससान अल्ट्रा मेगा पॉवर प्रोजेक्ट (UMPP)” की व्यावसायिक प्रचालन तिथि (Commercial Operation Date -COD) पर सुप्रीम कोर्ट के 8 दिसंबर 2016 के निर्णय का वास्तविक रूप से क्या प्रभाव पड़ा है, ये तो अभी तक अज्ञात है, लेकिन कथित रूप से “मुख्य धारा की मीडिया” ने रहस्यमयी तरीके से कुछ महत्वपूर्ण चीजों को छिपाकर रखा... जैसे -

१) भारत के 7 राज्यों के साथ हस्ताक्षरित “ऊर्जा क्रय समझौते” में जो विसंगतियाँ थीं उन छिद्रों का फायदा उठाते हुए रिलायंस पॉवर उन राज्यों से अधिक मूल्य लेना चाहता था| मध्य प्रदेश, जहाँ पॉवर प्रोजेक्ट स्थित है, उसे सुसान पॉवर प्रोजेक्ट को 400 करोड़ रुपये से भी अधिक देना पड़ जाता, और ऐसा इस गलत दावे के आधार पर होता कि पावर प्रोजेक्ट की यूनिट 3 ने अपना व्यावसायिक परिचालन 31 मार्च 2013 को शुरू कर दिया था (अर्थात ब्याज मूल्य को जोड़ते हुए मध्य प्रदेश पर करीब 450 करोड़ रुपये का प्रभाव पड़ता)| अनुबंध के अनुसार यह कहा गया था कि पहले 2 वर्षों में पॉवर की सप्लाई 70 पैसे प्रति यूनिट की दर से होनी है, जो कि तीसरे वर्ष से 1.31 प्रति यूनिट तक पहुचेगी| लेकिन अगर ऊर्जा खरीदने वाले 7 राज्यों द्वारा रिलायंस पॉवर की “व्यावसायिक परिचालन” तिथि 31 मार्च 2013 स्वीकार की जाएगी तो पहले वर्ष की ऊर्जा खरीदारी मात्र 1 दिन की होगी, अर्थात 31 मार्च 2013 से चालू मान लिया जाए और 1 अप्रैल 2013 तक खरीदी (हो गया एक वित्तीय वर्ष), और इस चक्कर में सुसान पॉवर 1 अप्रैल 2015 के बजाए 1 अप्रैल 2014 से ही बढ़ा हुआ ऊर्जा टैरिफ 1.31 प्रति यूनिट चार्ज करने में सक्षम हो जाती| इसका परिणाम ये होता कि सुसान पॉवर को 1050 करोड़ रुपयों का गलत तरीके से लाभ मिलता जो कि उसे एक वर्ष बाद मिलना था (ये अभी जरूरी नहीं कि कम्पनी का काम समय से पूरा हो ही जाए). यानी भारतीय उपभोक्ताओं और करदाताओं की जेब से 1000 करोड़ रूपए निकलकर अनिल अम्बानी की जेब में चले जाते, बिना कोई काम शुरू किए, पावर प्लांट से बिजली उत्पादन किए बिना ही.

Sasan 1

 

२) ससान पॉवर का इस प्रकार का दावा स्वीकृत हो जाता, इसका परिणाम राष्ट्र को ऊर्जा-निर्माण के सम्बन्ध में भारी नुकसान ही होता, क्योंकि धोखेबाजी से हस्ताक्षर किया हुआ ये अनुबंध सुसान पॉवर पर “समयबद्धता” जैसी सभी बाध्यताएं समाप्त कर देता, और सुसान पॉवर पर उसकी यूनिट 3 में नियत समय पर पूरी तरह परिचालन शुरू करने जैसी कोई बाध्यता या दबाव नहीं रह जाता| हकीकत ये है कि 31 मार्च 2013 को यूनिट 3, का केवल 17% भाग ही परिचालन में था| अगस्त 2013 में जाकर इस यूनिट ने पूरी तरह परिचालन शुरू किया और मांग का 95% पूरा करने की क्षमता प्राप्त की| अगर अम्बानी को छूट देते हुए 31 मार्च 2013 को ही व्यावसायिक परिचालन शुरू करने की तिथि (COD) मान ली जाती, तो ये पूरी तरह संभव था कि जिस तिथि को मांग की 95% क्षमता प्राप्त हुई थी, वो कहीं और भी पीछे छूट जाती| इस अनुबंध की मुख्य शर्त यही थी कि व्यावसायिक परिचालन तिथि तभी मानी जाएगी, जब यूनिट 3 आपूर्ति को 95% से अधिक परिचालित होना सिद्ध करेगा. कॉन्ट्रैक्ट के मुख्य और जरूरी नियमों में बदलाव की मांग को लेकर R-ADAG समूह ने धोखा दिया और परिस्थितियों का फायदा उठाने से लेकर, राष्ट्रीय विद्युत् ग्रिड की सुरक्षा और स्थिति से समझौता करने का प्रयास किया, जो कि बेहद खतरनाक भी साबित हो सकता था.

