उस खबर के अनुसार मंदसौर (जो कि अफीम का अड्डा है), में लालाओं-पठानों और कय्यूम गिरोह का ऐसा दबदबा है कि लोग अपनी-अपनी जमीनें औने-पौने दामों में बेचकर जा रहे हैं और कई गाँवों और मंदसौर शहर में इस पठान गिरोह ने करोड़ों की संपत्ति खड़ी कर ली है... (पूरी रिपोर्ट यहाँ क्लिक करके दोबारा पढ़ सकते हैं).
अब जरा ध्यान से पढ़िए... आप कश्मीर में प्रवेश करने जा रहे हैं... मंदसौर (मप्र) के पास ही राजस्थान का जिला है प्रतापगढ़. लाला-पठान और कय्यूम गिरोह इस पूरे इलाके में अपनी गतिविधि को अंजाम देता है. व्यापारी अनिल सोनी ने अपने सत्याग्रह आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए सबसे पहले पठानों द्वारा कब्ज़ा किए हुए एक गाँव अखेपुर (प्रतापगढ़, राजस्थान) में जाकर तिरंगा फहराने की अनुमति प्रशासन से माँगी (हालाँकि तिरंगा फहराने के लिए अनुमति की क्या जरूरत, फिर भी क़ानून का पालन करने वाले एक जिम्मेदार नागरिक की हैसियत से उन्होंने अनुमति ली). आश्चर्य की बात यह रही कि पुलिस प्रशासन ने अनिल सोनी को अखेपुर गाँव जाकर तिरंगा फहराने की अनुमति नहीं दी और “सुरक्षा कारणों” का हवाला दिया. जब अनिल सोनी मंदसौर पार करके राजस्थान सीमा में प्रतापगढ़ के पास पहुँचे तो पुलिस ने उन्हें वहीं रोक लिया और कहा कि अपना तिरंगा यहीं फहरा लो, अखेपुर गाँव जाने की जरूरत नहीं. पुलिस ने अखेपुर रोड पर स्थित बालाजी मंदिर में अनिल सोनी को दर्शन करवाए और गाँव के बाहर से ही जबरन वापस लौटा दिया.
इस तिरंगा यात्रा के लिए निकले अनिल सोनी की सुरक्षा में तैनात दो पुलिस जवान मल्हारगढ़ में ही इनकी गाड़ी से उतरकर चले गए. उल्लेखनीय बात यह है कि पठान गिरोह के खिलाफ आवाज़ उठाने के कारण नीमच शोरूम से घर आते वक्त कय्यूम गैंग ने अनिल सोनी और इनके साथी पर गोलीबारी की थी, जिसमें अजय सोनी गंभीर रूप से घायल हुए थे. इसके बाद नीमच पुलिस ने इनकी सुरक्षा में दो जवान लगाए थे, लेकिन तिरंगा फहराने के लिए पठानों के अखेपुर गाँव पहुँचने से काफी पहले ही ये दोनों जवान गायब हो गए. जब इन सुरक्षाकर्मियों से पूछा गया कि उन्होंने ऐसा क्यों किया, तो इनका जवाब था कि हमें साहब का आदेश था, इसलिए उतर गए...
ताज़ा खबर ये है कि नीमच के बहादुर व्यापारी अनिल सोनी की दुकान बन्द है, उन्होंने भोपाल से लेकर दिल्ली तक अपनी, अपने परिवार और धंधे-पानी की सुरक्षा हेतु गुहार लगाई है. अनिल सोनी अपना व्यवसाय ठप करके (क्योंकि कभी भी वहाँ उन पर गोलीबारी की जा सकती है) लगातार दर-दर भटक रहे हैं, लेकिन उनकी समस्या का कोई निदान अब तक नहीं हो पाया है. पुलिस प्रशासन अपनी तरफ से कोशिश करता हुआ “दिखाई दे रहा है”, लेकिन उनकी यह कोशिश कितनी असली है, और कितनी नकली है... भगवान जाने. बहरहाल डायमंड ज्वेलर्स के मालिक अनिल सोनी ने अपनी गुण्डा विरोधी, फिरौती विरोधी, धमकी विरोधी मुहिम को नया आयाम देने के लिए सत्याग्रह का मार्ग अपनाने के लिए एकदम नया आईडिया सोचा और मप्र-राजस्थान की पुलिस, प्रशासन को पूरी तरह बेनकाब कर दिया.
विडंबना देखिये कि आप अपने ही देश के लगभग बीचोंबीच स्थित एक गाँव में पुलिस को साथ ले जाकर उसकी अनुमति से भी तिरंगा नहीं फहरा सकते, क्योंकि वहाँ “सुरक्षा संबंधी” दिक्कतें हैं. कश्मीर तो बहुत दूर है, कैराना भी बहुत दूर है... मंदसौर-प्रतापगढ़ (यानी मप्र-राजस्थान) में तो “कथित राष्ट्रवादी सरकारों”(??) का बोलबाला रहा है, फिर भी यह स्थिति है? वैसे आपको यह तो याद होगा ही कि हाल ही में भाजपा ने "तिरंगा यात्रा" निकाली थी?? और यह भी याद होगा ही कि जयपुर मेट्रो के लिए वसुंधरा सरकार ने कई प्राचीन मंदिरों को ढहा दिया है, जबकि कई दरगाहों, मस्जिदों और मज़ारों को छोड़ दिया है...
बाकी जो है सो हैये है... जय राष्ट्रवाद...