पिछले १-२ वर्षों में बहुत कुछ बदल गया है, हिंदी के कई खबरिया चैनलों और अख़बारों (परन्तु सभी समाचार चैनल या अखबार नहीं) में अंग्रेजी और रोमन लिपि का इतना अधिक प्रयोग शुरू हो चुका है कि उन्हें हिंदी चैनल/हिंदी अखबार कहने में भी शर्म आती है. मैंने  कई संपादकों को लिखा भी कि अपने हिंदी समाचार चैनल/ अख़बार को अर्द्ध-अंग्रेजी चैनल / अख़बार(सेमी-इंग्लिश) मत बनाइये पर इन चैनलों/ अख़बारों  के कर्ताधर्ताओं को ना तो अपने पाठकों से कोई सरोकार है और ना ही हिंदी भाषा से, इनके लिए हिंदी बस कमाई का एक जरिया है. मुझे विश्वास है कि आने वाले समय में इनकी अक्ल ठिकाने जरूर आएगी क्योंकि आम दर्शक और पाठक के लिए हिंदी उनकी अपनी भाषा है, माँ भाषा है. मुट्ठीभर लोग हिंदी को बर्बाद करने में लगे हैं.

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शुक्रवार, 14 दिसम्बर 2012 07:18

Conspiracy Against Hindi Language through Roman

तेज़ी से बढ़ता अंग्रेजी और रोमन लिपि का इस्तेमाल

नोट  :- (यह लेख मित्र श्री प्रवीण कुमार जैन, वर्त्तमान निवासी मुम्बई, मूल निवासी रायसेन मध्यप्रदेश द्वारा उनके ब्लॉग पर लिखा गया है, हिन्दी के पक्ष में जनजागरण के प्रयासों के तहत, उनकी अनुमति से इसका पुनः प्रकाशन मेरे ब्लॉग पर किया जा रहा है)
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पिछले १-२ वर्षों में बहुत कुछ बदल गया है, हिंदी के कई खबरिया चैनलों और अख़बारों (परन्तु सभी समाचार चैनल या अखबार नहीं) में अंग्रेजी और रोमन लिपि का इतना अधिक प्रयोग शुरू हो चुका है कि उन्हें हिंदी चैनल/हिंदी अखबार कहने में भी शर्म आती है. मैंने  कई संपादकों को लिखा भी कि अपने हिंदी समाचार चैनल/ अख़बार को अर्द्ध-अंग्रेजी चैनल / अख़बार(सेमी-इंग्लिश) मत बनाइये पर इन चैनलों/ अख़बारों  के कर्ताधर्ताओं को ना तो अपने पाठकों से कोई सरोकार है और ना ही हिंदी भाषा से, इनके लिए हिंदी बस कमाई का एक जरिया है.
मुझे विश्वास है कि आने वाले समय में इनकी अक्ल ठिकाने जरूर आएगी क्योंकि आम दर्शक और पाठक के लिए हिंदी उनकी अपनी भाषा है, माँ भाषा है. 
मुट्ठीभर लोग हिंदी को बर्बाद करने में लगे हैं
आज दुनियाभर के लोग हिंदी के प्रति आकर्षित हो रहे हैं, विश्व की कई कम्पनियाँ/विवि/राजनेता हिंदी के प्रति रुचि दिखा रहे हैं पर भारत के मुट्ठीभर लोग हिंदी और भारत की संस्कृति का बलात्कार करने में लगे हैं क्योंकि इनकी सोच कुंद हो चुकी है इसलिए चैनलों/ अख़बारों के कर्ताधर्ता नाम और दौलत कमाते तो हिंदी के दम पर हैं पर गुणगान अंग्रेजी का करते हैं. 
हिंदी को बढ़ावा देने या प्रसार करने या  इस्तेमाल को बढ़ावा देने में इन्हें शर्म आती है इनके हिसाब से भारत की हाई सोसाइटी में हिंदी की कोई औकात नहीं है और ये सब हिंदी की कमाई के दम पर उसी हाई सोसाइटी का अभिन्न अंग बन चुके हैं. इसलिए बार-बार नया कुछ करने के चक्कर में हिंदी का बेड़ा गर्क करने में लगे हुए हैं. 
शुरू-२ में देवनागरी के अंकों (१२३४५६७८९०) को टीवी और मुद्रण से हकाला गया, दुर्भाग्य से ये अंक आज इतिहास का हिस्सा बन चुके हैं और अब बारी है रोमन लिपि की घुसपैठ की, जो कि धीरे-२ शुरू हो चुकी है ताकि सुनियोजित ढंग से देवनागरी लिपि को भी धीरे-२ खत्म किया जाए. कई अखबार और चैनल आज ना तो हिंदी के अखबार/चैनल बचे हैं और न ही वे पूरी तरह से अंग्रेजी के चैनल बन पाए हैं. इन्हें आप हिंग्लिश या खिचड़ा कह सकते हैं.
