ये “Stop the V Ritual” आन्दोलन क्या है इसके बारे में हम आगे जानेंगे, पहले आप महाराष्ट्र की एक जाति कंजारभाट समुदाय का इतिहास संक्षेप में जान लीजिए. मौखिक रूप से कंजारभाट समाज का मूल स्थान राजस्थान में माना जाता है. पंजाब के महाराजा रणजीत सिंह की सेना में शामिल यह जाति उनके सैनिकों के हथियारों, तलवारों इत्यादि की धार बनाने का काम करती थी. यह जाति उत्तर में हरियाणा से लेकर ठेठ कर्नाटक तक फ़ैली हुई है. इस जाति को संविधान में “घुमंतू-विमुक्त” जाति के तहत मान्य किया गया है. महाराष्ट्र में इन्हें “कंजारभाट”, गुजरात में “छारा” और राजस्थान में “साँसी” के नाम से जाना जाता है. जहाँ भी लोहे के हथियार बनाने अथवा उन्हें धार देने का काम मिलता है, वहीं स्थायी रूप से बस जाने के कारण इस जाति की जड़ें दूर-दूर तक फ़ैली हुई हैं. अनेक वर्षों तक हथियारों का धंधा करने की परंपरा के कारण आज भी मुम्बई-पुणे-नासिक जैसे शहरों में भी ये जाति हथियारों एवं शराब का धंधा करती है. महाराष्ट्र में कंजारभाट समाज की जनसंख्या लगभग अठारह हजार है, जिसमें से पचास प्रतिशत गरीब ही है. हालांकि शिक्षा के प्रसार–प्रचार के कारण अब इस जाति की आधुनिक पीढ़ी पढ़-लिख गयी है और अब इन युवाओं में भी कई लोग डॉक्टर, इंजीनियर और उद्योगपति हो गए हैं.
ये तो हुआ इस जाति का संक्षिप्त इतिहास... अब जानिये इस जाति की उस अपमानजनक परंपरा के बारे में जिसमें प्रत्येक नवविवाहिता को गुज़रना पड़ता है. सोशल मीडिया पर इस परंपरा के खिलाफ झंडा उठाने वाले श्री विवेक तमाईचिकर बताते हैं कि कंजारभाट समाज की पंचायत कैसी अन्यायी और अघोरी किस्म की है, इसकी जानकारी मुझे मेरे बचपन में ही मिल गयी थी. जब मैं सातवीं कक्षा में था, उस समय एक रिश्तेदार के यहाँ मैं शादी में गया था. बड़ी धूमधाम से शादी संपन्न हुई, लेकिन अगली ही सुबह मैंने देखा कि नवविवाहिता को चप्पलों से सभी के सामने जमकर पीटा गया. जैसे-जैसे मैं बड़ा होता गया, मुझमें समझ आने लगी और अपनी जाति के विभिन्न विवाहों में शामिल होता गया, इस घृणित परंपरा का भयानक सत्य मेरे सामने आता गया.
कंजारभाट समाज में स्त्री व्यभिचारी है कि नहीं इसे तय करने के लिए विवाह के तत्काल बाद कौमार्य परीक्षण की परंपरा है. “अरेंज्ड मैरेज” करने वाली प्रत्येक जोड़ी को यह कौमार्य परीक्षा देनी ही पड़ती है. अनेक वर्षों से यह परंपरा चली आ रही है. विवाह हिन्दू वैदिक पद्धति से ही होता है, लेकिन शादी के मंडप में ही तुरंत पंचायत की बैठक होती है. मंडप में ही शादी किए हुए नवविवाहित युगल को इस कौमार्य परीक्षण के लिए मानसिक रूप से तैयार किया जाता है. कंजारभाट समाज को संविधान में मिली हुई विशेष धारा 38 का आधार लेकर जाति-पंचायत के पंच वर-वधु दोनों को किसी लॉज या होटल में ले जाते हैं. पंचों के साथ दोनों पक्षों के वरिष्ठ नाते-संबंधी भी मौजूद होते हैं. होटल के कमरे में जाकर पंच लोग बड़े ध्यान से कमरे की जाँच करते हैं कि कहीं उस कमरे में शरीर में चुभाने लायक कोई नुकीली वस्तु तो नहीं है.
