जी हाँ!!! विकासपुरी वही इलाका है, जहाँ काफिरों के साथ “डॉ. नारंग” किया गया था| जाहिर है ऐसी दंगाई भीड़ के पड़ोस में आप हरगिज़ नहीं रहना चाहेंगे| नतीजा क्या होगा? लोग यहाँ से औने पौने दामों में अपनी जमीनें, अपने मकान एक "समुदाय विशेष" के लोगों को बेचकर निकल जायेंगे| जैसे ही एक इलाके में समुदाय विशेष की आबादी बढ़ती है, वहां का माहौल बिगड़ने लगता है| संगती की वजह से युवकों के अपराधों में लिप्त हो जाने की संभावना बढ़ जाती है| लड़कियों-महिलाओं से छेड़-छाड़ और छीना-झपटी की वारदातें बढेंगी| नशे और अन्य जरायमपेशा कारोबारियों की गिनती बढ़ जाएगी| जाहिर है ऐसे माहौल में आप अपने बच्चों को नहीं रखना चाहते| तो आप उस माहौल से दूर हो जाने की कोशिश करेंगे, जैसा कि अंसार शेख ने किया था| अपना असली नाम बताने पर भी उसे समुदाय विशेष वाले इलाके में मकान नहीं मिलता ऐसा तो था नहीं ना? लेकिन उसने हिन्दू-बहुल इलाका इसलिए चुना, ताकि वो शांतिपूर्ण इलाके में ढंग से पढ़ाई कर सके|
इलाके को हथियाने का ये तरीका आप बाजारों में भी देख सकते हैं| जो शादी-ब्याह के सामान के दुकानों वाला, इलेक्ट्रॉनिक सामानों वाला बाजार होता है वहां गौर कीजिये| जैसे दिल्ली का चांदनी चौक वाला इलाका है वैसा| इस इलाके में धीरे धीरे एक दो से शुरू होकर सारी दुकानें ही समुदाय विशेष की हो जाएँगी| सब्जी और फलों के बाजार में ऐसा ही होगा| किसी अन्य धर्म के व्यक्ति की दुकान यहाँ बाकी के समुदाय विशेष वाले लोग चलने नहीं देंगे| अचानक से सारा बाजार एकजुट होकर उसका धंधा खराब करने का प्रयास करेगा| जैसे किसी दूकान के सामने नाली खराब कर दी जाएगी| अब दूकान के सामने कचरा फैला हो तो निश्चित रूप से धंधे पर असर पड़ेगा, और व्यापारी को लगातार नुक्सान होगा| बिजली-पानी की सप्लाई में दिक्कत पैदा की जाएगी| अन्य तरीकों में कीमत का फर्क भी पैदा किया जाता है| खुदरा व्यापार से जुड़े लोग आसानी से इसकी तहकीकात कर सकते हैं| अब इस तरह से अगर स्थानीय व्यापार और स्वरोजगार के अवसर कम कर दिए जाएँ तो लोगों पर क्या असर पड़ेगा? जाहिर है वो बड़े शहरों की तरफ नौकरी की तलाश में पलायन करेंगे|
यानि एक और फायदा हो गया| अगर युवा शहर के बाहर कहीं और नौकरी कर रहा है तो घर पर कौन बचा होगा? महिलाएं, बच्चे, वृद्ध, यही ना! मतलब अपराधी को अवसर ज्यादा आसानी से उपलब्ध होने लगे| वो बिना विरोध की परवाह किये अत्याचार कर सकता है| यानि पूरे परिवार को पलायन के लिए और ज्यादा प्रोत्साहन मिलेगा| ऐसे तरीके आप अपने शहर में अपने आस पास होते हुए आसानी से देख सकते हैं| थोड़ी आबादी जैसे ही 20 साल में बढ़ जाएगी, "समुदाय विशेष" थोड़ा शक्तिशाली होने लगेगा, वो अपने इलाकों में फतवे जारी करेगा| अपने इलाके में समुदाय विशेष के अलावा अन्य सभी लोगों का प्रवेश भी प्रतिबंधित करेगा| ना, ना, ज्यादा बढ़ा चढ़ा के नहीं बता रहे.... जहाँ रामेश्वरम जैसे प्रसिद्ध मंदिर हैं, तमिलनाडु के उस रामनाथपुरम जिले के कई इलाकों में इस आशय के बोर्ड लगे दिख जायेंगे| कानून से उम्मीद भी मत लगाइयेगा| वे लोग आपके संविधान में कोई श्रद्धा नहीं रखते| मुस्लिम लीग बरसों पहले संविधान सभा में भाग लेने से इनकार कर चुका है| उसे समुदाय विशेष के लिए अलग संविधान चाहिए था| अभी हाल की बुर्के, तीन तलाक और हाजी अली दरगाह में महिलाओं के प्रवेश के मुद्दों पर भी आप अपने संविधान और कथित "माननीयों" की शक्ति देख चुके हैं|
इनसे भी मन नहीं भरा हो, तो याद कीजिये एक ग्रीन ट्रिब्यूनल कैसे बढ़ चढ़ कर दिल्ली में यमुना के किनारे हो रहे श्री श्री रविशंकर के आयोजन पर फतवे जारी कर रहा था| तस्वीर में उनका लगाया हुआ अतिक्रमण का निषेध का बोर्ड है| ये वहीँ लगा है जहाँ श्री श्री रविशंकर का आयोजन हुआ था| उसके नीचे मुस्लिम कब्रिस्तान की घोषणा करता बोर्ड भी दिख रहा होगा| पहले कार्यक्रम के वक्त आप आयोजन पर मचा “कुहर्रम” सुन चुके हैं, अब गूंजता हुआ शेखुलर सन्नाटा भी सुनाई दे ही रहा होगा| बाकी इतना ही है कि सम्पूर्ण आर्थिक बहिष्कार ही इकलौता उपाय है| अपने इलाकों में नए नए उग आये समुदाय विशेष के सब्जी-फल, ठेले वालों पर अपने खुद के समुदाय को वरीयता दीजिये| आप आज ये हथियार नहीं आजमाएंगे, तो कल आपके बच्चों का “डॉ. नारंग” होगा| फिर महीनों बाद तक कोई “युगपुरुष” सांत्वना देने भी नहीं आएगा| अपने देश में कश्मीरी हिन्दुओं की तरह विस्थापित होने की तैयारी मत कीजिये...