अथवा उनकी फेसबुक पोस्ट कभी ठीक से शेयर क्यों नहीं होती? अच्छा लिखने के बावजूद कई बार पोस्ट पर अपेक्षित कमेंट्स नहीं आते?? इत्यादि. असल में यह सारा खेल “विशुद्ध रूप से तकनीकी” है, इसमें आपकी गलती कम ही है.
एक चीज़ होती है “अल्गोरिथम” (Algorithm). यानी एक प्रकार की गणितीय संरचना, जिसके द्वारा फेसबुक का सॉफ्टवेयर यह तय करता है कि कौन सी पोस्ट, कब, कहाँ, कैसे, क्यों पाठक तक पहुंचेगी... ज़ाहिर है कि जब पाठक तक पहुंचेगी, तब ही तो लाईक अथवा शेयर की जाएगी. एडम मोस्सेरी (जो कि फेसबुक न्यूज़ फीड के उपाध्यक्ष हैं) ने कुछ समय पहले, 2017 के एक सेमीनार में “फेसबुक अल्गोरिथम” (Facebook Algorithm) के बारे में समझाया था. अल्गोरिथम समझने के लिए सबसे आसान उन्हीं का नुस्खा याद आता है. जैसा कि हम सभी जानते हैं, किसी समस्या या गणित के सवाल को सुलझाने के लिए एक फ़ॉर्मूले, विधि-सूत्र का इस्तेमाल किया जाता है. अगर ऐसी किसी सवाल को बार-बार हल करना हो, तो उसके लिए विधि को कंप्यूटर में प्रोग्राम के जरिये सेट किया जा सकता है. इस तरीके या सूत्र को अल्गोरिथम कहते हैं.
इसे समझने के लिए मान लीजिये कि आप अपनी पत्नी के साथ रेस्तरां में जाते है और आर्डर करने का काम आपकी पत्नी, आपके जिम्मे छोड़ देती है. अब खाना आर्डर करना आपकी समस्या है, जिसे सुलझाने के लिए आप मोटे तौर पर चार कदम उठाते हैं :
• पहला कदम... आप मेन्यु में देखते हैं कि क्या.: क्या विकल्प मौजूद हैं.
• दूसरा कदम : अपने पास मौजूद सारी जानकारी से उसे मिलाते हैं (जैसे, आपकी पत्नी को क्या पसंद है? वो दिन के खाने का वक्त है, या रात का ? इस रेस्तरां में अच्छा क्या मिलता है?)
• तीसरा कदम : कुछ पूर्वानुमान लगाते हैं (जैसे खाने के बाद कुछ मीठा लेना आपकी पत्नी को पसंद आएगा या नहीं? कोई नया व्यंजन चुनना पसंद करेगी, मीठे-नमकीन ज्यादा मिर्च-मसालेदार यानि स्वाद के हिसाब से?)
• चौथा कदम : इस सारी जानकारी को मिलाकर आप अपनी पत्नी के लिए कुछ आर्डर करते हैं।
इस पूरी प्रक्रिया में आपके दिमाग में एक “अल्गोरिथम” चल रहा होता है. जैसा आप कई बार फैसला लेने में हर रोज़ ही करते हैं. फेसबुक का अल्गोरिथम भी इसी तरह चार प्रक्रियाओं में से यह तय करता है कि आपकी पोस्ट का तथा आपको दिखाई देने वाला कौन सा कंटेंट आपके न्यूज़ फीड में दिखेगा, और कौन सा नहीं दिखेगा.
फेसबुक का अल्गोरिथम जिन चार चरणों में कंटेंट को आपकी न्यूज़ फीड में ऊपर या नीचे डालता है वो भी कुछ ऐसे ही होते हैं :
• इन्वेंट्री (Inventory) – रेस्तरां के मेन्यु में क्या क्या है?
• सिग्नल्स (Signals) – ये दोपहर के खाने का वक्त है या रात का? (Is it lunch or dinner time?)
• प्रेडिक्शन (Predictions) – उन्हें ये पसंद आएगा क्या?
