यदि इस बात को 1947 में देश के विभाजन के दोषी जिन्नाह पर लागू करके देखा जाए तो उस पर तो यह अक्षरश: लागू होती है। जिन्नाह भारत में विदेश से आया हुआ कोई खानदानी मुसलमान नहीं था , ना ही वह मुगल ,पठान , शेख या सैयद जैसी किसी मुस्लिम परंपरा का मुसलमान था । मात्र एक पीढी पीछे अर्थात उसके बाप ने ही अपने धर्म से गद्दारी कर दूसरे मजहब को स्वीकार किया था ।
हमारे देश में ऐसे अनेकों जिन्नाह पैदा हुए हैं जिन्होंने धर्म परिवर्तन करने के पश्चात अपनी ही जड़ों को काटने का अर्थात अपने ही धर्म के भाइयों को मिटाने का अपराध किया है। कांग्रेस और देश के सेकुलर वामपंथी इतिहासकारों ने यह सब जानते हुए भी कि जिन्नाह का बाप हिंदू था, इस तथ्य को अधिक स्पष्ट नहीं किया है । क्योंकि ऐसा करने से ‘शांति का मजहब’ अशांति का मजहब दिखाई देने लगेगा । जिसे वह दिखाना नहीं चाहते । यद्यपि इस तथ्य को और सत्य को देश के लोगों को जानने का पूरा अधिकार है। विशेष रूप से तब यह तथ्य और भी अधिक जानकारी में आने योग्य हो जाता है जब लोग यह कहते हैं कि ‘मजहब आपस में बैर रखना नहीं सिखाता’ और मजहब परिवर्तन से राष्ट्र का परिवर्तन कभी नहीं हो सकता। जिन्नाह के बाप के द्वारा की गई गलती को यदि यह लोग पढ़ेंगे तो समझ जाएंगे कि मजहब कितने गहरे घाव देता है ? एक पीढ़ी में ही इतना अधिक जहर जिन्नाह के भीतर हिंदुओं के विरुद्ध भर गया कि वह मजहब के आधार पर देश का विभाजन करने पर उतर आया। यदि वह व्यक्ति अपने मूल धर्म में ही बना रहता तो निश्चित था कि उसके द्वारा देश के बंटवारे की बात कभी नहीं होती।
देश के लोगों को यह ध्यान रखना चाहिए कि हम पिछले 74 वर्षों से देश विभाजन के जिन घावों को सहला रहे हैं, वह घाव जिन्नाह के बाप की उस गलती के द्वारा दिए गए घाव हैं जो उसने मजहब परिवर्तन करके की थी । मूल धर्म के प्रति उसी की गद्दारी का परिणाम रहा कि देश में लाखों हिंदुओं को पाकिस्तान से हिंदुस्तान आते हुए रास्ते में काट दिया गया । सचमुच यह बात सही है कि ‘लम्हों ने खता की थी ,सदियों ने सजा पाई’ – आगे भी हम कब तक देश विभाजन के इन घावों को सहलाते रहेंगे और पाकिस्तान के रूप में पैदा हुए एक शत्रु से युद्ध कर करके कितने बलिदान देते रहेंगे ? – यह आने वाला समय ही बताएगा ।
जिन्नाह के बाप को धर्म परिवर्तन करते ही भारत देश पराया लगने लगा । इसकी माटी से उसे कोई लगाव नहीं रहा। इसे वह और उसका बेटा जिन्नाह केवल जमीन का एक टुकड़ा समझने लगे। जिन्नाह और उसके बाप की इस मानसिकता को देखकर पता चल सकता है कि धर्मांतरण से ही राष्ट्रांतरण होता है।
जिन्नाह को ‘कायदे आजम’ अर्थात महान नेता की उपाधि भारतवर्ष में सबसे पहले गांधीजी ने दी थी । अपनी मनपसंद जगह अर्थात पाकिस्तान को पाने के पश्चात पाकिस्तान में भी उसे इसी नाम से जाना गया । यह एक दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य है कि भारत में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में अभी तक उसका फोटो लगा हुआ है ।
मोहम्मद अली जिन्नाह के पूर्वजों का परिवार गुजरात के काठियावाड़ का रहने वाला था। जिन्नाह के दादा का नाम प्रेमजीभाई मेघजी ठक्कर था जो मूल रूप से लोहाना वैश्य वर्ण का था।वह काठियावाड़ के गांव पनेली में निवास करता था । लोहाना लोग गुजरात, सिंध और कच्छ में पाए जाते हैं । प्रेमजी भाई मछली का व्यापार करते थे । उनका यह व्यापार न केवल देश में बल्कि देश से बाहर विदेशों में भी फैला हुआ था। प्रेम जी भाई के बेटे पुंजालाल ठक्कर थे। इसी पुंजालाल ठक्कर का लड़का जिन्नाह था।