इसके बाद कौमार्य परीक्षण का यह अपमानजनक खेल शुरू होता है. वर-वधू को आधे घंटे का समय दिया जाता है, इस दौरान पंच और संबंधी होटल के उस कमरे के बाहर बैठे रहते हैं. नवयुगल के इस बेहद निजी पलों के दौरान भी बाहर से पंच लगातार आवाज देकर पूछते रहते हैं कि “सब ठीक चल रहा है ना?”, “कोई समस्या तो नहीं है?” इत्यादि. कभी-कभी यदि लड़का शराब पीने वाला हो तो उसे दारू भी पिलाई जाती है, कभी यौनवर्धक दवाओं का उपयोग किया जाता है, तो कभी-कभी ब्लू फिल्म भी दिखाई जाती है. आधे-पौन घंटे के बाद येन-केन-प्रकारेण सभी पंच और संबंधी कमरे में आते हैं और बिस्तर पर बिछी सफ़ेद चादर में “रक्त का दाग” देखते हैं. यदि रक्त का दाग मिल गया तो लडकी ओके है, अन्यथा वह लडकी व्यभिचारी है ऐसा मान लिया जाता है. इस भीषण अपमान को सहन करने बाद नवयुगल को अभी चैन नहीं मिलता. इस “कथित कौमार्य परीक्षण” के अगले दिन पुनः लड़की के घर में गाँव की पंचायत बैठती है और दोबारा नवयुगल को वहां खड़ा करके लड़के से बड़े ही अश्लील पद्धति से यह सवाल पूछा जाता है कि “हमने तुझे जो माल दिया था, वह खरा निकला या खोटा?” इसके अलावा पंचों की जो भी मर्जी हो उस घृणित भाषा में इसी आशय क सवाल पूछा जाता है, इस दौरान नववधू सर झुकाए खड़ी रहती है. इन प्रश्नों का जवाब वर को तीन बार “हाँ” में देना होता है, इसके बाद ही यह कौमार्य परीक्षण संपन्न माना जाता है. जाति-पंचायत का दबदबा इतना अधिक है कि कोई भी इस गंदी परंपरा के खिलाफ कुछ नहीं बोलता और यह चलता ही रहता है.
पहला विद्रोह :-
कंजारभाट समुदाय की इस परंपरा के खिलाफ सबसे पहला विद्रोह बाईस वर्ष पूर्व एक पढ़े-लिखे युवा जोड़े ने किया था. 1996 में कौमार्य परीक्षण के विरोध में कृष्णा इन्द्रेकर और उनकी पत्नी अरुणा इन्द्रेकर ने आवाज़ उठाई. चूँकि उन दोनों का विवाह “लव-कम-अरेंज्ड मैरिज” था इसलिए कृष्णा ने विवाह से पहले ही अरुणा को विश्वास में लेकर इस अपमानजनक प्रक्रिया के खिलाफ आवाज़ उठाने और जमकर विरोध करने का निश्चय किया. क्रान्ति का पहला बीज बाईस वर्ष पहले पड़ा था, लेकिन इस परंपरा(??) से मुक्ति के लिए आज भी संघर्ष जारी है. समाज और जाति-पंचायत का विरोध करने के लिए इन्द्रेकर दम्पति ने कोर्ट मैरिज की. लेकिन उनके समाज ने ही उनका बहिष्कार कर दिया. आज इतने वर्षों के बाद भी इन्द्रेकर दम्पति के सुखमय विवाह जीवन में भी उन्हें बहिष्कार का सामना करना पड़ रहा है. कई बार उन्हें समाज के कार्यक्रमों से धक्के देकर बाहर किया जा चुका है. कृष्णा इन्द्रेकर महाराष्ट्र शासन के धर्मादाय आयुक्त ऑफिस में संचालक के पद पर हैं. विवेक कहते हैं कि इन्द्रेकर दम्पति हम आधुनिक युवाओं के रोल मॉडल हैं. कंजारभाट समाज की झूठी इज्जत, स्त्री के योनि के चारों ओर ही सीमित है. लड़की का कौमार्य साबुत होने का अर्थ खानदान की इज्जत से जोड़ा जाता है, और इसे सार्वजनिक रूप से पंचों और जातिबंधुओं के सामने सिद्ध भी करना पड़ता है. किसी भी लड़की या लड़के के लिए यह बेहद कड़वा अनुभव होता है. इसके विरोध में अब युवा धीरे-धीरे आगे आने लगे हैं. कंजारभाट समुदाय के वरिष्ठों एवं पंचों-सरपंचों को यह बात समझ में नहीं आती कि लड़की का कौमार्य, कई दुसरे अन्य कारणों (जैसे साईकिल चलाना, वजन उठाना, रेल-बस में चढ़ते समय इत्यादि) से भी नष्ट हो सकता है.
