१) शरणार्थी - ये वे लोग है जो पंजीकृत है। भारत सरकार ने इन्हे आने की अस्थायी अनुमति दी है. सरकार को पता है कि इनकी संख्या क्या है, ये लोग कौन है और इन्हे किस शहर में किस जगह अस्थायी तौर पर बसाया गया है. ये लोग शरणार्थी शिविरों में रहते है और भारत सरकार की निगरानी में है. इन्हे महीने के महीने थानों में जाकर रिपोर्ट करनी होती है. ये बिना सरकार को जानकारी दिए इधर से उधर नहीं हो सकते. यदि होते है और कभी पकडे जाते है, तो इन पर मुकदमा चलेगा और जेल हो जायेगी. कुल मिलाकर ये समस्या उतनी पेचीदा और खतरनाक नहीं ह. सिर्फ फैसला लेना है कि इन्हें भारत से बाहर कब फेंकना है. निष्पादन में कोई तकनीकी बाधा नहीं है. 3 साल पहले ये लोग नहीं थे. मोदी साहेब ने ही इन्हे शरण दी है, और जब भी सरकार चाहेगी इन्हे रवाना कर सकती है. पहली बात तो हमें इन्हे आने ही नहीं देना चाहिए था, और अब आ भी गए है तो हमें इन्हे वापिस भेज देना चाहिए. जितना जल्दी हो उतना अच्छा. वहां आग लगी हुयी है. यदि हम इन्हे रवाना नहीं करेंगे तो इनकी आवक बढ़ती जायेगी. मानवीय आधार पर हम इतना कर सकते है कि इन्हें महीने दो महीने की मोहलत दें दे, ताकि ये लोग नया ठिकाना तलाश सकें, बस इससे अधिक और नहीं.
२) घुसपैठिये - ये लोग पंजीकृत नहीं है. मतलब सरकार को पता नहीं है कि ये कितने है, कौन है और कहाँ पर रह रहे है. अत: असली समस्या इधर से है. वैसे रोहिंग्ये शरणार्थियों संख्या कम, और घुसपेठियो की संख्या बेहद ज्यादा है. इन्हें बाहर करने के लिए पहले हमें इन्हें खोजना होगा. जो कि वाकई एक मुश्किल काम है. किन्तु यह ज्यादा मुश्किल इसीलिए नहीं है, क्योंकि ये अभी तक बसे नहीं है. अभी अभी आये है, भगदड़ में है. इनकी भाषा से भी ये पहचाने जा सकते है... तो खोजने पर नजर में आ जायेंगे. इस तरह से इस समस्या से निपटने में हमें किसी प्रशासनिक, कानूनी, तकनीकी या निष्पादन से सम्बंधित चुनौती का सामना नही करना पड़ेगा. राजनैतिक निर्णय लेकर इसे आसानी हल किया जा सकता है.
लेकिन इस रोहिंग्या मसले के चक्कर में जो असली समस्या है, यानी "बांग्लादेशी घुसपेठिये", उसकी तरफ लेतलाली हो रही है. इनकी संख्या 3 करोड़ है. हमने एक को भी शरण नहीं दी है, सभी के सभी घुसपैठिये है. पूरे भारत में फैले हुए है, सभी महानगरो में ये बसे हुए है. पिछले 25 साल से ये लगातार भारत में आ रहे है, और लगातार आकर बसते जा रहे है. ये एक आशय लेकर आये है. इन्हें भारत में घुसाने के लिए सऊदी अरब फायनेंस करता है. नेताओं को पैसा दिया जाता है ताकि वे इन्हें खदेड़ने का कोई क़ानून नहीं बनाए. पिछले कई सालो से यह पैसा कोंग्रेस के सांसद खाते थे जिस पर अब राष्ट्रवादी सांसदों ने कब्ज़ा कर लिया है. पूर्वोत्तर में इनके तार नक्सलियों से जुड़े हुए है और इनका वहां घनत्व ज्यादा है. चीन का भी इन्हें पूरा समर्थन है. ये लोग हिंसक है और हिंसा का इस्तेमाल करके असम / बंगाल में कई इलाको पर पूरा नियंत्रण हासिल कर चुके है. ये बांग्ला बोलते है और इसीलिए इनकी पहचान करना बहुत मुश्किल है. इनमें से कईयों के पास भारत में जमीन है (जो इन्होने अवैध रूप से हथियाई है), घर है, मतदाता पहचान पत्र है, बिजली-पानी के बिल है, राशन कार्ड है, बेंक में खाते है, और अब इनके पास आधार कार्ड भी है!!