• स्कोर (Score) – आर्डर करना
इन्वेंटरी
जब आप फेसबुक चलाते हैं, तो फेसबुक का अल्गोरिथम एक इन्वेंटरी यानी एक लिस्ट बनाता है जिस से यह तय किया जा सके कि आपको दिखाने के लिए उसके पास क्या-क्या उपलब्ध है. आपके दोस्तों-रिश्तेदारों के सारे पोस्ट यहाँ रेस्तरां के मेन्यु की तरह अल्गोरिथम के लिस्ट पर होते हैं. जैसे आप मेन्यु देखेंगे वैसे ही वो इस लिस्ट को देखता है.
सिग्नल्स
अपने पास मौजूद इस सारे डाटा (इन्वेंट्री) के आधार पर अब फेसबुक यह तय करने की कोशिश करता है, कि आपको क्या पसंद आ सकता है. इसके लिए आपके ही भेजे संदेशों (सिग्नल) का इस्तेमाल किया जाता है. ये हज़ारों की संख्या में फेसबुक के पास मौजूद हैं, जैसे आपने पहले किसके लिखे पर लाइक-लव-एंग्री जैसी कोई प्रतिक्रिया दी थी. किसके लिखे को आप हमेशा पढ़ते हैं, उनकी वाल पर जाते हैं, फोटो-पोस्ट देखते हैं या कमेंट करते हैं. आप किस किस्म का फोन या कंप्यूटर इस्तेमाल कर रहे हैं, कौन सा ब्राउज़र (ओपेरा, क्रोम, यू.सी. जैसा) चला रहे हैं. दिन का कौन सा वक्त है, और आपके इन्टरनेट की स्पीड क्या है? धीमे इन्टरनेट वालों को कम विडियो दिखेंगे और लिखे हुए पोस्ट ज्यादा दिए जायेंगे. ऐसे फैसले सिग्नल्स के जरिये लिए जाते हैं. अब आप थोड़ा-थोड़ा समझने लगे होंगे कि फेसबुक पर आपकी पोस्ट दूसरों को दिखाई देने और किसी दूसरे की पोस्ट आपको दिखाई देने का गणितीय खेल क्या है... अब आगे बढ़ते हैं....
प्रेडिक्शन
अब इन सिग्नल्स की मदद से फेसबुक पूर्वानुमान लगाना शुरू करता है, वो संभावनाएं जोड़कर देखता है कि किस चीज़ को लाइक किये जाने की ज्यादा संभावना है, किसे आप शायद शेयर करेंगे, किस कहानी को पढ़ने पर थोड़ा समय देंगे? इन सबके आधार पर आपकी न्यूज़ फीड में क्या दिखेगा वो तय होता है. यह प्रक्रिया समझने में आपको समय लगा और शायद ऐसा काम करने में एक इन्सान को ये लम्बी सी प्रक्रिया लगे, लेकिन इतना जोड़-घटाव-गुणा-भाग कर फैसला लेने में कंप्यूटर को एक सेकंड का दसवां हिस्सा भी नहीं लगता.
स्कोर
अब लिस्ट तैयार हो गयी... पसंद तैयार हो गई... फिर इन सारे पूर्वानुमानों और संभावनाओं को जोड़ने के बाद फेसबुक एक “रेलेवेंस स्कोर” (relevance score) निकालता है. ये एक संख्या होती है जिससे फेसबुक यह तय करता है कि आप किसी पोस्ट में कितनी रूचि लेंगे. अभी भी यहाँ फेसबुक को पक्का-पक्का कुछ भी नहीं पता है, वह सिर्फ आपके पुराने बर्ताव के आधार पर एक अनुमान लगा रहा होता है. आपके लम्बे पोस्ट पर क्लिक करके उसे बड़ा करके पढ़ने की क्या संभावना है, किसी व्यक्ति के पोस्ट के लाइक पर क्लिक करने की क्या संभावना है, किस पोस्ट पर आप समय बिताएंगे – उसमें कमेंट पढ़ेंगे, क्लिक के जरिये वह लिंक अगर किसी स्पैम (spam) (यानी फर्ज़ीवाड़े) वाली वेबसाइट पर ले जाता है, तो उसे हटाना होगा, किसकी पोस्ट में अश्लीलता या अभद्रता या बदतमीजी जैसी शिकायतें आती हैं तो उसे हटाना होगा, कहाँ आप कमेंट करते हैं उसे रखा जाए. ऐसी चीज़ें जोड़कर फेसबुक का अल्गोरिथम पोस्ट आपकी न्यूज़ फीड में डालेगा.
