यदि यह घटना नहीं घटती, तो देश के लाखों लोगों को पता भी न चलता कि “रेयान इंटरनेशनल” नाम का कोई हाई-फाई स्कूल भी है और उसकी मालकिन कोई ग्रेस पिंटो है. स्वाभाविक है कि देश का “सबसे तेज” और “सबसे खोजी” मीडिया तब तक सोता रहता है, जब तक कोई घटना नहीं होती. (जैसे कि गुरमीत रामरहीम वाली घटना के बाद ही मीडिया ने हमें बताया कि गुफा क्या है, गुरमीत की संपत्ति कितनी है, वह क्या-क्या करता था और कथित आश्रम में क्या गोरखधंधे चलते थे). मीडिया का ऐसा ही रवैया रेयान की मालकिन ग्रेस पिंटो के मामले में भी रहा.
जैसे-जैसे यह मामला आगे बढ़ता जा रहा है, वैसे-वैसे नित नए तथ्य सामने आते जा रहे हैं. प्राप्त समाचारों के अनुसार तो मैडम ग्रेस पिंटो बड़ी ही चमत्कारिक व्यक्तित्व की मालकिन लगती हैं. 7 वर्षीय मासूम छात्र की भयावह हत्या में तथ्यों को दबाने, मिटाने और केस को रफा-दफा करने वाला मामला तो हालिया है, लेकिन इंटरनेट पर जो तस्वीरें उपलब्ध हैं, उसके अनुसार 2014 से पहले मैडम ग्रेस पिंटो सोनिया गाँधी की बड़ी करीबी बताई जाती हैं. लेकिन जैसे ही 2014 में मोदी सरकार बनी, ग्रेस पिंटो ने बाँस-कूद के जरिये ऊँची छलाँग लगाई और भाजपा के बाड़े में जा कूदीं. भाजपा तो हमेशा से ही पूर्व काँग्रेसियों के प्रति सॉफ्ट-कॉर्नर रखती आई है, इसलिए भाजपा ने भी ग्रेस पिंटो को हाथोंहाथ लिया (इसमें इस हाई-फाई स्कूल की तरफ से चन्दे की रकम कितनी मिली, इसका खुलासा नहीं हो पाया है).
हैरान करने वाली बात यह है कि भाजपा सरकारों में ग्रेस पिंटो की “तरक्की” बेहद चमत्कृत कर देने वाली है. बताया गया है कि ग्रेस पिंटो न केवल अपने खुद के रेयान इंटरनेशनल समूह के स्कूलों की, बल्कि भारत भर में फैले चर्च के स्कूल सेंट जेवियर स्कूलों की भी ट्रस्टी हैं. मुम्बई और दिल्ली में ग्रेस पिंटो को बेहद शक्तिशाली और प्रभावी महिला माना जाता है. भाजपा में प्रवेश करने के बाद ग्रेस पिंटो ने देवेन्द्र फडनवीस, राजनाथ सिंह, विजया रहात्कर और स्मृति ईरानी से अपने करीबी रिश्तों का फायदा उठाते हुए भाजपा के महिला मोर्चा में भी स्थान हथिया लिया. खैर... यहाँ तक तो बात कोई खास नहीं लगती, क्योंकि सभी जानते हैं कि राजनैतिक पार्टियों में विभिन्न मोर्चों, विभिन्न सेल्स और विभिन्न प्रकोष्ठों में ऊँचे लेवल पर नियुक्तियाँ किस प्रकार होती हैं, किन लोगों की होती हैं. इसलिए सोनिया गाँधी से पल्ला छुड़ाकर भाजपा में घुसी ग्रेस पिंटो की महिला मोर्चा में घुसपैठ ज्यादा आश्चर्यजनक नहीं है.