कंजारभाट समुदाय के कुछ अन्य अलिखित नियम भी हैं, जिनका पालन कठोरता से किया जाता है. जैसे “कौमार्य परीक्षण कैसे किया जाए”, इस सम्बन्ध में गाईडलाइन बनी हुई है... अंतर्जातीय विवाह करने वाली लड़की को समाज से बहिष्कृत करके भारी दण्ड ठोंका जाता है... यदि लड़का अंतर्जातीय विवाह करे तो उसे भी लड़की के पक्ष से एक बड़ी रकम पंचों के पास जमा करानी पड़ती है. यदि ऐसा पाया गया कि किसी का विवाह से इतर सम्बन्ध भी है, तो उस स्त्री-पुरुष का सार्वजनिक रूप से “शुद्धिकरण” किया जाता है. स्त्री और पुरुष दोनों को अर्धनग्न करके सबके सामने 150 कदम चलना पड़ता है. उनकी पीठ पर गर्म-गर्म आटे के गोले फेंके जाते हैं और बाद में दूध से स्नान करवाया जाता है. इन कथित परम्पराओं के संचालन की जिम्मेदारी निभाने वाले पंचों का कभी कोई चुनाव नहीं होता, बल्कि समाज के ही धनाढ्य परिवारों में से किसी को सर्वसम्मति(??) से पंच चुन लिया जाता है.
विवेक तिमाईचिकर ने इस कौमार्य परीक्षण के खिलाफ सोशल मीडिया पर “Stop the V Ritual” के नाम से अभियान चलाया, और देखते ही देखते कंजारभाट समाज के दर्जनों युवा इस मुहिम से जुड़ गए. इन सभी ने निश्चय किया है कि वे अपने विवाह में ऐसे किसी परीक्षण से गुजरने वाले नहीं हैं. इसी प्रकार इस समाज की कुछ पढ़ी-लिखी लड़कियां भी अब इस मुहिम में आगे आई हैं. ज़ाहिर है कि संघर्ष तो होना ही था, जाति-पंचायत की बैठक में निर्णय लिया गया है कि इन युवाओं के खिलाफ पुलिस में रिपोर्ट दर्ज की जाएगी और इन सभी का सामाजिक बहिष्कार किया जाएगा. पाँच फरवरी से कंजारभाट समाज की महाराष्ट्र में जहाँ-जहाँ भी बस्तियाँ हैं, वहाँ-वहाँ के पुलिस थानों में विवेक के खिलाफ पंचायत में कार्यवाही की जाएगी. विवेक आगे बताते हैं कि जब से मैंने यह मुहिम शुरू की है, तभी से मुझे समाज की खेल गतिविधि अथवा सांस्कृतिक कार्यक्रमों में नहीं बुलाया जाता. मैं अम्बरनाथ में ही रहता हूँ, फिर भी मुझे यहाँ के स्थानीय विवाह समारोहों में भी आमंत्रित नहीं किया जाता. शुरुआत अपने घर से होनी चाहिए, इसलिए मैंने अपने घरवालों को समझाने का प्रयास किया, लेकिन मेरे घरवाले समाज-पंचायत के दबाव में हैं और मेरा साथ नहीं दे रहे.
