वह एक हीरों का व्यापारी था. उसने अपने यात्रा वृत्तान्त मे भारत के व्यवसाय और व्यापार तथा भारत मे पैदा होने वाले, और एक्सपोर्ट होने वाले मसालों, हीरा पन्ना जवाहरात, सूती और सिल्क के कपड़े आदि का विस्तृत ब्यौरा दिया है. उसने भारत के हिन्दू समाज के बारे में और निर्यात किए जाने वाले उत्पादों का निर्माण करने वाले लोगों का भी वर्णन किया है. आश्चर्य की बात यह है कि जिन अछूत-शूद्रों को डॉ अंबेडकर (Ambedkar) वेदों के पुरुष-सूक्त से जोड़कर 3000 या 5000 साल से उस अछूतपने का वर्णन करते हैं, और कहते हैं कि इसी कारण शूद्रों को निम्न कार्य करने के लिए बाध्य किया गया, वे “बहुसंख्यक भारतीय अछूत हिन्दू” (Caste System in India) टेवेर्नियर को दिखे ही नहीं? इसका क्या कारण है?
अब सवाल उठता है कि फिर झूठ कौन बोल रहा है? टेवेर्निएर कि अंबेडकर? (Who are Shudras)
टेवेर्नियर ने लिखा है कि “शूद्र” पदाति योद्धा होते थे, यानी पैदल सैनिकों की टुकड़ी. जबकि डॉ आंबेडकर का शूद्र निम्न स्तर के जॉब वाला, लेकिन इतिहास के पन्नों से एक महत्वपूर्ण तबका PAUZCOUR कहाँ गायब हो गया? आश्चर्य होता है जब भारत के इतिहासकार और अछूतोद्धार के योद्धा डॉ अंबेडकर और उनके अवैध वंशज, जो अपने आप को दलित चिंतक कहते हैं, जो भारत मे अछूतों को “3000 साल” से सवर्णों का गुलाम मानते आयें हैं... ब्राह्मणवाद के नाम पर गरीबों को डराकर आज तक मलाई खाते आए इन मूढ़मतियों को फिर से नए अध्ययन की आवश्यकता है.
इस लेख में मैंने Tavernier नाम के एक फ़्रांसिसी की 17वीं शताब्दी के यात्रा वृत्तांत से कुछ पृष्ठों को उद्धृत किया है. भारत के इतिहास लेखन में Tavernier, इतिहासकारों का एक महत्त्वपूर्ण और विश्वस्त सूत्र रहा है. लेकिन न जाने कैसे उसी सूत्र के इन महत्त्वपूर्ण पन्नों को जाने-अनजाने कुछ “कथित इतिहासकारों” ने अपठनीय समझकर छोड़ दिया. आप इस लेख को पढ़ेंगे तो पाएंगे, कि इतिहासकारों ने भारत के इतिहास को किस तरह उपहासजनक तरीके से लिखा है... उसकी मिसाल दुनिया में आपको कहीं अन्यत्र नहीं मिलेगी. इतिहास और उपन्यास दो अलग विधाएँ हैं. भारतीय इतिहासकारों ने भारत के इतिहास को उपन्यास विधि से प्रस्तुत किया है. मात्र 338 वर्ष पहले ट्वेर्निएर ने भारत के हिन्दू समाज का वर्णन किया है. और अचम्भे की बात ये है कि उसने लिखा है कि शुद्र भी क्षत्रियों की तरह ही योद्धा हुआ करते थे. डॉ आंबेडकर ने भी यही सिद्ध करने की कोशिश की थी अपने थीसिस - "शूद्र कौन थे" में. उनके तर्कों में दम तो है लेकिन तथ्य नहीं है. आप टेवेर्निएर के इस लेख को पढ़िए, आप को प्रमाणिक साक्ष्य दिख जाएगा कि डॉ आंबेडकर का लेखन “औपन्यासिक विधा” में प्रस्तुत किया गया तार्किक, परंतु तथ्यहीन इतिहास भर है.
