छुआछूत और दलित :- वामपंथी पाठ्यक्रम से बाहर की तथ्यात्मक पुस्तकें...
भारत के आज के दलित विमर्श को समझना हो तो आपको वर्ष 1930 से पहले के लिखी पुस्तकों को पढऩा चाहिए। इससे हमें पता चलता है कि वर्ष 1750 से 1900 के बीच भारत की जीडीपी विश्व जीडीपी का 25 प्रतिशत से घटकर मात्र 2 प्रतिशत बचती है और जिसके कारण 800 प्रतिशत लोग बेरोजगार और बेघर हो जाते हैं।
"दलित" कौन हैं? यह शब्द कहाँ से आया? -- तथ्य एवं इतिहास जानें
कहा जाता है कि पुष्यमित्र शुंग के काल में ब्राह्मण और दलित जैसा विभाजन था, जबकि यह विभाजन मुसलमानों और अंग्रेजों की देन है। उन्होंने अपने समय में जो हमारी पुस्तकों से खिलवाड़ किया और हमारे समाज की वर्ण व्यवस्था को समझ नहीं सके। मुसलमानों को शेख सैयद, मुगल व पठान जैसे विशेषणों वाली जाती व्यवस्था की आदत थी और अंग्रेजों में स्टूअर्ट, बार्बू, हेनरी और हॉनऑवर जैसी उच्च जाति व्यवस्था की।
केरल में दलित युवक की हत्या :- अब दलित चिन्तक मौन
कुछ वर्ष पहले का एक मामला शायद पाठकों को याद हो. आगरा में विश्व हिन्दू परिषद् के नेता अरुण माहौर की दिनदहाड़े बीच बाज़ार में “कसाईयों” ने हत्या कर दी थी, क्योंकि अरुण माहौर लगातार गौहत्या के खिलाफ अभियान चलाए हुए थे.
शूद्र मामले में झूठ कौन बोल रहा :– टेवेर्नियर या अम्बेडकर??
सबसे पहले टेवेर्नियर (Tavernier) के बारे में... यह व्यक्ति एक फ्रांसीसी यात्री था, जिसने 1630 से 1668 के बीच ईरान और भारत की 6 बार यात्रा की थी, और वह भारत में एक लाख 20 हजार मील से अधिक घूमा.