संभवतः इस समारोह में हनुमानजी और संघ स्वयंसेवकों को “समलैंगिक” दर्शाने वाली यह फिल्म दिखाई जाएगी. “संभवतः” इसलिए लिखा है कि फिलहाल कड़े विरोध के कारण यह मामला अधर में लटका हुआ है, परन्तु नयी नयी बनी सूचना-प्रसारण मंत्री यानी स्मृति ईरानी को पूरे विषय की जानकारी ही नहीं है. अत: प्रबल संभावना है यह फिल्म भारत के इस फिल्म समारोह में जरूर दिखाई जाएगी.
स्मृति ईरानी का नाम पढ़कर अब आप फिर से चौंके होंगे... जी हाँ!!! मुद्दा है ही ऐसा थोड़ा गंभीर किस्म का. चलिए सबसे पहले हम अन्तर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में आने वाली फिल्मों की चयन प्रक्रिया के बारे में थोड़ा संक्षेप में जान लें. होता यह है कि जब भी कोई अन्तर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह आयोजित किया जाता है, तो उसमें किस देश की कौन-कौन सी फ़िल्में दिखाई जाएँगी, यह तय करने के लिए एक समिति गठित की जाती है. जब स्क्रीनिंग कमेटी दूसरी भाषाओं की विदेशी यानी अंतरराष्ट्रीय फ़िल्में देखती है तो उन्हें यह स्पष्ट निर्देश दिया जाता है कि, फिल्म के कथानक या विषयवस्तु में अगर “यौन दृश्यों” की प्रधानता है, तो भी उसे इग्नोर (उपेक्षित) कर दिया जाए. यानी उस फिल्म में यौन आकर्षण, यौन हिंसा अथवा यौन संबंधों के बारे में कोई दृश्य हैं तो फिल्म की ग्रेडिंग करते समय, अर्थात फिल्म को अंक देते समय उस पर ध्यान देने की जरूरत नहीं है. कमेटी को केवल यह देखना होता है कि फिल्म की कहानी क्या है? पटकथा कैसी है? कैमरा वर्क कैसा है? प्रकाश संयोजन एवं अभिनय किस स्तर का है? इत्यादि. ऐसे में होता यह है कि कई बार यौन दृश्यों से भरपूर गरमागरम फ़िल्में अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह में अपनी लॉबिंग करके घुस आती हैं. कई दर्शक और कई कथित बूढ़े समीक्षक भी इसी “दर्शनीय लालच” में ऐसे फिल्म समारोहों में जाते हैं.
खैर... ये तो हुई स्क्रीनिंग कमेटी के लिए स्थापित नियमों की बात. इस बार के फिल्मोत्सव में जो कि गोवा में होने जा रहा है, इसके लिए कनाडा से एक फिल्म का आवेदन आया. एक मलयाली फिल्मकार हैं जायन के. चेरियन, विदेश में रहते हैं... और “प्रगतिशील”(??) निगाह से भारत की संस्कृति और राजनीति की तरफ देखते-सोचते हैं. इन्होंने एक फिल्म का निर्माण किया है, जिसका नाम है “बॉडी-स्केप”. उन्होंने इस फिल्म को समारोह में शामिल करने के लिए स्क्रीनिंग कमेटी के पास भेजा. यह फिल्म अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह-2016 में भी आई थी . तब वरिष्ठ लेखक, टीवी सीरियल निर्माता एवं कवि प्रवीण आर्य भी इस स्क्रीनिंग कमेटी के सदस्य थे. जब स्क्रीनिंग के समय उन्होंने अपने सदस्य साथियों के साथ यह फिल्म देखी तो उनका माथा बुरी तरह ठनक गया. फिल्म का मूल कथानक तो समलैंगिकता पर है, और इसमें कमेटी को कोई दिक्कत भी नहीं थी, क्योंकि उन्हें पहले ही वैसे निर्देश प्राप्त थे. असली गडबड़ी वहाँ पाई गई, जब एक घंटे से अधिक की इस फिल्म में हनुमानजी को भी नग्नावस्था में चित्रित करके उन्हें समलैंगिक दर्शाने का कुत्सित प्रयास दिखाई दिया. जैसा कि आप चित्र में देख सकते