हाल ही में पश्चिम बंगाल से एक और इशरत (Triple Talaq Fighter) जहाँ उभरी है, जो समाज में एक अच्छाई को लेकर चल रही है. जो चाहती है कि उसके समाज की औरतों की हालत बदले, वह एक लौ जलाना चाहती है, मगर यह इस देश का दुर्भाग्य है कि विधर्मी के जीवन की लौ बुझाने के लिए आने वाली आतंकी इशरत के लिए तो सभी साथ में थे, मगर इस अच्छाई वाली इशरत के साथ कोई नहीं, यहाँ तक कि उसका समाज और उसका परिवार भी नहीं. लेकिन यह वाली हिम्मती इशरत आने परिवार और समाज की भलाई के लिए लड़ी और न्याय दिलवाकर ही दम लिया.
वैसे तो कोई बहादुर लड़की किसी से नहीं डरती, वैसे भी भारतीय संस्कृति में लड़कियों का भय अस्वाभाविक परिघटना है. मगर इतिहास गवाह है कि स्त्री केवल और केवल अपने चरित्र के कारण हारती है. यदि कोई स्त्री आगे बढ़ रही है, बस उसके चरित्र पर दाग लगा दो और परे हो जाओ! और दाग लगाने वाला भी कौन? क्या सीता पर दाग लगाने वाला ऐसा था, जिसके कर्म या वचन पर भरोसा किया जाए? सीता ने अपना पूरा जीवन राम और अयोध्या के लिए जिया, और जब राम पर प्रहार करना हुआ तो बार बार सीता का ही सहारा लिया गया, और सीता का नहीं बल्कि उनके चरित्र का. सीता पर जब चरित्रहीनता का आरोप किसी ने लगाया तो ऐसा नहीं था कि वह सीता पर कोई आघात था, बल्कि वह प्रहार था राम पर, जब समाज किसी विद्रोही स्त्री को हरा नहीं पाता हैं, तो वह उसके चरित्र पर ही प्रहार करता है, उसके शरीर पर हमला करता है. आप सभी को याद होगा मशहूर लाल सलामी लेखक खुर्शीद अनवर! खुर्शीद अनवर पर एक ऐसी लड़की के साथ बलात्कार का आरोप था जो उनके घर पर रुक गयी थी. जब बलात्कार की बात सामने आई तो सबसे पहले तो पूरी लाल और उदार लॉबी ने उसी लड़की पर आरोप लगा दिया, कि आखिर वह रुकी क्यों? और सबसे मजेदार बात तो यह है कि महिलाओं के लिए लम्बी-लम्बी बातें करने वाले लोग एकदम से ही उस लड़की के खिलाफ खड़े हो गए. यह अनायास नहीं था, जब समाज एक ऐसे वर्ग का कोई हित पूरा नहीं होता है जो समाज को तोड़ने का काम करता है तो ऐसे में वह स्त्री के चरित्र के माध्यम से ही उस पर प्रहार करता है. यह समाज के एक वर्ग का काम है.
ऐसे ही एक नाम है मणिपुर की शर्मिला ईरोम का, जब तक वह उन लाल और कथित उदार गिरोह के हाथों में रहकर उनकी भाषा बोलती रही, वह प्यारी रही, और जैसे ही उसने शादी कर अपना घर बसाने की बात की, वैसे ही वह इस गैंग की दुश्मन बन गयी और उस पर तमाम तरह के आरोप लगे. असुर प्रवृत्ति के लोग सबसे पहले स्त्री को उसकी देह के आधार पर ही तोड़ते हैं. अब आते हैं आज की बातों पर और आज के हालातों पर. हाल ही में भाजपा सरकार ने मुस्लिम महिलाओं की बेहतरी के लिए कई कदम उठाए हैं, और ऐसा ही एक कदम है एक बार में तीन तलाक को समाप्त करना. और मुस्लिम महिलाओं की लड़ाई में हक़ की आवाज़ बुलंद करने के लिए आगे आई पश्चिम बंगाल की इशरत जहां! इस इशरत को भी चरित्र के आधार पर शांत कराने की कोशिश की जा रही है और असुरों के हाथ का मोहरा है उसकी किशोर वय की पुत्री. कितना कठिन होता है किसी भी औरत के लिए अपनी राह पर चल पाना! उस वाली धूर्त इशरत को पूरे समुदाय ने लाड़-प्यार दिया, और इस इशरत को गंदी औरत कहा जा रहा है, उस इशरत जहाँ को मज़हब की हीरोईन माना गया और इस वाली इशरत जहाँ को उसके मज़हब का नाम खराब करने वाला माना गया.