मई 2018 में मेरा विवाह होने जा रहा है. मेरी पत्नी का नाम ऐश्वर्या है और वह खासी पढ़ी-लिखी है. जब मेरी सगाई हुई थी उस समय जाति-पंचायत ने वर-वधु दोनों पक्षों से “मिठाई” के नाम पर 4000-4000 रूपए की वसूली की, इसके अलावा विवाह की तारीख तय करने के लिए अलग से 3500 रूपए भी लिए. इस प्रकार के आर्थिक शोषण का भी मैं विरोध करता हूँ. मैंने और मेरी होने वाली पत्नी ने निश्चय किया है कि ऐसी घृणित एवं अपमानजनक परंपरा को हम समाप्त करेंगे. जाति-पंचायत का विरोध करके हम दोनों ने ही तय किया कि यह कौमार्य परीक्षण नहीं होगा. ऐश्वर्या ने भी अपने समविचारी युवाओं को साथ लेना शुरू कर दिया है और अब यह लड़ाई व्यक्तिगत न होकर एक बड़े युवा समूह की हो गयी है. फिलहाल हमारे Stop the V Ritual नामक व्हाट्स एप्प समूह में पचास युवा जुड़ चुके हैं, जिन्होंने शपथ ली है कि वे कौमार्य परीक्षण नहीं होने देंगे. कुछ सामाजिक संगठन भी हमारे इस अभियान का समर्थन करने लगे हैं, जिससे हमारी हिम्मत बढ़ी है.
मेरी चचेरी बहन कुमारी प्रियंका तमाईचिकर को लगातार धमकियाँ मिल रही हैं, क्योंकि वह भी Stop the V Ritual की सक्रिय सदस्य है. जिस बस्ती में गत सप्ताह प्रशांत इन्द्रेकर के साथ मारपीट की गयी, वह उसी बस्ती में रहती है. मेरी बहन का चरित्र हनन करने का प्रयास कुछ तथाकथित पंचों द्वारा शुरू किया गया है, लेकिन वह हिम्मत वाली है, घबराई नहीं है. वर्तमान में मैं टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ़ सोशल साईंस से मास्टर्स डिग्री कर रहा हूँ और इससे पहले मैंने LL.B. भी किया हुआ है. क़ानून-संविधान मैं भी जानता हूँ इसलिए इस जाति-पंचायत के खिलाफ मेरी और मेरी होने वाली पत्नी ऐश्वर्या की लड़ाई जारी रहेगी. मेरी लड़ाई केवल कंजारभाट समाज के धनाढ्य पंचों से नहीं है, बल्कि हमारे समुदाय के गरीबों की भलाई के लिए है. समाज की लड़कियों के सम्मान के लिए है, इस जाति के लोगों में जो भय और दूषित मानसिकता का वातावरण है उसे समाप्त करने के लिए है. केवल क़ानून बनाने से भी कुछ नहीं होगा, हमें तो अब नया समाज बनाना है, वरना इतनी पढाई-लिखाई और शिक्षा का मतलब ही क्या है?
लेख :- विवेक तमाईचिकर (सामाजिक कार्यकर्ता)
संदर्भ- https://www.bbc.com/marathi/india-42771429
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१) अल्लाह हमें रोने दो... एक मुस्लिम महिला की व्यथा कथा... :- http://www.desicnn.com/news/muslim-women-plight-and-islamic-reforms
२) विदेशों में जारी स्त्रियों के मासिक धर्म संबंधी कुछ कुप्रथाएँ.. :- http://www.desicnn.com/news/taboo-about-menstrual-cycle-of-female-in-all-religions