आपके कंटेंट को दिखाने के लिए फेसबुक अल्गोरिथम कौन से ‘सिग्नल’ इस्तेमाल करता है?
एडम के भाषण में से एक चीज़ ये भी समझ आती है, कि फेसबुक का न्यूज़ फीड इस बात पर भी निर्भर करता है कि आप किस-किस पेज या व्यक्ति को फॉलो करते हैं, कैसी प्रतिक्रिया देते हैं उस पर भी निर्भर करता है. आपकी जरूरतों, पसंद-नापसंद के हिसाब से सबसे अच्छा क्या होगा, फेसबुक बस यही अंदाजा लगाने की कोशिश करता है. कुछ ख़ास चीज़ें जिस पर फेसबुक की रैंकिंग निर्भर करती है, वे इस प्रकार हैं -:
-- किसने पोस्ट किया है?
-- उस व्यक्ति / पेज की पोस्ट की औसत दर क्या है? (यानी वह व्यक्ति कितनी-कितनी देर में फेसबुक पर पोस्ट करता है)
-- पहले से उस व्यक्ति पर नकारात्मक प्रतिक्रियाएँ कितनी आई हैं? (यानी जो कमेंट्स अथवा लाईक्स आए हैं, उसका विश्लेषण भी किया जाता है).
- व्यस्तता (उस व्यक्ति की पोस्ट ने कितनी देर आपको व्यस्त रखा)
-- कंटेंट पर खर्च किया गया औसत समय (यानी आप उस पोस्ट पर कितनी देर बने रहे?)
-- पहले से लोगों ने औसत कितना समय (और क्लिक, शेयर) लगाया है उस कंटेंट पर?
-- ये कंटेंट कब (किस समय पर) पोस्ट किया गया था?
-- क्या आपके मित्रों को पोस्ट में टैग किया गया है?
-- क्या अभी अभी किसी मित्र ने उस पोस्ट पर कमेंट किया है?
-- उस पोस्ट में किस किस्म की कहानी है?
-- क्या पेज या व्यक्ति की प्रोफाइल पूरी तरह बनाई गई है ? (उम्र, किस जगह का है, नौकरी-व्यवसाय, पसंद-नापसंद जैसी चीज़ें भरी थी प्रोफाइल बनाते समय? यह इसलिए भी जाँचा जाता है, कि कहीं प्रोफाईल फर्जी तो नहीं?)
-- क्या आपके किसी करीबी या करीबी मित्र के नजदीकी ने पोस्ट की है (उस व्यक्ति को See First में कितने लोगों ने रखा है, इस पर भी ध्यान दिया जायेगा।)
-- क्या पोस्ट जानकारी से भरा, कोई महत्वपूर्ण सूचना का पोस्ट है?
इतनी ढेर सारी जानकारी से लैस “फेसबुक अल्गोरिथम” को अब अच्छी तरह से पता है कि आपके मित्रों का दायरा कैसा है, आपने किन पेज को फॉलो कर रखा है, आपके ग्रुप्स में कैसी चर्चा होती है. अब इनके आधार पर वो पूर्वानुमान और अंदाजे लगाना शुरू करेगा. वो तय करता है कि :
-- फलाँ पोस्ट को आपके द्वारा लाइक/रियेक्ट करने की संभावना कितनी है?
-- आप इस कहानी पर, पोस्ट पर, तस्वीर, विडियो पर कितना समय खर्च करेंगे?
-- आपके द्वारा कमेंट और शेयर करने की संभावना है?
-- क्या आपको फायदा होता है, ऐसी जानकारी से?
-- आपका ये पोस्ट किसी वायरस/स्पैम वाली साईट की तरफ तो नहीं ले जाता?
-- क्या इसमें अश्लीलता या भावना आहत करने जैसा कुछ है?
जैसा कि अभी तक आपने देखा, फेसबुक अपने सॉफ्टवेयर तथा अल्गोरिथम से सारा हिसाब-किताब लगाता है (एक मिनट के अन्दर) और इन सबके नतीजे पर बनता है आपका “रेलेवेंस स्कोर”. यही रेलेवेंस स्कोर तय करता है कि आपकी पोस्ट को अथवा आपको कौन सी पोस्ट दिखाई जाए, या नहीं दिखाई जाए. ये आमतौर पर एक और दो के बीच की कोई 1.4 या 1.7 जैसी संख्या होगी. उदाहरण के लिए हम मान लेते हैं कि, आपकी स्कोरिंग 1.4 से जितनी बड़ी होगी आपकी पोस्ट दूसरों को न्यूज़ फीड में उतनी ही ऊपर दिखेगी.
