बनारस में मोदीजी ने खुद एक शौचालय विहीन व्यक्ति के शौचालय (Indian Toilet System) के सोख्ता पिट की संगे-बुनियाद (संग का मतलब होता है पत्थर) रखी है. शासक वर्ग के बहुप्रचारित स्वच्छ भारत अभियान से अनुप्राणित होकर बहुत से राज्य खुले में शौच से मुक्ति पा चुके हैं. परन्तु मूलभूत प्रश्न यह है कि आखिर भारतवर्ष में शौचालय का निर्माण कब और कैसे हुआ (Toilets in ancient India)? और यह अब तक शतप्रतिशत प्रचलन में क्यों नही रहा?
कई कथित इतिहासकार शौचालय परंपरा को “इण्डस वैली सिविलाईजेशन” (सिंधु घाटी सभ्यता) से भी पुराना बताते हैं. वह यह भी बताते हैं कि इस सभ्यता में स्नानागार और शौचालय बहुधा प्रयोग किए जाते रहे थे. इसके प्रमाण के रूप में वह इन शौचालय और स्नानागार आदि के चित्र भी अकाट्य प्रमाण के रूप में प्रस्तुत करते हैं. परन्तु समाधान न हो पाया, और यह प्रश्न निरंतर बना रहा कि आखिरकार जब इसका अविष्कार पूर्व काल में ही हो चुका था तो भारतवर्ष में इसका प्रयोग अभी हाल फिलहाल तक पूरी तरह से प्रचलन में क्यों नहीं आ पाया? आखिर क्यों मोदी सरकार को इसके निर्माण करवाने की इतनी आवश्यकता पड़ी? इसके निर्माण को इतनी प्राथमिकता देने की आवश्यकता के पीछे क्या निहितार्थ हैं?
अभी हाल फिलहाल के तीस पैंतीस वर्ष पूर्व तक घर घर में नगरपालिका के कच्चे शौचालय का प्रयोग होता था और बड़े बड़े डब्बों की हमारे “स्वच्छक बान्धव” साफ सफाई किया करते थे. यह बात तो अमूमन सभी जानते ही हैं. बहुत से लोगों ने तो उसका अपभोग भी किया होगा. जब सोख्ता पिट और सीवर प्रणाली वाले स्वचालित शौचालय पद्धति पहले से ही अस्तित्व में थी, तो कच्चे शौचालय आज से कुछ समय पहले तक क्यों प्रयोग किए जाते रहे? यह प्रश्न हृदय को बड़ा व्यथित करता रहा, कि आखिरकार क्यों और कैसे किसी समाज को अन्य के मल जैसी गन्दगी को साफ करने का कार्य करने पर मजबूर कर दिया गया. कोई भी व्यक्ति आजीविका हेतु कुछ भी कार्य करेगा, परन्तु दूसरों के मल-मूत्र उठाने जैसा घृणित और अपमानजनक कार्य आखिर क्यों करेगा? स्वेच्छा से यह कार्य आखिर कोई क्यों करेगा? आखिर वाल्मिकी समाज यह अपमानजनक कार्य करने पर क्यों मजबूर हुआ? इसका जवाब इस्लामी आक्रान्ताओं द्वारा किए गए गए अत्याचारों के कालखंड में छिपा है...
वास्तव में भारतीय परम्परा में शौचालय नकारात्मकता का प्रतीक माना जाता रहा है क्योंकि सनातन धर्म आन्तरिक और बाह्य शुचिता जैसे विषय पर अत्यधिक जागरूक रहा है. पूर्वकाल में भारत में यदि शौचालय अत्यधिक प्रचलन में रहे थे, तो आज केन्द्र सरकार को आखिर शौचालय बनवाने की क्या आवश्यकता पड़ी? भारतवर्ष में पुरातात्विक दृष्टि के जितने भी महल हैं उनमें रसोईघर,स्नानागार आदि तो दिखने में आता है परन्तु शौचालय किसी भी भवन में नही पाया जाता. यह इस बात का स्पष्ट प्रमाण है शौचालय भारतीय अवधारणा नही है. सत्य यह है कि भारत में पुरातन काल से ही घर में परंपरागत शौचालय बनाने की कोई परंपरा ही नही थी. वामपंथी इतिहासकार सिंधु घाटी का संदर्भ देकर इस झूठ को सत्य साबित करने का बहुत प्रयास करते हैं कि भारत में शौचालय की परंपरा बहुत पुरातन है. किंतु सत्य यह है कि शौचालय की परंपरा इस्लामी आक्रमण के साथ भारत में आई. मुहम्मद बिन कासिम, महमूद गजनबी, मुहम्मद गोरी, इब्राहिम लोदी जैसे आततायी आक्रमणकारियों के समय से इन शौचालयों का प्रचलन प्रारंभ हुआ.