इन्हें खदेड़ने के लिए हमें एक विस्तृत प्रक्रिया और क़ानून चाहिए, ताकि इन्हें पूरे देश से खोज खोज कर निकाला जा सके. इन्हें भारत से खदेड़ना आज सबसे ज्यादा जरुरी है. ये "टाइम बम" है, जो कि किसी भी दिन फट सकता है, और जब ये फटेगा तो हमारे पास कोई भी उपाय नहीं रहेगा. हम ऐसे गृह युद्ध में फंस जायेगें, जिसमे लाखों हिन्दुओ को पूर्वोत्तर से अपना घर-कारोबार छोड़ कर रातों-रात कश्मीरी पंडितो की तरह जान बचाकर भागना पड़ेगा. जो नहीं भाग पायेंगे वे मारे जायेंगे. ये लोग असम में अब तक ऐसे हमले करके दो तहसीलों पर कब्ज़ा कर चुके है. 2012 में लगभग 1 लाख की आबादी को अपना माल असबाब छोड़कर भागना पड़ा था. वह जायजा लेने का एक छोटा सा प्रयोग था, अगली बार इसका दायरा और भी विस्तृत होगा. ये भारत में रेकी करते है और इनके सरगनाओ को रिपोर्ट करते है. जब सऊदी अरब फायनेंस करेगा तो चाइना और पाकिस्तान इन्हें हथियार भेजने लगेंगे. नेटवर्क और जमावट इन्होने पहले से ही बना रखी है. फिर जब हम पर ये हमला करेंगे तो हमारी पुलिस और सेना को पता न होगा कि गोली किस पर चलानी है. आम भारतीय हथियार विहीन है अत: उस समय उनकी हालत वही होगी जो आज रोहिंग्यो की है!! कुल मिलाकर हमारी स्थिति पूर्वोत्तर में बेहद कमजोर हो चुकी है और हम किसी भी समय गृह युद्ध में एक बड़ा हिस्सा गवां सकते है.
यह समस्या नयी नहीं है. 1998 के आम चुनावों में बीजेपी ने वादा किया था कि वे इन घुसपेठियो को खदेड़ देंगे. आडवाणी गृहमंत्री बने और उन्होंने तब स्वीकार किया था, कि भारत में लगभग डेढ़ करोड़ बांग्लादेशी घुसपेठिये है. लेकिन उन्होंने इन्हें खदेड़ने के लिए क़ानून नहीं बनाया. बल्कि इन्हें रोकने के लिए भी कोई उपाय नहीं किये. कोंग्रेस के 10 साला शासन के दौरान भी ये घुसपेठिये आते रहे, और बीजेपी=संघ (गंगाधर = शक्तिमान) के नेता कहते रहे कि यदि हम सत्ता में आये, तो इन्हें देश से बाहर खदेड़ने के लिए क़ानून लायेंगे. चुनाव प्रचार के दौरान मोदी जी ने एलान किया कि 16 मई को बांग्लादेशी घुसपेठियो को जाना पड़ेगा. किन्तु आज 3 साल निकल चुके है. उन्होंने बंगलादेशी घुसपेठियो का "घ" भी नहीं बोला है. उन्हें खदेड़ने की बात तो छोड़िये उन्होंने आधार कार्ड के फॉर्म में भी इस तरह की घोषणा रखने से साफ़ शब्दों में इंकार कर दिया, जो यह कहे कि --"मैं शपथ लेता हूँ कि मैं भारत का नागरिक हूँ, तथा मेरे द्वारा गलत जानकारी दिए जाने पर मुझ पर विधि सम्मत कार्यवाही की जाए"!! इस तरह अब ये घुसपेठिये वैध रूप से अपने आधार कार्ड बनवा रहे है!! और यदि आपको राष्ट्रवाद की विडम्बना देखनी हो, तो असम में संघ के स्वयं सेवको से मिलिए. वे बांग्लादेशी घुसपेठियो को देश से बाहर खदेड़ने का विरोध कर रहे है. आप खुद उनसे बात कर लीजिये. आप किसी भी तरह से उनसे पूछिए, किन्तु आपको विभिन्न तरीको से वे इसी आशय का जवाब देंगे कि अभी इस प्रकार के किसी क़ानून की जरूरत नहीं है!!! यह महंगाई, बेरोजगारी या गाय का मुद्दा नहीं है. यह देश से सुरक्षा से जुड़ा हुआ मामला है. लेकिन संघ के सभी कार्यकर्ता इन घुसपेठियो के समर्थन में खड़े है!! क्यों? इसका जवाब उनसे आप खुद लीजिये.
