क्या सुशांत सिंह राजपूत अपनी बिहारी पहचान छिपाते थे?
Written by अजय ब्रह्मात्मज बुधवार, 16 सितम्बर 2020 18:50पिछले दिनों गांव के एक स्कूली दोस्त से बात हो रही थी। टीवी और अखबारों से मिली खबरों ने उसके दिमाग में भर दिया था कि इस मामले में रिया ही पूरी तरह से दोषी है और यह कि सीबीआई के हाथों में केस जाने के पहले महाराष्ट्र पुलिस सही जांच नहीं कर रही थी। वह देर तक मुझे समझाने में लगा रहा।
पृथ्वी की ओज़ोन लेयर की उपेक्षा से तबाह होता पर्यावरण
Written by ललित गर्ग बुधवार, 16 सितम्बर 2020 18:37विश्व ओजोन परत संरक्षण दिवस 16 सितंबर, बुधवार को मनाया जाएगा। इस वर्ष ‘जीवन के लिये ओजोन’ थीम पर यह दिवस मनाया जा रहा है। अधिकांश वैज्ञानिकों का मानना है कि ओजोन परत के बिना पृथ्वी पर जीवन का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। ओजोन परत के सुरक्षित ना होने से जनजीवन, प्रकृति, पर्यावरण और पशुओं के जीवन पर बहुत बुरा असर पड़ेगा।
धर्म और क़ानून का अदभुत संगम :- केशवानंद भारती केस
Written by विराग गुप्ता मंगलवार, 15 सितम्बर 2020 19:20संविधान के संरक्षक के तौर पर सर्वोच्च न्यायालय के 13 जजों ने वर्ष 1973 में एक ऐसा फैसला दिया था, जिसकी वजह से केशवानंद भारती मृत्यु के बाद भी देश के सांविधानिक इतिहास में अमर हो गए हैं। कांग्रेस की आंतरिक कलह और पाकिस्तान से युद्ध के बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण, प्रिवी पर्स खत्म करने और राज्यों में भूमि अधिग्रहण कानून को संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल करने जैसे कई कानून बनाए और संसद के माध्यम से संविधान में 24वां, 25वां और 29वां संशोधन कर दिया।
क्या अब तिब्बत जागृत होगा?? एक चिंगारी तो फूटी है..
Written by विक्रम राव मंगलवार, 15 सितम्बर 2020 13:31विशेष सीमा बल के तिब्बती मूल के एक युद्धरत सिपाही नाइमा तेनजिन की पूर्वी लद्दाख की पहरेदारी करते वक्त गत सप्ताह अचानक हुई मौत से एक चिंगारी उठी है। वह मुक्त तिब्बत के अभियान के लिए कारक, विस्फोटक भी बन सकती है। कारण है कि भाजपा के शीर्ष पधाधिकारी और कश्मीर मसलों के प्रभारी राम माधव ने शहीद सैनिक की शवयात्रा के समय दो सूत्र उच्चारे थे: 'भारत माता की जय' और 'जय तिब्बत देश।'
थाईलैंड का राष्ट्रीय ग्रन्थ "रामाख्यान" अथवा "रामकीर्ति"
Written by भारतीय धरोहर मंगलवार, 15 सितम्बर 2020 13:04अपने देश में राम को राष्ट्रीय महापुरुष कहने में राजनीतिज्ञों को हीनता का बोध होता है और उनको राम तथा रामायण में साम्प्रदायिकता दिखाई पड़ती है। किन्तु दक्षिण-पूर्व एशिया-स्थित थाईलैण्ड (Thailand) में न केवल राम को एक सुप्रतिष्ठित स्थान दिया गया है, अपितु थाई-रामायण को थाईलैण्ड के राष्ट्रीय ग्रंथ का सम्मान दिया गया है।
नई शिक्षानीति में हिन्दी को समुचित स्थान क्यों नहीं??
