रक्षा मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार 27800 टन वजनी इस युद्धपोत को मजबूरी में कबाड़ में बेचे जाने की योजना बनाई जा रही है. उल्लेखनीय है कि यह युद्धपोत भारत आने से पहले 27 वर्ष तक रॉयल ब्रिटिश नेवी में सेवाएँ दे चुका था और इसके बाद अगले तीस वर्ष इसने भारत की समुद्री सीमाओं की भी रक्षा की.
INS विराट को बहुमंजिला “नौसेना संग्रहालय” की तरह बनाया जा सकता है, लेकिन इसमें 1000 करोड़ रूपए का खर्च है, जो कोई भी नहीं करना चाहता. हालाँकि आंध्रप्रदेश सरकार ने इसमें रूचि दिखाई है, लेकिन नायडू चाहते हैं कि इस युद्धपोत को संग्रहालय में बदलने का यह खर्च केन्द्र-राज्य आधा आधा उठा लें. इस पर रक्षा मंत्रालय ने नायडू से कहा है कि वह इस योजना में अपनी तकनीकी मदद और महत्त्वपूर्ण सुझाव दे सकता है, परन्तु इस प्रोजेक्ट के लिए फंड नहीं दे सकता. फिलहाल बातचीत जारी है, लेकिन रिटायरमेंट की दिनाँक नज़दीक आने से INS विराट के प्रेमियों की धड़कनें बढ़ने लगी हैं. नौसेना में इस युद्धपोत को प्यार से “ग्रैंड ओल्ड लेडी” भी कहा जाता है. 6 मार्च को इसके विदाई समारोह में ब्रिटिश नेवी के कुछ महत्त्वपूर्ण सदस्यों के भी भाग लेने की पुष्टि हुई है. नौसेना भी चाहती है कि पाँच लाख नॉटिकल मील चल चुके इस विराट युद्धपोत को कबाड़े में न बेचा जाए, बल्कि इसे संगृहीत किया जाना चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ी इससे कुछ सीख सके और इसकी भव्यता से अंदाजा लगा सके कि भारतीय नौसेना कितनी मजबूत थी और है.
नेवी के एक अधिकारी के अनुसार, समस्या यह है कि जिस प्रकार हमने रिटायर होने के बाद INS विक्रांत की पूरे सत्रह साल तक देखभाल की, वैसी ही देखभाल की जरूरत INS विराट को भी पड़ेगी. कोई भी युद्धपोत अगर किनारे पर खड़ा कर दिया जाता है तो वह पहले से ही भीड़भाड़ वाले बंदरगाह पर एक प्रमुख जगह घेर लेता है, जिससे उस बंदरगाह पर जहाज़ों के ट्रैफिक जाम की स्थिति बनती है. ऐसे में कोई भी राज्य सरकार अथवा कोई निजी कंपनी इस युद्धपोत को कहीं और ले जाए और उसे कहीं सुदूर छोटे बंदरगाह पर स्थापित करके एक म्यूजियम का स्वरूप दे तभी यह बच पाएगा. अन्यथा मजबूरी में रक्षा मंत्रालय को इसे कबाड़ में बेचना ही पड़ेगा. नौसेना का गर्वीला घोषवाक्य है, “जलमेव यस्य, बलमेव तस्य” अर्थात जो देश पानी में मजबूत है, वही शक्तिशाली है. INS विराट ने भारत की लंबी सेवा की है, इसे इस तरह कबाड़ में नहीं जाना चाहिए. रक्षा मंत्रालय तक यह बात मजबूती से पहुँचनी चाहिए, ताकि आंधप्रदेश सरकार किसी और प्रायोजक के साथ मिलकर इसे विशाखापट्टनम अथवा किसी अन्य बंदरगाह पर स्थापित करे ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी इस गौरवशाली युद्धपोत को अंदर से देख सके.