ऐसा करने वाले अखबार और चैनल मन-ही-मन फूले नहीं समां रहे हैं, उन्होंने अपने-२ नये आदर्श वाक्य चुन लिए हैं जैसे- नये ज़माने का अखबार, यंग इण्डिया-यंग न्यूज़पेपर, नेक्स्ट-ज़ेन न्यूज़पेपर, इण्डिया का नया टेस्ट आदि-आदि. जैसे हिंदी का प्रयोग पुराने जमाने/ पिछड़ेपन की निशानी हो. यदि ये ऐसा मानते हैं तो अपने हिंदी अखबार/चैनल बंद क्यों नहीं कर देते? सारी हेकड़ी निकल जाएगी क्योंकि हम सभी जानते हैं हिंदी मीडिया समूहों द्वारा शुरू किये अंग्रेजी चैनलों/अख़बारों की कैसी हवा निकली हुई है. (हेडलाइंस टुडे/डीएनए/ डीएनए मनी /एचटी आदि).
क़ानूनी रूप से देखा जाए तो सरकारी नियामकों को इनके पंजीयन/लाइसेंस को रद्द कर देना चाहिए क्योंकि इन्होंने पंजीयन/लाइसेंस हिंदी भाषा के नाम पर ले रखा है. पर इसके लिए जरूरी है कि हम पाठक/दर्शक इनके विरोध में आवाज़ उठाएँ और अपनी शिकायत संबंधित सरकारी संस्था/मंत्रालय के पास जोरदार ढंग से दर्ज करवाएँ. कुछ लोग कह सकते हैं ‘अरे भाई इससे क्या फर्क पड़ता है? नये ज़माने के हिसाब से चलो, भाषा अब कोई मुद्दा नहीं है, जो इंग्लिश के साथ रहेगा वाही टिकेगा आदि.
हिंदी के कारण आज के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की ताकत बढ़ रही है और भारत के  कई बड़े समाचार चैनल /पत्रिका/समाचार-पत्र ‘हिंदी’ के कारण ही करोड़ों-अरबों के मालिक बने हैं, नाम और ख्याति पाए हैं पर ये सब होने के बावजूद आधुनिकता/नयापन/कठिनता के नाम पर  हिंदी प्रचलित शब्दों और हिंदी लिपि को अखबार/वेबसाइट/पत्रिका/चैनल हकाल रहे हैं धडल्ले से बिना किसी की परवाह किये रोमन लिपि का इस्तेमाल  कर रहे हैं.
हिंदी के शब्दों को कुचला जा रहा है 
हिंदी में न्यूज़ और खबर के लिए एक बहुत सुन्दर शब्द है ‘समाचार’ जिसका प्रयोग  दूरदर्शन के अलावा किसी भी निजी चैनल पर वर्जित जान पड़ता है ऐसे ही सैकड़ों हिंदी शब्दों (समय, दर्शक, न्यायालय, उच्च शिक्षा, कारावास, असीमित, सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय, विराम, अधिनियम, ज्वार-भाटा, सड़क, विमानतल, हवाई-जहाज-विमान, मंत्री, विधायक, समिति, आयुक्त,पीठ, खंडपीठ, न्यायाधीश, न्यायमूर्ति, भारतीय, अर्थदंड, विभाग, स्थानीय, हथकरघा, ग्रामीण, परिवहन, महान्यायवादी, अधिवक्ता, डाकघर, पता, सन्देश, अधिसूचना, प्रकरण, लेखा-परीक्षा, लेखक, महानगर, सूचकांक, संवेदी सूचकांक, समाचार कक्ष, खेल-कूद/क्रीड़ा, डिब्बाबंद खाद्यपदार्थ, शीतलपेय, खनिज, परीक्षण, चिकित्सा, विश्वविद्यालय, प्रयोगशाला, प्राथमिक शाला, परीक्षा-परिणाम, कार्यालय, पृष्ठ, मूल्य आदि-आदि ना जाने कितने ऐसे शब्द  हैं जो अब टीवी/अखबार पर सुनाई/दिखाई ही नहीं देते हैं ) को डुबाया/कुचला जा रहा है, नये-नये अंग्रेजी के शब्द थोपे जा रहे हैं.
क्या हम अंगेजी चैनल पर हिंदी शब्दों और हिंदी लिपि के इस्तेमाल के बारे में सपने में भी सोच सकते हैं? कदापि नहीं.  फिर हिंदी समाचार चैनलों पर रोमन लिपि और अनावश्यक अंग्रेजी शब्दों का इस्तेमाल क्यों ? क्या सचमुच हिंदी इतनी कमज़ोर और दरिद्र है? नहीं, बिल्कुल नहीं.
हमारी भाषा विश्व की सर्वश्रेष्ठ और अंग्रेजी के मुकाबले लाख गुना वैज्ञानिक भाषा है. जरूरत है हिंदी वाले इस बारे में सोचें.आज जो स्थिति है उसे देखकर लगता है कि भारत की हिंदी भी फिजी हिंदी की तरह कुछ वर्षों में मीडिया की बदौलत रोमन में ही लिखी जाएगी!!!
मुझे हिंदी से प्यार है इसलिए बड़ी खीझ उठती है, दुःख होता है. डर भी लगता है कि कहीं हिंदी के अंकों (१,२,३,४,५,६,७,८,०) की तरह धीरे-२ हमारी लिपि को भी हकाला जा रहा है. आज हिंदी अंक इतिहास बन चुके हैं, पर भला हो गूगल का जिसने इनको पुनर्जीवित कर दिया है.
हिंदी संक्षेपाक्षर क्या बला है इनको पता ही नहीं 

