एक युवा इंजीनियर ने सियाचिन में किया कमाल...

Written by शनिवार, 04 मई 2019 12:48

सभी भारतीयों के दिल में भारत की सेना के प्रति आदर एवं स्वाभिमान की मजबूत भावना सदैव रही है, जो कि स्वाभाविक ही है. सीमा पर निरंतर दक्षता और सावधानी के साथ देश की सुरक्षा करना एवं इस दौरान अपने प्राणों का बलिदान देने जैसे महान कार्य हमारी सेना ने पिछले कई वर्षों में किए हैं.

जैसा कि सभी जागरूक नागरिक जानते हैं, लद्दाख की पर्वत श्रृंखला में स्थित भारत का “सियाचिन” नामक एक बर्फीला स्थान (ग्लेशियर) है, जहाँ भारत के 1000 सैनिक सदैव तैनात रहते हैं. समुद्र तल से 18850 फुट ऊँचाई पर स्थित इस स्थान को दुनिया का सबसे खतरनाक युद्ध स्थल माना जाता है, क्योंकि यहाँ पर सामान्य तापमान माईनस तीस होता है, जबकि कभी कभी यह माईनस पचास तक भी पहुँच जाता है. सैनिक के पूरे जीवनकाल में सियाचिन पर उसकी तैनाती केवल एक बार ही तीन या छः माह के लिए की जाती है. ऐसे खतरनाक और बर्फीले स्थान पर सैनिकों की जीवन रेखा है “केरोसीन” (जिसे कहीं-कहीं घासलेट भी कहा जाता है). जवानों का खाना पकाने, कपड़े धोने की मशीनों, बर्फ में चलने वाले स्कूटरों के ईंधन, प्रकाश व्यवस्था जैसे विविध कामों के लिए सियाचिन की चौकियों पर केरोसिन की माँग सदैव रहती है. सैकड़ों बैरल केरोसिन प्रति सप्ताह (या कभी-कभी प्रतिदिन) सियाचिन में पहुँचाना पड़ता है, ताकि वहाँ स्थित सैनिकों का जीवन थोड़ा सा आसान बने.

केरोसिन पहुँचाने के लिए जहाँ तक सड़क मार्ग है, वहाँ तक तो सेना के ट्रकों से केरोसिन की ढुलाई की जाती है, लेकिन उससे आगे केरोसिन के ड्रमों को हेलीकॉप्टरों से ही सियाचिन तक ले जाना पड़ता था. सियाचिन की इस सामरिक स्थिति, सेना के इस मेहनत वाले कार्य एवं केरोसिन की ढुलाई में होने वाले खर्चों के बारे में पुणे के एक युवा इंजीनियर सुधीर मुतालिक ने पढ़ा. यह बात है 1997 की... अर्थात कारगिल युद्ध से पहले की. सुधीर मुतालिक युवा थे, और उनके मन में भी भारतीय सेना के लिए कुछ उपयोगी कार्य करने की प्रबल इच्छा थी. हाल ही में उन्होंने विभिन्न प्रकार के लेकिन विशिष्ट शैली के पंपों एवं पम्पिंग सिस्टम का बिजनेस शुरू किया था. सुधीर के मन में एक विचार आया कि क्या मैं अपने इस ज्ञान का उपयोग सेना की मदद करने में लगा सकता हूँ??