टेवेर्नियर लिखता है.... --
"भारत में मूर्तिपूजकों की संख्या इतनी ज्यादा है की एक मुसलमान की तुलना में 5-6 मूर्तिपूजक होंगे. ये अत्यंत आश्चर्यजनक है कि संख्या में इतना ज्यादा होने के बावजूद ये इस्लामिक बादशाहों के गुलाम बने हुए है. लेकिन आपका आश्चर्य तब समाप्त हो जाता है जब आप पाते हैं कि इन मूर्तिपूजकों के अंदर कोई एकता नहीं है. अन्धविश्वास (जो शास्त्र बाइबिल में न फिट बैठे वो Superistition) ने इनके अंदर इतनी वैचारिक और रीति रिवाजों की भिन्नता पैदा कर दी है कि, इनमें एकता संभव ही नहीं है. एक caste के लोग दूसरी caste के घर खाना नहीं खा सकते हैं, और न ही पानी पी सकते हैं, सिर्फ अपने से उच्च सामजिक वर्ग को छोड़कर. अतः सभी लोग ब्राम्हण के घर खाना खा सकते हैं, या सकते थे, और उनके घर समस्त संसार के लिए खुले हुए हैं. इन मूर्तिपूजकों में Caste शब्द का प्रयोग उसी तरह से है, जैसे पहले यहूदियों में एक ट्राइब होती थी. यद्यपि सामान्यतया ये विश्वास किया जाता है कि यह 72 caste हैं परन्तु मैंने ज्ञानी पंडितों से पता किया, तो पता चला कि ये मुख्यतः 4 caste ही हैं, और उन्ही चारों caste से सभी की उत्पत्ति हुई है.
इसमें प्रथम caste को ब्राम्हण के नाम से जाना जाता है, जो उन प्राचीन ब्राह्मणों और दार्शनिकों के वंशज हैं जो खगोल शास्त्र पढ़ा करते थे. ये आज भी उन्ही प्राचीन पुस्तकों के अध्यन मनन में संलिप्त रहते हैं. ये इस विद्या में इतने निपुण हैं कि सूर्यग्रहण या चंद्रग्रहण की सटीक भविष्यवाणी में एक मिनट की भी चूक नहीं करते. इनकी इस विद्या को सुरक्षित रखने के लिए बनारस नाम का एक नगर में विश्वविद्यालय हैं, जहाँ ये लोग मुख्यतः खगोलशास्त्र का अध्ययन करते हैं. यहाँ और विद्वान लोग भी है जो अन्य शास्त्रों को पढ़ते हैं. ये caste सबसे योग्य (नोबेल) इसलिए मानी जाती है, क्योंकि इन्हीं विद्वानों के बीच से पुजारी और शास्त्रों को पढने वाले शास्त्री चुने जाते है.
दूसरी Caste राजपूत या “Khetris (क्षत्रिय)” के नाम से जानी जाती है, अर्थात योद्धा और सैनिक. ये अकेले ऐसे मूर्तिपूजक हैं जो बहादुर हैं और शस्त्रविद्या में निपुण हैं. टेवेर्नियर लिखता है कि... ज्यादातर राजा जिनसे मैंने बात की है वे इसी caste के हैं. यहाँ छोटी छोटी रियासतों वाले राजा हैं, जो आपसी मतभेद की वजह से मुग़लों की छत्रछाया में रहने को मजबूर हैं. लेकिन जो सेवा ये मुग़लों को देते हैं, उसके बदले में इनको भरपूर सम्मान और सैलरी दिया जाता है. ये राजा और उनके संरक्षण में रहने वाले राजपूत ही मुग़ल शक्ति के आधार स्तम्भ हैं. राजा जयसिंघ और जसवंत सिंह ने ही औरंगजेब को गद्दी पर बैठाया था, लेकिन यहाँ ये उल्लेख करना भी उचित होगा कि दूसरी Caste के समस्त लोग इस शस्त्र व्यवसाय में सन्नद्ध नहीं हैं. वो राजपूत अलग हैं जो घुड़सवार सैनिक के रूप में युद्ध में भाग लेते हैं. लेकिन जहाँ तक Khetris (क्षत्रियो) की बात है, वे अपने बहादुर पूर्वजों से निम्न हो चुके हैं, और हथियार त्यागकर व्यापार (Merchandise) के क्षेत्र में उतर चुके हैं.
