क्षोभ का आधार यह है कि इन्हें हिंदुओं का प्रतिनिधित्व करना चाहिए था, हिंदू हितों की रक्षा करनी चाहिए थी... वह नहीं हो रहा. कांग्रेस ने निरंतर हिंदू हितों का अनादर किया, अवहेलना की, इसीलिए हिंदुओं ने एकजुट होकर मोदी जी को जिताया और अब मोदी भी कांग्रेस के नेताओं की ही भाषा बोलने लगे हैं. उसी प्रकार के सर्वधर्म समभाव वाले हो गए हैं, जिसका भारत में अर्थ है धर्म और अधर्म के प्रति समभाव वाले होना तथा हिंदुओं पर जो दो अत्यंत विशाल और संगठित समूह का प्रचंड दबाव और आक्रमण है, जिनसे हिंदू घिरा हुआ है और जो सार्वजनिक रूप से घोषणा करते फिर रहे हैं. एक समूह कहता है कि हम संपूर्ण भारत को मुसलमान बनाएंगे और दूसरा समूह कहता है कि हम संपूर्ण भारत को ईसाई बनाएंगे और दोनों की सेवा में कम्युनिस्टों का लावारिस बेरोजगार झुण्ड लगा हुआ है, ऐसी स्थिति में संघ और भाजपा (RSS, Modi and Hindutva) से हिंदुओं के हित और कल्याण की दिशा में कोई कदम उठाने की अपेक्षा थी, जो विफल रही है.. ! अपनी जगह यह बात पूर्ण सत्य है परंतु इसको शांत चित्त से समझने की और मनन करने की आवश्यकता है.
इस संदर्भ में मुझे महात्मा गांधी जी याद आते हैं .जब उनसे उस समय के लोगों ने कहा कि यह जो कांग्रेसी हैं आपके इर्द-गिर्द, जवाहरलाल नेहरू से लेकर सारे ही उस समय के नेहरूवादी किस्म के कांग्रेसी तो कहा कि यह तो आपके किसी भी विचार को नहीं मानते और आप इनका साथ क्यों दे रहे हैं, जबकि आप कांग्रेस छोड़ चुके हैं, इस पर गांधी जी ने कहा कि अंग्रेज जा रहे हैं और भारत को संभालना है और ठीक एंन मौके पर मैं किन को साथ लूँ? यह जीवन भर के हमारे परखे हुए नेता हैं, उनकी कमियां और दोष तथा खूबियां हम जानते हैं, इनसे तो हम कुछ काम ले भी लेंगे, नए लोग जिनको हम जानते पहचानते नहीं, उन्हें कहां से अचानक सत्ता के शिखर पर बैठा दें? मित्रों ,गांधी जी से बहुत सारी असहमतियां मेरी भी हैं और सबकी होती हैं लेकिन वे अत्यंत परिपक्व नेता थे यह तो मानना पड़ेगा. उन्होंने जो चाहा वह कई बार प्राप्त कर लिया, कई बार नहीं प्राप्त किया, परन्तु गांधी जी की यह बात बहुत समझने बूझने वाली है.
कम से कम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विषय में अपने अत्यंत लंबे अनुभव के आधार पर मैं यह निश्चित जानता हूं कि संघ के सभी प्रमुख लोग ह्रदय से हिंदुओं का संगठन चाहते हैं ,एक संगठित समाज चाहते हैं और हिंदू राष्ट्र (Hindu Awareness) की स्थापना चाहते हैं... जिसमें सनातन धर्म की पूर्ण प्रतिष्ठा हो और सनातन धर्म के अनुरूप भारत राष्ट्र परम वैभव को प्राप्त करें. नरेंद्र मोदी इसी प्रवाह में दीक्षित हुए हैं, यह अलग बात है कि उनके व्यक्तित्व में कुछ अन्य पक्ष भी होंगे, उन्होंने शायद दुनिया की राजनीति को ज्यादा ठीक से देखा है और एक सफल राजनेता को किस प्रकार वर्तमान राजनीतिक शक्तियों से तालमेल करना चाहिए, हिंदुत्व वाली बात उपेक्षित करके वह उसी तालमेल की दिशा में बढ़ गए .परंतु वे संघ से निकले हैं, इस तथ्य को भूलना नहीं चाहिए. दूसरे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पूरी तरह हिंदुत्व को समर्पित है (Hindutva Forces in India), इस सत्य को अनदेखा नहीं करना चाहिए.
दूसरी तरफ यह भी उतना ही महत्वपूर्ण है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से निकले हुए बड़े राजनेता एक भी ऐसे नहीं निकले, जो हिंदुत्व को भारतीय राजनीति के केंद्र में ला सकें जो भारत के विभिन्न मंत्रालयों में सनातन धर्म की प्रतिष्ठा कर सके ,यहां तक कि जो भारत के संविधान में सरलता से होने वाले इस संशोधन को ला सकें कि भारत का राज्य बहुसंख्यकों के धर्म को भी वैसा ही संरक्षण देगा, जैसा अल्पसंख्यकों के मजहब को देता है. इतना सा संशोधन भी तो सरलता से संसद में लाया जा सकता था, और जिस के विरोध की कांग्रेस हिम्मत नहीं कर सकती थी. वह भी भाजपा वाले नहीं कर सके. किसी भी क्षेत्र में सनातन धर्म की प्रतिष्ठा से भाजपा के किसी नेता का कोई संबंध कभी दिखा नहीं.