हैं, हनुमानजी का लंगोट गायब कर दिया गया है. हनुमानजी के हाथों में पुस्तकों का ढेर है (संजीवनी बूटी के रूप में) और उसमें धारा 377 लिखा है. इसी फिल्म में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों को भी “गे” (यानी समलैंगिक) के रूप में चित्रित किया गया है. फिल्म के एक दृश्य में केरल में लगने वाली किसी शाखा का दृश्य दिखाया गया है. इस दृश्य में बिजली के खम्भे पर भगवा ध्वज लटका हुआ है और कुछ स्वयंसेवक शाखा लगाए हुए हैं (जबकि वास्तविकता में यह सम्भव ही नहीं है, क्योंकि शाखा में भगवा ध्वज लगाने का एक नियम और पद्धति होती है, जिसका कड़ाई से पालन किया जाता है). इसी फिल्म के एक दृश्य में संघ का गणवेश पहने हुए एक व्यक्ति द्वारा दूसरे “आदमी” को अश्लील निगाहों से घूरते हुए भी दिखाया गया है. सूत्रों के अनुसार फिल्म के अंत में एक चित्र प्रदर्शनी का विरोध करते हुए हिंदूवादी संगठनों को भी दिखाया गया है. जैसा कि आपने पढ़ा, फिल्म के निर्माता केरल के एक कट्टर ईसाई हैं, जो कि स्वाभाविक रूप से RSS से चिढ़े रहते हैं. “बॉडीस्केप” नामक यह फिल्म न केवल RSS को बल्कि जानबूझकर हनुमानजी को इनसे जोड़कर भारतीय संस्कृति को कलुषित करने का प्रयास भर है. जैसी कि इस गिरोह की “ट्रिक” होती है, फिल्म को विवादास्पद बनाकर (यानी जानबूझकर हिन्दुओं का दिल दुखाकर) पैसा बटोरना. इसी ट्रिक पर इस फिल्म में काम किया गया है.
फिल्म की स्क्रीनिंग कमेटी के सदस्य प्रवीण आर्य के अनुसार, उनके साथ ही कुछ और सदस्यों को भी ऐसे दृश्यों से आपत्ति थी, इसलिए उन्होंने इस फिल्म को साफ़-साफ़ रिजेक्ट कर दिया. रिजेक्ट करने का कारण फिल्म का विषय नहीं, बल्कि हनुमानजी तथा RSS को भद्दे ढंग से पेश करने को लेकर था. जब यह फिल्म रिजेक्ट हो गयी, तो स्वाभाविक रूप से अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में इसे दिखाया जाना मुश्किल लगने लगा. सेंसर बोर्ड ने भी अभी तक इस फिल्म को पास नहीं किया है. अब यहाँ पर एक नया पेंच शुरू होता है....
वेंकैया नायडू के उपराष्ट्रपति बन जाने के बाद सूचना-प्रसारण मंत्रालय का कार्यभार स्मृति ईरानी को सौंपा गया है. आश्चर्य है, मंत्राणी जी ने आते ही फिल्म स्क्रीनिंग करने वाली इस समिति को भंग कर दिया (जबकि यह समिति 150 से अधिक फ़िल्में देखकर, उनका रिव्यू बनाकर, उन फिल्मों को अपने अंक देकर रिपोर्ट प्रस्तुत कर चुकी थी). इस समिति को भंग करके स्मृति ईरानी ने अब एक नई समिति गठित कर दी है, जबकि फिल्म समारोह आयोजित होने में केवल दो माह बचे हैं. अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि नई समिति क्यों बनाई गई? क्या नई स्क्रीनिंग समिति अब नए सिरे से सभी फिल्मों को देखेगी, अथवा 150 फिल्मों के अलावा बाकी की बची हुई फिल्मों की रेटिंग करेगी? पहले वाली समिति में क्या समस्या थी, जो उसे भंग किया गया? नई समिति में बड़े-बड़े नाम रखे गए हैं, जिनके पास फ़िल्में देखने का समय ही नहीं है, तो ऐसे में फिल्म समारोह की तैयारियाँ समय पर कैसे पूरी होंगी? यह भी स्पष्ट नहीं है कि नई समिति को जो फ़िल्में ऑनलाइन भेजी जाएँगी, उनके अंक और उनकी रिपोर्ट कैसे बनेगी?
