अधिकाँश चैनलों, अखबारों ने इस मारपीट और हिंसा की एकतरफा रिपोर्टिंग पेश करते हुए “हिंदूवादी संगठनों” को इसके लिए जिम्मेदार ठहराने में दो मिनट की भी देर नहीं की. व्हील चेयर पर बैठे उस अधेड़ “छात्र”(?) को बेहद सताया हुआ, पीड़ित और दुखी दर्शाया गया, जबकि उसके साथ मारपीट करने वालों को गौरक्षक कहते हुए उनका सम्बन्ध सीधे हिंदूवादी संगठनों से जोड़ते हुए सभी को गुंडा के रूप में चित्रित किया गया.
जिस दिन उस कंजर की तस्वीर अखबारों में आई थी, उस समय फेसबुक के तमाम “हिन्दू वीर” तालियाँ बजाते हुए और हिप-हिप-हुर्रे करते हुए इस व्यक्ति की पिटाई पर खुशी व्यक्त कर रहे थे... इस “कथित पिटाई” के समर्थन में वीर-रस से ओतप्रोत स्टेटस और कविताएँ लिखी जाने लगीं. उसी समय मैंने अपनी फेसबुक वाल पर लिख दिया था कि “...जरूर यह आदमी दारू पीकर नाली में गिर गया होगा और अब सहानुभूति बटोरने के लिए अपने वामपंथी घटियापन को दिखाते हुए खुद को हिन्दुओं द्वारा पीड़ित (Victim) दिखा रहा होगा...” मेरी यह बात काफी हद तक सही निकली, थोड़ा सा अंतर ये आया कि यह आदमी दारू पीकर नाली में नहीं गिरा, बल्कि अश्लील टिप्पणी करने के कारण हुए आपसी झगड़े में इसका ये हाल हुआ. आईये पहले हम देखते हैं कि मामला क्या है...
जैसा कि सभी जानते हैं, IIT Chennai में “आंबेडकर पेरियार स्टडी सर्कल” (APSC) के नाम से एक संगठन चलाया जाता है, जो पिछले काफी समय से गलत और बेहूदे कारणों से चर्चा में रहा है. पिछले वर्ष इस संगठन के एक छात्र को निलंबित भी किया गया था, जिस पर दिल्ली में काफी हंगामा किया गया. इस संगठन के कई सदस्यों पर हिंसा में लिप्त होने के आरोप हैं, इस कारण इसकी छवि और इरादों पर सवालिया निशान हैं. वैसे तो APSC को दलितों का संगठन कहा जाता है, परन्तु वास्तव में परदे के पीछे इसमें काफी सारे देशद्रोही तत्व घुसपैठ कर चुके हैं.... तो इस कथित “स्टडी”(??) सर्कल ने केंद्र सरकार के गौवंश क़ानून का विरोध करने के लिए 29 मई को IIT Chennai के कैम्पस में “बीफ़ फेस्टिवल” यानी गौमाँस उत्सव मनाने का फैसला किया. आयोजन का मुखिया वही व्हील चेयर वाला अधेड़ कंजर, यानी सूरज था. इस कथित बीफ़ फेस्टिवल में कुल जमा बारह छात्र शामिल हुए, और इन्होंने एक पेड़ के नीचे बैठकर गौमाँस खाया, उसकी तस्वीरें उतारीं, वीडियो बनाए और सोशल मीडिया क्रान्ति करते हुए उसे ऐसे पोस्ट किया, मानो IIT Chennai के सैकड़ों छात्र गौमाँस खाने के समर्थक हों. यहाँ तक तो मामला ठीक था, ऐसे घटिया विरोध प्रदर्शनों की सोच कैसे और कहाँ से आती है यह सभी जानते हैं. 29 मई को इस छिटपुट आयोजन की कोई ख़ास चर्चा नहीं हुई... और जब तक मीडिया में विवाद की चर्चा न हो, तथा किसी घटना को लेकर हिन्दूवादियों पर आरोपबाजी करने को ना मिले तो भला वामपंथियों-कांग्रेसियों का खाना कहाँ पचता है.