तीसरी Caste है, बनियों की जो ट्रेड या व्यापार सँभालते हैं. इन्हीं में से कुछ शर्राफ (Shroff ) जो मनी एक्सचैंजिंग या बैंकर का काम करते है, जबकि कुछ लोग ब्रोकर हैं जिनके एजेंसीज के जरिये व्यापारी (मर्चेंट्स) खरीद फरोख्त करते हैं. इस Caste के लोग इतने व्यवहारिक (Subtle) और व्यवसाय प्रवीण हैं कि ये यहूदियों को भी मात दे सकते हैं. ये अपने बच्चों को बालपन से ही आलस्य से दूर रहने कि शिक्षा देते हैं, और हमारे बच्चों कि तरह आवारागर्दी से रोकते हैं. उनको अंकगणित की मुंहजबानी शिक्षा इस तरह से देते हैं कि वे कठिन से कठिन सवाल का जबाब चुटकियों में दे देते हैं. इनके बच्चे हमेशा पिता के साथ रहते हैं, और ये अपने बच्चो को व्यापार के साथ उसके गुण-दोष समझाते जाते हैं और काम करते जाते हैं. ये जिस संख्या (figures ) का इस्तेमाल करते है उसी का प्रयोग पूरे देश में होता है, चाहे कोई भी भाषा का बोलने वाला हो. यदि कोई व्यक्ति इनसे नाराज होता है, तो ये बिना जबाव दिए धैर्य के साथ सुनते हैं, और चुपचाप वहां से खिसक लेते हैं. फिर चार-पांच दिन बाद जब उस व्यक्ति का गुस्सा शांत हो जाता है तब उससे मिलते हैं. ये हर उस चीज को अभक्ष्य मानते हैं जिसमे प्राण हों. किसी प्राणी कि हत्या करने की बजाय ये स्वयं जान देना पसंद करते हैं. यहाँ तक कि ये कीड़े मकोड़ों की भी हत्या पसंद नहीं करते, और अपने धर्म के पक्के हैं. यहाँ ये भी बता दूँ कि ये लोग युद्ध में भाग नहीं लेते.
चौथी caste को Charados या “Soudra” कहते हैं, ये राजपूतों कि तरह ही युद्ध में भाग लेते हैं लेकिन दोनों में मात्र इतना फर्क है कि राजपूत घुड़सवार योद्धा होते हैं, और ये पदाति योद्धा. दोनों ही युद्ध में जान देने में अपना गौरव समझते हैं. एक योद्धा चाहे वो घुड़सवार हो या फिर पैदल, यदि युद्ध के दौरान मैदान छोड़कर भाग जाता है तो वो हमेश के लिए अपना सम्मान खो देता है, और ये पूरे परिवार के लिए लज्जा का विषय बन जाता है.
अब जो बाकी बचे लोग हैं जो इन चारों caste में समाहित नहीं होते, उनको PAUZECOUR के नाम से जाना जाता है ये सब मैकेनिकल आर्ट (अर्टिसन यानि शिल्प और अन्य उद्योग) का कार्य करते हैं. इनमे आपस में कोई भेद नहीं है, सिवा इस बात के कि वे अलग अलग व्यवसाय करते हैं जो इनको अपने पिता से स्वाभाविक रूप से मिलता है. एक अन्य बात ये है कि उदाहरण के तौर पर यदि मान लीजिये कोई दर्जी कितना भी धनवान क्यों न हो उसको अपने बेटे बेटियों की शादी उसी के व्यवसाय वाले के परिवार में करना होता है. इसी तरह यदि उस दर्जी कि मृत्यु होगी, तो श्मशान घाट पार जाने वाले लोग भी उसी पेशे के होंगे. इसके अलावा एक और विशेष caste होती है, जिसको "हलालखोर" के नाम से जाना जाता है. जो घरों की सफाई का काम करते हैं और इनको हर घर से महीने में कुछ दिया जाता है, घर की साइज के अनुसार. भारत में समृद्ध वर्ग में चाहे वो मोहम्डन हो या मूर्तिपूजक, और चाहे उसके पास पचासों नौकर हों... इनमे से कोई भी नौकर झाड़ू लगाने से परहेज करता है कि उसको संक्रमण न हो जाय. अगर आपको किसी कि बेइज्जती करनी हो तो उसको हलालखोर बोल देना ही पर्याप्त है. यहाँ ये भी बताना जरूरी है कि जिस नौकर को जिस कार्य हेतु रखा गया है, वो बस वही काम करेगा. अगर मालिक ने किसी नौकर को किसी अन्य नौकर का काम करने का आदेश दिया तो वो उसको अनसुना कर देगा. लेकिन “गुलामों” को सब काम करने पड़ते हैं. ये हलालखोर Caste के लोग घरों का कूड़ा उठाते हैं, और इनको जो भी खाने को दिया जाता है उसको खा लेते हैं. मात्र इसी Caste के लोग गधों (asses ) का इस्तेमाल करते हैं, जिसकी मदद से ये घरों का कूड़ा खेतों तक पहुचाते है. इनके अलावा गधों को कोई छूता भी नहीं. जबकि मिस्त्र में गधो का इस्तेमाल बोझ ढोने और सवारी ढोने में दोनों तरह ही प्रयोग किया जाता है. एक अन्य बात ये भी है कि मात्र हलालखोर ही सुअर पालने और खाने वाले लोग है...