हिंदी संक्षेपाक्षर सदियों से इस्तेमाल होते आ रहे हैं, मराठी में तो आज भी संक्षेपाक्षर का प्रयोग भरपूर किया जाता है और नये-२ संक्षेपाक्षर बनाये जाते हैं पर आज का हिंदी मीडिया इससे परहेज़ कर रहा है, देवनागरी के स्थान पर रोमन लिपि का उपयोग कर रहा है. साथ ही मीडिया हिंदी लिपि एवं हिंदी संक्षेपाक्षरों के प्रयोग को हिंदी के प्रचार में बाधा मानता है, जो पूरी तरह से निराधार और गलत है. 
“मैं ये मानता हूँ कि बोलचाल की भाषा में हिंदी संक्षेपाक्षरों की सीमा है पर कम से कम लेखन की भाषा में इनके प्रयोग को बढ़ावा देना चाहिए और जब सरल हिंदी संक्षेपाक्षर उपलब्ध हो या बनाया जा सकता हो तो अंग्रेजी संक्षेपाक्षर का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए.”
मैं अनुरोध करूँगा कि नए-नए सरल हिंदी संक्षेपाक्षर बनाये जाएँ और उनका भरपूर इस्तेमाल किया जाये, मैं यहाँ कुछ हिंदी संक्षेपाक्षरों की सूची देना चाहता हूँ जो हैं तो पहले से प्रचलन में हैं अथवा इनको कुछ स्थानों पर इस्तेमाल किया जाता है पर उनका प्रचार किया जाना चाहिए, आपको कुछ अटपटे और अजीब भी लग सकते हैं, पर जब हम एक विदेशी भाषा अंग्रेजी के सैकड़ों अटपटे शब्दों/व्याकरण को स्वीकार कर चुके हैं तो अपनी भाषा के थोड़े-बहुत अटपटे संक्षेपाक्षरों को भी पचा सकते हैं बस सोच बदलने की ज़रूरत है.
हिंदी हमारी अपनी भाषा है, इसके विकास की जिम्मेदारी हम सब पर है और मीडिया की ज़िम्मेदारी सबसे ऊपर है.”
हमारी भाषा के पैरोकार की उसे दयनीय और हीन बना रहे हैं, वो भी बेतुके बाज़ारवाद के नाम पर. आप लोग क्यों नहीं समझ रहे कि हिंदी का चैनल अथवा अखबार हिंदी में समाचार देखने/सुननेपढ़ने  के लिए होता है ना कि अंग्रेजी के लिए? उसके लिए अंग्रेजी के ढेरों अखबार और चैनल हमारे पास उपलब्ध हैं.
मैं इस लेख के माध्यम से इन सारे हिंदी के खबरिया चैनलों और अखबारों से विनती करता हूँ कि हमारी माँ हिंदी को हीन और दयनीय बनाना बंद कर दीजिये, उसे आगे बढ़ने दीजिये.
हिन्दीभाषी साथियों की ओर से  मेरा विनम्र निवेदन:
१. हिंदी चैनल/अखबार/पत्रिका अथवा आधिकारिक वेबसाइट में अंग्रेजी के अनावश्यक शब्दों का प्रयोग बंद होना चाहिए.
२. जहाँ जरूरी हो अंग्रेजी के शब्दों को सिर्फ देवनागरी में लिखा जाए रोमन में नहीं.
३. हिंदी चैनल/अखबार/पत्रिका अथवा आधिकारिक वेबसाइट में हिंदी संक्षेपाक्षरों के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए.
आम जनता से एक ज्वलंत प्रश्न:
क्या ऐसे समाचार चैनलों/अखबारों का बहिष्कार कर देना चाहिए जो हिन्दी का स्वरूप बिगाड़ने में लगे हैं ?
कुछ हिंदी संक्षेपाक्षरों की सूची
राजनीतिक दल/गठबंधन/संगठन :
राजग: राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन [एनडीए]
संप्रग: संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन [यूपीए]
तेदेपा: तेलुगु देशम पार्टी [टीडीपी]
अन्ना द्रमुक: अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम[ अन्ना डीएमके]
द्रमुक: द्रविड़ मुनेत्र कषगम [डीएमके]
भाजपा: भारतीय जनता पार्टी [बीजेपी]
