गोवा फिल्म समारोह हंगामा : सरकार की किरकिरी

Written by शुक्रवार, 17 नवम्बर 2017 18:39

किसी भी सरकार में वित्त, रक्षा, गृह और विदेश मंत्रालय के बाद दो सबसे महत्त्वपूर्ण मंत्रालय होते हैं, मानव संसाधन और सूचना प्रसारण मंत्रालय (Information and Broadcasting Ministry). पिछली सरकारों खासकर वामपंथ समर्थित काँग्रेस सरकारों ने इन दोनों ही मंत्रालयों का जनता को अपने पक्ष में मोड़ने, तथा पाठ्यक्रमों व इतिहास में मनमाने बदलाव करके ब्रेनवॉश करने के लिए बेहतरीन उपयोग किया है.

वहीं दूसरी तरफ मोदी सरकार ने पिछले तीन वर्षों में इन दोनों ही मंत्रालयों को अनदेखा किया है, अनुभवहीन मंत्रियों के हाथों में सौंप रखा है. इस कारण विभिन्न क्षेत्रों में जिस प्रकार के काम अपेक्षित थे, वैसे नहीं हो रहे. उल्टे इस सरकार को विभिन्न विश्वविद्यालयों तथा कला-संस्कृति एवं अकादमिक जगत में कई बार विवादों और शर्मिन्दगी का सामना करना पड़ा है (यहाँ क्लिक करके एक कारनामा पढ़ें). इसी श्रृंखला में ताज़ा कड़ी है गोवा के अंतर्राष्ट्रीय फिल्मोत्सव (Goa International Film Festival) में घटिया और बेहूदी फिल्मों का आना, फिर ज्यूरी अध्यक्ष और सदस्यों के इस्तीफे और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस फिल्म महोत्सव तथा सरकार के सूचना प्रसारण मंत्रालय की बदनामी... आईये देखते हैं कि मामला क्या है और सूचना प्रसारण मंत्रालय फेल कैसे और क्यों हुआ?

जैसा कि सभी जानते हैं आगामी 19 नवम्बर से गोवा में अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह (दूसरा अनुभवहीन कारनामा पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें) होने जा रहा है. लेकिन पिछले कुछ दिनों से यह फिल्म समारोह कई गलत कारणों से विवादों और इस्तीफों में फँसा हुआ है. यानी बरात दरवाजे पर खड़ी है, और घर में भाई-भतीजे आपस में मार-कुटाई कर रहे हैं. हुआ ये है कि इस अन्तर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव से दो बेहद फूहड़ और अश्लील फिल्मों यानी “सेक्सी दुर्गा” (Sexy Durga) और “न्यूड” (Nude) को, सूचना-प्रसारण मंत्रालय ने अंतिम मौके पर बाहर कर दिया. सरकार के इस निर्णय के विरोध में जूरी अध्यक्ष सुजॉय घोष (Sujoy Ghosh) ने इस्तीफा दे दिया है, और उनके पीछे-पीछे एक और जूरी सदस्य अपूर्व असरानी ने भी इस्तीफ़ा दे दिया है. यानी कुल मिलाकर बात ये है कि बारात के भोजन पर बैठने से पहले रायता फैला दिया गया है. यह पढ़कर आपको लगेगा कि वाह, सूचना प्रसारण मंत्रालय ने कितना बेहतरीन कदम उठाया है कि ऐसी फिल्मों को फिल्मोत्सव में प्रदर्शित नहीं होने दिया... है ना!! यही सोचा न आपने?? लेकिन मामला इतना सीधा नहीं है... वास्तव में यह सरकार और खासकर सूचना प्रसारण मंत्रालय की अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर किरकिरी हुई है... और यह किरकिरी करवाई किसने यह भी जानिये. आगे पढ़िये...