३) सुसान पॉवर भारत को लूट कर निकल भी गयी होती, यदि All India Power Engineers Federation (AIPEF) के लगातार प्रयास नहीं हुए होते, इस मामले में फेडरेशन के संरक्षकों दिल्ली के इंजिनियर पद्मजीत सिंह और लखनऊ के इंजिनियर शैलेन्द्र दुबे द्वारा लगातार नज़दीकी निगाह बनाए रखी गई. ‘केन्द्रीय बिज़ली नियामक आयोग’, अपीलीय प्राधिकरण तथा उच्च न्यायपालिका के सामने राष्ट्रीय-हित में जिस प्रकार इस निकाय ने संघर्षशील प्रवृत्ति दिखाई है वह प्रशंसनीय है. यदि सभी नागरिक ऐसे ही जागरूक बन जाएँ तो कारपोरेट हाउस देश को सरलता से लूट न सकेंगे. मजे की बात ये है कि “उल्टा चोर कोतवाल को डांटे” की तर्ज पर ADAG समूह द्वारा पावर इंजीनियर्स फेडरेशन पर ही केस दायर कर दिया गया कि इन्होने हमारा 1000 करोड़ का नुक्सान करवा दिया है.

४) मधुर भंडारकर की “कार्पोरेट” फिल्म देखी ही होगी आपने... इसी तर्ज पर सुसान पॉवर ने AIPEF को धमकाने के लिए, बॉम्बे उच्च न्यायलय को एक मंच की तरह इस्तेमाल किया जिससे कि ये संगठन दबाव में आ जाए और सुप्रीम कोर्ट तक न जाए. अगस्त 2016 में इसने दुर्भावनावश बॉम्बे उच्च न्यायलय से एक आदेश प्राप्त करने का प्रयास किया जिससे कि AIPEF का मुंह बंद किया जा सके तथा 1000 करोड़ रुपयों की क्षतिपूर्ति का दावा भी किया जा सके. जबकि यह मामला पहले से सुप्रीम कोर्ट में अपील के लिए पहुँच चुका था |

५) एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि, वरिष्ठ कांग्रेसी नेता कपिल सिब्बल और पी चिदंबरम द्वारा इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ताओं के रूप में बचाव करने का प्रयास किया गया| इस बात ने जनता को यह याद दिलाने में मदद की, कि अनिल अंबानी (या कोई और कारपोरेट हाउस हो) के पास राजनीतिक बाड़े के दोनों ओर के मित्र हैं| उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन चुनाव जीतता है, भाजपा या कांग्रेस, क्योंकि जीतता तो हमेशा पैसा ही है| कांग्रेसी भले ही हमेशा चिल्लाते रहें कि प्रधानमन्त्री मोदी “दोनों अम्बानी भाइयों” के व्यावसायिक हितों का बचाव कर रहे हैं, पर ये हमेशा ध्यान रखने वाली बात है कि कांग्रेसी नेता भी मन में अपने हित रखे हुए हैं.

कुल मिलाकर बात यह है कि फिलहाल एक जागरूक इंजीनियर फेडरेशन की वजह से सुप्रीम कोर्ट ने अनिल अम्बानी को चोरी करने से पहले ही रंगे हाथों पकड़ लिया, लेकिन हजारों करोड़ के विभिन्न प्रोजेक्ट्स और विभिन्न औद्योगिक नीतियों को अपनी मनमर्जी से तोड़ने-मरोड़ने की प्रवृत्ति और अनुचित लाभ कमाने की नीयत, तथा तमाम प्रशासनिक-न्यायिक जंजाल के घने जंगल में और भीषण अँधेरे में आम जनता कहाँ-कहाँ ध्यान रख सकेगी? कारपोरेट-नेता-अफसर यह त्रिकोण हमारे देश में पता नहीं कहाँ-कहाँ छेद किए जा रहा है.

Read 4513 times Last modified on शुक्रवार, 03 मार्च 2017 13:16