मुंबई में सारस्वत बैंक के अध्यक्ष से लेकर लगातार 4 बार लोकसभा के सदस्य, दो बार राज्यसभा के सदस्य, अटल जी के मंत्रिमंडल से लेकर मोदी जी के मंत्रिमंडल में कई अहम विभागों में अपनी सेवाएं देने वाले सुरेश प्रभु पर कभी किसी ने कोई आरोप नहीं लगाया। न मीडिया में उन पर लगे किसी आरोपों पर चर्चा हुई, न विपक्ष के नेताओं ने कभी उन पर कोई आरोप लगाए। मंत्री बनते ही अपने घर पर ये लिखवा देना कि कोई भी व्यक्ति किसी भी तरह का उपहार या फूलों का गुलदस्ता लेकर न आए, प्रभु साहब जैसा व्यक्ति ही कर सकता है।
आज पूरा देश लॉकडाउन और कोरोना की वजह से निराशा और अनिश्चिततता के माहौल से गुज़र रहा है, लेकिन सुरेश प्रभु ने इस माहौल में भी अपनी सक्रियता को विराम नहीं दिया। मार्च से लेकर अब तक वे 200 से ज्यादा वेबिनॉरों के माध्यम से दुनिया के कई दिग्गजों से संवाद कर चुके हैं।
कोरोना की इस विषम परिस्थिति में उद्योग, कृषि, छोटे व मझले उद्योग, बैंक, सामाजिक संस्थानों से लेकर शासन और प्रशासन से लेकर अस्पतालों की क्या भूमिका होना चाहिए, ऐसे तमाम विषयों पर प्रभु साहब ने जिस तरह से अपनी बात कही है, अगर वो वीडियो स्कूल और कॉलेजों में दिखाए जाएं तो देश की नई पीढ़ी को आने वाले सालों के देश के राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक व औद्योगिक स्थितियों के बारे में बेहतर जानकारियां मिल सकती है।
संसद से लेकर सड़क तक सुरेश प्रभु की एक ऐसी छवि बनी है कि उनका नाम सुनते ही उनके विरोधी भी उनके कायल हो जाते हैं। 'न काहू से दोस्ती ना काहू से बैर' की नीति पर चलने वाले सुरेश प्रभु को आज की राजनीति के ढांचे में फिट करना मुश्किल है। विनम्रता की हद तक विनम्र और समय की पाबंदी से लेकर सादगी उनके व्यक्तित्व में ऐसी रची बसी है कि पहली बार उनसे मिलने वाला कोई भी व्यक्ति ये देखकर हैरान रह जाता है कि वह इतने लोकप्रिय और कद्दावर नेता के सामने है। मिलने वाला प्रभु को नहीं भूल पाता है और न प्रभु साहब कभी उसको भूलते हैं। न प्रचार की कोई चाहत न मीडिया की सुर्खियों में रहने का शौक।
रेलमंत्री थे तो किसी भी नई गाड़ी को झंडी दिखाने के लिए बड़े-बड़े कार्यक्रमों का आयोजन करने की बजाय अपने कार्यालय में बैठकर ही उसको डिजिटल माध्यम से हरी झंडी दे दी। किसी भी काम को करेंगे तो न कोई शोर-शराबा, न कोई दिखावा। काम के प्रति दीवानगी ऐसी कि जहां तक हो वहां तक पूरा समय अपने ऑफिस को देना और घर आकर देऱ रात तक हर विषय पर अध्ययन करना।
प्रभु साहब किसी भी विषय पर बगैर देखे और बगैर लिखा भाषण पढ़े बोल सकते हैं। हर बार वे अपने धारदार तर्कों और आंकड़ों से हैरान कर देते हैं। वो वैश्विक अर्थव्यवस्था पर बोल रहे हों या देश की अर्थ व्यवस्था पर, बड़े उद्योगों की दशा और दिशा पर बोल रहे हों या लघु उद्योंगों पर, किसानों की समस्या पर बोलें या व्यापारियों के मुद्दों पर, उनका हर वक्तव्य किसी छोटे मोटे शोध ग्रंथ जैसा होता है। लॉकडाउन की वजह से दिल्ली में रहने को मजबूर हैं, मगर अपने कोंकण क्षेत्र के काजू उत्पादकों की ट्रांसपोर्ट की समस्या हो या आंध्रप्रदेश के मछुआरों की समस्या, उसकी तह में जाकर तत्काल संबंधित केंद्रीय मंत्री के सामने समस्या और समाधान दोनों प्रस्तुत करने का काम प्रभु साहब जैसा व्यक्ति ही कर सकता है।
