टेलीकॉम इन्जीनियर पिता और प्राथमिक शिक्षिका माता की एक संतान जो अपने मध्यमवर्गीय परिवेश में पला-बढ़ा. इसे बचपन से संगीत और गाने का शौक रहा लेकिन क्रिकेट भी उतना ही प्रिय था. एक बार एमसीसी (MCC Cricket) की टीम उसके स्कूल के विरुद्ध खेलने आई, तो उन्हें एक खिलाड़ी कम पड़ रहा था. 14 वर्ष के इस लड़के ने अपने स्कूल की टीम के खिलाफ एमसीसी की टीम से खेलते हुए शतक ठोंक दिया. पास ही स्थित मैल्डों क्लब में इस किशोर का औसत था 168 रन. इसके ईनाम के एवज में इस किशोर को उस क्लब की मानद आजीवन सदस्यता प्रदान की गई.

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धनुषकोटि, भारतके दक्षिण-पूर्वी शेष अग्रभागपर स्थित हिन्दुआेंका यह एक पवित्र तीर्थस्थल है ! यह स्थान पवित्र रामसेतु का उद्गम स्थान है. ५० वर्षोंसे हिंदुओं के इस पवित्र तीर्थस्थल की अवस्था एक ध्वस्त नगर की भान्ति बनी हुई है. २२ दिसम्बर १९६४ के दिन इस नगर को एक चक्रवात ने पूरी तरह ध्वस्त किया.

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भारत तो स्वतंत्र हो गया. विभाजित होकर..! परन्तु अब आगे क्या..?

दुर्भाग्य से गांधीजी ने मुस्लिम लीग के बारे में जो मासूम सपने पाल रखे थे, वे टूट कर चूर चूर हो गए. गांधीजी को लगता था, की ‘मुस्लिम लीग को पकिस्तान चाहिये, उन्हें वो मिल गया. अब वो क्यों किसी को तकलीफ देंगे..?’ पांच अगस्त को ‘वाह’ के शरणार्थी शिबिर में उन्होंने यह कहा था, की मुस्लिम नेताओं ने उन्हें आश्वासन दिया हैं, की ‘हिन्दुओं को कुछ नहीं होगा’.

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आज की रात तो भारत मानो सोया ही नहीं है. दिल्ली, मुम्बई, कलकत्ता, मद्रास, बंगलौर, लखनऊ, इंदौर, पटना, बड़ौदा, नागपुर... कितने नाम लिए जाएं. कल रात से ही देश के कोने-कोने में उत्साह का वातावरण है. इसीलिए इस पृष्ठभूमि को देखते हुए कल के और आज के पाकिस्तान का निरुत्साहित वातावरण और भी स्पष्ट दिखाई देता है.

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कलकत्ता.... गुरुवार. १४ अगस्त... सुबह की ठण्डी हवा भले ही खुशनुमा और प्रसन्न करने वाली हो, परन्तु बेलियाघाट इलाके में ऐसा बिलकुल नहीं है. चारों तरफ फैले कीचड़ के कारण यहां निरंतर एक विशिष्ट प्रकार की बदबू वातावरण में भरी पड़ी है. गांधीजी प्रातःभ्रमण के लिए बाहर निकले हैं. बिलकुल पड़ोस में ही उन्हें टूटी –फूटी और जली हुई अवस्था में कुछ मकान दिखाई देते हैं. साथ चल रहे कार्यकर्ता उन्हें बताते हैं कि परसों हुए दंगों में मुस्लिम गुण्डों ने इन हिंदुओं के मकान जला दिए हैं. गांधीजी ठिठकते हैं, विषण्ण निगाहों से उन मकानों की तरफ देखते हैं और पुनः चलने लगते हैं. आज सुबह की सैर में शहीद सुहरावर्दी उनके साथ नहीं हैं, क्योंकि उस हैदरी मंज़िल में रात को सोने की उसकी हिम्मत ही नहीं हुई. आज सुबह ११ बजे वह आने वाला है. (पिछला भाग... यानी १३ अगस्त १९४७ की घटनाओं को पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें...