सबसे पहले आप संक्षेप में समझ लीजिए कि अन्तर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह में कौन-कौन सी फ़िल्में दिखाई जाएँगी इसकी प्रक्रिया क्या है. इसकी शुरुआत होती है, फिल्म समारोह में अपनी फ़िल्में दिखाने की इच्छा लिए सैकड़ों फिल्मकार अपनी-अपनी प्रविष्टियाँ सूचना प्रसारण मंत्रालय द्वारा नियुक्त “स्क्रीनिंग कमेटी” के पास भेजने से. ज़ाहिर है कि हजारों फ़िल्में आती हैं, जिनमें कुछ अच्छी होती हैं, कुछ बहुत अच्छी और कुछ बेहद फूहड़ औउर अश्लील भी. स्क्रीनिंग कमेटी में सामान्यतः 21 सदस्य होते हैं, लेकिन इस बार की कमेटी में 40 सदस्य थे. इन 40 लोगों को दिनभर बैठकर प्रतिदिन आठ-दस फ़िल्में देखकर उन्हें रेटिंग देनी होती है, फिल्म स्क्रीनिंग कमेटी से पास होगी या खारिज होगी यह तय करना होता है. इस बार सूचना प्रसारण मंत्रालय ने इस स्क्रीनिंग कमेटी को सीधे फ़िल्में दिखाने की व्यवस्था करने की बजाय उन्हें इन सैकड़ों फिल्मों की डिजिटल लिंक भेज दी, कि डाउनलोड करो और फिल्म देखकर उसका रिव्यू दो. सामान्यतः स्क्रीनिंग कमेटी में साहित्य-कला-संस्कृति-फिल्म-सामाजिक क्षेत्रों से जुड़े लोग होते हैं. स्वाभाविक है कि ऐसे लोग व्यस्त भी रहते हैं, यानी 40 सदस्यों में से सभी लोग सारी फ़िल्में देख भी नहीं पाते, फिल्मों को देखने के लिए वे दिन भर में अधिक से अधिक दो-तीन घंटे ही दे पाते होंगे. अब आप खुद ही सोच सकते हैं कि डिजिटल लिंक दिए जाने पर इन साहित्यकारों, लेखकों, फिल्मकारों और समाजसेवियों ने कितनी फ़िल्में डाउनलोड की होंगी, और कितनी गंभीरता से देखी होंगी. बहरहाल... फिर भी स्क्रीनिंग कमेटी के कई सदस्यों ने वास्तव में कड़ी मेहनत करके आठ-आठ घंटे फ़िल्में देखकर कई फिल्मों को खारिज किया, कुछ फिल्मों को पास भी किया. जबकि बहुत से स्क्रीनिंग सदस्यों ने डिजिटल लिंक को डाउनलोड किए बिना, फिल्म देखे बिना उसे सीधे ज्यूरी सदस्यों की कमेटी के पास भेज दिया.

यहाँ उल्लेखनीय है कि स्क्रीनिंग कमेटी का अगला चरण ज्यूरी कमेटी है, लेकिन स्क्रीनिंग कमेटी द्वारा फेल की गई किसी भी फिल्म को ज्यूरी सदस्य अपनी मर्जी से फिल्म समारोह में नहीं घुसेड़ सकते. केरल के फिल्मकार सनल श्रीधरन की फिल्म “सेक्सी दुर्गा” का नाम जानबूझकर शरारतपूर्ण तरीके से हिन्दू देवी के नाम पर रखा गया, ताकि विवाद हो. कहने का तात्पर्य यह है कि इस आपाधापी, जल्दबाजी और मान्यवरों के पास समय की कमी तथा फिल्म दिखाने की बजाय डिजिटल लिंक देने जैसी “कारस्तानी” के कारण “सेक्सी दुर्गा” और “न्यूड” जैसी फ़िल्में ज्यूरी सदस्यों के पास पहुँच गईं. अब यहाँ शुरू होता है “वामपंथी खेल”.