तीसरी बात यह है कि स्वयं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जिसका लक्ष्य हिंदू समाज का संगठन था, वह हिंदू समाज का संगठन तो बहुत दूर की बात है, स्वयं भाजपा को संगठित नहीं रख सका. भाजपा में एक दूसरे का गला काटने को तैयार परस्पर विरोधी गुट हैं , यह एक सर्वविदित सत्य है. तो इसका अर्थ है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को इस पर मनन करना चाहिए था कि क्या वह हिंदू समाज का संगठन करने के मार्ग पर सही रूप से चल रहा है या वह किसी ऐसे मार्ग पर चल रहा है जिसकी या तो उसे जानकारी नहीं है या हिंदू समाज को आवश्यकता नहीं? बहरहाल... यह संघ और भाजपा के सोचने की चीजें हैं. हमारे सोचने वाली बात ये है कि इतने वर्षों तक जिन्होंने निरंतर हिंदुत्व के लिए काम किया, व्यक्तिगत रूप से भी हम सभी जानते हैं, वह सत्ता पर पहुंचकर हिंदुत्व के लिए कुछ भी नहीं कर पा रहे हैं तो इसमें हिंदू समाज के काम करने के तरीके में कोई बड़ी कमी है, जो अभी आ गई है, पहले तो ऐसा नहीं था. 1947 ईस्वी तक हिंदू समाज अपने लक्ष्य को प्राप्त कर रहा था अपने-अपने ढंग से और 90 वर्षों में एक अत्यंत विशाल संगठित अंग्रेज शासन को उखाड़ फेंका. तो संघ ने और हिन्दुओं ने अपने राजनीतिक कौशल का कोई परिचय १९४७ ईस्वी के बाद नहीं दिया और सनातन धर्म के प्रतिनिधियों ने भारत के समाज और राज्य में सनातन धर्म की प्रतिष्ठा कर पाने की कोई समर्थ क्षमता नहीं दिखाई.
शत्रु मित्र विवेक का अभाव, राजनीतिक प्रशिक्षण का अभाव, सूक्ष्म बुद्धि का अभाव, आदि जो भी कमियां हैं जो हिंदू नेताओं को शासन में आने पर हिंदुत्व से रहित अथवा हिंदुत्व की नीतियां लागू करने में अक्षम, असमर्थ, नपुंसक क्लीव बनाती हैं तो मनन करने की बात यह है कि हिंदू समाज में जहां अनेक गुण यथावत हैं, वही राजनीतिक बुद्धि में कहीं कोई कमी आ गई है, राजनैतिक कौशल का ज्ञान कहीं खो गया है. छोटे छोटे समूह इसी शासन से अपने राजनीतिक लाभ प्राप्त कर रहे हैं और हिंदू लोग मानो उनके पीछे मात्र प्रतिक्रिया कर रहे हैं या बिलख कर रो रहे हैं या फिर निरंतर आघात पर आघात सह रहे हैं, तो जो कमी है उसे दूर किया जाए. संघ और भाजपा के प्रति रोष रखना अपने मूल कमी को न देखने की दशा है और यह दशा हमें कहीं नहीं ले जाएगी. कांग्रेस तो चाहती है कि लोग संघ और भाजपा से क्षुब्ध होकर हमारी ओर आ जाएं, और हम पूरी तरह से हिंदुत्व का भारत से सर्वनाश कर दे. अगर आप भाजपा से क्षुब्द्ध होकर कांग्रेस की ओर जाते हैं तो यह हिंदू समाज से और भारतवर्ष से बहुत बड़ा दगा होगा, बहुत अनर्थकारी कदम होगा. आवश्यकता है गहरे आत्ममंथन की. हो सके तो संघ और भाजपा को सुधरने के लिए प्रेरित किया जाए अन्यथा हम स्वयं समाज में ऐसा परिश्रम और पुरुषार्थ करें कि हिंदुत्व में प्रशिक्षित राजनीतिक शक्तियां उदित हो जो हिंदुत्व के लिए सहज रुप में कार्य करें.
यह कार्य कोई ऐसा नहीं है जो नहीं किया जा सकता. जब लोग इस्लाम के लिए काम कर रहे हैं, ईसाइयत के लिए काम कर रहे हैं और भारत में तो अभी भी विश्व में निरर्थक और बासी हो चुके मतवाद के लिए काम कर रहे लोग हैं तो फिर समकालीन विश्व में जो सर्वमान्य सिद्धांत हैं और जो समस्त विश्व के कल्याण के लिए आशा का एकमात्र उपाय है, मार्ग है, उस हिंदुत्व के लिए काम करने वाली राजनीतिक शक्ति कैसे नहीं प्रबल हो सकती? अवश्य होगी इसलिए संघ या भाजपा की निंदा अथवा उसके प्रति क्षोभ व्यक्त करने के स्थान पर इन बातों पर मनन करना चाहिए जिससे हिंदू समाज की जो कमियां आ गई है वह दूर हों और एक सच्चे एवं प्रचंड हिंदुत्वनिष्ठ राजनीतिक संगठन का उत्कर्ष हो. भाजपा चाहे तो ऐसा संगठन बन जाए, नहीं तो नए संगठन बनें.
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साभार :- स्पंदन फीचर्स