इसके साथ ही लॉकडाउन की वजह से किसी अनजान व्यक्ति का कोई पारिवारिक सदस्य या बेटा या बेटी विदेश में फंसा हो तो उसको भी हर तरह की मदद पहुंचाने का काम प्रभु साहब करते रहे। जिन विषयों पर बोलने में अच्छे से अच्छे विद्वान और राजनीतिज्ञ कतराते हैं, प्रभु साहब उन पर घंटों बोल सकते हैं और कई नए-नए तथ्यों और आंकड़ों से आपको चौंका सकते हैं। प्रभु साहब जब बोलते हैं तो उनके चेहरे को देखिए, न कोई अभिमान न ये दिखावा कि मैं कोई बहुत बड़ी बात बताने जा रहा हूं, सब-कुछ इतनी सहजता से बोल जाते हैं कि सुनने वाले ठगे से रह जाते हैं।
जिन पुस्तकों और शोध का हवाला वो अपने भाषणों में देते हैं, उनके बारे में कई लोग पहली बार ही सुन रहे होते हैं। प्रभु साहब चीन की आर्थिक बाजीगरी पर भी पूरे अधिकार से बोलते हैं और विवेकानंद के जीवन के अध्यात्मिक अनुभवों पर भी। नवरात्रि में पूर्ण उपवास करते हुए गर्म पानी पीकर पूरे नौ दिन आराधना करने वाले सुरेश प्रभु अध्यात्म के साथ ही अपने धर्म और परंपराओं के प्रति भी उतने ही समर्पित हैं जितने अपने काम के प्रति। प्रभु साहब दुनिया के कई देशों में कई अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों में, व्याख्यानों में, सेमिनारों में ऐसे ऐसे मंचों पर जलवायु परिवर्तन, आर्थिक नीतियों, पर्यावरण से लेकर जल संकट पर अपने विचार व्यक्त करते हैं, जहां दुनियाभर के दिग्गज और कई बार तो संबंधित देशों के राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री तक मौजूद होते हैं, वहां उनके व्याख्यान मिसाल बन जाते हैं।
दुनिया का कोई ऐसा राष्ट्राध्यक्ष नहीं होगा जो प्रभु साहब को व्यक्तिगत रूप से नहीं जानता होगा। किसी भी कार्यक्रम के लिए दुनियाभर से भारत आने वाले प्रतिनिधिमंडल, विशेषज्ञ, सांसद, मंत्री, राजनेता, राष्ट्राध्यक्ष प्रभु साहब से जरूर मिलते हैं। राजनीति में उन्होंने क्या ग़जब पहचान बनाई। स्व. बाल ठाकरे उनको राजनीति में लाए। इसका भी रोचक किस्सा है। जब स्व. बाल ठाकरे सामना अखबार शुरू कर रहे थे तो कोई बैंक उनको लोन देने को राजी नहीं था, मगर सुरेश प्रभु ने सारस्वत बैंक के अध्यक्ष के रूप में स्व. ठाकरे को दैनिक सामना के लिए लोन दे दिया। उनकी इस बात पर स्व. ठाकरे ऐसे फिदा हुए कि उन्हें राजापुर से शिवसेना से चुनाव लड़वा दिया। सुरेश प्रभु पहली बार चुनाव लड़े और राजापुर से लोकसभा चुनाव जीते।
इसके आगे का किस्सा तो और भी जोरदार है। सुरेश प्रभु साहब मुंबई के खार के अपने छोटे से फ्लैट में बैठे थे, तभी वहां जनता पार्टी के नेता स्व. मधु दंडवते आए, वो सुरेश प्रभु साहब को जनता पा्र्टी की ओर से राजापुर से अगला चुनाव लड़़वाना चाहते थे। स्व. मधु दंडवते 1977 से 1989 तक राजापुर से ही चुनाव जीतते आ रहे थे, लेकिन इससे भी मजेदार बात तो ये थी कि शरद पवार प्रभु साहब को एनसीपी से राजापुर सीट से चुनाव लड़वाना चाहते थे। जिस देश में लोकसभा की सीटें करोडो़ं रुपये में बिकती है, उस देश में एक व्यक्ति को तीन धुर विरोधी पार्टियां आगे रहकर चुनाव लड़वाने को उत्सुक हों तो उस आदमी की विश्वसनीयता और योग्यता का ग्राफ कितना ऊंचा होगा। ऐसी विश्वसनीयता देश के किसी भी राजनीतिज्ञ ने शायद ही हासिल की हो।