अपने कंटेंट को फेसबुक अल्गोरिथम के अनुकूल कैसे बनाया जाए?
अब हम आते हैं मूल सवाल पर... यानी कि यह कैसे सुनिश्चित हो कि आपकी पोस्ट अधिक से अधिक पढ़ी जाए. ढेर सारे लाईक्स भले ही न मिलें, परन्तु आपकी पोस्ट की पहुँच बड़ी संख्या में होनी चाहिए. इस हेतु आपको भी कुछ सामान्य बातों को ध्यान में रखना होगा. मार्केटिंग- मीडिया के क्षेत्र में काम करने वाले लोग ही नहीं, आम लोग भी चाहते हैं कि उनकी फेसबुक पोस्ट ज्यादा से ज्यादा लोग देखें. उन्हें ज्यादा पढ़ा जाए, वो ज्यादा प्रसिद्ध हों. इस वजह से सिर्फ मार्केटिंग और मीडिया वालों के लिए ही नहीं सबके लिए फेसबुक अल्गोरिथम की ये मोटे तौर की जानकारी महत्वपूर्ण होती है. जब दुनिया भर में लाखों लोग कुछ ना कुछ व्यक्त कर रहे हों, तो आपकी अभिव्यक्ति पर ज्यादा लोगों का ध्यान कैसे जाए इसके लिए आपकी पोस्ट को फेसबुक अल्गोरिथम के अनुकूल होना होगा. आप जिस पाठक, श्रोता या दर्शकों के वर्ग तक अपनी बात पहुँचाना चाहते हैं, उनके लिए आपकी बात महत्वपूर्ण होनी चाहिए. ध्यान रखिये कि अट्ठारह की उम्र के लोगों को जो पसंद आएगा, वो पचपन के लोगों को पसंद नहीं होगा. एक ही समय में आप सभी को खुश नहीं रख सकते. आपको अपना वर्ग तय करना होगा और जैसे जैसे इस वर्ग के लिए आपके पोस्ट का महत्व बढ़ता है, वैसे-वैसे आपकी फेसबुक पर प्रसिद्धी भी बढ़ेगी.
एक तरीका तो ये होता है कि आप कुछ विडियो पोस्ट करें. एक लम्बी सी पोस्ट पढ़ने में जहाँ लोगों को दो ढाई मिनट लगेंगे, वहीँ पांच मिनट के विडियो में वो ज्यादा समय आपकी वाल पर होगा. इस तरह आपकी वाल पर गुजरा औसत समय बढ़ जाता है. (हाल ही में हमने तुफैल चतुर्वेदी जी के वीडियो पर इसका साक्षात उदाहरण देखा है). हालाँकि कैमरे पर सटीक एवं बिन्दुवार बोलना हर किसी के लिए संभव नहीं होता, इसलिए लिखे हुए को पढ़ने पर आपकी गलतियाँ कम होंगी, आपने अपने लेख में जो लिंक दिए हैं वो सही और काम के होंगे. यदि आपकी पोस्ट पर ज्यादा से ज्यादा लोग लाइक, लव जैसी प्रतिक्रिया देते हैं तो भी आपकी रेटिंग बढती है. लाइक की तुलना में लव, हँसी जैसे रिएक्शन की रेटिंग ज्यादा होगी. अगर आपकी पोस्ट अक्सर अश्लीलता के लिए रिपोर्ट की जा रही है, तो आपकी सभी पोस्ट की, और सीधा प्रोफाइल की ही रेटिंग कम हो जाती है. ऐसे में आपकी पोस्ट कम लोगों को दिखेगी. (इसलिए अपनी विचारधारा के विपरीत लोगों की पोस्ट को गाहे-बगाहे रिपोर्ट करते चलिए). ऐसी पोस्ट जिसे ज्यादा शेयर किया जा रहा है वो ज्यादा लोगों को दिखेगी, मतलब एक अनुमान के अनुसार यदि पचास के लगभग शेयर हों, तो पोस्ट कम से कम पांच हज़ार लोगों को नजर आने लगेगी.
