अब मैं हर किसी को जबाब नहीं दे सकता, इसीलिए ये पत्र आपके नाम लिख रहा हूँ. सीधे आप तक जबाब पहुंचे, ये तरीका आपसे ही सीखा है गुरुवर| चूँकि आप "बड़े आदमी" हैं, तो शायद आपको याद भी नहीं होगा कि मैंने आपसे क्या सवाल पूछा था... इसलिए पहले आपकी पोस्ट का स्क्रीनशॉट देता हूँ और उसके बाद मेरे सवाल का स्क्रीनशॉट भी देता हूँ... शायद आपके मस्तिष्क में कोई लाल बिजली कौंध जाए और आपको याद आ जाए...
आपकी इस "अदभुत किस्म" की पोस्ट पर मैंने एक मासूम सा सवाल दाग दिया था, जिसके बाद आपके भक्त (यानी ट्रोल-आर्मी) मेरे पीछे पड़ गई... मेरा सवाल कुछ इस प्रकार का था...
रवीश सर... आप खुद देख सकते हैं कि मेरे इस सवाल को उसी दिन तत्काल 141 लोगों ने लाईक किया था. लेकिन असली पेंच उसके नीचे दिखाई दे रहे 171 के आँकड़े में है. जी हाँ!! ये वही कमेंट्स हैं, जिनमें आपके भक्तों ने अपने संस्कार दिखाए हैं. जैसा कि मैंने कहा आप "बड़े आदमी" हैं, इसलिए आप खुद तो किसी की बात का जवाब देते नहीं हैं. लेकिन आपने अपने चमचों को बखूबी सिखाया हुआ है कि किसी असुविधाजनक सवाल पर हमले कैसे करना है... उन 171 गालियों (जिनकी संख्या अब तो और बढ़ चुकी होगी) में से केवल दो का स्क्रीनशॉट आपकी खिदमत में पेश कर रहा हूँ ताकि आप भी जान सकें कि वास्तव में आप क्या हैं...
बचपन मैं मेरे शिक्षक ने हमारी कक्षा में डाकू अंगुलिमाल की कहानी सुनाई| क्लास में सभी नतमस्तक थे, सिवा मेरे| क्योंकि मुझे शुरुवात से ही प्रश्न करने की आदत थी. मैंने सुना था शिक्षा प्रश्न करके ही हासिल होती है| ज्ञान के स्त्रोत उपनिषद इसी तरह के प्रश्नों का उत्तर हैं| अत: मैंने गुरूजी से पूछा गुरूजी "गुरूजी क्या कोई अन्य इस घटना का साक्षी था? क्या ऐसा नहीं हो सकता कि बुद्ध ने उन्हें राजाश्रय का भरोसा दिलाया हो| क्योंकि जिस तरह के अपराध उसने किये थे, उसकी तो फांसी ही एकमात्र सजा हो सकती थी| अहिंसा के खोखले सिद्धांत के नाम पर उन्होंने एक दुर्दांत अपराधी को सजा से बचा लिया| क्या ये बुद्ध और अंगुलिमाल की आपस में डील नहीं हो सकती? फिर बुद्ध और अंगुलिमाल के अतिरिक्त इसका साक्षी कौन था? जो बुद्ध ने कहा उसी को सच मान लिया?"
उस समय इस्लामिक आतंकवादी बिन लादेन की कब्र खोदी जा रही थी, अमेरिका उसे तोरा बोरा में खोज रहा था, तो मैंने अपना दूसरा प्रश्न किया... "यदि बुद्ध के अहिंसा के सिद्धांतों में इतनी ही शक्ति है, तो क्यों अमेरिका अरबो खरबों रूपये अफगानिस्तान में फूंक रहा है? क्यों नहीं दलाई लामा, जो बौद्धों के सर्वोच्च गुरु हैं जाकर बिन लादेन को सत्य और अहिंसा के पथ पर चलने का उपदेश देते? क्या उन्हें अपनी जान का भय है, या अहिंसा के सिद्धांतों में खुद उनका भरोसा नहीं रहा?" - गुरूजी के पास इन प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं था, तो बहस थोड़ी सी तल्ख हो गई| उन्होंने सीधे मेरे परिवार पर प्रश्न करना शुरू किया| मेरे दुर्भाग्य से वो बौद्ध थे, इसीलिए बुद्ध की आलोचना सुन न सके| प्रतिउत्तर देना उनके वश में नहीं था, इसीलिए उन्होंने बुद्ध के विपरीत रास्ता चुना| यानि कि हिंसा का| मुझे मारपीट कर सबके सामने मुर्गा बना दिया|