रालोद : राष्ट्रीय लोक दल [आरएलडी]
बसपा: बहुजन समाज पार्टी [बीएसपी]
मनसे: महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना [एमएनएस]
माकपा: मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी [सीपीएम]
भाकपा: भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी [सीपीआई]
राजद: राष्ट्रीय जनता दल [आरजेडी]
बीजद: बीजू जनता दल [बीजेडी]
तेरास: तेलंगाना राष्ट्र समिति [टीआरएस]
नेका: नेशनल कॉन्फ्रेन्स
राकांपा : राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी [एनसीपी]
अस: अहिंसा संघ
असे: अहिंसा सेना
गोजमुमो:गोरखा जन मुक्ति मोर्चा
अभागोली:अखिल भारतीय गोरखा लीग
मगोपा:महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी (एमजीपी)
पामक : पाटाली मक्कल कच्ची (पीएमके)  
गोलिआ:गोरखा लिबरेशन आर्गेनाइजेशन (जीएलओ 
)
संस्थाएँ
अंक्रिप = अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद [आईसीसी]
संसंस : संयुक्त संसदीय समिति [जेपीसी]
आस: आयोजन समिति [ओसी]
प्रेट्र:प्रेस ट्रस्ट [पीटीआई]
नेबुट्र:नेशनल बुक ट्रस्ट
अमुको : अंतर्राष्ट्रीय  मुद्रा कोष [आई एम एफ ]
भाक्रिनिम : भारतीय क्रिकेट नियंत्रण मंडल/ बोर्ड [बीसीसीआई]
केमाशिम : केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा मंडल/बोर्ड [सीबीएसई]
व्यापम: व्यावसायिक परीक्षा मंडल
माशिम: माध्यमिक शिक्षा मण्डल
राराविप्रा: राष्ट्रीय राजमार्ग विकास प्राधिकरण [एनएचएआई]
केअब्यू : केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो [सीबीआई]
मनपा: महानगर पालिका
दिननि : दिल्ली नगर निगम [एमसीडी]
बृमनपा: बृहन मुंबई महानगर पालिका [बीएमसी]
भाकृअप : भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद
भाखेम : भारतीय खेल महासंघ
भाओस : भारतीय ओलम्पिक संघ [आईओए]
मुमक्षेविप्रा: मुंबई महानगर क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण [एमएमआरडीए ]
भापुस : भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण [एएसआई]
क्षेपका : क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय [आरटीओ]
क्षेपा: क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी [आरटीओ]
कर: कम्पनी रजिस्ट्रार [आरओसी]
जनवि: जवाहर नवोदय विद्यालय
नविस : नवोदय विद्यालय समिति
सरां: संयुक्त राष्ट्र
राताविनि:राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम [एनटीपीसी]
रासंनि:राष्ट्रीय संस्कृति निधि [एनसीएफ ]
सीसुब: सीमा सुरक्षा बल [बीएसएफ]
रारेपुब: राजकीय रेलवे पुलिस बल
इविप्रा : इन्दौर विकास प्राधिकरण [आईडीए]
देविप्रा: देवास विकास प्राधिकरण
दिविप्रा : दिल्ली विकास प्राधिकरण [डीडीए]
त्वकाब : त्वरित कार्य बल
राराक्षे : राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र [एनसीआर]
भाजीबीनि : भारतीय जीवन बीमा निगम [एलआईसी]
भारिबैं: भारतीय रिज़र्व बैंक [आरबीआई]
भास्टेबैं: भारतीय स्टेट बैंक [एसबीआई]
औसुब : औद्योगिक सुरक्षा बल
अभाआस:अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान [एम्स]
नाविमनि: नागर विमानन महानिदेशालय [डीजीसीए]  
