H1-B वीज़ा की अफवाहों पर ध्यान ना दें...

पिछले एक सप्ताह से भारत भर के तथाकथित पत्रकार यह अफवाह फैलाने में लगे हैं कि अमेरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत से आने वाले सॉफ्टवेयर कर्मियों और कंपनियों के खिलाफ H-1B वीजा के नियम कठोर कर दिए हैं और अब इन्हें भारत वापस लौटना होगा या महंगा शुल्क चुकाना पड़ेगा. जबकि वास्तव में ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है. भारत की IT इंडस्ट्री को डराने और भारत की छवि खराब करने के लिए जानबूझकर ऐसी अफवाहें फैलाई जा रही हैं.

हुआ यह है कि डोनाल्ड ट्रंप ने केवल एक बयान दिया है कि उन्हें आउटसोर्सिंग पर लगाम लगाना है. अभी केवल बयान आया है, कागजी कार्यवाही कुछ भी शुरू नहीं हुई है. ट्रम्प ने इस बारे में किसी भी अध्यादेश अथवा क़ानून पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं. असल में कैलीफोर्निया कौंग्रेस की एक सदस्या जोए लोफ्ग्रें ने संसद में एक निजी बिल प्रस्तुत किया है, जिसमें H1B वीज़ा पर रोक लगाने की मांग की गई है. जोए लोफ्ग्रें डोनाल्ड ट्रंप की पार्टी की सांसद भी नहीं हैं. अमेरिकी कांग्रेस में प्रतिवर्ष 7000 से लेकर 25000 निजी बिल प्रस्तुत किए जाते हैं, उनमें से चन्द ही पास हो पाते हैं. उदाहरण के लिए सितम्बर 2016 में एक बिल प्रस्तुत किया गया था कि H1B वीज़ा की न्यूनतम फीस एक लाख डॉलर कर दी जाए. यह बिल किसने पेश किया था, डैरेल ईसा ने जो कि ओबामा की पार्टी की हैं... और आज वही लोग ट्रंप के खिलाफ सबसे ज्यादा हल्ला मचाए हुए हैं.

इसलिए घबराने की कोई बात नहीं है, H1B वीजा में किसी भी महत्त्वपूर्ण बदलाव के लिए सबसे पहले ऐसे किसी प्रस्ताव को कॉंग्रेस और सिनेट दोनों से पारित करवाना होगा. उसके बाद वह बिल डोनाल्ड ट्रम्प के पास हस्ताक्षर के लिए आएगा. जरूरी नहीं कि उस समय ट्रंप उस पर हस्ताक्षर भी कर दें, खारिज भी कर सकते हैं. तात्पर्य यह है कि फिलहाल H1B वीजा के खिलाफ कुछ भी ठोस कार्य शुरू तक नहीं हुआ है. अमरीकी और भारत की घटिया मीडिया पर भरोसा करने की जरूरत नहीं है, ये लोग ऐसे ही हैं... यानी अफवाहबाज... सूचना यह है कि अगले सप्ताह भारत की चार प्रमुख आईटी कंपनियों के मालिक अमेरिका जा रहे हैं, वहां पर वे रिपब्लिकन पार्टी के प्रमुख सांसदों से मिलेंगे और अपना पक्ष रखेंगे.

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