इस मामले में उल्लेखनीय बात यह थी कि अरुण माहौर दलितों में भी जो सबसे निचली पायदान होती है “महादलित”, उस समुदाय से आते थे, और विहिप में उन्हें काफी मान-सम्मान प्राप्त था. अरुण माहौर की उस घृणित हत्या के बाद केवल और केवल भाजपा ने उस घटना के विरोध में प्रदर्शन, धरने, आंदोलन किए लेकिन दलितों से कथित रूप से सहानुभूति जताने वाले कोई भी दलित संगठन, दलित विचारक अथवा दलित नेता अरुण माहौर के पक्ष में बोलने के लिए आगे नहीं आए. कहने का तात्पर्य यह है कि इन भाड़े के दलित चिंतकों की निगाह में “दलित” केवल वही होता है, जो उनकी पार्टी या संगठन में हो... (Dalit Politics in India). अगर कोई व्यक्ति भाजपा-विहिप या RSS में है और दलित है, तो वह इनकी निगाह में दलित नहीं होता.
इस घटना का उल्लेख यहाँ करना इसलिए जरूरी था, क्योंकि अरुण माहौर के बाद ऐसे न जाने कितने दलित युवा विभिन्न राजनैतिक संघर्षों में वामपंथियों द्वारा केरल और बंगाल में मारे जा चुके हैं, लेकिन “तथाकथित दलित हितैषी” लगातार मौन साधे रहे हैं. इसी कड़ी में केरल में एक और भाजपा कार्यकर्ता “श्रीजीत” की प्रताड़ना और हत्या हुई है, लेकिन आज भी कथित दलित संगठन चुप हैं, क्योंकि केरल में वामपंथी सरकार (Communist Intolerance) है.
केरल के एर्नाकुलम में वरप्पुजा का निवासी 26 वर्षीय दलित युवक श्रीजीत को कुछ दिन पहले स्थानीय पुलिस ने शंका के आधार पर घर से उठाया था. इससे कुछ दिनों पहले ही वहाँ के एक 55 वर्षीय माकपा नेता ने आत्महत्या की थी, और माकपा कार्यकर्ताओं का शक था कि श्रीजीत का इसमें हाथ है. मलयालम दैनिक “मातृभूमि” में छपी खबर के अनुसार माकपा नेता का अपने पड़ोसी से कुछ प्रापर्टी विवाद था और श्रीजीत उस पड़ोसी का मित्र था. पुलिस ने माकपा के गुंडों के दबाव और निशानदेही पर रातोंरात (13 अप्रैल को) दलित युवक श्रीजीत को घर से उठवा लिया. तीन दिनों तक पुलिस स्टेशन में श्रीजित के साथ पुलिस ने मारपीट की और माकपा के लोगों ने भी अवैध रूप से थाने के अंदर श्रीजीत की जमकर पिटाई की. इस बीच अत्यधिक वेदना के कारण श्रीजीत की मृत्यु हो गई.
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श्रीजीत की तीन वर्ष पहले ही शादी हुई थी और उसका एक बच्चा भी है. उसकी पत्नी ने आरोप लगाया है कि पुलिस और माकपा के गुंडों ने मिलकर मेरे पति की हत्या की है. यह मौत थाने की हिरासत में हुई, या बाहर ले जाकर मारा गया, कहना मुश्किल है. मामले में असली पेंच तब आया जब इस बात का खुलासा हुआ कि पुलिस ने “गलत आदमी” को उठा लिया था. माकपा के जिस नेता ने आत्महत्या की थी, उसके सम्बन्धियों ने पुलिस में जो शिकायत की थी, उसमें श्रीजीत का नाम कहीं भी नहीं था, परन्तु आपसी दुश्मनी निकालने के लिए माकपा के लोगों ने पुलिस पर दबाव बनाकर श्रीजीत की पिटाई की, ताकि भाजपा कार्यकर्ताओं में खौफ कायम किया जा सके.
फिलहाल मामले की जाँच जारी है, सम्बन्धित पुलिस थाने के चार पुलिसकर्मी सस्पेंड हैं और पुलिस से मिलीभगत करके श्रीजीत की हत्या करने वाले माकपा के वे गुण्डे शहर से फरार बताए जा रहे हैं. इस बीच तथाकथित दलित संगठन और संस्थाएँ अपना मुँह सिले हुए चुपचाप बैठी हुई हैं, चूँकि मरने वाला भाजपा-RSS का सदस्य था... इसलिए तथाकथित दलित कहलाने की जो “बुद्धिजीवी कैटेगरी” होती है, वह उसमें फिट नहीं बैठता था. जी हाँ!!! ऐसा होता है दलित चिंतन...