बल्कि मोईन कुरैशी उनकी मदद से कई प्रोजेक्ट्स हासिल करने तथा प्रभावशाली लोगों से हफ्ता वसूली के काम में लगा हुआ था. इस रैकेट में एपी सिंह कितने गहरे तक शामिल थे, इसकी जांच जारी है.
मोईन कुरैशी और एपी सिंह के ब्लैकबेरी फोन की चैटिंग की एक कॉपी एक प्रसिद्ध अखबार के हाथ लग गई है, जिसमें दोनों की बातचीत से साफ़ ज़ाहिर होता है कि UPA के शासनकाल में देश के सर्वोच्च पदों पर देशद्रोहियों का लगभग कब्ज़ा हो चुका था. दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के टर्मिनल तीन की लाउंज सर्विस के लिए उसने दिल्ली अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट लिमिटेड (DIAL) में जो निविदा लगाई थी, उसे पास करवाने के लिए कुरैशी ने कई वरिष्ठ अधिकारियों का “उपयोग” किया. 24 सितम्बर 2013 के एक ब्लैकबेरी सन्देश में कुरैशी ने एपी सिंह को लिखा है कि “सर, कृपया इस मामले को देखिये, आज मेरे पास DIAL से फोन भी आ चुका है, और अब जल्दी से जल्दी मुझे इस ठेके का क्लियरेंस चाहिए..”. कुरैशी ने यह ठेका उसकी कम्पनी इंडिया प्रीमियर सर्विसेस प्रा.लि. के नाम से लगाया था. UPA सरकार में बैठे उच्चाधिकारी कुरैशी तक लगातार यह सूचनाएँ पहुंचाते रहते थे कि अब उसकी फाईल कहाँ तक पहुँची है. उसके बाद ही वह सम्बंधित अधिकारी को धमकाकर अथवा CBI के नाम से डराकर अपना काम निकलवा लेता था. चूंकि एक संवेदनशील इलाका होने के कारण इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर कोई भी काम करने के लिए विभिन्न सुरक्षा जाँचों तथा कई शासकीय विभागों की स्वीकृति लगती है, इसलिए कुरैशी इन बड़े अधिकारियों के जरिये “अपने आदमी” वहाँ लगा देता था और उसका काम निकल जाता था.
मोईन कुरैशी ने एक सन्देश में लिखा है कि “...सर मैं आईबी चीफ आसिफ इब्राहीम की मदद भी चाहूँगा ताकि इस अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के सुरक्षा क्षेत्र में मुझे सरलता से काम मिल सके...लेकिन मैं आसिफ इब्राहीम साहब को व्यक्तिगत रूप से जानता नहीं हूँ, आपकी मदद चाहिए...” इसके जवाब में एपी सिंह लिखते हैं कि “...ठीक है, जब मैं लन्दन से वापस आता हूँ तो कोशिश करता हूँ, अन्यथा आपको शिंदे साहब के जरिये ही जाना होगा...”. कुरैशी और एपी सिंह के खिलाफ FIR दर्ज हो चुकी है जिसका आधार है प्रवर्तन निदेशालय के सहायक निदेशक अरुण कुमार की एक चिठ्ठी. सीबीआई ने लगभग पच्चीस सन्देश ऐसे पकडे हैं, जिनसे साफ़ ज़ाहिर होता है कि कुरैशी और एपी सिंह लगातार संपर्क में थे और उनके गहरे सम्बन्ध भी थे. एक सन्देश में कुरैशी लिखता है, “...मैं अपना आईपेड लन्दन में भूल आया हूँ, कृपया नसरीन से कह दें कि वह लेती आए... धन्यवाद”. एक और सन्देश में कुरैशी लिखता है “...आपने जो फाईल लन्दन में मुझे दी थी, क्या उसमें से आपको कुछ दस्तावेज वापस चाहिए?” जवाब में सिंह लिखते हैं, “...हाँ उसमें से एक-दो जरूरी पत्र वापस चाहिए थे, अभी मैं दो दिन लन्दन में ही हूँ, भेज दो...”.
आठ अगस्त 2016 को प्रवर्तन निदेशालय के निदेशक कर्नल सिंह ने सीबीआई निदेशक अनिल सिन्हा को लिखा है कि “... विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम क़ानून 1999 के दायरे में हमारी जांच के मुताबिक़ पता चला है कि AMQ कम्पनी (मोईन अख्तर कुरैशी) कई गलत धंधों में लिप्त है और इस कंपनी ने कई आर्थिक अपराध किए हैं, जो कि सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ मिलकर किए हैं, इसकी गहन जांच होनी चाहिए...”. प्रवर्तन निदेशालय की जांच में यह भी पता चला है कि कुरैशी ने कई बड़े अधिकारियों से ब्लैकमेलिंग और हफ्ता वसूली करके विभिन्न देशों में कई चल-अचल संपत्तियां खडी की हैं. इसमें प्रमुख हैं, फ़्लैट नंबर 4, चेस्टरफील्ड हाउस लन्दन... फ़्लैट नंबर 2902, पैरामाउंट, शेख जायेद रोड, दुबई... 265 ईस्ट, 66 स्ट्रीट, सेकण्ड एवेन्यू अपार्टमेन्ट, सोलो न्यूयॉर्क... फ़्लैट नंबर 6, टेमसेक बुलेवार्ड 24-01 सनटेक टावर सिंगापुर इत्यादि.
संक्षेप में कहने का तात्पर्य यह है कि UPA सरकार के दौरान दस वर्ष में सरकार में उच्च स्तर तक “दीमक” लग चुकी थी और यह दीमक केवल राष्ट्र को खोखला ही नहीं कर रही थी, बल्कि कुछ वर्ष और वह सरकार नहीं बदलती तो निश्चित ही भारत का समस्त ढाँचा ही भरभराकर गिर जाता. नकली नोटों का कारोबार हो, बांग्लादेश से हवाला रैकेट हो, तस्करी हो अथवा “व्हाईट कॉलर बिजनेस” के रूप में बड़े-बड़े ठेके हासिल करने हों, यूपीए सरकार के दौरान मोईन कुरैशी, हसन अली जैसे कई मगरमच्छ बड़े आराम से अपनी पैठ बनाए हुए थे और उनका साथ देने वाले उच्चाधिकारी भ्रष्टाचार में आकंठ डूब चुके थे, क्योंकि उन्हें भी पता था कि यह कैंसर ऊपर तक फैला हुआ है... ईश्वर ने इस देश की रक्षा की, और UPA सरकार को दफ़न किया.