अर्थात सुधीर मुतालिक के मन में आया कि क्या मैं अपने पंपिंग और पाईप वाले ज्ञान से केरोसिन को सियाचिन तक पहुँचा सकता हूँ?? परन्तु शुरू में तो यह केवल एक विचार ही था, एक ऐसा विचार जो किताबी तो सही था, परन्तु व्यावहारिक दृष्टि से इस पर काफी काम किया जाना था. इस कार्य में अड़चनें कोई कम नहीं थीं. सबसे महत्त्वपूर्ण अड़चन यह थी कि इस “फ्ल्यूड ट्रांसफर सिस्टम” का ढाँचा खड़ा करने के लिए सियाचिन जैसे इलाके में बिजली ही नहीं थी. अर्थात बिजली से चलने वाले कोई भी उपकरण अथवा मशीन वहाँ काम नहीं कर सकते थे. दूसरी कठिनाई यह थी कि भीषण ठण्ड और ऋणात्मक तापमान में इन मशीनों को चलना भी चाहिए. जहाँ तक सड़क मार्ग है, वहाँ से कई किलोमीटर दूर केरोसिन का प्रवाह सुचारू रूप से ले जाने वाले पाईपों को बिछाना... दोनों ही कार्य चुनौतीपूर्ण थे. सबसे महत्त्वपूर्ण यह कि सेना को विश्वास दिलाना था कि हाल ही अपना बिजनेस आरम्भ किया हुआ एक युवा इंजीनियर यह काम कर सकेगा या नहीं...

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(अपनी टीम और सेना के सदस्यों के साथ सुधीर मुतालिक)

विभिन्न प्रश्नों, अडचनों, विभिन्न स्तरों पर भेंट/इंटरव्यू, इस समूचे प्रकल्प के ब्लूप्रिंट की जाँच, शोधकार्य तथा कई फील्ड ट्रायल्स (व्यावहारिक जाँच) करने के बाद अंततः सेना ने सुधीर मुतालिक के कौशल, ज्ञान एवं उत्साह को देखते हुए हरी झंडी दिखा ही दी. 1997 के अंत में मुतालिक की टीम ने सियाचिन में अपना कार्य आरम्भ किया. 1998 के अंत तक अर्थात कुछ ही माह में दो स्पेशल पम्प सियाचिन की फील्ड पर स्थापित किए जा चुके थे. एक पम्प से एक घंटे में 200 लीटर केरोसिन पाईप द्वारा पहुँचाया जाने लगा. ऐसे ही विभिन्न पम्पिंग स्टेशन प्रत्येक ढाई-तीन किमी की दूरी पर स्थापित के जाने थे, परन्तु सेना के वरिष्ठ अधिकारी सुधीर के कार्य से प्रसन्न थे. क्योंकि इस “जुगाड़ तकनीक” से केरोसिन का सियाचिन पहुँचाना सुगम भी था, और दूसरी बात यह कि हेलीकॉप्टरों द्वारा केरोसिन की ढुलाई करना बेहद खर्चीला काम था (इसमें प्रतिदिन एक करोड़ रूपए का खर्च आता है), सरकार का वह पैसा भी कम लग रहा था. दूसरी महत्वपूर्ण बात यह कि जो हेलीकाप्टर केरोसिन की ढुलाई में लगते थे, उनका उपयोग दूसरी सामरिक गतिविधियों में किया जाने लगा. जब मुतालिक का पहला प्रकल्प सफलता से पूरा होकर काम करने लगा, तो उन्होंने देखते ही देखते कुछ वर्षों में अपने पम्पों और पाईपलाईन को ठेठ सियाचिन की अग्रिम चौकियों तक पहुँचा दिया... और इस प्रकार हम कह सकते हैं कि पिछले बीस वर्षों में सुधीर मुतालिक ने अपने केरोसिन पम्पिंग प्रोजेक्ट के माध्यम से न केवल सेना का कार्य सरल किया है, बल्कि देश के करोड़ों रूपए भी बचाए हैं.

भारतीय सेना के लिए एक आम नागरिक भी अपना योगदान किस प्रकार दे सकता है, इसका साक्षात उदाहरण हैं इंजीनियर सुधीर मुतालिक. प्रत्येक नागरिक को अपने दैनंदिन जीवन में सेना की तरह अनुशासित, समयबद्ध एवं दक्ष होना चाहिए... सेना के प्रति यही हमारा कर्तव्य एवं आदरांजलि भी है.

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