ऐसा नहीं है कि यह “सेकुलर बीमारी” केवल भारत में ही है, अपितु यूरोप और कनाडा जैसे देश भी इस वायरस की भीषण चपेट में हैं. इस लेख में आतंकियों के खिलाफ दो भिन्न-भिन्न देशों की कार्यवाही और उनकी सोच को स्पष्ट किया गया है... ये दो देश हैं इज़राईल और कनाडा... तो आईये सबसे पहले हम देखते हैं कनाडा ने आतंकी के साथ क्या व्यवहार किया...
घटना अफगानिस्तान की है, जब कनाडा निवासी पन्द्रह वर्षीय ओमर खादर वहाँ तालिबान के विशेष भर्ती अभियान में बम बनाने की ट्रेनिंग ले रहा था. इसी दौरान अमेरिकी सेनाओं के विशेष दस्ते का आक्रमण हुआ और उन्होंने उस आतंकी शिविर में लगभग सभी आतंकियों को मार दिया. इस संक्षिप्त हमले के दौरान ओमर खादर ने सादी वर्दी में वहाँ मौजूद सार्जेंट क्रिस्टोफर स्पीयर पर हैंड-ग्रेनेड से हमला कर दिया, जिसमें सार्जेंट स्पीयर मारे गए. ये पन्द्रह वर्षीय ओमर उस समय किसी तरह बच गया. अमेरिकी सेनाओं ने इसे पकड़कर कुख्यात ग्वांतानामो बे की जेल में ठूँस दिया और कई वर्ष तक इसकी जमकर तुड़ाई की. कनाडाई नागरिक होने के कारण किसी तरह सरकारी बीचबचाव के बाद इस आतंकी को कुछ शर्तों के साथ अमेरिकी सेना ने छोड़ दिया. ओमार खादर पर कनाडा में मुकदमा चला और 2010 और इसे बम बनाने, सार्जेंट स्पीयर की हत्या करने और षड्यंत्र करने का दोषी पाया गया.
अब देखिये सेकुलरिज़्म के वायरस का असर... हाल ही में कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन त्रूदीयो ने अक्टूबर 2010 में अदालत द्वारा दोषी ठहराए गए और बचपन से आतंकियों के साथ रहने वाले इस खूँखार आतंकी को एक करोड़ डॉलर का मुआवज़ा और कनाडा सरकार की तरफ से आधिकारिक माफी दी जाएगी. यह मुआवज़ा उसके आतंकी घटना के दौरान नाबालिग होने के कारण दिया जाएगा. अमेरिकी सेनाओं द्वारा ग्वांतानामो जेल में ओमार खादर को पहुँची “तकलीफ” के एवज में कनाडा सरकार इससे माफी माँगेगी. ये बात और है कि ओमार खादर जैसे बाल-आतंकियों की तस्वीरें दिखा-दिखाकर ही ISIS, तालिबान, अल-कायदा वगैरह सोमालिया, लीबिया जैसे देशों में छोटे-छोटे बच्चों को आतंकी बनाती है. लेकिन कनाडा सरकार पर “सेकुलरिज़्म का भूत” कुछ ऐसा चढ़ा हुआ है कि उसने “अब तीस वर्ष के हो चुके” इस आतंकी को मुआवज़ा और माफी तक दे डाली है. असल में जिसकी आँखें सेकुलरिज़्म और इस्लाम के सही स्वरूप के प्रति अंधी हो जाती हैं, उसे यह समझ में ही नहीं आता कि यह “तथाकथित नाबालिग” अपनी मर्जी से आतंकी बनने अफगानिस्तान गया था, उसके हाथों बाकायदा एक बम फेंककर एक सार्जेंट की हत्या भी हुई है. बहरहाल... सार्जेंट स्पीयर की विधवा पत्नी टेबिता स्पीयर ने कनाडा के सुप्रीम कोर्ट में प्रधानमंत्री के इस निर्णय के खिलाफ याचिका दायर की और यह माँग की है, कि वास्तव में ओमार खादर को मिलने वाला मुआवज़ा उसे मिलना चाहिए, क्योंकि नुक्सान तो उसका हुआ है.
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यह तो हुई एक “सेकुलर” सरकार की बात... अब आते हैं आतंकियों के प्रति दूसरी सरकार यानी इजरायल का रवैया. पिछले सोमवार को इज़राईल सरकार ने एक नया क़ानून पास कर दिया है, जिसके अनुसार किसी भी आतंकी घटना के बाद हुए नुक्सान की भरपाई उस आतंकी अथवा उसके परिवार से की जाएगी. हाल ही में इज़राईल में हुए एक आतंकी हमले में फदी-अल-कुनबार नामक आतंकी ने फुटपाथ पर चल रहे सैनिकों पर अपना ट्रक चढ़ा दिया था, जिसमें चार इजराईली सैनिक मारे गए. हालाँकि सैनिकों के साथियों ने तत्काल कार्यवाही करते हुए इस आतंकी को गोली से उड़ा दिया. परन्तु अब इज़राईल सरकार ने निश्चित किया है कि इस आतंकी के परिजनों की संपत्ति जब्त करके बीस लाख डॉलर की सहायता उन मृतक सैनिकों को दी जाएगी. इज़राईल के आंतरिक सुरक्षा मंत्री आर्यी डेरी ने कहा कि आज के बाद भविष्य में जब भी किसी आतंकी को पकड़ा, या मारा जाएगा, अथवा वह किसी षड्यंत्र में शामिल पाया जाएगा तो उसके पूरे परिवार को भारी कीमत चुकानी पड़ेगी.
जब किसी भी प्रकार के आतंक से लड़ाई होती है, तब किसी नियम-क़ानून का पालन नहीं किया जाता, बल्कि अपनी तरफ से युद्ध के नए नियम निश्चित किए जाते हैं.... यदि मानवाधिकार वालों की बातें सुनते रहते तो केपीएस गिल कभी भी पंजाब में आतंकवाद पर काबू नहीं कर पाते. यदि देश के अंदरूनी गद्दारों द्वारा याकूब और अफज़ल जैसों को इसी प्रकार सहानुभूति और समर्थन मिलता रहा, तो देश के लिए मुश्किल होती रहेगी. कनाडा और इज़राईल के इन दो उदाहरणों से यह स्पष्ट हो गया होगा, कि हमें कौन सी नीति अपनानी चाहिए.