जनसंख्या के हिसाब से प्रत्येक पाकिस्तानी पर करीब डेढ़ लाख रूपए का विदेशी कर्ज है. वर्तमान में पाकिस्तानी रूपए की कीमत 1 अमेरिकन डॉलर के मुकाबले 110 रूपए है. पिछले चार साल में नवाज शरीफ सरकार ने 90 अरब डॉलर का नया कर्ज लिया है, जबकि स्थिति इतनी विस्फोटक हो चुकी है कि पाकिस्तान अपनी आमदनी का 45%, केवल ब्याज की किश्त चुकाने में ही गंवा रहा है. यानी देश की आधी आमदनी ब्याज भरने में जा रही है. पिछले चार सालों में पाकिस्तान ने 50 अरब डॉलर जैसी बड़ी रकम ब्याज भरने में चुकाई है और यह रकम पूरा ब्याज ना होकर केवल उसका कुछ हिस्सा है.
कर्जा पाकिस्तान पर पहले भी था लेकिन 2013 में नवाज शरीफ (Nawaz Sharif and US) की पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग के वापिस सत्ता में आने के बाद तो कर्जे में मानों पंख लग गए. खतरनाक हद तक बढ़ी हुई ब्याज दरों पर इस तरह कर्जा लिया जाने लगा, जैसे वापिस ही ना करना हो. अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में पाकिस्तान की साख इतनी गिर चुकी है कि उसे किसी निजी कम्पनी को मिलने वाले कर्ज की ब्याज दर से चौगुनी ब्याज दर पर कर्ज मिलता है. पाकिस्तान कर्ज के जंजाल में ऐसा फंसा है, कि वह ब्याज की किश्त चुकाने के लिए भी नया कर्ज लेने को विवश है.
पाकिस्तान में हालात यहां तक पहुंच गए हैं कि पाकिस्तान टीवी, पाकिस्तान रेडियो, एयरपोर्ट्स, हाईवे, एयरलाइन्स, बैंक्स, सरकारी प्रतिष्ठान, खदाने यहां तक की जंगलों को को भी गिरवी रख सरकार कर्जे ले रही है. आज पाकिस्तान के अधिकतर सरकारी उपक्रम और संसाधन गिरवी पड़े हैं और जो थोड़े बहुत बच गए हैं उन्हें गिरवी रखकर कर्जे लेने की योजना बन रही है. हर नए कर्ज को एक उपलब्धि मानकर एक दूसरे को बधाईयां दी जाती हैं. प्रसिद्द चार्वाक सूत्र “ऋणं कृत्वा घृतं पीवेत” का वास्तविक उदाहरण पाकिस्तान ने ही प्रस्तुत किया है.
खुद को कट्टर इस्लामिक राष्ट्र बना कर पाकिस्तान वापिस उसी कबीलाई संस्कृति का शिकार हो गया है, जहां लूट ही भरण पोषण का साधन है. आधुनिक युग में इस लूट ने कर्जे की शक्ल अख्तियार कर ली है. लेकिन हर चीज की एक हद होती है सो कर्जे की भी हद है. पाकिस्तान के व्यापार का भी बुरा हाल है. इसका कुल निर्यात 20.5 अरब डॉलर और आयात 46 अरब डॉलर है और इसके बीच की खाई हर साल चौड़ी हो रही है. निर्यात घट रहा है आयात बढ़ रहा है. पिछले कुछ समय में पाकिस्तान द्वारा खाद्यान्न निर्यात के कई बड़े सौदे भारत समेत अन्य कई देशों ने झटक लिए हैं, जिनमें भारत द्वारा लपका हुआ केन्या चावल निर्यात सौदा प्रमुख है. इन सौदों के हाथ से निकल जाने से पाकिस्तान को करारी आर्थिक चपत लगी है.
पाकिस्तान की बर्बादी उसकी नीतियों में ही छिपी है. 1947 में धर्म के आधार पर भारत से विभाजित होने के बाद पाकिस्तान ने खुद को मुस्लिम राष्ट्र घोषित कर दिया. बस यहीं से उसकी बर्बादी की दास्तान शुरू हो गई. इस्लामिक राष्ट्र होने के नाते पाकिस्तान का शैक्षिक और वैज्ञानिक स्तर बिल्कुल गिर गया. आधुनिक शिक्षा पर इस्लाम हावी हो गया. इतिहास की मिट्टी पलीद कर दी गई, और पाकिस्तानी इतिहास 1947 से वर्तमान तक ही सिमट कर रह गया. कौम की जड़ें कहां तक गहरी हैं यह एक पाकिस्तानी को अपनी शिक्षा से पता ही नहीं चलता. यही विज्ञान के साथ भी हुआ. जाहिर है विज्ञान का कोई पैगम्बर नहीं होता और वह केवल प्रयोग और उससे प्राप्त परिणाम पर आधारित है, इसलिए उसका इस्लाम से साम्य नहीं बैठता. अब चूंकि इस्लाम तो गलत हो नहीं सकता... अतः पाकिस्तानी शिक्षा के अनुसार विज्ञान ही गलत होगा, इसलिए वहाँ पूरे विज्ञान को ही गड्ढे में डाल दिया गया. पाकिस्तानी विज्ञान पुस्तकों के प्रथम पृष्ठ पर लिखा होता है इस किताब में वर्णिंत बातें कल्पना मात्र हैं. इसी कठमुल्लेपन के कारण पाकिस्तान वैज्ञानिक क्षेत्रों में बुरी तरह पिछड़ता चला गया. आज जहां भारत तकनीक के मामले में आत्मनिर्भरता की ओर तेजी से अग्रसर है और अंतरिक्ष में रोज नई पताका फहरा रहा है वहीं पाकिस्तान का अंतरिक्ष कार्यक्रम अभी शुरू ही नहीं हुआ है. यही हाल पाकिस्तानी आईटी सेक्टर का है उसकी हालत भी दयनीय है.
