आतंकवाद और लव जेहाद के विनाशक : वराहदेव (सूअर)

Written by रविवार, 28 जनवरी 2018 13:13

सम्पूर्ण विश्व आज आतंकवाद (Islamic Terrorism and World) से त्रस्त है। अमेरिका, ब्रिटेन, अफगानिस्तान, भारतवर्ष, ईराक, म्यांमार, के साथ-साथ सम्पूर्ण यूरोपियन देश आस्ट्रिया, पोलैंड, हंगरी, फ्रांस, बेल्जियम और न जाने कितने देश “आसुरी दैत्य वृत्तियों” (यानी इस्लाम) से घबराये हुए हैं।

कारण का मूल है सम्पूर्ण विश्व पर असुरों द्वारा अपनी दनुज वृत्तियों को आरोपित करना, और समस्त भूमण्डल पर अपना आधिपत्य करने की दुराग्रहपूर्ण चेष्टा। इस आतंकवाद और असुरों का नाश करने का एकमात्र और ठोस उपाय हैं, भगवान विष्णु के अवतार “वराहदेव” (Varah Avatar) यानी सूअर का स्वरूप जिसे अंगरेजी में Boar या Truffle Hog भी कहते हैं. आप थोड़ा चौंके होंगे ना!!! लेकिन आतंकवाद की समस्या से निपटने में सूअर की भूमिका को समझने से पहले आपको “देव-असुर” के बीच का फर्क थोड़ा गहराई से समझना होगा.... लेख के इस पहले भाग में इसी पर फोकस किया गया है.

असुर और देव शब्द दिमाग में आते ही हम सनातनधर्मियों के मनःपटल पर दो तस्वीरें अंकित होती हैं पहला भगवान् यानि देवों का सौम्य और कांतिमय मुखमण्डल, तथा दूसरा असुरों का भयानक तीक्ष्ण नुकीले रूधिरयुक्त कृन्तक दाँतो और सिर पर सींगों वाला डरावना चित्रण। जहाँ देव विग्रह का स्मरण होते ही, दृष्टि उसी का अपलक चिंतन करना चाहती है, वहीं असुरों का भयानक “फेशियल रिप्रैजेंटेशन” वाला चित्र सामने आते ही व्यक्ति सहमकर भयाक्रांत हो जाता है। यह मात्र हमारा मनः कल्पित चित्रण ही है। दैत्यों की नकारात्मक वृत्तियों को और देवों के दैवत्व को दर्शाने हेतु इस प्रकार के चित्र हमारे ऋषि-मुनियों द्वारा बनाये गये हैं।

varaha

 

देव और दनुज मानुष तनधारी ही हैं, सकारात्मक सात्विकता से परिपूर्ण विचारवान लोग देव हैं तो नकारात्मकता से भरे और परपीड़न करने वाले असुर हैं, यही देव और असुरों की स्पष्ट पहचान है। कलिकाल में दोनों की पहचान और उनके मध्य अंतर की यही वास्तविकता है। हम सोचते हैं कि भगवान विष्णु ने अपने समस्त अवतारों द्वारा समय समय पर इस धराधाम पर आकर असुरों का नाश कर दिया है और आज असुर और राक्षसों जैसी कोई विचारधारा है ही नहीं। किंतु यह हमारा मात्र भ्रम है, यद्यपि भगवान ने समय समय पर स्वयं अवतार लेकर आसुरी वृत्तियों का उच्छेदन किया लेकिन फिर भी असुरों का पूर्णतः नाश नहीं किया। आज आसुरी विचार (यानी क्रूर इस्लाम) सार्वभौमिक, सार्वकालिक और सार्वदेशिक हो चुका है।

असुर हर युग में थे तथा आगे भी रहेंगे, और स्वयं ईश्वर उनका मानमर्दन करके उनके असुरत्व के विचार को न्यूनतम कर देंगे या हाशिये पर ला देंगे। हम सनातन धर्मियों के पराभव का एकमात्र कारण हमारी निष्क्रियता तथा केवल और केवल भगवान पर हमारी निर्भरता है इसी ने हमें नपुंसकता की ओर ढकेला है। हम अपने दिव्य ग्रन्थों का अध्ययन तो करते हैं किंतु उसका सही और प्रासंगिक मनन नहीं करते। हमारे दिव्य ईश्वरीय ग्रन्थों की गलत व्याख्याओं ने ही हमारा पराभव किया है। हम सनातन मतावलम्बियों के मन में यह भ्रम है कि ईश्वर असुरत्व से हमें बचाने हेतु, स्वयं आयेंगें तब तक हम निष्क्रिय ही रहेंगे, और हमें ईश्वर के आने तक प्रतीक्षा करनी ही होगी तब तक हम अपने स्तर पर कोई भी प्रयास नहीं करेंगे। यही सबसे बड़ी गलती है.

