कहने का तात्पर्य यह है कि यह मामला साम्प्रदायिक कतई नहीं, केवल धर्म-रक्षा और आतताईयों से गौ-रक्षा का है. परन्तु जब से प्रधानमंत्री मोदीजी ने गोरक्षकों को “गुंडा” कहा है तब से अखबारों और चैनलों में केवल गौ-तस्करों के मरने की खबरें ही प्रमुखता से छप रहीं हैं जबकि गौ-रक्षकों पर होने वाले हमलों की तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहा. मोदीजी के वक्तव्य और संघ परिवार के कुछ प्रमुख नेताओं द्वारा उसके समर्थन के कारण, अब सारा दोष गौ-रक्षकों पर मढ़ने की परंपरा बनती जा रही है।
गौ-तस्करी पर लगाम लगाने के लिए देश भर के गौ-प्रेमी और गौ-रक्षकों ने एक सार्थक प्रयास किया था। जब मोटर वेहिकल कानून 2015 में बन रहा था तो, देश भर की अनेक संस्थाओं ने परिवहन मंत्री श्री नितिन गडकरी जी से मिलकर उसमें एक संशोधन की मांग की थी। वह मांग यह थी कि - जैसे पोस्ट ऑफिस, स्कूल और एम्बुलेंस की गाड़ियों का रंग- रूप अलग होता है और उनके लिए अलग तरह से लायसेंस भी लेना होता है, उसी तरह से गौ-वंश आदि पशुओं के परिवहन के अलग प्रकार के रंग-रूप के वाहनों की व्यवस्था अनिवार्य हो और उसके लिए विशेष लायसेंस लेना जरूरी हो। परिवहन मंत्री ने इस जायज मांग को स्वीकार भी किया। जब जनवरी 2016 से नया मोटर वेहकिल कानून लागू हुआ, तो उसमें ऐसी धारा रखी गई थी। सभी गौ-प्रेमियों और गौ-रक्षकों को आनंद हुआ, कि चलो अब गौ-तस्करी पर 80% से अधिक लगाम लग जायेगी। क्योंकि गौ-वंश का परिवहन अब विशेष वाहनों में करने से उसे पहचानना आसान हो जाएगा, और अगर कोई किसी अन्य वाहन में गौ-वंश का परिवहन करेगा तो वैसा करना अपने-आप ही कानूनी अपराध हो जायेगा।
परन्तु गौ-प्रेमियों और गौ-रक्षकों की यह खुशी अधिक दिन तक नहीं टिकी, क्योंकि केंद्र सरकार ने अप्रैल 2016 में न जाने क्यों एक फरमान जारी कर दिया कि – अगले आदेश तक मोटर वेहिकल कानून की केवल वह धारा स्थगित की जाती है, जिसमें पशुओं के परिवहन के लिए विशेष वाहन की बात है! फिर अगस्त 2016 में उस धारा में संशोधन का फरमान भी जारी हो गया कि – अगर कोई किसान पशुओं का परिवहन करना चाहे, तो वह “किसी भी वाहन में” पशुओं को ले जा सकता है। इस संशोधन से गौ-प्रेमियों की सारी मेहनत पर पानी फिर गया! अब फिर से किसान के नाम पर ही गौ-वंश का परिवहन चल पड़ा और देश में गौ-तस्करी फिर सुलभ हो गयी। अब तक देश में पशु परिवहन के लिए “विशेष वाहन का एक भी लायसेंस” जारी होने की खबर नहीं है! सभी गौ-प्रेमी और गौ-रक्षक हतप्रभ हैं, कि परिवहन मंत्री के ऊपर वे कौन सी ताकतें हैं, जिन्होंने गौ-तस्करी पर कानूनी लगाम लगाने के काम पर फिर पानी फेर दिया? वह कौन सी मजबूरी थी या वह कौन सी मानसिकता थी, जिसने समाज में तनाव को रोकने के लिए बने एक बढ़िया कानून का बंटाधार कर दिया?
अगर पशुओं के परिवहन के लिए विशेष वाहनों का कानून लागू होता, और उसमें संशोधन करके उसे निरुपयोगी नहीं बनाया गया होता तो उससे गौ-तस्करी पर 80% तक लगाम लग गयी होती। उस कारण से गौ-प्रेमी और गौ-रक्षकों का काम बड़ा आसान हो गया होता। देश में गौ-तस्करी और गौ-हत्या पर लगाम लगाने का पुण्य संघ परिवार (भाजपा) की झोली में जाता, परन्तु कोई षडयंत्र हुआ और उस कानून में संशोधन हो गया। इस विषय में अब भी देर नहीं हुई है, उस धारा को यथावत रखते हुए, उसमें बाद में किये संशोधनों को रद्द करके मोदी सरकार फिर से गौ-तस्करी और गौ-हत्या पर 80% तक रोक लगा सकती है।
जिसे भी गौ-परिवहन करना हो, वह व्यक्ति विशेष रंग के और विशेष लायसेंस वाले वाहनों तथा समुचित अनुमति के साथ गौ-परिवहन करे, तो भला किसे आपत्ति होगी, और इन वाहनों के अलावा यदि चोरी-छिपे कसाई गायों की तस्करी करेंगे, तो उन्हें रोकने वाले गौप्रेमी “गुण्डे” भी नहीं कहलाए जाएँगे. अतः गौ-तस्करी रोकने तथा आए दिन होने वाले विवादों, हिंसक घटनाओं और वसूली के आरोपों से बचने के लिए मोटर वेहिकल एक्ट की उस धारा को सशक्त पद्धति से लागू करना आवश्यक है, जिसमें गौ-परिवहन करने वाले वाहनों का रंग और लायसेंस भिन्न बनाया गया था. न जाने किस दबाव में इस क़ानून में संशोधन किया गया?
साभार :- समग्र चिंतन वेबसाईट
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