ग्रेस पिंटो ने राहुल गाँधी से मिलकर खुद के लिए पद्मश्री (शिक्षा के क्षेत्र में योगदान????) हेतु भी चलाया था, वहाँ बात नहीं बनी थी, तो पिंटो ने अपने पति को “अल्पसंख्यक आयोग” में घुसाने की भी कोशिश की थी... लेकिन शायद काँग्रेस के साथ ग्रेस पिंटो का सौदा ठीक से पट नहीं सका था. इसीलिए 2014 में पलटी मारते हुए ग्रेस पिंटो भाजपा में आ गई और यहाँ उसे महिला मोर्चा में एक प्रतिष्ठित पद मिल ही गया. इसके अलावा इस समूह के 180 स्कूलों में अधिकाँश बड़े-बड़े अधिकारियों के बच्चे पढ़ते हैं, इसलिए इसने उनके जरिये सेटिंग करके देवेन्द्र फडनवीस के हाथों कुछ पुरस्कार भी हासिल कर लिए.
ये तो हुई राजनैतिक नियुक्तियाँ, लेकिन सबसे हैरान करने वाला मामला है प्रबंध निदेशक के रूप में ग्रेस पिंटो की CCI में नियुक्ति. CCI यानी कॉटन कार्पोरेशन ऑफ इण्डिया. यह एक केन्द्र सरकार का प्रतिष्ठान है जिसका मुख्यालय नवी मुम्बई में है. रिकॉर्ड के अनुसार ग्रेस पिंटो ने इसी वर्ष यानी 2 फरवरी 2017 को केन्द्र सरकार के इस प्रतिष्ठित्त संस्थान में पदभार ग्रहण किया. ग्रेस पिंटो का DIN नंबर (TIN और PAN की तरह उद्योगों के लिए आवश्यक एक नंबर) 07779221 है. इस सम्बन्ध में रिकॉर्ड कम्पनी मामलों के मंत्रालय की वेबसाइट पर उपलब्ध है. कपड़ा मंत्रालय का काम स्मृति ईरानी देखती हैं और स्वाभाविक है कि बिना उनकी अनुमति के तथा बिना उनकी जानकारी में आए ऐसी नियुक्ति हो नहीं सकती. जबकि मंत्रालय की समिति ने जितेंद्र कुमार और सुब्रत गुप्ता के नामों को निदेशक के रूप में नामित किया था, लेकिन तरजीह मिली ग्रेस पिंटो को. हाल ही में स्मृति ईरानी, उस स्क्रीनिंग कमेटी को भंग करने के मामले में भी चर्चा में आई हैं, जिस कमेटी ने हनुमानजी को समलैंगिक बताने वाली फिल्म को हर कदम पर रोक दिया था (इस बारे में लेख यहाँ पढ़ सकते हैं). बहरहाल, ग्रेस पिंटो की नियुक्ति एक महत्त्वपूर्ण पद पर हो गई और फरवरी से सितम्बर तक उन्होंने वहाँ क्या काम किया होगा, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है. यदि बालक प्रद्युम्न की हत्या न हुई होती, तो यह बात कभी नहीं खुलती, और पिंटो मैडम भाजपा नेताओं से नजदीकी के चलते बड़े आराम से और दो-चार केन्द्रीय संस्थानों में डायरेक्टर भी बन जातीं. अलबत्ता शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाली ग्रेस पिंटो को “वस्त्र उद्योग और कपास उत्पादन” से सम्बन्धित कितना ज्ञान है, ये किसी को नहीं पता.