श्रीमद्भगवद्गीता में लिखा है कि --

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।। (भगवद्गीता ४/७)

इसका अर्थ यह नहीं कि हम भगवान के आने तक हाथ पर हाथ धरकर निष्क्रिय और कापुरूष बनकर बैठे रहें, और भगवान धर्म की ग्लानि और देवत्व के ह्रास के पश्चात धर्मोत्थान और धर्म स्थापना हेतु स्वयं आयेंगे तब तक हमें कुछ नहीं करना है। इसी श्लोक का मनन करने वाले यह भी ध्यान नहीं रखते कि इसी श्रीमद्भगवद्गीता के एक अन्य श्लोक में भगवान ने कहा है कि हम अपने उत्थान और पतन के लिए स्वयं उत्तरदायी हैं। हम ही स्वयं में अपने शत्रु हैं तो अपने उद्धारक भी। हमारे भीतर का तेज और दैवत्व ही भगवान है। हमें अपना कल्याण स्वयं करना है।

उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत् ।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः।| (भगवद्गीता ६/५)

कहा जाता है माता दिति और कश्यप के दैहिक संयोग से सौ वर्ष तक माता दिति के गर्भ में रहने के पश्चात असुर द्वय हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु का जन्म हुआ। देवर्षि नारद ने माता दिति को यह भी बताया था, कि उसके दोनों पुत्र समस्त भूमण्डल पर अपना अधिकार करेंगे, भगवान विष्णु से शत्रुता करने वाले होंगे और महाबलशाली और पराक्रमी होंगे किंतु भगवान उनका स्वयं वध करेंगे और तदुपरांत वह दोनों भगवान के पार्षद बनेंगे और भगवान के परमधाम को प्राप्त करेंगे। चूँकि यह दोनों असुर द्वय हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु ने माता दिति के गर्भ में शतवर्ष तक वास किया था, अतः जन्म लेने के पश्चात ही दोनों का शरीर एकदम से बढ़कर नभमण्डल को छूने लगा। दोनों ने कठिन तपस्या के द्वारा ब्रह्मा जी से अमरत्व का वरदान माँग लिया लेकिन जैसा कि हम जानते ही हैं भगवान तपस्या से प्रसन्न होकर अमरत्व का वरदान तो देते हैं, लेकिन “कंडीशनल” शर्तों के साथ।

यह वर प्राप्त कर दोनों असुर ने अपनी असुर विचारधारा के अनुसार ही समस्त जगत को पीड़ित और प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। जैसा कि हम सभी जानते ही हैं कि राक्षस सात्विकजनों की भूमि का हरण करते हैं, परस्त्री पर बलात्कार करके अपना अधिकार करते हैं, अपने ही विचार को एकमात्र सत्य बताकर सीधे सरल लोगों पर उसे बलपूर्वक आरोपित करते हैं. साथ ही साथ असुर जन ईश्वरीय तत्व की गलत व्याख्या करते हैं। ठीक वैसा ही असुर द्वय हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु ने भी किया, तभी भगवान विष्णु ने अपने तीसरे और चौथे अवतार में क्रमशः वराह और नृसिंह अवतार लेकर इन दोनों असुरों का वध किया।

 