अभी तो बच्चा पैदा भी नहीं हुआ, थोडा सब्र रखो, हथेली पर सरसों नहीं उगती, धीरे धीरे सब हो जाएगा, जब कोंग्रेस इन्हें ला रही थी तब तुम कहाँ थे, सारे काम एक ही दिन में नहीं होते, अभी इन्हें खदेड़ने का सही टाइम नहीं आया , इसकी रणनीति बनायी जा रही है , जल्दी ही इन्हें खदेड़ने का क़ानून बनेगा, पहले नोटबंदी और जीएसटी जरूरी था -- पिछले तीन साल से ये लोग इस तरह की कहानीयां एवं कवितायेँ सुना कर समय काट रहे है, ताकि 2019 का चुनाव पकड़ा जा सके. अब इन्होने नया पैंतरा चला है. पहले इन्होने देश में रोहिंग्यो को घुसा दिया, और अब इन्हें बाहर निकालने की "बातें" कर रहे है। हालांकि भगा इन्हें भी नहीं रहे है!! इन्होने बांग्लादेशी घुसपेठियो के मुद्दे को किनारे करने के लिए रोहिंग्यो के मुद्दे को इस तरह से उठाना शुरू कर दिया है जैसे मूल मुद्दा केवल रोहिंग्ये हो!! ध्वनित कुछ इस तरह हो रहा है कि 40 हजार रोहिंग्यो को बाहर करने से 3 करोड़ बांग्लादेशी घुसपेठियो की समस्या का हल हो जाएगा. मतलब बांग्लादेशी घुसपेठियो को तो खदेड़ना नहीं है, तो पहले रोहिंग्यो को बुला लो, और हंगामा मचाकर उन्हें ही फिर से बाहर निकाल दो!!
राईट टू रिकॉल ग्रुप ने आज से 9 साल पहले ही बांग्लादेशी घुसपेठियो को देश से बाहर खदेड़ने के लिए आवश्यक प्रक्रिया का कानूनी ड्राफ्ट प्रस्तावित कर दिया था. हमने देश के सभी संगठनों / पार्टियो / नेताओं को बार बार यह ड्राफ्ट गेजेट में छापने का आग्रह किया है. किन्तु आज तक किसी भी पार्टी / नेता ने इसका समर्थन नहीं किया!! सभी राजनैतिक पार्टियाँ ऐसे सभी प्रकार के क़ानून के खिलाफ हैं, जिससे इन्हें खदेड़ा जा सके. हमने संघ=बीजेपी (गंगाधर = शक्तिमान) को भी कई दफा ये ड्राफ्ट दिया, किन्तु उन्होंने हमेशा इसका विरोध किया. मुतमईन होने के लिए आप खुद असम में संघ के कार्यकर्ताओ से पूछ सकते है. जहाँ तक सोनिया और केजरीवाल की बात है वे तो इन घुसपेठियो के खुले समर्थक है ही. पिछले 25 सालो में सभी पार्टियो की सत्ता केंद्र एवं राज्यों में रही है. लेकिन किसी भी पार्टी ने इस बारे में कभी भी ऐसा कोई क़ानून नही बनाया है, जिससे इन घुसपेठियो को देश से बाहर खदेड़ा जा सके. सिर्फ गुजरात एवं दिल्ली में ही लगभग 5 लाख घुसपेठिये रह रहे है, किन्तु न तो मोदी साहेब ने अपने 13 साल के शासन में और न ही केजरीवाल जी ने अपने 2 साल के शासन में इन्हें खदेड़ा. प्रधानमंत्री बनने के बाद से तो मोदी साहब इस मुद्दे पर एकदम सुन्न हो गए है. यदि आप इन घुसपेठियो को खदेड़ना चाहते हैं, तो सरकार पर ऐसे क़ानून को लागू करने का दबाव बनाएँ, जिससे इन्हें खदेड़ा जा सके. भारत में बसे और घुसे हुए इन घुसपेठियो को चिन्हित करने, खोजने और इन्हें खदेड़ने के लिए जिस क़ानून की जरूरत है उसका "अपडेटेड ड्राफ्ट" हम जल्द ही उपलब्ध करवाएंगे.
"वेल्थ टेक्स ग्रुप"
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Courtesy :Pawan Jury