अंओस: अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी)
रासूविके: राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र [एनआईसी]
विजांद: विशेष जांच दल [एसआईटी]
भाप्रविबो:भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड [सेबी]
केरिपुब: केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल [सीआरपीएफ]
भाअअस: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन [इसरो]
भाबाकप: भारतीय बाल कल्याण परिषद
केप्रकबो: केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड [सीबीडीटी]
केसआ:केंद्रीय सतर्कता आयुक्त [सीवीसी]
भाप्रस: भारतीय प्रबंध संस्थान [आई आई एम]
भाप्रौस : भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान [आई आई टी ]
रारेपु:राजकीय रेलवे पुलिस (जीआरपी)
अन्य :
मंस : मंत्री समूह
जासके : जागरण सम्वाद केन्द्र
जाससे:जागरण समाचार सेवा
अनाप्र: अनापत्ति प्रमाणपत्र
इआप: इलेक्ट्रोनिक आरक्षण पर्ची
राग्रास्वामि : राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन [एनआरएचएम]
कृपृउ : कृपया पृष्ठ उलटिए
रासामि : राष्ट्रीय साक्षरता मिशन
रनाटै मार्ग  : रवीन्द्रनाथ टैगोर मार्ग
जलाने मार्ग: जवाहर लाल नेहरु मार्ग
अपिव: अन्य पिछड़ा वर्ग [ओबीसी]
अजा: अनुसूचित जाति [एससी]
अजजा: अनुसूचित जन जाति [एसटी]
टेटे : टेबल टेनिस
मिआसा- मिथाइल आइसो साइनाइट
इवोम- इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन [ईवीएम]
ऑटिवेम: ऑटोमैटिक टिकट वेण्डिंग मशीन
स्वगम: स्वचालित गणना मशीन  [एटीएम]
ऑटैम : ऑटोमेटिक टैलर मशीन [एटीएम]
यूका:यूनियन कार्बाइड
मुम: मुख्यमंत्री
प्रम : प्रधान मंत्री
विम: वित्तमंत्री/ विदेश मंत्री/मंत्रालय
रम : रक्षा मंत्री/ मंत्रालय
गृम : गृह मंत्री/ मंत्रालय
प्रमका: प्रधान मंत्री कार्यालय [पीएमओ]
शिगुप्रक:शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी [एसजीपीसी]  
रामखे:राष्ट्रमंडल खेल [सीडब्ल्यूजी]
पुमनि:पुलिस महानिदेशक [डीजीपी] 
जहिया:जनहित याचिका [पीआइएल]
गैनिस: गैर-निष्पादक सम्पतियाँ (एनपीए)
सभागप:समर्पित भाड़ा गलियारा परियोजना
सानियो: सामूहिक निवेश योजना [सीआईएस)  
अमलेप:अंकेक्षक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी)
सराअ :संयुक्त राज्य अमरीका  [यूएसए]
आक: आयकर
सेक : सेवाकर
वसेक : वस्तु एवं सेवा कर [जीएसटी]
केविक: केन्द्रीय विक्रय कर [सीएसटी]
मूवक: मूल्य वर्द्धित कर [वैट]
सघउ : सकल घरेलु उत्पाद [जीडीपी]
नआअ: नगद आरक्षी अनुपात [सीआरआर]
प्रमग्रासयो: प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना
विस: वित्त समिति, विधानसभा, वित्त सचिव
प्रस: प्रचार समिति
व्यस :व्यवस्था समिति
न्याम: न्यासी मण्डल
ननि : नगर निगम
नपा: नगर पालिका
नप: नगर पंचायत
मनपा : महा नगर पालिका
भाप्रा: भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग
भापाके : भाभा परमाणु अनुसन्धान केन्द्र
केंस: केंद्र सरकार
भास: भारत सरकार
रास: राज्य सरकार/राज्यसभा
मिटप्रव: मिट्रिक टन प्रति वर्ष (एमटीपीए) 

