वाह रे सियासत तेरे रूप हजार। सत्ता की चाहत में राजनेता क्या-क्या नहीं कर गुजरते। सत्ता की चाहत और कुर्सी की लालच में राजनेता सबकुछ कर गुजरने को तैयार रहते हैं। इसका एक ताजा रूप कश्मीर की सियासत में फिर से एक बार देखने को मिला। जम्मू-कश्मीर में धारा 370 की वापसी और तिरंगे को लेकर राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की बयानबाजी ने राज्य ही नहीं देश का सियासी पारा चढ़ा दिया है.
डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत की शर्मनाक आलोचना के निहितार्थ
Written by ललित गर्ग सोमवार, 26 अक्टूबर 2020 20:16अमेरिका में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव बहुत दिलचस्प मोड़ पर पहुंच चुका है। तीन नवम्बर को अमेरिका की आम जनता नए राष्ट्रपति का चुनाव करने के लिए मतदान करेंगी। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनके प्रतिद्वंद्वी जो बाइडेन के बीच सीधा मुकाबला है। इन चुनावों में भारतीय मूल के अमेरीका प्रवासी लोगों की भूमिका भी महत्वपूर्ण है, बावजूद इसके डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर भारत की जिस तरह आलोचना की है, वह न सिर्फ दुखद, विरोधाभासी बल्कि शुद्ध रूप से राजनीति प्रेरित है।
प्रवासी और दिहाड़ी मजदूर भूखे क्यों मरते हैं??
Written by डॉक्टर सत्यवान सौरभ सोमवार, 26 अक्टूबर 2020 20:12सामाजिक सुरक्षा कोष में तेजी लाने की आवश्यकता है ताकि देश के सबसे गरीब और कमजोर तबके को यह वित्तीय सुरक्षा की भावना प्रदान कर सके. एक मजदूर देश के निर्माण में बहुमूल्य भूमिका निभाता है। किसी भी समाज, देश संस्था और उद्योग में काम करने वाले श्रमिकों की अहमियत किसी से भी कम नहीं आंकी जा सकती। इनके श्रम के बिना औद्योगिक ढांचे के खड़े होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
नेताओं की अशोभनीय जुबान पर लगाम कैसे लगेगी??
Written by राकेश कुमार आर्य सोमवार, 26 अक्टूबर 2020 19:11देश में जब भी चुनावी मौसम आता है तो हमारे नेताओं की जुबान फिसलने में देर नहीं लगती । वह एक दूसरे पर हमला करते हुए कितने असंवैधानिक और निम्न स्तर पर उतर आते हैं ,इसका कोई अनुमान नहीं लगा सकता । इतना ही नहीं ,महिलाओं को लेकर भी इनकी जुबान इस स्तर तक फिसल जाती है कि कोई कल्पना भी नहीं कर सकता ।
ड्रग्स, शराब और नशा कारोबार :- सरकार का दोहरापन
Written by तनवीर जाफरी सोमवार, 26 अक्टूबर 2020 19:02फ़िल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की 14 जून 2020 को संदिग्ध परिस्थितियों में हुई अफ़सोसनाक मौत के बाद एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप करने,एक दूसरे को लांछित करने, मीडिया द्वारा इस मुद्दे पर 'नागिन डांस' करते हुए ख़ुद को 'मुंसिफ़' के रूप में पेश करने और इस विषय को झूठ-सच के घालमेल से अनावश्यक रूप से लंबे समय तक खींचने का कोई दूसरा उदाहरण नहीं मिलेगा।
बिहार चुनावों में तेजस्वी और चिराग की कड़ी परीक्षा
Written by नभाटा फीचर्स बुधवार, 21 अक्टूबर 2020 18:48बिहार का चुनाव इस मायने में भी महत्वपूर्ण है कि इसके जरिए इस बात का भी फैसला होगा कि राज्य में अलग-अलग जमातों की नुमाइंदगी करने वाले दो बड़े नेताओं- लालू प्रसाद यादव और रामविलास पासवान ने अपनी राजनीतिक विरासत अपने-अपने बेटे को सौंपने का जो काम किया है, उस पर जनता अपनी मुहर लगाती है या नहीं?
अब चीन के शिकंजे में फँसा हुआ नेपाल छटपटा रहा है..
Written by योगेश कुमार गोयल बुधवार, 21 अक्टूबर 2020 18:33चीन की विस्तारवादी नीतियों के कारण जहां एलएसी पर अप्रैल माह से ही तनावपूर्ण हालात हैं, वहीं चीन की गोद में खेल रहा नेपाल भी अब चीन की इन्हीं नीतियों का शिकार हो रहा है। हाल ही में यह खुलासा होने के बाद कि चीनी सैनिकों ने नेपाल के हुम्ला जिले में सीमा स्तंभ से दो किलोमीटर अंदर तक कब्जा कर लिया है, चीन में हंगामा मचा है।
क्या भाजपा लाल झण्डे, और लालटेन का भय दिखा सकेगी??
Written by मुरलीमनोहर श्रीवास्तव बुधवार, 21 अक्टूबर 2020 18:27बिहार की सियासत में कभी धमक रखने वाली या यों कहें की विपक्षी की भूमिका निभाने वाली वामपंथ अपने अस्तित्व को बचाने के लिए जहां महागठबंधन का हिस्सा बनकर 29 सीटों पर अपनी जोर आजमाइश कर रही है। वहीं एनडीए जो कि शुरुआती दौर से वामपंथ की नीतियों से दूरी बनाकर रखने वाली ने बिहार में वोटरों को ‘लाल झंडा’ का भय से अवगत कराना शुरु कर दिया है।
इतिहास पुस्तकों में गाँधी-नेहरू का अनावश्यक महिमामंडन
Written by शंकर शरण बुधवार, 21 अक्टूबर 2020 18:17हमारे देश की पाठ्य-पुस्तकों में जवाहरलाल नेहरू का गुण-गान होते रहना कम्युनिस्ट देशों वाली परंपरा की नकल है। अन्य देशों में किसी की ऐसी पूजा नहीं होती जैसी यहाँ गाँधी-नेहरू की होती है। अतः जैसे रूसियों, चीनियों ने वह बंद किया, हमें भी कर लेना चाहिए। वस्तुतः खुद नेहरू ने जीवन-भर जिन बातों को सब से अधिक दुहराया था, उसमें यह भी एक था – ‘हमें रूस से सीखना चाहिए’।
महिलाओं को अधिक नोबेल पुरस्कार क्यों नहीं मिलते??
Written by ऋतू सारस्वत सोमवार, 19 अक्टूबर 2020 18:52हाल ही में दो महिला वैज्ञानिकों इमैनुएल शारपेंतिए और जेनिफर डाउड़ना को रसायन विज्ञाने में नोबेल पुरकार मिला। यकीनन यह महिला वैज्ञानिकों के लिए राहत का विषय है, क्योंकि वर्ष 1903 में मैरी क्यूरी के नोबेल जीतने से लेकर अब तक महिलाओं ने विज्ञान में बेशक लंबा सफर तय किया है, लेकिन नोबेल पुरस्कार में उनकी भागीदारी तुलनात्मक रूप से कम ही है।