पाकिस्तान की शिक्षा का यह आलम है की प्रतिवर्ष बीस हजार विद्यार्थियों द्वारा बीटेक करने के बावजूद उनमे से केवल दस प्रतिशत को ही अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुरूप समझा जाता है. यही नहीं पाकिस्तानी शोध और रिसर्च को भी पूरे विश्व में मान्यता प्राप्त नहीं है. आज जबकि अधिकांश देश अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में कूटनीति, व्यापार, तकनीक हस्तांतरण और विभिन्न संधियों के चलते अपनी जगह बना रहे हैं वही पाकिस्तान ने झगड़े और आतंकवाद को अपना पहला हथियार समझा. आज किसी भी देश की शक्ति उसका व्यापार है लेकिन अपनी अदूरदर्शी नीतियों के कारण पाकिस्तान इस मामले में बुरी तरह पिछड़ता चला गया. वर्तमान में भारत समेत अपने सभी पड़ोसी देशों से पाकिस्तान के सम्बन्ध दुश्मनी की हद तक खराब हैं. आज की तारीख में पाकिस्तान के घरेलू भयावह हैं. नवाज शरीफ भ्रष्टाचार के आरोप में गद्दी छोड़ने के बाद अपने ही देश का नया मुजीबुर्रहमान बनने की धमकी दे रहे हैं. अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी को यही नहीं मालूम कि वहाँ सत्ता का केंद्र कौन है? किससे बात की जाए? अमेरिका ने हर तरह की आर्थिक और सैनिक सहायता रोक कर ड्रोन हमले शुरू कर दिए हैं. बलूचिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर में बगावत चरम पर है. सरहदी मामलों पर निर्णय लेने का जुआ लोकतान्त्रिक सरकार ने फौज के गले में डाल दिया है.
सोमालिया से कदम ताल करती भुखमरी, आसमान चूमती महंगाई, भीषण बेरोजगारी, बेकाबू इस्लामिक आतंकवाद, वैश्विक उपेक्षा और कर्ज में बाल-बाल धँस चुके पाकिस्तान का ढहना अब महज वक्त की बात है. लेकिन इससे भी बड़ा सवाल पड़ोसियों के सामने है, कि ढहने के बाद यह बीस करोड़ (जिनमें से 90% कठमुल्ले हैं) की आबादी वाला देश, उनके लिए कैसी मुसीबतें और चुनौतियां खड़ी करेगा... इस पर तुरंत गंभीर चिंतन और सुरक्षा उपायों की जरुरत है. किसी आदतन हरामखोर भिखारी को आखिर आप कब तक भीख देंगे? स्थिति ये हो गयी है कि वह भिखारी (जिसके पास परमाणु बम भी है) खुद अपनी कनपटी पर बन्दूक रखकर समूचे विश्व से पैसा माँग रहा है और उसका इस्लाम तथा सऊदी अरब जैसे उसके इस्लामी चहेते उससे पल्ला झाड़कर दूर खड़े हो गए हैं... सचमुच विश्व आज एक गहरे संकट में है, जिसमें एक तरफ मुफ्तखोर पाकिस्तान है, तो दूसरी तरफ उत्तर कोरिया का सिरफिरा तानाशाह किम जोंग. फिलहाल भारत की चिंता ढहता हुआ पाकिस्तान ही है.
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१) पाकिस्तानी लेखक ने उड़ाई इस्लामी सिद्धांतों की धज्जियाँ... :- http://desicnn.com/news/mehboob-haidar-writer-and-thinker-from-pakistan-defined-basic-nature-of-islam-and-its-irrelavence
२) न जिन्ना सेक्यूलर थे न पाकिस्तान का निर्माण आकस्मिक था... :- http://desicnn.com/news/jinnah-was-not-secular-and-creation-of-pakistan-is-not-spontaneous
३) इस्लाम में भेदभाव, अहमदिया मुस्लिमों के साथ छुआछूत... :- http://desicnn.com/blog/ahmadiya-in-islamic-countries-terrible-condition