सानिभा: सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) 

निरह: निर्माण-रखरखाव-हस्तान्तरण (ओएमटी)

निपह: निर्माण-परिचालन-हस्तान्तरण  (बीओटी)

तीगग: तीव्र गति गलियारा  (हाई स्पीड कोरिडोर)

भाविकांस: भारतीय विज्ञान कांग्रेस संघ

फ़िल्में :
ज़िनामिदो : जिंदगी ना मिलेगी दोबारा [ज़ेएनएमडी]
दिदुलेजा: दिलवाले दुल्हनिया ले जाएँगे [डीडीएलजे]
पासिंतो :पान सिंह तोमर
धारावाहिक:
कुलोक : कुछ तो लोग कहेंगे,
जीइकाना: जीना इसी का नाम है,  
दीबाह: दीया और बाती हम

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लेखक : श्री प्रवीण कुमार जैन...
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गुरुवार, 11 अक्टूबर 2007 17:13

भाषा, उच्चारण और वर्णमाला (भाग-५)

Phonetics, Language, Alphabets in Hindi

अब तक पिछले चार भागों में हम उच्चारण के मूलभूत सिद्धांत, विभिन्न उच्चारक, उनकी स्थितियाँ, व्यंजन और अनेक परिभाषाओं के बारे में जान चुके हैं। इस भाग में हम जानेंगे स्वरों के बारे में।
पहले भाग में मैंने स्वरों की जो सूची दी थी, उसमें अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, ऋ और लृ को स्थान दिया था। इस पर कुछ पाठकों ने शंका व्यक्त की थी कि ‘अं’ और ‘अः’ को इसमें शामिल क्यों नहीं किया गया है। इसका कारण समझने की कोशिश करें–

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मंगलवार, 09 अक्टूबर 2007 12:43

भाषा, उच्चारण और वर्णमाला (भाग-४)

Phonetics, Language, Alphabets in Hindi

‘अ’ की तरह ‘ह’ को भी सभी वर्णों का प्रकाशक कहा जाता है। कोई भी वर्ण बिना विसर्ग और अकार के बिना उच्चारित नहीं हो सकता। अ ही नाभि की गहराई से उच्चरित होने पर विसर्ग बन जाता है। इस प्रकार अ स्वयं अपने में से अपना विरोधी स्वर उत्पन्न करता है। तात्पर्य यह कि अ से ह तक की वर्णमाला में विसर्ग और अकार किसी ना किसी रूप में मौजूद रहते हैं।

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शुक्रवार, 05 अक्टूबर 2007 21:02

भाषा, उच्चारण और वर्णमाला (भाग-३)

Phonetics, Language, Alphabets in Hindi

(भाग-२ से जारी...)

कभी-कभी आश्चर्य होता है, अपने मुँह से हम इतने सारे शब्द, इतनी ध्वनियाँ कैसे निकालते हैं, यही तो हमारे वाणी तंत्र की विशेषता है। मानव का वाणी तंत्र नाभि से होंठ तक होता है, यह ध्वनि का एक अद्‌भुत उपकरण है। मनुष्य का वाणी तंत्र सर्वाधिक विकसित होता है। अन्य प्राणियों, पशु-पक्षियों में यह तंत्र इतना विकसित नहीं होता, इसीलिये उनकी ध्वनियाँ बहुत सीमित होती हैं। चिड़िया सिर्फ़ चीं-चीं करती सुनाई देती है, शेर-गाय-बकरी आदि की ध्वनियाँ भी सीमित हैं। लेकिन मनुष्य में हर वर्ण का एक अलग स्थान से उच्चारण होता है। इस तंत्र के ज्यादा से ज्यादा इतने हिस्से तय किये गये हैं कि प्रत्येक वर्ण के लिये एक-एक स्थान निर्धारित है।

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Phonetics, Language, Alphabets in Hindi

(भाग-१ से जारी...)
हमारी सृष्टि अक्षर से उत्पन्न होती है, इनका क्षरण नहीं होता इसलिये ये अक्षर कहलाते हैं। हमारी भाषा भी अक्षरों पर आधारित होती है, इन अक्षरों का भी क्षरण नहीं होता। अक्षर में स्वर और व्यंजन दोनों आते हैं, इन्हें वर्ण भी कहा जाता है। ये सारे वर्ण ध्वनि पर आधारित हैं, ध्वनि ही नाद है, और यह नाद सम्पूर्ण आकाश में व्याप्त रहता है - सूक्ष्म रूप में। इसीलिये आज वैज्ञानिक, कृष्ण द्वारा कही गई गीता को अंतरिक्ष से प्राप्त करने के प्रयास में जुटे हैं।

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Hindi Computing Hindi Diwas

जब मैंने पिछली पोस्ट (हिन्दी दिवस भाग-१ : हिन्दी के लिये आईटी उद्योग ने क्या योगदान किया?) लिखी, उसमें मैंने हिन्दी के कतिपय निस्वार्थ सेवकों का मात्र उल्लेख किया था। अब इस भाग में मैं उनके कामों पर कुछ रोशनी डालूँगा। हालांकि यह जानकारी ब्लॉग जगत में रमने वाले को आमतौर पर है, लेकिन ब्लॉग जगत के बाहर भी कई मित्र, शुभचिंतक हैं जिन्हें यह जानकारी उपयोगी, रोचक और ज्ञानवर्द्घक लगेगी। उन्हें यह पता चलेगा कि कैसे संगणक पर हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओं के बारे में बिखरे तौर पर ही सही लेकिन समाजसेवियों ने काम शुरु किया, उसे आगे बढाया, प्रचारित किया, मुफ़्त में लोगों को बाँटा, नेटवर्क तैयार किया, उसे मजबूत किया और धीरे-धीरे हिन्दी को कम्प्यूटर पर आज यह मुकाम दिलाने में सफ़ल हुए।

