भीगी हुई बालू रेत की मधुर सुगंध :- एसपी बालासुब्रमण्यम
Written by अजय बोकील मंगलवार, 29 सितम्बर 2020 20:47एक अच्छे सुगम संगीत श्रोता की तरह बात करूं तो एसपी बालासुब्रमण्यम के रूप में बाॅलीवुड में गूंजने वाली दक्षिण भारत की वो पहली आवाज थी, जो न सिर्फ रेडियो बल्कि टीवी के माध्यम से भी हमारे दिलों तक धंस गई थी। ऐसा स्वर, जिसमें बालू रेत की गंध और अनगढ़ घरौंदे सा आत्मीय तत्व था।
कृषि सुधार विधेयक 2020 के समर्थन और विरोध में दिए जा रहे तर्कों के बीच किसानों का भविष्य उलझ कर रह गया है। सरकार इस बिल को जहां ऐतिहासिक और किसान हितैषी बता रही है तो वहीं विपक्ष इसे किसान विरोधी बता कर इसका विरोध कर रहा है। हालांकि इस राजनीतिक उठापटक से दूर किसान आज भी देश का पेट भरने की चिंता में लगा हुआ है।
धर्मान्तरित को आरक्षण :- दलित ईसाईयों को बेवकूफ बनाता चर्च
Written by आर एल फ्रांसिस मंगलवार, 29 सितम्बर 2020 20:19दलित कैथोलिक चर्च का विचार दलित ईसाइयाें के साथ किसी विश्वासघात से कम नहीं है, उस से धर्मान्तरित ईसाइयाें काे क्या लाभ ? अलग चर्च बनाने से होगा क्या ? अलग चर्च बनाने का विचार पराेसने वाले क्या आश्वस्त हैं कि वेटिकन भारतीय कैथाेलिक चर्च के संसाधनों का उनसे बँटवारा करने के लिए सहमत हाेगा ? अगर दलित ईसाइयों को कैथोलिक चर्च से अपने हिस्से के संसाधन न मिले, ताे नया चर्च क्या कर लेगा। अपनी संख्या बल बढ़ाने के खेल के अलावा फिर बचता ही, क्या है।
भारतीय मीडिया का संकीर्णतावाद और उसकी TRP भूख
Written by डॉक्टर ज्योति सिडाना शनिवार, 26 सितम्बर 2020 19:31मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ कहा जाता है क्योंकि सार्वजनिक जीवन की गुणवत्ता में सुधार करने के एक साधन के रूप में तथा देश के लोकतान्त्रिक चरित्र का प्रचार-प्रसार करने में मीडिया की भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता है. यह एक तथ्य है कि मीडिया समाज के सभी सदस्यों को सूचना देता है, जागरूक बनाता है और लोकतान्त्रिक मूल्यों का विस्तार करता है या कहे कि नागरिकों को सशक्त बनाता है.
ऐतिहासिक गडबड़ी की शुरुआत :- जिन्ना के पिता का धर्मान्तरण
Written by डॉक्टर राकेश कुमार आर्य शनिवार, 26 सितम्बर 2020 19:22वीर सावरकर जी कहा करते थे कि धर्मांतरण से मर्मान्तरण और मर्मांतरण से राष्ट्रांतरण होता है। इसलिए धर्मांतरण अपने आपमें एक बहुत बड़ी बीमारी है ।धर्म परिवर्तन व्यक्ति के मर्म का परिवर्तन कर देता है और वही व्यक्ति समय आने पर राष्ट्रद्रोही होकर राष्ट्र के विभाजन की मांग करने लगता है ।
क्या नई शिक्षा नीति भारत की अपेक्षाओं के अनुरूप है??
Written by डॉक्टर राकेश कुमार आर्य शनिवार, 26 सितम्बर 2020 19:17केंद्र की मोदी सरकार ने अपनी नई शिक्षा नीति लागू कर दी है । इस शिक्षा नीति पर अनेकों शिक्षाशास्त्रियों, समाजशास्त्रियों, विद्वानों और मनीषियों ने अपने-अपने ढंग से लिखा है । अनेकों विद्वानों ने इसके समर्थन में लिखा है तो कुछ ने इसकी आलोचना की है ।वास्तव में किसी भी देश की शिक्षा नीति उसके भविष्य का दर्पण होती है ।
हाल ही में कृषि सुधारों पर बिल किसानों का उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक, 2020; मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा विधेयक, 2020 और किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौता ,आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020 विधेयकों को संसद में 14 सितंबर को लॉकडाउन के दौरान जारी अध्यादेशों को बदलने के लिए पेश किया गया।
गंभीर मुद्दों से ध्यान हटाने में सफल :- चालाक मीडिया और नेता
Written by दीपक कुमार त्यागी बुधवार, 23 सितम्बर 2020 20:19विश्व में भारत की पहचान एक सबसे बड़े पूर्णतः लोकतांत्रिक व्यवस्था को मानने वाले देश के रूप में होती है, जहां पर आम लोगों के द्वारा चुनी गयी सरकार लोकतंत्र के मूल्यों की रक्षा करते हुए जनहित के सभी कार्यों को समय रहते संपन्न कराती रहती है। हमारा प्यारा देश भारत सम्पूर्ण विश्व में अपनी विविधता पूर्ण बेहद गौरवशाली समृद्धशाली संस्कृति के लिए पहचाना जाता है।
स्कूल शिक्षा Vs ऑनलाइन शिक्षा :- कितना नुकसानदायक
Written by प्रो. रसाल सिंह मंगलवार, 22 सितम्बर 2020 19:35वर्तमान समय में कोरोना संक्रमण ने पूरी दुनिया में कहर बरपाया हुआ है। करोड़ों लोग इससे संक्रमित हुए हैं और लाखों की जान जा चुकी है। कोरोना विषाणु ने विश्व के साथ-साथ भारत देश की भी अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचाया है। इसी के साथ बच्चों के दैनंदिन जीवन और शिक्षण को प्रभावित करते हुए उनके भविष्य को चुनौतीपूर्ण बना डाला है।
कश्मीर के सम्राट ललितादित्य के बारे में कितना जानते हैं?
Written by जवाहरलाल कौल मंगलवार, 22 सितम्बर 2020 19:28भारत और विशेषकर जम्मू कश्मीर के इतिहास में ललितादित्य का नाम उनकी शानदार विजय-यात्राओं के कारण प्रसिद्ध रहा है। कुछ लोग मार्तंड मंदिर के कारण भी उन्हें स्मरण करते हैं। लेकिन विकासमान भारत के संदर्भ में अगर वे किसी बात के लिए प्रासंगिक हैं तो उनकी विदेश नीति और अपनी समरनैतिक सूझबूझ के कारण ही हैं।