Written by प्रो. अमरनाथ मंगलवार, 15 सितम्बर 2020 12:47चकित हूँ यह देखकर कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 में संघ की राजभाषा या राष्ट्रभाषा का कहीं कोई जिक्र तक नहीं है. पिछली सरकारों द्वारा हिन्दी की लगातार की जा रही उपेक्षा के बावजूद 2011 की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार आज भी देश की 53 करोड़ आबादी हिन्दी भाषी है. दूसरी ओर अंग्रेजी बोलने वालों की संख्या दो लाख साठ हजार, यानी मात्र .02 प्रतिशत है.
कोरोना संकट :- देश के आर्थिक आँकड़े अब डराने लगे...
Written by ललित गर्ग सोमवार, 14 सितम्बर 2020 11:39कोरोना महामारी के कारण न केवल भारत बल्कि दुनिया की अर्थव्यवस्थाएं चरमरा गयी है। भारत में लॉकडाउन के बाद अर्थव्यवस्था की स्थिति न केवल बिगड़ी है, बल्कि रसातल में चली गयी है। हालही में जारी मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही के जीडीपी आंकड़ों ने किसी खुशफहमी के लिए गुंजाइश नहीं छोड़ी है। सबको पता था कि आंकड़े गिरावट वाले होंगे लेकिन गिरावट 23.9 फीसदी की हो जाएगी, यह शायद ही किसी ने सोचा होगा।
रहस्य :- आखिर कंगना रनौत किसकी ताकत पर सवार है??
Written by निरंजन परिहार सोमवार, 14 सितम्बर 2020 11:29शिवसेना को उसी की भाषा में पहली बार किसी फिल्मी सितारे ने कड़ी चुनौती दी है। शिवसेना सन्न है। क्योंकि उसकी ताकतवर छवि को कंगना की तरफ से जबरदस्त झटका मिला है। लेकिन कंगना न केवल उद्धव ठाकरे, बल्कि शरद पवार और यहां तक कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को भी निशाने पर रखे हुए हैं। इसी से सवाल उठ रहे हैं कि आखिर कंगना किसके बूते पर हर किसी से भिड़ने पर उतारू है।
हिन्दी भाषा का एक समर्पित विदेशी सेवक :- फादर कामिल बुल्के
Written by श्यामसुन्दर भाटिया सोमवार, 14 सितम्बर 2020 11:07बेल्जियम में जन्मे फादर कामिल बुल्के की जीवनभर कर्मभूमि हिंदुस्तान की माटी रही। हिंदी के पुजारी बुल्के मृत्युपर्यंत हिंदी, तुलसीदास और वाल्मीकि के अनन्य भक्त रहे। ‘कामिल’ शब्द के दो अर्थ हैं। एक- वेदी-सेवक जबकि दूसरा अर्थ है- एक पुष्प का नाम। फ़ादर कामिल बुल्के ने दोनों ही अर्थों को जीवन में चरितार्थ किया। वह जेसुइट संघ में दीक्षित संन्यासी के रूप में ‘वेदी-संन्यासी’ थे और एक व्यक्ति के रुप में महकते हुए पुष्प। फादर बुल्के का हिंदी प्रेम जगजाहिर रहा।
वैदिक ग्रंथों में भी शूद्रों के साथ भेदभाव नहीं है :- कुछ तथ्य
Written by संदीप कुमार गौर रविवार, 13 सितम्बर 2020 13:55देश में दलित विमर्श करने वाले बुद्धिजीवियों द्वारा सनातन धर्म पर शुद्रों के साथ भेदभाव करने का आरोप लगाया जाता है। इसके लिए अक्सर श्रीराम द्वारा शम्बुक का वध किए जाने जैसी घटनाओं का उल्लेख किया जाता है। यदि हम शम्बुक की पूरी कथा और वेदादि शास्त्रों में शुद्रों के लिए दी गई व्यवस्थाओं को देखें तो यह कथा विश्वसनीय नहीं लगती।