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“बाराहा” के वासु, “अक्षरमाला” के श्रीनिवास अन्नम, “कैफ़े-हिन्दी” के मैथिली गुप्त, लिनक्स हिन्दीकरण के महारथी रवि रतलामी, “गमभन” के ओंकार जोशी, प्रभासाक्षी के बालेन्दु शुक्ल, “वेबदुनिया” के विनय छजलानी, हिन्दी ब्लॉगिंग और हिन्दी कम्प्यूटिंग को आसान बनाने वाली हस्तियाँ अविनाश चोपड़े, रमण कौल, आलोक कुमार, हरिराम जी, देबाशीष, ई-स्वामी, हिमांशु सिंह, श्रीश शर्मा....और इन जैसे कई लोग हैं... ये लोग कौन हैं? क्या करते हैं? कितने लोगों ने इनका नाम सुना है?....मैं कहता हूँ, ये लोग “हिन्दी” भाषा को कम्प्यूटर पर स्थापित करने के महायज्ञ में दिन-रात प्राणपण से आहुति देने में जुटे हुए “साधक” हैं, मौन साधक।

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रविवार, 11 मार्च 2007 16:26

Hindi Language in India and Hindi Diwas

"सुद्ध" नहीं "शुद्ध" हिन्दी बोलो / लिखो


हमारी राष्ट्रभाषा अर्थात हिन्दी, जिसकी देश में स्थापना के लिये अब तक न जाने कितने ही व्यक्तियों, विद्यालयों और संस्थाओं ने लगातार संघर्ष किया, इसमें वे काफ़ी हद तक सफ़ल भी रहे हैं । अब तो दक्षिण से भी हिन्दी के समर्थन में आवाजें उठ रही हैं, और हमारी प्यारी हिन्दी धीरे-धीरे लोकप्रिय हो रही है और अब इसे कोई रोक भी नहीं सकता । वैसे भी "बाजार"की ताकतें बहुत बडी हैं और हिन्दी में "माल" खींचने की काफ़ी सम्भावनायें हैं इसलिये कैसे भी हो हिन्दी का झंडा तो बुलन्द होकर रहेगा । तमाम चैनलों के चाकलेटी पत्रकार भी धन्धे की खातिर ही सही टूटी-फ़ूटी ही सही, लेकिन हमें "ईराक के इन्टेरिम प्रधानमन्त्री मिस्टर चलाबी ने यूएन के अध्यक्ष से अधिक ग्रांट की माँग की है" जैसी अंग्रेजी की बघार लगी हिन्दी हमें झिलाने लगे हैं, खैर कैसे भी हो हिन्दी का प्रसार तो हो रहा है ।

परन्तु हिन्दी बेल्ट (जी हाँ, जिसे अंग्रेजों और हमारे तथाकथित बुद्धिजीवियों की एक जमात ने "गोबर पट्टी" का नाम दे रखा है, पता नहीं क्यों ?) अर्थात उत्तरप्रदेश, बिहार, राजस्थान और मध्यप्रदेश के रहवासी शुद्ध हिन्दी लिखना तो दूर, ठीक से बोल भी नहीं पाते हैं, यह एक दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य है । इन प्रदेशों को हिन्दी का हृदय-स्थल कहा गया है, अनेक महान साहित्यकारों की जन्मभूमि एवं कर्मभूमि यही चारों प्रदेश रहे हैं और इस पर गर्व भी किया जाता है । हिन्दी साहित्य को अतुलनीय योगदान इन्हीं प्रदेशों की विभूतियों ने दिया है । इन्हीं चारों प्रदेशों का गठन भाषा के आधार पर नहीं हुआ, इसलिये जहाँ बाकी राज्यों की हिन्दी के अलावा कम से कम अपनी एक आधिकारिक भाषा तो है, चाहे वह मराठी, तमिल, तेलुगू, कन्नड़, मलयालम, उडिया, बंगाली, पंजाबी, मणिपुरी, कोंकणी आदि हों, वहीं दूसरी ओर से इन चारों हिन्दी प्रदेशों की आधिकारिक भाषा हिन्दी होते हुए भी आमजन में इसकी भीषण दुर्दशा साफ़ देखी जा सकती है । इन प्रदेशों में, मालवी है, बुन्देलखंडी है, बघेली, निमाडी़, भोजपुरी, अवधी और भी बहुत सी हैं.... गरज कि हिन्दी को छोडकर सभी अपनी-अपनी जगह हैं, और हिन्दी कहाँ है ? हिन्दी अर्थात जिसे हम साफ़, शुद्ध, भले ही अतिसाहित्यिक और आलंकारिक ना हो, लेकिन "सिरी बिस्वास" (श्री विश्वास) जैसी भी ना हो । ऐसी हिन्दी कहाँ है, क्या सिर्फ़ उपन्यासों में, सहायक वाचनों, बाल भारती, आओ सुलेख लिखें जैसी किताबों में । आम बोलचाल की भाषा में जो हिन्दी का रूप हमें देखने को मिलता है उससे लगता है कि कहीं ना कहीं बुनियादी गड़बडी है । यहाँ तक कि प्रायमरी और मिडिल स्कूलों में पढाने वाले कई अध्यापक / अध्यापिकायें स्नातक और स्नातकोत्तर होने के बावजूद सरेआम... "तीरंगा" और "आर्शीवाद" लिखते हैं, और यही संस्कार (?) वे नौनिहालों को भी दे रहे हैं, फ़िर उनके स्नातकोत्तर होने का क्या उपयोग है ? आम तौर पर देखा गया है कि 'श' को 'स' और 'व' को 'ब' तो ऐसे बोला जाता है मानो दोनों एक ही शब्द हों और उन्हें कैसे भी बोलने पर कोई फ़र्क नहीं पड़ता । "अरे बिस्नू जी जे डीस तो बासेबल है" (विष्णु जी यह डिश वाशेबल है) सुनकर भला कौन अपना सिर नहीं पीट लेगा ?