मछली का व्यापारी होने के उपरांत भी जिन्नाह का दादा पूर्णतया शाकाहारी था। हिंदू लोग उनके मछली व्यापार से खुश नहीं रहते थे और उन्हें अक्सर यह सलाह देते रहते थे कि जब उनका अपना व्यवहार और खानपान मांसाहारी नहीं है तो उन्हें मछली का व्यापार भी नहीं करना चाहिए। प्रेम जी भाई को तो हिंदुओं की इस प्रकार की सलाह से कोई विशेष कष्ट नहीं होता था, परंतु उनके पुत्र को हिंदुओं की यह सलाह अखरती थी । स्पष्ट है कि पुंजालाल मछली के व्यापार में रम चुका था । वह स्वयं भी मांसाहारी हो चुका था और ‘मछली की सब्जी’ उसे बहुत अधिक रास आने लगी थी । वह नहीं चाहता था कि कोई उसके सामने मछली के व्यापार को बंद करने की बात करे। यही कारण रहा कि उसने आवेश में आकर हिंदू धर्म त्याग दिया और इस्लाम स्वीकार कर लिया।
जिन्नाह के बाप के द्वारा लिए गए इस निर्णय से उसके परिजनों को और मित्र बंधु – बांधवों को भी असीम कष्ट हुआ । उन्होंने उसे समझाने का भरसक प्रयास किया, परंतु वह एक हठीला व्यक्ति था, इसलिए किसी की भी सलाह को मानने के लिए तैयार नहीं था। परिवार और मित्रजनों के इस प्रकार के विरोध से भी विद्रोह करते हुए पुंजालाल ठक्कर काठियावाड़ से कराची चला गया। उसने सोच लिया कि न रहेगा बांस ना बजेगी बांसुरी। काठियावाड़ से कराची जाकर बसा यह व्यक्ति और उसका परिवार अब और भी अधिक मांसाहारी और शराबी हो गया था । क्योंकि अब उस पर समाज का कोई किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं था, इसलिए मर्यादाहीन आचरण करने के लिए जिन्नाह का बाप अपने आपको आजाद समझने लगा।
यह एक स्वाभाविक बात है कि जब कोई व्यक्ति अपने मूल धर्म को त्यागता है तो जिस संप्रदाय में वह जाता है ,वहां जाने पर पहली बात तो यह होती है कि वह अपने मूल धर्म के लोगों से अधिक घृणा करता है । दूसरी बात यह है कि वह उन नियमों, सिद्धांतों व मान्यताओं को अधिक से अधिक तार-तार कर देना चाहता है जो उसके मूल धर्म में रहते हुए उस पर लागू थीं। बस, यही बात अब जिन्नाह के परिवार पर भी लागू हो गई थी । उसके पिता पुंजालाल ने अपने मूल हिंदू धर्म की सारी मान्यताओं को तार-तार किया और मांस, मदिरा व अय्याशी की सारी सीमाएं तोड़ दीं। जिन्ना ने भी अपने बाप की देखा – देखी अपने आपको इन्हीं दुर्व्यसनों में फंसा लिया । फलस्वरूप वह भी अब हिंदू धर्म के प्रति घृणा से भर चुका था। अपने मछली के व्यापार में जिन्नाह और उसके बाप ने भरपूर पैसा कमाया । उन्हें इसी व्यापार के माध्यम से पर्याप्त प्रसिद्धि भी प्राप्त हुई। यहां तक कि लंदन में भी उन्हें अपने कारोबार को फैलाने और बढ़ाने के लिए अपना देख स्थानीय कार्यालय खोलना पड़ा।
गुजरात में जिन्ना के अपने मूल परिवार के लोग अभी भी रहते हैं । वे सभी आज भी हिन्दू हैं । उनमें मांस, मदिरा और अय्याशी का कोई दोष उस समय नहीं था, इसलिए वे शांतिपूर्वक अपने देश के साथ मिलकर काम करते रहे। उनकी पुरानी पीढ़ियों में सम्मिलित रहे जिन्नाह से उन्हें कोई लगाव नहीं है । कारण कि जो व्यक्ति अपने धर्म और अपने देश का गद्दार हो गया उसे हिंदू धर्म में त्यागने की पुरानी परंपरा रही है। इसके उपरांत भी पता नहीं कांग्रेस और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के लोग जिन्नाह से अपना कौन सा रिश्ता निभा रहे हैं ?
डॉ राकेश कुमार आर्य