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शुक्रवार, 10 अगस्त 2018 21:20

वे पन्द्रह दिन :- १३ अगस्त, १९४७

मुंबई... जुहू हवाई अड्डा..... टाटा एयर सर्विसेज के काउंटर पर आठ-दस महिलाएं खडी है. सभी अनुशासित हैं और उनके चेहरों पर जबरदस्त आत्मविश्वास दिखाई दे रहा है. यह सभी ‘राष्ट्र सेविका समिति’ की सेविकाएं हैं. इनकी प्रमुख संचालिका यानी लक्ष्मीबाई केलकर, अर्थात ‘मौसीजी’, कराची जाने वाली हैं. कराची में जारी अराजकता एवं अव्यवस्था के माहौल में हैदराबाद (सिंध) की एक सेविका ने उनको एक पत्र भेजा है. उस सेविका का नाम है जेठी देवानी. देवानी परिवार सिंध का एक साधारण परिवार है, जो संघ से जुड़ा हुआ है.

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शुक्रवार, 10 अगस्त 2018 12:42

वे पन्द्रह दिन :- १२ अगस्त, १९४७

आज मंगलवार, १२ अगस्त. आज परमा एकादशी है. चूंकि इस वर्ष पुरषोत्तम मास श्रावण महीने में आया है, इसलिए इस पुरुषोत्तम मास में आने वाली एकादशी को परमा एकादशी कहते हैं. कलकत्ता के नजदीक स्थित सोडेपुर आश्रम में गांधीजी के साथ ठहरे हुए लोगों में से दो-तीन लोगों का परमा एकादशी का व्रत हैं. उनके लिए विशेष फलाहार की व्यवस्था की गई. लेकिन गांधीजी के दिमाग में कल रात को सुहरावर्दी के साथ हुई भेंट घूम रही हैं.

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शुक्रवार, 10 अगस्त 2018 12:16

वे पन्द्रह दिन :- ११ अगस्त, १९४७

आज सोमवार होने के बावजूद कलकत्ता शहर से थोड़ा बाहर स्थित सोडेपुर आश्रम में गांधीजी की सुबह वाली प्रार्थना में अच्छी खासी भीड़ हैं. पिछले दो-तीन दिनों से कलकत्ता शहर में शान्ति बनी हुई हैं. गांधीजी की प्रार्थना का प्रभाव यहां के हिन्दू नेताओं पर दिखाई दे रहा था. ठीक एक वर्ष पहले, मुस्लिम लीग ने कलकत्ता शहर में हिंदुओं का जैसा रक्तपात किया था, क्रूरता और नृशंसता का जैसा नंगा नाच दिखाया था, उसका बदला लेने के लिए हिन्दू नेता आतुर हैं. लेकिन गांधीजी के कलकत्ता में होने के कारण यह कठिन हैं. और इसीलिए अखंड बंगाल के ‘प्रधानमंत्री’ शहीद सुहरावर्दी की भी इच्छा हैं कि गांधीजी कलकत्ता में ही ठहरें.

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दस अगस्त.... रविवार की एक अलसाई हुई सुबह. सरदार वल्लभभाई पटेल के बंगले अर्थात १, औरंगजेब रोड पर काफी हलचल शुरू हो गयी है. सरदार पटेल वैसे भी सुबह जल्दी सोकर उठते हैं. उनका दिन जल्दी प्रारम्भ होता है. बंगले में रहने वाले सभी लोगों को इसकी आदत हो गयी है. इसलिए जब सुबह सवेरे जोधपुर के महाराज की आलीशान चमकदार गाड़ी पोर्च में आकर खड़ी हुई, तब वहां के कर्मचारियों के लिए यह एक साधारण सी बात थी. 

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सोडेपुर आश्रम... कलकत्ता के उत्तर में स्थित यह आश्रम वैसे तो शहर के बाहर ही है. यानी कलकत्ता से लगभग आठ-नौ मील की दूरी पर. अत्यंत रमणीय, वृक्षों, पौधों-लताओं से भरापूरा यह सोडेपुर आश्रम, गांधीजी का अत्यधिक पसंदीदा है. जब पिछली बार वे यहां आए थे, तब उन्होंने कहा भी था कि, “यह आश्रम मेरे अत्यंत पसंदीदा साबरमती आश्रम की बराबरी करता है....” 

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