ज़ाहिर है कि जब किसी ख्यात (अथवा कुख्यात) व्यक्ति के बारे में खुदाई होती है तो पिछले भी कई मामले निकलकर सामने आते हैं. ग्रेस पिंटो के खिलाफ मनी लांड्रिंग का एक मामला 2015 से चल रहा है, इसके बावजूद 2017 में स्मृति ईरानी ने उन्हें कॉटन कार्पोरेशन इंडिया में नियुक्ति दी. मनी लांड्रिंग के इस केस के तथ्यों के अनुसार ग्रेस पिंटो और इनके पतिदेव ऑगस्टिन द्वारा एक कंपनी कमलाक्षी लिमिटेड में निवेश किया था. इस कम्पनी के शेयर का भाव 2015 में अचानक 10 रूपए से बढ़ते-बढ़ते 489 रूपए तक पहुँच गया. जबकि यह कम्पनी कुछ भी उत्पादन नहीं करती थी. SEBI में उपलब्ध दस्तावेजों के अनुसार ग्रेस पिंटो ने उस समय शेयर मार्केट में कमलाक्षी पर लगभग पचास लाख रूपए का निवेश किया था. जब गडबड़ी का पता चला, तब बाद में कंपनी को सेबी द्वारा शेयर कीमतों में हेर-फेर करने के मामले में दोषी पाए जाने पर स्टॉक मार्केट में कारोबार किए जाने पर प्रतिबंध लगा दिया. लेकिन इसके पहले ही पिंटो दम्पति तमाम हेराफेरी करते हुए 32 करोड़ रूपए लेकर तगड़ा मुनाफ़ा काट चुके थे. इसके अलावा 18 हजार करोड़ रुपए की टैक्स चोरी के मामले में सेबी ने अंतरिम आदेश जारी किया था, जिसमें ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ की रिपोर्ट के मुताबिक 137 नामों वाले उस आदेश में ग्रेस पिंटो और उनके पति ऑगस्टीन फ्रांसिस पिंटो का नाम भी शामिल था.
स्वाभाविक है कि अब इस बात पर सवाल उठने लगे हैं कि एक सरकारी स्वामित्व वाली कंपनी में निदेशक के पद पर किसी ऐसे व्यक्ति की तैनाती कैसे की जा सकती है, जिसे (SEBI) सेबी की धोखाधड़ी संबंधी जांच से गुजरना पड़ा हो. ऑगस्टीन पिंटो और ग्रेस पिंटो जो रयान इंटरनेशनल स्कूल के मालिक हैं, दोनों पर निवेश में धांधली, अप्रत्याशित लाभ और संदिग्ध कंपनी में जो अवैध रूप से शेयर बाजार की कीमतों में हेराफेरी का केस अभी भी चल रहा है. फिर भी न तो अभी तक ग्रेस पिंटो को भाजपा महिला मोर्चा के पद से हटाया गया है, और ना ही कम्पनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर की वेबसाइट पर उपलब्ध सूची से हटाया गया.
भाजपा के सामान्य कार्यकर्ताओं का सवाल अलग किस्म का है. उनके अनुसार भाजपा और संघ से इतर “बाहरी” लोगों को जो कि पार्टी अथवा संगठन की विचारधारा से कतई दूर हैं, उन्हें भाजपा के मंत्री इतना भाव क्यों देते हैं? बाहर से आने वालों (खासकर काँग्रेस से नजदीकी रखने वालों) को पार्टी में तवज्जो क्यों दी जा रही है? ग्रेस पिंटो जैसे कई भ्रष्ट चेहरे 2014 के बाद अचानक उभरे हैं. न सिर्फ उभरे हैं, बल्कि विचारधारा के लिए समर्पित व्यक्तियों को दरकिनार करके ऐसे लोगों को ऊपर से थोपा जा रहा है. नियुक्त करने से पहले क्या ग्रेस पिंटो के काले कारनामें और राजनैतिक महत्वाकांक्षा राजनाथ सिंह, फडनवीस अथवा स्मृति ईरानी से छिपी हुई थी? फिर किसकी अनुशंसा पर ग्रेस पिंटो की यह दोनों नियुक्तियाँ हुईं?? यह सवाल सभी जमीनी कार्यकर्ताओं को मथ रहा है, कि जब इन “बाहरी तत्त्वों” के भ्रष्टाचार के किस्से सरेआम होंगे तो वे अपना मुँह कैसे छिपाएँगे? कौन से तर्क देंगे? ग्रेस पिंटो जैसे लोगों को पार्टी में किसकी शह मिली हुई है? क्या पार्टी के लिए विचारधारा की बजाय “मोटा चन्दा” ज्यादा महत्त्वपूर्ण हो गया है?