लेकिन जैसा कि पहले ही कहा गया कि मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश के कुछ हिस्सों में ऐसी हिन्दी बोलना कतई गलत नहीं माना जाता, बल्कि यह आम बोलचाल की भाषा बन गई है, लेकिन हिन्दी ही कहलाती है । कई स्थानीय चैनलों के समाचारों में 'चेनल' (चैनल), टावर चोक (चौक), बेट (बैट) और रेट (रैट) हमेशा सुनाई दे जाता है, जो कि बडा़ भद्दा लगता है । लेकिन जब "बिद्या" प्रदान करने वाले ही गलत-सलत पढायेंगे तो भविष्य में उसे ठीक करना मुश्किल हो जाता है । इसके मूल में है शुद्ध संस्कृत के अध्ययन का अभाव । जो अध्यापक या विद्यार्थी संस्कृत की तमाम क्रिया, लकारों के साथ शुद्ध बोल पायेंगे वे कभी भी हिन्दी में बोलते समय या लिखते समय "ब्योपारी", "बिबेक" या "संबिधान संसोधन" जैसी गलती कर ही नहीं सकते । रही-सही कसर हिन्दी को "हिंग्रेजी" बना देने की फ़ूहड़ कोशिश करने वालों के कारण हो रही है । खामख्वाह अपनी विद्वत्ता झाडने के लिये हिन्दी के बीच में अंग्रेजी शब्दों को घुसेड़ना एक फ़ैशन होता जा रहा है । यदि अंग्रेजी शब्द सही ढंग और परिप्रेक्ष्य में बोला जाये तो भी आपत्ति नहीं है, लेकिन "छत पर बाऊंड्री वॉल" (अर्थात पैराफ़िट वॉल), या "सिर में हेडेक", "सुबह मॉर्निंग में ही तो मिले थे", "उन्हें बचपन से बहुत लेबर करने की आदत है इसीलिये आज वे एक सेक्सीफ़ुल व्यक्ति हैं" सुनकर तो कोई भी कपडे़ फ़ाडने पर मजबूर हो जायेगा ।

जब किसी बडे अधिकारी या पढे-लिखे व्यक्ति के मुँह से ऐसा कुछ सुनने को मिलता है तो हैरत के साथ-साथ क्षोभ भी होता है, कि वर्षों से हिन्दी क्षेत्र में रहते हुए भी वे एक सामान्य सी साफ़ हिन्दी भी नहीं बोल पाते हैं और अपने अधीनस्थों को सरेआम "सांबास-सांबास" कहते रहते हैं, किसी अल्पशिक्षित व्यक्ति या सारी जिन्दगी गाँव में बिता देने वाले किसी वृद्ध के मुँह से ऐसी हिन्दी अस्वाभाविक नहीं लगती, लेकिन किसी आईएएस अधिकारी या प्रोफ़ेसर के मुँह से नहीं । इसलिये हमें "दुध" (दूध), "लोकि" (लौकी), "शितल" (शीतल) आदि लिखे पर ध्यान देने की आवश्यकता तो है ही, बल्कि क्या और कैसे बोला जा रहा है, क्या उच्चारण किया जा रहा है, इस पर भी विचार करने की आवश्यकता है । आईये प्रण करें कि भविष्य में जब कभी किसी से "पीछे का बैकग्राऊंड", "आगे का फ़्यूचर", "ओवरब्रिज वाला पुल", "मेरा तो बैडलक ही खराब है", जैसे वाक्य सुनाई दे जायें तो तत्काल उसमें सुधार करवायें, भले ही सामने वाला बुरा मान जाये...

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