भारतवर्ष में शौचालय हेतु दिशा मैदान प्रयुक्त किए जाते थे (अक्षय कुमार की फिल्म “टॉयलेट” में आज भी भारत के कई गाँवों की सटीक स्थिति दर्शाई गयी है). प्रत्येक गाँव, मोहल्ले, गली आदि के अपने अलग-अलग दिशा मैदान होते थे. लोग इन्हीं दिशा मैदानों में शौचादि से निवृत्त होते थे. शौचालय जैसी किसी सुविधा का कहीं जिक्र तक न था. भारत में शौचालय इस्लामिक शासन आने के साथ में आया. इस्लामी आक्रांता किसी भी शहर को लूटने के बाद सबसे पहले उस शहर को पुरुष विहीन कर देते थे, और उस स्थान की सभी स्त्रियों को अपने संरक्षण में लेकर बंधक बना देते थे. चूँकि मुसलमान अपने साथ स्त्रियाँ लेकर नही आये थे, अतः वह स्त्री प्रसंग हेतु लालायित रहते थे. फिर इनकी कथित आसमानी किताब की शिक्षायें भी स्त्रियों को जायज लूट (माल-ए-गनीमत) बताती रही हैं।
स्त्री प्रसंग की इस बायोजीनिक डिमांड की पूर्ति हेतु उन्होंने भारतवर्ष के शहरों को जीतने के बाद युवा स्त्रियों, युवतियों को आपस में बाँट लिया. स्त्रियाँ भागकर पुनः अपने मूल समाज में वापस जाकर न मिल जायें, इस हेतु से उन्हें नजरबंद करने हेतु स्थान-स्थान पर खानकाहों और सरायों का व्यापक रूप से निर्माण किया गया. इन खानकाहों और सरायों से स्त्रियों को बिल्कुल भी बाहर नही निकलने दिया जाता था. यहाँ तक कि शौचादि के लिए भी उन्हें बाहर नहीं जाने दिया जाता था. इस हेतु से इन विजित स्त्रियों को इन्हीं बड़े-बड़े खानकाहों और सरायों नामक भवनों में बंद करके रखा गया. सरायों और खानकाहों को बनाने का मूल उद्देश्य ही स्त्रियों को बंधक बनाने, और उन्हें अपने अधिकार में बनाये रखने हेतु होता था.
चूँकि आक्रमणकारी वर्ग अत्यंत न्यूनतम मात्रा में था अतः उन्होंने अपनी संख्या में बढ़ोत्तरी करने और अपना समर्थक वर्ग तैयार करने हेतु इन सनातनधर्मी अबला मातृशक्ति का भरपूर उपयोग करने का विचार किया. यह सर्वमान्य तथ्य है कि यदि झुण्ड में गऊओं की संख्या ज्यादा हो और बैलों की संख्या अत्यंत कम हो तो झुण्ड की संख्या अत्यधिक तीव्र गति से बढ़ती है. इसी तथ्य को अपनाकर इन वैदेशिक आक्रान्ताओं ने अपनी संख्या में तेजी से वृद्धि कर अपना कट्टर सहयोगी और समर्थक वर्ग उत्पन्न किया. मात्र कुछ हजार योद्धाओं के साथ प्रारंभ हुआ यह वर्ग तीव्र गति से वृद्धि करता हुआ शासक वर्ग बन बैठा. बंधक बनाई गयी स्त्रियों को अपवित्र करने का मुख्य उद्देश्य उनके गर्भ को अपने एक शक्तिशाली और दीर्घावधि तक लाभ देने वाले हथियार के रूप में इस्तेमाल करना था. एक एक विजित योद्धा के हिस्से कई कई स्त्रियाँ और युवतियाँ आईं. इन स्त्रियों को मनोवैज्ञानिक रूप से तोड़ने और अपने उपकरण के रूप में तैयार करने हेतु उनका बर्बरता से बलात्कार किया गया. इस बर्बर बलात्कार को तहर्रूश कहा जाता है. (लेख को मनगढ़ंत कहने वाला कोई भी व्यक्ति गूगल पर जाकर इस "तहर्रूश" शब्द का अर्थ एक बार जरूर देख लें), मनोदर्पण पर जमी सारी धूलभरी परतें एक झटके में साफ हो जायेंगी. इन हिंदू अबलाओं को संतानोत्पत्ति तक बंधक बनाकर रखा जाता था, ताकि लगभग सभी अबलायें हमेशा-हमेशा के लिए उन्हीं क्रूर लुटेरों की संपत्ति बनकर रह जायें. यदि लाखों में दस बीस भागती भी थीं तो उनका मूल समाज उन्हें स्वीकार ही नही करता था, और वह वापस उन्हीं लुटेरों के पास लौटने को ही अपनी नियति मान लेतीं थी.