प्रवीण आर्य प्रसिद्ध टीवी कार्यक्रम निर्माता होने के साथ प्रसिद्ध साहित्यकार भी हैं. अखिल भारतीय साहित्य परिषद् के राष्ट्रीय संयुक्त महामंत्री भी है. वे प्रारंभ से साहित्य में नए प्रयोग करते रहे हैं. उन्होंने ही "द्रोपदी" नामक उपन्यास (जिसमें भारतीय संस्कृति को विकृत रूप में पेश किया गया है) के लेखक वाई लक्ष्मीप्रसाद रेड्डी के खिलाफ साहित्य अकादमी कार्यक्रम में गुरिल्ला प्रदर्शन किया था. वे अवार्ड वापिसी गिरोह के खिलाफ अनुपम खेर, मधुर भंडारकर, विवेक अग्निहोत्री, प्रियदर्शन, मोहन जोशी, मालिनी अवस्थी, मधु किश्वर, के साथ “मार्च फॉर इण्डिया” कोर ग्रुप में थे. इन सभी के प्रयासों को प्रधानमन्त्री मोदी जी सराहना कर चुके है. रेखा गुप्ता संस्कार भारती दिल्ली की उपाध्यक्षा एवं कथक नृत्यांगना हैं. इनकी बेटी फिल्म ऐक्ट्रेस ईशा गुप्ता है. ये भी बॉडीस्केप फिल्म के विरोध में खुल कर लड़ी. किरण झा भी संस्कार भारती से हैं, वे रेडियो-टीवी आर्टिस्ट भी हैं. उत्पल भोजानी डाक्यूमेंट्री फिल्म मेकर है. सुरेश जिंदल प्रसिद्ध फिल्म रजनीगन्धा के फिल्म मेकर्स में से प्रमुख हैं. जॉयदीप घोष बंगाली फिल्मों के निर्देशक हैं. राजेश झाला फिल्म निर्देशक हैं. मालती सहाय DFF की पूर्व निर्देशक है. इन सभी कमेटी सदस्यों ने प्रवीण आर्य के साथ खुलकर यह भद्दी फिल्म ख़ारिज करवाई. यदि प्रवीण आर्य एवं इनके साथी सजगता के साथ मुखर ना होते, तो यह कुकृत्य 2016 में ही हो गया होता. दूसरी ओर प्रवीण आर्य एवं इनके साथी सदस्यों ने वामपंथियों के घोर विरोध के बावजूद इन्डियन पैनोरामा में संस्कृत फिल्म “दृष्टि” को ओपनिंग फिल्म का दर्जा दे कर भारतीय संस्कृति का मान बढाया है. विचारधारा के प्रति समर्पित ऐसे लोगों को स्मृति ईरानी ने स्क्रीनिंग कमेटी से क्यों हटाया, इस बात पर सभी लोग आश्चर्य व्यक्त कर रहे हैं. जबकि रेड कार्ड होल्डर (यानी वामपंथी समर्थक) सैबल चटर्जी को कमेटी में बरकरार रखा गया है. समिति के यही सदस्य हैं, इन्होने बॉडी-स्केप फिल्म का खुलकर समर्थन किया था.