उपरोक्त विश्लेषण आपने, "TRAVELS IN INDIA by JEAN BAPTISTI TAVERNIER के फ्रेंच से अनुवादित 1676 एडिशन के पृष्ठ 181 - 186 .से पढ़ा....
अब कुछ प्रश्न और आशंकाये ::
(1) टैवेर्नियर अपनी किताब में शूद्रों को “पदाति सैनिक” बता रहा है. कौटिल्य के अर्थशास्त्र में भी शूद्र सेना का जिक्र है, जो ब्राह्मण सेना से श्रेष्ठ एक खास अर्थ में बताई जाती है, तो कम से कम डॉ अंबेडकर का Menial जॉब (निम्न स्तर की नौकरी) वाला “शूद्र” तो वो बिलकुल भी नहीं था.
(2) सबसे बड़ी बात तो ये है कि उसके लंबे समय के भारत प्रवास के दौरान उसको डॉ अंबेडकर और पेरियार द्वारा वर्णित 3000 साल से आबादी का 80% अछूत, शूद्र, अतिशूद्र दलित दिखाई न दिये? जबकि “हलालखोर” तक का वो बारीक जिक्र करता है... जबकि वह मात्र आज से 340 साल पहले आया था. मनुस्मृति का तो पता नहीं, कब किसने लिखी, लेकिन टेवेर्निएर तो इतिहास का एक अंग है, एक जिंदा सबूत.
(3) Pauzecour - एक प्रमुख शब्द है जिसके अंतर्गत आर्टिसन आते हैं, जो चारो वर्णों के लोगों का एक समूह है. यह समूह अनंत काल से भारत की 25% जीडीपी के शेयर होल्डिंग का निर्माता था. अर्थ व्यवस्था नष्ट हुई, तो शब्दों की यात्रा में ये Pariah से होता हुआ Periyar बन जाता है. ज्ञातव्य हो कि Pariah बाइबिल मे वर्णित एक शब्द है, जिसका अर्थ समाज से त्यागा, गुलाम बनाया हुआ वर्ग समूह.
कहने का मतलब ये है कि प्राचीन भारत में केवल “वर्णाश्रम” पद्धति थी, जाति का नामोनिशान तक नहीं था, लेकिन मुगलों के आगमन के बाद से ही विभिन्न कारणों (क्रूर अत्याचार, युद्ध में पराजय, गुलाम प्रथा इत्यादि) से पहले “शूद्र” शब्द को विकृत किया गया और फिर जातियों में बाँटकर “दलित” शब्द का उदय हुआ. यदि आंबेडकर (अथवा आधुनिक कथित दलित चिन्तक) कहते हैं कि 3000 वर्षों से दलितों(??) पर अन्याय हुआ है, तो या वह साफ़ झूठ बोल रहे हैं या जानबूझकर ऐसे तथ्य आपसे छिपा रहे हैं, जो कि विभिन्न अंगरेजी-फ्रांसीसी-जर्मन लेखकों द्वारा समय-समय पर लिखे जा चुके हैं.
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दलित राजनीति से सम्बन्धित कुछ और तथ्यात्मक लेखों की लिंक इस प्रकार है...
१) चर्च में भेदभाव, दलितों की घरवापसी.... :- http://www.desicnn.com/news/converted-dalits-are-now-cming-back-to-hindu-dharma-because-of-discrimination-in-christianity
२) मुम्बई में दलितों के धंधे पर मुस्लिमों का कब्ज़ा.. :- http://www.desicnn.com/news/mumbai-garbage-mafia-is-now-controlled-by-muslims-throwing-out-dalits
3) विदेशी लेखकों द्वारा ब्राह्मणों पर वैचारिक हमला क्यों?.... :- http://www.desicnn.com/news/western-intellectuals-attack-on-caste-system-and-brahmins-are-most-weird-because-its-part-of-indian-culture