Varaha avatar Story in hindi

सभी लोग जानते हैं कि इस सृष्टि पर भूमि पर कब्जे के कारण ही समस्त युद्ध जन्म लेते हैं। वर्तमान समय की ही तरह इन दोनों ने भी उस समय समस्त भूमण्डल पर अपना अधिकार कर लिया। हिरण्याक्ष ने समस्त पृथ्वी का हरण कर उसे समुद्र तल में डुबो दिया, और चारों ओर ब्रह्मांड में मल द्वारा एक अवरोधक बाड़ बना दी। वह जानता था कि मल जैसे घृणित पदार्थ के अभेद्य सुरक्षा कवच वाली बाड़ को भेदकर कोई भी पृथ्वी को उससे नहीं छीन सकता और उसे कोई नहीं मार सकता क्योंकि उसे ब्रह्माजी द्वारा अमरत्व का वरदान था कि कोई भी दनुज, मनुज, जीव जन्तु उसे नहीं मार सकता। भगवान विष्णु ने इन परिस्थितियों का अवलोकन कर वराह रूप धारण किया। भगवान ने उसे मारने हेतु आधा शूकर और आधा मानव का रूप लेकर, “वराह अवतार” धारण किया, उन्होंने मल की सुरक्षा बाड़ को भेदकर अपने तीखे और पैने दाढों की सहायता से पृथ्वी को रसातल से निकालकर उसका उद्धार किया और इस पृथ्वी को संकट से निकाला। तत्पश्चात भगवान वराह ने विकट अट्टहास करते हुए उस दुष्ट भू-माफिया हिरण्याक्ष का वध किया। चूँकि हिरण्याक्ष का भाई हिरण्यकशिपु भी अपने भाई के ही समान ब्रह्माजी से अमरत्व का वरदान प्राप्त किए हुए था अतः उसका भी वध भगवान ने अपने नृसिंह रूप द्वारा किया और उस दुष्ट को भी सदगति प्रदान की। वराह और नृसिंह यह दोनों भगवान विष्णु के उग्र अवतार हैं और अभीष्ट फल देने वाले रूप हैं।

असुर (यानी इस्लाम) आज भी बहुत दुष्टता से समस्त भारतवर्ष के साथ-साथ सम्पूर्ण ब्रह्मांड पर अपना वर्चस्व स्थापित करने में प्रयासरत हैं, और हम सभी को भगवान वराह की साधना और उनकी दैवीय शक्तियों का अपने-अपने भीतर जागरण करना होगा, तभी असुरत्व का समूलोच्छेदन संभव होगा। असुरों ने इस पवित्र भूमि को शताब्दियों से पीड़ित प्रताड़ित किया है और सात्विक जनों को क्रूरता से कभी न भरने वाले घाव दिये हैं। समस्त सृष्टि इस असुरत्व के राक्षसी कृत्यों से परेशान हो चुकी है और यह निश्चित है कि भारतवर्ष से ही यह देवासुर संग्राम प्रारंभ होगा। भारतवर्ष वराह अवतार को विस्मृत कर चुका है, परन्तु अब वराह के महत्व और उसके भारतवर्ष पर किए गये अनन्त उपकारों को पुनःस्मरण करने की आवश्यकता है।

आशा है कि इस संक्षिप्त लेख से आप “देव” धर्म (सरल-सच्चे-सीधे-सकारात्मक लोग) तथा “असुर” पंथ (निर्मम, दुष्ट, दुराग्रही, आततायी) के बीच का अंतर समझ गए होंगे... साथ ही भगवान् विष्णु के “वराह अवतार” के बारे में भी आपको संक्षिप्त जानकारी मिल चुकी है... लेख के मूल विषय से सम्बंधित दो और लेख इसी वेबसाईट पर पहले भी प्रकाशित हो चुके हैं, जिसमें यह बताया जा चुका है कि किस तरह भारत में मुगलों के अत्याचार की वजह से सिर पर मैला ढोने की प्रथा आरम्भ हुई. उन दोनों लेखों की लिंक नीचे दी गयी है...

इस लेख के दूसरे और अंतिम भाग में आतंकवाद एवं लव जेहाद से निपटने में Boar, शूकर अर्थात वराह्देवता अपनी सशक्त भूमिका कैसे निभा सकते हैं, इस बारे में बताया जाएगा... हमारे साथ बने रहिये.... (अगले भाग में जारी......) 

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मुग़ल अत्याचार और शौचालय की व्यवस्था... :- http://www.desicnn.com/news/islamic-invaders-and-their-cruelty-became-necessity-of-in-house-toilet-in-indian-history 

मुग़ल अत्याचार, वाल्मीकि समाज और वराह (सूअर) अवतार... :- http://www.desicnn.com/news/indian-toilet-system-muslim-invaders-and-pig-farming-in-a-special-sect-of-hindus 

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