प्रवीण आर्य के अनुसार जिस पुरानी स्क्रीनिंग कमेटी ने 150 फिल्मों की रिपोर्ट पेश कर दी है, उसके सदस्यों से मिलने का समय भी स्मृति ईरानी के पास नहीं है, जबकि राज्यवर्धन सिंह राठौड़ से मिलना सभी के लिए बेहद सुलभ है, परन्तु उनके पास कोई विशेष अधिकार नहीं हैं. सूचना-प्रसारण मंत्रालय में इस विश्वप्रसिद्ध निशानेबाज को केवल एक ““शो-पीस”” के रूप में रखा गया है. सूत्रों के अनुसार पुरानी स्क्रीनिंग समिति के कुछ सदस्यों का नाम संस्कार भारती एवं साहित्य परिषद् की तरफ से भी गए थे. एक वरिष्ठ सदस्य ने नाम प्रकाशित नहीं करने के अनुरोध पर बताया, कि स्मृति ईरानी पता नहीं किस गुरूर में हैं? वे न तो अपने सामने किसी को कुछ समझती हैं, और ना ही संगठनों द्वारा नामित व्यक्तियों के साथ सामान्य आदर और शिष्टाचार बरतती हैं.
बहरहाल... मुद्दे को अधिक लम्बा नहीं खींचते हुए संक्षेप में तीन चरणों में मामले को समझते हैं :
पहला चरण – एक अश्लील फिल्म, जिसमें जानबूझकर हनुमानजी को समलैंगिक चित्रित किया गया, उसी फिल्म में संघ के स्वयंसेवकों को भी ““गे”” दिखाया गया...
दूसरा चरण – फिल्म समारोह की स्क्रीनिंग कमेटी ने जब उस फिल्म को रिजेक्ट कर दिया, और वह फिल्म दौड़ से बाहर हो गई, तो इधर सूचना प्रसारण मंत्रालय ने उस स्क्रीनिंग कमेटी को ही भंग कर दिया...
तीसरा चरण – अब लगता है कि यह घटिया फिल्म नई स्क्रीनिंग कमेटी के सामने पुनः प्रस्तुत होगी, तब क्या होगा इसका अनुमान अभी से लगने लगा है.
इस बीच फिल्म के निर्माताओं ने अपनी धूर्तता दिखाते हुए, इस फिल्म को यूं-ट्यूब पर रिलीज़ कर दिया है. फिलहाल यह फिल्म “सदस्यों” के लिए रजिस्ट्रेशन के जरिये दिखाई जा रही है, लेकिन यदि हिंदूवादी संगठनों के दबाव में स्मृति ईरानी की नई समिति इस फिल्म को लाल झंडी दिखाकर बाहर कर देती है, तो निश्चित रूप से वामपंथी रोना-धोना शुरू किया जाएगा और इस फिल्म को आम जनता के लिए यू-ट्यूब पर खोल दिया जाएगा. हालाँकि संभावना यही बनती है, कि जिस प्रकार सूचना प्रसारण मंत्रालय इन अंतर्राष्ट्रीय फिल्मों की रेटिंग और प्रदर्शन में “यौन दृश्यों” को इग्नोर करने की नीति अपनाए हुए है, शायद इस फिल्म को भी मामूली कट्स के साथ सेंसर बोर्ड का सर्टिफिकेट तथा अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में एंट्री मिल ही जाएगी.
चूंकि अब यह बात ठीक समय पर लीक हो चुकी है, इसलिए देखना यह है कि स्मृति ईरानी की नई समिति इस फिल्म के साथ क्या रुख अपनाती है. साथ ही सरकार की परीक्षा इस बात को लेकर भी है कि जब चीन जैसे देश अपनी मनमर्जी और सख्ती से इंटरनेट पर कई वेबसाईट तथा लिंक्स को प्रतिबंधित कर लेते हैं, तो क्या भारत सरकार इस फिल्म को यू-ट्यूब पर बैन करने में सक्षम सिद्ध होगी??