जब इशरत पर यह आरोप लग रहे थे, उन दिनों हलाला का धंधा कराने वाले लोग भी अपनी कुंठा को किसी भी तरह से छिपाने की कोई कोशिश नहीं कर रहे थे. ये वही दिन थे जब देश के एक कोने में इशरत कहीं बैठकर अल्लाह से कोई शिकवा या शिकायत कर रही होगी तो वहीं तलाक के बाद अपने शौहर से वापस निकाह करने के लिए हलाला का धंधा करने वाले उसके खिलाफ नए षड्यंत्र कर रहे थे.
सवाल कई हैं, सवाल एक पूरे समुदाय से हैं, सवाल पूरी की पूरी कौम से है. ये सवाल हैं कि आखिर कब तक औरत केवल अपने शरीर के आधार पर ही मोहरा बनती रहेगी. एक तरफ इशरत अपने समाज में औरतों का हक़ बुलंद करने के लिए जब अपनी आवाज़ को उठाने का जश्न मनाना चाहती होगी और अपनी उस बेटी को गले लगाना चाहती होगी, जिसे अब शायद अपनी माँ के द्वारा उठाए गए क़दमों के कारण उस जाल में न फंसना पड़े, जिसमें फंसकर उसका जीवन खराब हुआ, तब उसकी वही बेटी उसके समाज के कठमुल्लों के हाथों का खिलौना बनकर उसके ही खिलाफ बहुत कुछ कर रही थी. पश्चिम बंगाल की इशरत जहां उन पांच स्त्रियों में से हैं जिन्होनें उच्चतम न्यायालय में एक बार में तीन तलाक के खिलाफ मोर्चा खोला और जिनकी अपीलों पर ही देश की सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को क़ानून बनाने का निर्देश दिया. हालांकि इशरत को उसके पति ने एक बार में तीन तलाक बोलकर अपनी ज़िन्दगी से निकाल दिया था. मगर अब यह बात बार बार साबित करने की कोशिश की जा रही है, कि उसका शादी के बाहर एक प्रेम सम्बन्ध है जिसके कारण उसके पति ने उसे तलाक दिया. और दुःख की बात यह है कि यह सब उसकी ही बेटी के माध्यम से करवाया जा रहा है. अंग्रेजी, उर्दू और बंगाली में संचालित होने वाले पोर्टल मिलर टाइम्स ने इशरत जहाँ की उस नाबालिग लड़की के साथ संवाद को उसके नाम से पोर्टल पर डाला है. जिसमें एक बात चल रही है, जिसमें समाचार एंकर निम्न सवाल पूछता है:
एंकर :- क्या कोई आदमी आपके घर आता था? क्या आपकी माँ किसी और आदमी से मिलती थी?
एंकर :- “क्या आपने कभी अपनी माँ के किसी और आदमी से मिलने पर कोई आपत्ति दर्ज नहीं की?”
एंकर :- “वह आदमी आपके घर कितनी बार आता था?”
एंकर :- “आपको क्या लगता है कि आपके पिता की गलती थी या आपकी माँ की?”
और इन सभी सवालों के जबाव वह बेचारी लड़की एकदम रटे-रटाए अंदाज़ में देती है. ऐसा कुछ जो पहले से उसे लिखकर दिया गया है. जब उससे पूछा जाता है कि क्या आने वाला व्यक्ति अफराजुल था, तो वह केवल हाँ में सिर हिलाती है. वह यह भी कहती है कि उसकी माँ ने उसे धमकी थी कि अगर उसने किसी को यह सब बताया तो वह उसे मारेगी. उसकी “नाबालिग” बेटी से यह भी कहलवाया जा रहा है कि जो भी हुआ उसमें केवल और केवल उसकी माँ की ही गलती है. उसने तो यहाँ तक कहा कि उसकी माँ को कभी तीन तलाक दिया ही नहीं गया था. इस कहानी में सबसे पहली ही पंक्ति है, कि मेरी माँ चरित्रहीन है. सच, कितना सरल है कह देना किसी भी औरत को चरित्रहीन! और यह कहना कि आखिर क्यों कोई अपनी बीवी बच्चों को छोड़ेगा? मगर यह मजहब के नाम पर होने वाली राजनीति है जो कई औरतों को अपना शिकार बना रही है, जिसमें उन औरतों को तलाक बहुत ही गति से मिल रहा है जो नरेंद्र मोदी की रैली में जा रही हैं, किसी औरत ने अपनी बेटी के लिए फीस मांग ली तो उसे तलाक, इस तलाक ने न जाने कितनी औरतों का जीवन बिगाड़ दिया था और हलाला सेंटरों की कमाई में इजाफा कर दिया था. ये हलाला सेंटर औरतों के जिस्म से खेलने का नया हथियार बन गए थे. और इन्ही सेंटरों के हाथ में पड़कर यह बच्ची आज अपनी माँ के स्थान पर अपने पिता के साथ खड़ी हो गयी है, जो पूरी की पूरी तरह अपनी माँ को ही गलत ठहरा रही है.
