१९ वीं सदी में दुनिया में विस्तार पाते यूरोपीय साम्राज्यवाद और पूंजीवाद की पृष्ठभूमि को स्पष्ट करते हुए अपनी पुस्तक ‘ग्लिम्पसेस ऑफ़ वर्ल्ड हिस्ट्री’ में जवाहरलाल नेहरु बताते है कि ये वो समय था जब कहा जाता था कि आगे बढ़ती सेना के झंडे का अनुसरण उसके देश का व्यापार करता था. और कई बार तो ऐसा भी होता था कि बाइबिल आगे-आगे चलती थी, और सेना उसके पीछे- पीछे.

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हाल ही में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडनवीस की पत्नी श्रीमती अमृता फडनवीस (Amruta Fadnavis) की कुछ तस्वीरें सोशल मीडिया पर आईं, जिसमें उन्हें किसी रेडियो चैनल के लिए क्रिसमस आयोजनों का आरम्भ करते हुए “सांता क्लाज़” (Santa Claus) का प्रचार करते हुए देखा गया.

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अक्सर आपने “बुद्धिपिशाचों” को ये कहते सुना-पढ़ा होगा, कि हिंदुओं में दलितों की स्थिति बहुत खराब है और उनके साथ होने वाले भेदभाव एवं अत्याचारों के कारण वे चर्च के प्रलोभनों (Conversion in Dalits) में आ जाते हैं और धर्म परिवर्तन कर लेते हैं.

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भारत में जातीय और धार्मिक विमर्श के तहत दो झूठ आपने अक्सर कई वर्षों से सुने होंगे. पहला झूठ आपने सुना होगा कि “...इस्लाम और ईसाईयत में कोई जातिवाद नहीं है, इस्लाम और ईसाई पंथ के अनुयायियों में कोई भेदभाव नहीं होता..., इसलिए हे दलितों, हमारी तरफ आ जाओ...”

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ईसाई समाज शिक्षित समाज रहा है। इसलिए वह कोई भी कार्य रणनीति के बिना नहीं करता। बड़ी सोच एवं अनुभव के आधार पर ईसाईयों ने अपनी प्रचार नीति अपनाई है। ईसाईयों के धर्मान्तरण करने की प्रक्रिया तीन चरणों में होती हैं।

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