इतिहास के कई झूठे सिद्धांतों को अब भी किताबों में पढ़ाया जा रहा है। उसी में से एक है – आर्य आक्रमण सिद्धांत। (Aryan Invasion Theory) इस सिध्धांत को भ्रम फैलाने के लिए ही अंग्रेजो ने औपनिवेशिक काल में फैलाया था। उसका सीधा सा उद्देश्य था की इस देश पर हिंदु के जितना ही मुसलमान और अंग्रेज का अधिकार है। आर्य आक्रमण सिद्धांत एक बहुत ही चालाकी से अभ्यासक्रम में डाला गया सफेद झूठ है। इस सिद्धांत का गलत उपयोग आज भी कथित दलित पार्टियां और साम्यवादी दल करते है। साथ ही में उच्च वर्ण के हिंदुओ को बाहर से आया हुआ कह कर गरियाते रहते है। उनकी दृष्टि से विध्वंसक मुग़ल और आर्य दोनों ही बाहर से आए है। ऐसे में इस नकली थ्योरी को बाबासाहब के चश्मे से देखना जरूरी हो जाता है।

बाबासाहब आंबेडकर ने महात्मा ज्योतिबा फुले (Jyotiba Fule) को अपना गुरु माना था, उन्होंने प्रतिपादित किया था की आर्य बाहर से आए, और यहां के अछूतो को यानि की अनार्यो को अपना बंदी बनाया। लोकमान्य बालगंगाधर तिलक जो की हिंदु संस्कृति के श्रेष्ठ अध्येता थे उन्होंने भी यही माना था की आर्यो का मूल वतन उत्तर ध्रुव के पास में ही है। साथ ही में अछूतो के उद्धार के लिए आंदोलन के पुरोधा गोपालबाबा बलंगजी ने भी कहा था की अछूत यहां के मूलनिवासी थे और आर्य बाहर से आए एवं यहां के अछूत को उन्होंने गुलाम बनाया, दक्षिण भारत में पेरियार का भी मत यही था।

 

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लेकिन बाबासाहब आंबेडकर ने कोई पूर्वानुमान लगाने की बजाय इसका अभ्यास करना उचित समझा। उन्होंने वेदों का अभ्यास कर के एक पुस्तक लिखी जो कि काफी लोकप्रिय भी है- “Who were Shudras?” (शूद्र कौन थे?) उस पुस्तक में वह यूरोपियन और औपनिवेशक इतिहासकारो द्वारा प्रचलित झूठ का तर्कबद्ध रूप से खंडन करते है। सारांश के रूप में मैं कुछ अंश प्रस्तुत कर रहा हूँ। ये सभी तर्क बाबासाहब आंबेडकर द्वारा प्रस्तुत किए गए थे.... 

झूठ: आर्यवंश के लोगो ने वेद का निर्माण किया। यह वंश मूल रूप से बहार से आया था और उन्हों ने भारत पर आक्रमण किया।

तर्क: आर्य शब्द वेदो में ३३ बार प्रयुक्त हुआ है। वह कहते है की आर्य शब्द गुणवाचक है , जिसका अर्थ श्रेष्ठ होता है। यह शब्द वंशवाचक नहीं है। आर्यवंशीय लोगो ने दस्युओं को बंदी बनाया और भारत पर आक्रमण किया इसका वेदो में कोई प्रमाण नहीं है।

झूठ: आर्य का वर्ण गोरा था, दस्यु का वर्ण काला था। भारत के मूलनिवासी दस्यु थे।
तर्क: वेदो में इसका कोई प्रमाण नहीं है की आर्य और दस्यु के बीच वांशिक भेद था। वेदो में जब भी कहीं यह शब्द आते है तो उसका संबंध वंश से न होकर पूजा-पद्धति से है।

झूठ (लोकमान्य तिलक की धारणा):- जैसा की शुरुआत में ही लिखा की लोकमान्य तिलक आर्य को उत्तर ध्रुव का यानि की एंटार्कटिक का मानते है।
तर्क: बाबासाहब कहते है की, ‘अश्व’ यानि की घोड़े की आर्य के जीवन में बहुत ही महत्वता थी। जबकि एंटार्कटिक में तो घोडा है ही नहीं। इससे यह धारणा भी निराधार हो जाती है।

झूठ: आर्यों ने दास और दस्यु को गुलाम बनाया, उन्हें ‘शूद्र’ नाम दिया गया।
तर्क:- वेद की दृष्टि से आर्य के साथ दास और दस्यु की भिड़ंत स्थानीय थी।

इसके अलावा भी बाबासाहब आंबेडकर इस पुस्तक के प्रकरण नंबर ४ में शूद्र विरुद्ध आर्य में आर्य आक्रमण सिद्धांत का बहुत ही आलोचनात्मक ढंग में खंडन करते है। नृवंशशास्त्र और इतिहास में रूचि रखने वालो को यह प्रकरण अवश्य ही पढ़ना चाहिए. बाबासाहब आंबेडकर के अलावा स्वातंत्र्यवीर वीर विनायक दामोदर सावरकर अपनी पुस्तक ‘हिंदुत्व’ और राष्ट्रिय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर भी अपनी पुस्तक ‘वी, आर आवर नेशनहुड डिफाइंड’ में आर्य के आक्रमण सिद्धांत का विवेचनात्मक खंडन करते है। वह कहते है कि सभी जातियां भारत में जन्मी थी, उनका बाहर से आने का कोई प्रमाण नहीं है और सभी हिंदु आर्य है।

संदर्भ :
Who were Shudras By Dr. Ambedkar
‘कहीं से हम आए थे नहीं’ – डॉ. विजय कायत (पांचजन्य विशेषांक, अप्रैल २०१५)
‘सब से पहले मेरा देश’- भि. रा. इदाते (पांचजन्य विशेषांक, अप्रैल २०१५ 

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साभार :- India Facts

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कुछ दिनों पहले तमिलनाडु में (जहाँ कि ब्राह्मण विद्वेष अपने चरम पर है), पेरियार के चेलों ने एक नया तमाशा रचा था। वैसे तो पहले भी इन “विकृत मानसिकता वाले” लोगों ने सेलम, तमिलनाडु में ही भगवान राम की प्रतिमा को जूते की माला पहनाकर उनका जुलुस निकाला था।

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भारत में बाबा साहब आंबेडकर के नाम पर कई राजनैतिक और सामाजिक “दुकानों” ने अपने-अपने अर्थों के अनुसार “स्टॉल” लगाए हैं, तथा बाबासाहब के आदर्शों, उनके कथनों एवं उनके तथ्यों को तोड़मरोड़ कर उनकी दुकानदारी के अनुसार जनता के सामने पेश किया है.

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