गुजरात वाली इशरत के साथ पूरा लाल मीडिया भी था, जबकि इस इशरत तक आने में मीडिया को काफी समय लग गया. और जब वह आया तो अपने एक एजेंडे के साथ, और वह एजेंडा था इशरत के चरित्र पर सवाल उठाकर उसे बदनाम करने का और अपने इस्लामी आकाओं को खुश करने का. वहीं इस तरह के क़दमों का बच्चों के लिए काम करने वाली संस्था क्राई ने विरोध किया है और जब वह लड़की यह सब कहती है कि उनके यहाँ किसी अफराजुल का आना-जाना था, जिसे उसकी माँ ने अपना चाचा बताया था, और उसकी माँ उसके साथ चली गयी थी, तो यह पूरी तरह गैर कानूनी है और मीडिया के खिलाफ कार्यवाही की जानी चाहिए. इशरत जहां अपनी बेटी को इस तरह से उन लोगों के हाथों में खिलौना बनते देखकर बहुत ही गुस्से और आक्रोश में हैं. वह कहती हैं “बच्चे अपने पिता के साथ रहते हैं. वे वही बोलेंगे जो उनसे कहा जाएगा! वे रट्टू तोते की तरह अपने पिता और समाज की भाषा बोलेंगे.” मैं दो साल से अपने भविष्य और हक़ के लिए लड़ रही हूँ, और मुझ पर अपने समुदाय के खिलाफ जाने का भी आरोप लगा है. इशरत प्रेम प्रसंग के बारे में बोलती हैं “मैं हावड़ा में एक संयुक्त परिवार में रहती हूँ, और ऐसे में कैसे यह संभव है कि कोई मर्द मुझसे मिलने आ जाए?”
इशरत के खिलाफ उसके समुदाय के जाने का एक कारण उसका भाजपा में सदस्य बनना भी है. इशरत की कानूनी लड़ाई वैसे तो पुरानी है, मगर वर्ष 2016 में वह उच्चतम न्यायालय में फ़रियाद लेकर गयी थी. इशरत के साथ अत्याचार हालांकि उसके द्वारा तीन बेटियों के जन्म देने के बाद ही शुरू हो गए थे, हालांकि जब उसने बेटे को जन्म दिया, तब भी हालातों में बदलाव नहीं हुआ और उसका पति दूसरे निकाह के लिए बात करता रहा. अपनी तमाम लड़ाइयों को लड़ने के बाद अब इशरत चरित्रहीनता के आरोपों का भी सामना कर रही है. क्या विडंबना है कि मुम्बई वाली जो इशरत पराए लड़कों के साथ पूरी रात का सफर तय कर, एक निर्वाचित मुख्यमंत्री का खून करने के अपने अभियान पर आती है उसके चरित्र पर कोई शक नहीं करता, और दूसरी तरफ इस इशरत के चरित्र पर सवाल उठाने वाले वही लोग हैं, जो नरेंद्र मोदी का विरोध करने के नाम पर रेणुका चौधरी के साथ खड़े हो जाते हैं.
इस पूरे प्रकरण में सबसे प्रमुख सवाल ये है कि क्या चौदह वर्षीय एक “नाबालिग बच्ची” से इस प्रकार के अश्लील सवाल सार्वजनिक रूप से पत्रकार या चैनल द्वारा किए जा सकते हैं? क्या इसमें “पोस्को” क़ानून का मामला नहीं बनता है? तीन तलाक के लिए लम्बी लड़ाई लड़ने वाली इशरत जहाँ के चरित्र पर उंगली उठाने वाले अब इतने निचले स्तर पर उतर आए हैं कि उन्हें एक बच्ची की मदद लेकर उसके जरिए झूठ बुलवाने की नौबत आन पड़ी है?? यह सचमुच बेहद दुर्भाग्यपूर्ण और खतरनाक है. सरकार को इसमें सीधे दखल देना चाहिए और इशरत जहाँ की बच्ची को मानसिक संत्रास से बचाकर, दोषियों के खिलाफ “पोस्को एक्ट” के तहत कार्यवाही करनी चाहिए.
हकीकत में ये सारा “गिरोह” एक खास तरह की बीमारी से ग्रसित हैं और वह है मोदी-फोबिया, या हिन्दू-फोबिया, और इसमें इनका मददगार है यह लाल मीडिया. जिस तरह सावन के अंधे को सब हरा हरा दिखाई देता है, उसी तरह इस चश्मे को लगाने वालों को केवल और केवल मोदी विरोध दिखता है. इसके लिए वे कुछ भी कर सकते हैं, यहाँ तक कि इस तरह भद्दे तरीके से औरतों पर तमाम आरोप लगा सकते हैं, फिर चाहे वह स्मृति ईरानी हो, या फिर इशरत जहाँ...
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१) कांग्रेस का हाथ, वामपंथ और देशद्रोहियों के साथ.. :- http://desicnn.com/blog/jnu-anti-national-congress-and-communists
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