सुरेश प्रभु 4 बार लगातार एक ही सीट राजापुर से लोकसभा चुनाव जीते हैं और दो बार राज्यसभा के लिए चुने गए। नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में वे 2015 से 2017 तक रेल मंत्री, 2017 से 2019 तक केंद्रीय वाणिज्य, उद्योग एवं नागरिक उड्डयन मंत्री रहे। रेल मंत्री बने तो ट्विटर पर रेल यात्रियों के चहेते हो गए। चलती गाड़ी में बच्चों को दूध और बिस्किट भिजवाने से लेकर बीमारों को दवाइयां और दिव्यांगों के लिए स्टेशन पर व्हील चेअर भिजवा कर प्रभु साहब ने पूरी दुनिया में भारतीय रेलवे की एक अलग मानवीय पहचान बना दी। आज वे जी20 और जी 7 देशों के लिए माननीय प्रधानमंत्री के शेरपा के रूप मे अपनी सेवाएं दे रहे हैं और दुनियाभर के राष्ट्राध्यक्षों से निरंतर संपर्क कर हर मंच पर भारतीय आर्थिक हितों का पक्ष पूरी दृढ़ता से रख रहे हैं। अटल जी के मंत्रिमंडल में पहली बार 1996 में उदयोग मंत्री बने। 1998 से 1999 तक केंद्र में वन एवंं पर्यावरण मंत्री रहे। 1999 से 2000 तक केंद्रीय रासायनिक एवं उर्वरक मंत्री रहे।
वर्ष 2000 से 2002 तक केंद्रीय उर्जा मंत्री रहे तो दिल्ली के लुटियन जोन में बिजली चोरी करने वाले राजनेताओं, ऊंचे पदों पर बैठे अफसरों की शामत सी आ गई। बड़े-बड़े बंगलों में बिजली चोरी करने वालों की प्रभु साहब ने ऐसी धरपकड़ शुरू की कि हर महीने लाखों करोड़ों की बिजली चोरी रुक गई। केंद्र में प्रभु जिस भी विभाग में रहे, उसमें ऐसे ऐसे सुधार किए जो वर्षों से सरकारी फाइलों में धूल खा रहे थे। प्रभु साहब ने सस्ती लोकप्रियता पाने की बजाय उन सुधारों पर ध्यान दिया जो बीज की तरह थे। ये सुधार दिखते तो नहीं थे मगर अंधकार में पड़ा बीज जब वृक्ष बनकर फल-फूल और छाया देने लगता है तो बीज का महत्व समझ में आता है। आज देश बिजली को लेकर जिस तेजी से आत्मनिर्भर हो रहा है और देशभर में सौर ऊर्जा को लेकर जो जागरुकता फैली है वो सुरेश प्रभु की दूरदर्शिता का ही नतीजा है।
सौर ऊर्जा को उन्होंने सरकारी फाइलों से निकालकर लोगों के घरों तक पहुंचाया और ऐसे कानून बनाए कि अपने घरे से लेकर अपने कारखानों तक में सौर ऊर्जा पैदा करने वाला कोई भी व्यक्ति अपन ज़रुरत के हिसाब से बिजली का उपयोग कर बाकी की बिजली विद्युत विभाग को बेच सकता है। उनकी इस सोच ने देश में सौर ऊर्जा के क्षेत्र में क्रांति कर दी। इसी तरह उन्होंने उत्तर पूर्व के सुदुर क्षेत्रों में बिजली की कमी को देखते हुए वहां बांध निर्माण पर जोर दिया और बिजली के ट्रांसफार्मेशन में होने वाले लॉस को लगातार कम कर देश को बिजली के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में मील के पत्थर बने।
(चंद्रकांत जोशी)