अगले दिन यानी 30 मई को IIT चेन्नई की कैंटीन में जहाँ कि शाकाहारी भोजन परोसा जाता है, वहाँ दोपहर के समय बिहार से आए हुए मनीष कुमार सिंह खाना खाने पहुँचे. मनीष, जो कि एक मेधावी छात्र है, उसने कैंटीन में APSC के आयोजक सूरज को देखा, और व्यंग्य में उससे पूछ लिया कि “गौमाँस पार्टी” के आयोजक इस शाकाहारी कैंटीन में क्या कर रहे हैं? कल गौमाँस खाकर पेट नहीं भरा क्या? इसके बाद मनीष सिंह और सूरज में जमकर कहासुनी हुई. वरिष्ठ छात्रों ने आकर मामला लगभग शांत कर ही दिया था, कि सूरज ने चिल्लाकर कहा... “...मैं तो और गौमाँस खाऊँगा ही, मनीष याद रखना तुझे भी जबरन गौमाँस खिलाऊँगा...”. ऐसा कहकर सूरज और उसके चार APSC वाले साथी कैंटीन से निकल गए. शाम चार बजे के आसपास, IIT कैम्पस में ही बने एक “जैन फ़ूड कॉर्नर” पर मनीष सिंह और सूरज का फिर से आमना-सामना हो गया. सनद रहे कि मनीष सिंह का आज तक कभी भी किसी हिंदूवादी संगठन, RSS अथवा ABVP से कोई सम्बन्ध नहीं रहा है. जैन फ़ूड कॉर्नर पर एक बार फिर मनीष ने सूरज पर तंज़ कसते हुए कहा कि, “...कैंटीन में एक गौमाँस सेक्शन क्यों नहीं खुलवा लेते, ताकि तुम्हें जैन साहब के शाकाहारी फास्ट फ़ूड से निजात मिले...”. यह सुनने के बाद बुरी तरह भड़के हुए सूरज ने कहा कि “...हम तो हिन्दू लडकियों के लिए एक अलग सेक्शन खुलवाने वाले हैं, ताकि हम वहाँ जाकर आराम से उन्हें छेड़ सकें, मजे ले सकें...”. अब मनीष सिंह से चुप नहीं रहा गया, उसने सूरज के लम्बे झबरे बाल पकड़े और दो तमाचे रसीद कर दिए. सूरज और उसके दोस्तों ने भी मनीष के साथ जमकर मारपीट शुरू कर दी. सूरज ने दूकान में पड़ी एक लोहे की रॉड उठाकर मनीष के हाथों और पेट पर मारी, जिससे मनीष का हाथ फ्रैक्चर हो गया तथा उसके पेट में अंदरूनी चोटें आईं. मनीष ने भी टेबल पर पड़े खाने के स्टील वाले काँटे को उठाकर सूरज पर हमला कर दिया जिसमें उसकी आँख पर चोट आई. फिर छात्रों के बीचबचाव के बाद दोनों को कैम्पस के ही अस्पताल ले जाया गया. मनीष के फ्रैक्चर की गंभीर हालत को देखते हुए बाहर के अस्पताल में रेफर किया गया, जबकि आंबेडकर-पेरियार स्टडी सर्कल वाले उस अधेड़ छात्र(??) सूरज ने व्हील चेयर पर बैठकर फोटोसेशन करवाया.
बस!!! कुल मिलाकर मामला सिर्फ इतना ही था. यह केवल दो छात्रों के बीच हुई कहासुनी और मारपीट की सामान्य घटना थी. ऐसी घटनाएँ दर्जनों कॉलेज कैम्पसों में दिन-रात घटित होती रहती हैं. लेकिन हमारे “दलाल किस्म के वामपंथी” प्रभाव वाले मीडिया की चतुराई और धूर्तता देखिये कि सूरज की तस्वीरें और उसे “बेचारा एवं पीड़ित” सिद्ध करते हुए उसका पक्ष लेने वाली ख़बरें तो जमकर प्लांट की गईं, लेकिन मनीष सिंह और उसके टूटे हाथ को एकदम गायब कर दिया गया. दो छात्रों के बीच हुई लड़ाई को “हिंदूवादी संगठनों की बर्बरता” के रूप में पेश किया गया. दस-बारह छात्रों की मामूली सी पार्टी को “अंतर्राष्ट्रीय बीफ़ फेस्टिवल” जैसा चित्रित किया गया. चूँकि मीडिया को कभी भी सच सामने लाने की फ़िक्र नहीं होती है, और उसके लिए तो विवाद, TRP की भूख तथा उसके वामी-कांगी आकाओं की वैचारिक गुलामी को ढोना प्रमुख होता है, इसलिए मनीष सिंह अभी भी सरकारी अस्पताल में पड़े हुए हैं, जबकि सूरज को एक शानदार निजी अस्पताल में उपचार मिल रहा है.
इस प्रकरण से सोशल मीडिया पर आपको क्या सबक मिलता है?? इस प्रकरण से हिंदूवादी संगठन क्या सीखते हैं? सोचिये...