जितनी जल्दी शेयर हो रही है उस से भी रैंकिंग बढती है, जैसे घंटे भर में पचास शेयर होने वाली पोस्ट की रैंकिंग, दो दिन में पचास शेयर वाली पोस्ट से ज्यादा होगी. अगर आपकी पोस्ट में कोई ऐसी जानकारी है, जिसे ज्यादा लोग शेयर करना चाहेंगे तो वो ज्यादा चलेगी. जैसे किसी परीक्षा के रिजल्ट की लिंक तेजी से फैला सकते हैं, कभी कभी किसी मैच का स्कोर कई लोग देखना चाहेंगे, चुनावी नतीजों पर बात की जा सकती है. खाना बनाने की रेसिपी, कोई हेंडीक्राफ्ट या घरेलु नुस्खे कई महिलाएं शेयर करेंगी इसकी लोकप्रियता की संभावना ज्यादा होती है. इनका ख़याल रखकर आप अपनी पोस्ट की रैंकिंग ऊपर कर सकते हैं. इस सिलसिले में एक और चीज़ होती है, समय और नियमित होना. जैसे अगर आप हर सुबह एक लेख नौ बजे के लगभग पोस्ट करें और कोई हर रोज़ पोस्ट तो करे, मगर अलग अलग समय पर, तो नियमित समय वाली पोस्ट की रैंकिंग उपर होगी. अगर लगातार एक ही क्षेत्र के, एक ही लिंग के (महिला/पुरुष), एक ही उम्र सीमा के लोग आपकी पोस्ट पर आ रहे हैं तो उस उम्र सीमा, या क्षेत्र के ज्यादा लोगों को आपकी पोस्ट अपने-आप दिखने लगेगी.
क्या नहीं करना?
आपने अभी देखा कि फेसबुक पर लोकप्रिय होने के लिए क्या करना चाहिए, लेकिन क्या नहीं करना चाहिए... ये भी उतना ही महत्त्वपूर्ण है. सबसे पहले तो आप ये समझ लीजिये कि जहाँ आप अकेले हैं, वहां फेसबुक पूरी एक कंपनी है. एक व्यक्ति अकेला सौ-दो सौ इंजिनियर, सॉफ्टवेयर प्रोग्रामर, एनालिस्ट और डिज़ाइनर्स की टीम से नहीं निपट सकता. तो कृपया चतुराई दिखाने का प्रयास न करें, ज्यादातर नाकाम भी होगा और आप ब्लैकलिस्ट भी. इसलिए ध्यान रखिये :
-- धोखा देने वाली चीज़ें पोस्ट मत कीजिये.. (यानी ऐसे लिंक जो वायरस, स्पैम फैलाते हों, किसी तरह डाटा चुराने का प्रयास करते हों, उनसे दूर रहिये). विश्वसनीय व्यक्ति की लिंक और ख़बरें ही शेयर कीजिए, अर्थात वे लिंक और फोटो फर्जी न हों. इससे आपकी रेटिंग बनी रहेगी.
-- फेसबुक पर प्रोफाइल बनाते वक्त ही आपने कुछ टर्म्स एंड कंडीशन पर हामी भर दी है। उस वक्त शायद उसे नहीं देखा होगा, अब एक बार उन शर्तों को पढ़ लीजिये।
ये फेसबुक के अल्गोरिथम का थ्योरी वाला हिस्सा है. इसके साथ ही कई चीज़ें हैं जो आपको अभ्यास से धीरे धीरे समझनी होंगी. समय बीतने के साथ सोशल मीडिया एक नए संवाद के माध्यम की तरह उभरा है। ये यहीं रहने वाला है, किसी ना किसी बदलते स्वरुप में ये अब होगा ही, कभी समाप्त नहीं होगा. जैसे संवाद के माध्यम की तरह लिखना, बोलना और पढ़ना सीखा जाता है, वैसे ही इसे भी पढ़कर आज नहीं तो कल आपको सीखना ही होगा. समय के साथ बदलते रहिये, कोई और चाहे ना भी सिखाये तो खुद ही पढ़कर सीखते रहिये।
हैप्पी फेसबुकिंग.... ईश्वर आपकी पोस्ट पर एक हजार लाईक्स बरसाए...
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साभार :- भारतीय धरोहर...