हालाँकि मैं इसे बुद्ध के विपरीत रास्ता नहीं मानूंगा क्योंकि बुद्ध और अहिंसा दो विपरीत ध्रुव हैं| आचार्य कुमारिल भट्ट ने जब बौद्ध पन्थाचार्यों की शास्त्रार्थ में धज्जियाँ उड़ा दी, तब बौद्ध लोगों ने उन्हें मारने के लिए दौड़ा दिया| ये बुद्ध की अहिंसा थी, ये थे उनके उपदेश| खैर जाने दीजिये... उस दिन मुझे दो सीख मिली| प्रथम निर्दोष बन जाओ, फिर अनजान होकर भोले होने का स्वांग करो, अधरों पे मोहिनी मुस्कान रखों| अपने प्रश्न कुछ इस तरह पूछों कि सामने वाले को लगे आपको वास्तव में ज्ञान की ललक है| लोग तुम्हारी मानसिकता पर सवाल ही न उठा सकें| जब कोई सवाल उठाने की कोशिश करे, तो वही चार लोग सामने आकर कहें कि "Awww .. He is such a cute guy .. He can't do it. " और फिर पाउट करने लगें |
द्वितीय... ढोंगी हो जाओ, अन्दर से बिन लादेन बनों और ऊपर से बुद्ध | चेहरा ओढ़ लो | प्याज की तरह पर्त वाले बनों | ताकि कोई समझ ही न पाए तुम्हारा असली रूप क्या है? सामने से बुद्ध की तरह ज्ञान यज्ञ करते रहो| अपने एजेंडा का प्रचार करते रहो, यदि कोई प्रश्न खड़ा करे तो उस पर मोहिनी मुस्कान का जादू चला दो. फिर अपने अनुयाइयों को भेज दो| अपने विरोधियों को तहस नहस कर दो| उन्हें मार दो, उनकी आवाज को दबा दो|
रवीश जी कल आपकी वाहियात पोस्ट पढ़ी, और आदतानुसार उस पर कुछ चुभते प्रश्न कर लिए| अब गुरूजी की तरह आपमें भी हिम्मत नहीं थी, उनका सामना करने की, तो आपने भी गुरूजी का रास्ता अपनाया. बजाय सामना करने के आपने अपनी ट्रोल आर्मी को भेजना उचित समझा| वाह रे बुद्ध ! देखी तेरी बौद्धिकता भी | इनबॉक्स भी भर दिया, इधर कमेन्ट बॉक्स भी|
सर मुझे आपसे बस इतना पूछना है कि क्या आप खुद को "होली काऊ" समझते हैं? या आप बुद्धत्व को प्राप्त कर चुके हैं? इसीलिए आप पर सवाल नहीं उठाये जा सकते? आप प्रश्न करने वालों से क्यों डरते हैं? संवाद द्विपक्षीय होता है, संवाद को एकपक्षीय बनाकर इसकी आत्मा का गला क्यों घोटना चाहते हैं आप? आपके भक्त लगातार मेरी आईडी रिपोर्ट कर रहे हैं. आप क्यों मेरी आवाज को बंद करना चाहते हैं? आपको क्यों मेरा बोलना खल रहा है? आप क्यों किसी के बोलने से डरते हैं? ऐसा क्यों लगता है आपको कि कोई यदि कुछ बोलेगा तो आपकी पोल खुल जाएगी? इसीलिए इस आवाज का गला घोंट दो, इसे गाली दो, इसे धमकी दो, इसे बदनाम करो, इसे मेसेज करो, पर्सनल अटैक करो, कुछ भी करो पर बोलने मत दो, सवाल मत पूछने दो|
लेकिन मैं तो पूछूँगा| आप भले ही गालियाँ दिलवाओ, या भद्दे कमेन्ट करवाओ| पर मैं प्रश्न पूछूँगा आपसे? मैं पूछूँगा आपसे, कि आपके पास इतना पैसा आता कहाँ से है, जो आपने इतने ट्रोल्स पाल रखे हैं? कितना कमीशन मिलता है बृजेश पांडे से आपको, जो उनके खिलाफ बोलने में आपकी जीभ तालू से चिपक जाती है? नक्सलियों पर सेना का प्रयोग क्यों नहीँ किया जाये? कश्मीर से सेना क्यों हटाई जाए? बंगाल में कवरेज करने कब जायेंगे आप? केरला में हत्यारों पर कब बोलेंगे आप? AMU में महिला पत्रकार की छिछोरी "मैंन-हैंडलिंग" पर कब मोमबत्ती जलाएंगे आप? राजेश की हत्या पर #NotinMyName कैम्पेन कब करेंगे सर?
हालाँकि मैं जानता हूँ आप इसका उत्तर कभी नहीं लिखेंगे| क्युकि आप सही मायनों में बुद्धत्व को प्राप्त कर चुके हैं| किन्तु सर आज आइना जरूर देखिएगा| आपको कालिख स्पष्ट नजर आएगी| साथ में अन्दर का बिन लादेन भी दिख जायेगा आपको| क्योंकि लाख चेहरे ओढ़ ले इन्सान, किन्तु आइना सारे मेकअप हटा ही देता है|
- अनुज अग्रवाल