जैसा कि पूर्व में बताया जा चुका है इन मातृशक्ति को नित्य क्रिया हेतु भी बाहर निकलने नहीं दिया जाता था. अब इन खानकाहों और सरायों में भीषण गन्दगी फैल गई. अब समस्या यह थी कि इसे साफ कौन करे? इस समस्या के निराकरण हेतु मुस्लिम आक्रांताओं ने युद्ध में हार चुके भारतीय देशज लड़ाकों को इस कार्य को करने पर मजबूर किया. उनके सामने शर्त रखी गयी कि या तो इन खानकाहों और सरायों में फैली भीषण गन्दगी की साफ सफाई करना स्वीकार करें, या धर्म परिवर्तन करें. अन्यथा यदि वह योद्धा इन दोनों कार्यों को करने में असमर्थ है, तो वह सभी मृत्यु को वरण करने हेतु तैयार रहें. इन श्रेष्ठ योद्धाओं ने यहाँ आपद्धर्म के रूप में बंधक बनायी गयी उन अबला हिंदु स्त्रियों के मल मूत्र को साफ करने जैसा गर्हित कार्य किया, परन्तु स्वधर्म न छोड़ा.
धर्म के प्रति ऐसी अटूट निष्ठा के कारण ही भारतवर्ष आज तक भी पूरी तरह से दारूल इस्लाम न बन पाया. पाठक यहाँ योद्धा जातियों से तात्पर्य किसी विशेष जाति से जोड़कर न देखें. भारतवर्ष में ब्राह्मणों से लेकर दलित तक लगभग सभी जातियाँ युद्ध कौशल में निष्णात थीं और योद्धा जातियों में ही गिनी जातीं थी. जहाँ कौरव और पाँडवों को युद्ध कौशल सिखाने वाले द्रोणाचार्य एक ब्राह्मण होकर भी योद्धा थे, तो एकलव्य भीलपुत्र था परंतु वह भी योद्धा गिना जाता है. युद्ध कौशल किसी विशेष समूह का कॉपीराइट नहीं था और योद्धा जाति कोई भी हो सकती थी.
भारतीय योद्धा जनमानस ने इस प्रकार के आपद्धर्म में मृत्यु या धर्मांतरण के स्थान पर धर्म रक्षा को वरीयता दी. स्वधर्म के प्रति अपनी अटल रूढ धर्मभावना को बनाए रखने हेतु इन पराजित लोगों ने इन खानकाहों और सरायों में पसर चुकी गन्दगी को साफ करना ज्यादा श्रेयस्कर समझा. इस प्रकार मल मूत्र साफ करने के निकृष्ट कर्म को करने के बाद भी हमारे इन बान्धवों ने स्वधर्म नही छोड़ा और सनातन धर्म की गौरवशाली पताका को झुकने नही दिया. मुग़ल काल में लगातार कई वर्षों तक धीरे धीरे यह समाज यह निकृष्ट कर्म करते रहने से अस्पृश्य बन गया, और अपने ही मूल समाज से सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक तौर पर पूरी तरह से आइसोलेट या पृथक हो गया. हमें अपने वाल्मीकि समाज का धन्यवाद करना चाहिए, कि उन्होंने धर्म को न छोड़कर एक घृणास्पद कार्य करना ज्यादा श्रेष्ठ समझा. हम इस समाज के युगों युगों तक ऋणी रहेंगे.
आज भी वाल्मीकि समाज विकट योद्धा हैं, और प्रत्येक वाल्मीकि बच्चा अखाडों में लाठी, बल्लम, गतका चलाने में निष्णात है. इनके इस युद्ध कौशल का सभी लोग वाल्मीकि जयंती के दिन साक्षात्कार करते हैं. वाकई में जिहादियों द्वारा किए गये दंगों का उसी तीव्रता से प्रतिकार और दमन यही वाल्मीकि बंधु करते हैं, क्योंकि हमारे वाल्मीकि बंधुओं को श्रुति स्मृति परंपरा द्वारा अपने विगत इतिहास और भोगी गयी पीड़ाओं का पीढ़ी दर पीढ़ी से ज्ञान है.
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अगले भाग में जारी... दूसरे भाग में वराह (सूअर) अवतार पर कुछ और चर्चा होगी...
1) भारत से बौद्ध पंथ की समाप्ति का कारण है इस्लाम.... :- http://desicnn.com/news/boudh-religion-in-indian-subcontinent-was-once-flourished-but-islamic-invaders-and-infighting-destroyed-it
२) यूरोप में इस्लामी घुसपैठ समस्या... :- http://desicnn.com/news/muslim-refugee-problem-and-europe-dooms-day
३) अल्लाह हमें रोने दो.. एक इस्लामी महिला की दुखद पुकार... :- http://desicnn.com/news/muslim-women-plight-and-islamic-reforms