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जैसा कि सभी जानते हैं, पिछले पचास वर्षों में साहित्य-कला-संस्कृति-नाटक-इतिहास-फिल्म-लेखन इत्यादि क्षेत्रों में वामपंथियों ने अपना कब्ज़ा जमाया हुआ है. ज्यूरी सदस्यों में भी ऐसे ही सेकुलर-वामपंथी मानसिकता वाले लोगों की भरमार है. इसके अध्यक्ष सुजॉय घोष भी इसी मानसिकता के हैं. स्क्रीनिंग कमेटी द्वारा पास की गई फिल्मों में “सेक्सी दुर्गा” जैसी फिल्म देखकर इन बुद्धिजीवियों की बाँछें खिल गईं. उन्होंने तत्काल कई अच्छी फिल्मों को बाहर धकियाते हुए फिल्म समारोह में प्रदर्शन करने के लिए इस फिल्म को हरी झंडी दिखा दी. कुछ-कुछ ऐसा ही “न्यूड” फिल्म के साथ भी हुआ. भारतीय संस्कृति और भारत की छवि को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बदनाम करने के लिए बनी इन फिल्मों के बारे में जब हिन्दू संगठनों को जानकारी मिली, तो उन्होंने तत्काल स्मृति ईरानी के पास शिकायत दर्ज करवाई. शिकायत पहुँचने के बाद सूचना प्रसारण मंत्रालय जागृत हुआ और उसने ज्यूरी सदस्यों से जवाबतलब किया, तब तक “सेक्सी दुर्गा” बड़े ही शातिर तरीके से “प्रचारित” किया जा चुका था. यानी सरकार और मंत्रालय को फँसाने का पूरा जाल तैयार हो चुका था. विदेशी फिल्मकारों के सामने और अन्तर्राष्ट्रीय मीडिया में “भगवा” सरकार की बदनामी करने के लिए इन्डियन पैनोरमा में “सेक्सी दुर्गा” और “न्यूड” फिल्म को खूब बढ़ाचढ़ाकर पेश किया जाने लगा. सूचना प्रसारण मंत्रालय की हँसी उड़वाने तथा सरकार को “असहिष्णु” सिद्ध करने का यह खेल “दोहरा” था. यानी अगर “सेक्सी दुर्गा” फिल्म बिना किसी की निगाह में आए फिल्म समारोह में चल जाती तो भी भारत की छवि खराब होती और यदि जैसा कि अब सरकार ने हिंदूवादी संगठन के दबाव में इस फिल्म को समारोह से बाहर कर दिया है, तब भी इस्तीफा देकर, शोर मचाकर सरकार को बदनाम किया जा रहा है. अर्थात चित भी मेरी, पट भी मेरी...

ज्यूरी में बैठे वामपंथी जैसा चाहते थे, वैसा ही हुआ. सेंसर बोर्ड और मंत्रालय की नींद देर से खुली, हिंदूवादी संगठन के विरोध के बाद इन दोनों फिल्मों को समारोह से बाहर कर दिया गया और सुजॉय घोष को अपने कपड़े फाड़ने का मौका मिल गया. इसमें रहस्य की बात यह भी है कि एक बार फिल्म की प्रविष्टि आ जाने के बाद उस फिल्म का नाम नहीं बदला जा सकता, लेकिन न जाने कैसे और किस प्रकाण्ड ज्यूरी सदस्य ने “सेक्सी दुर्गा” का नाम “एस.दुर्गा” के रूप में बदलने की स्वीकृति दे दी, ताकि बाद में उसका ठीकरा भी सूचना प्रसारण मंत्रालय के माथे पर ही थोपा जा सके.

मुझे पता है कि पूरा लेख पढ़ने के बाद अब आप निश्चित रूप से यही सोच रहे होंगे, कि जब इस सरकार को तीन साल से ऊपर हो चुके हैं, फिर भी मानव संसाधन और सूचना प्रसारण मंत्रालय की विभिन्न कमेटियों में सरकार विरोधी मानसिकता के वामपंथी कैसे घुसे बैठे हैं?? सुजॉय घोष का बैकग्राउंड जाँचे बिना, उसे ज्यूरी का अध्यक्ष किसने बनाया? स्क्रीनिंग कमेटी में ऐसे लोगों को क्यों बैठाया गया, जिनके पास फ़िल्में देखने का समय ही नहीं है?? इन सदस्यों को फिल्म दिखाने की बजाय डिजिटल लिंक का प्रसाद क्यों बाँटा गया, यह नहीं सोचा कि कौन सा सदस्य सभी फ़िल्में डाउनलोड करके देखेगा? “सेक्सी दुर्गा” फिल्म का नाम अंतिम समय पर किसने बदला और किस अधिकार से बदला गया? अब जबकि अन्तर्राष्ट्रीय फिल्म समारोह के शुरू होने से ठीक पहले मंत्रालय की थू-थू हो चुकी, विवाद हो गया, छवि खराब हो गई, तो साँप निकल जाने के बाद लाठी पीटने का क्या फायदा?

परन्तु इन सवालों का जवाब किसी के पास नहीं है, क्योंकि खुद स्मृति ईरानी संसद में खड़े होकर “गर्व”(???) से कह चुकी हैं कि हमारे मंत्रालय ने पिछली सरकारों के किसी भी पूर्व सदस्य के साथ अन्याय नहीं किया है, किसी को पद से नहीं हटाया है... उनके इस बयान पर हिंदूवादी संगठनों के लोग तथा जमीन पर वर्षों से राष्ट्रवादी विचारधारा के लिए काम करने वाले सैकड़ों लोग भले ही अपना माथा कूट चुके हों, लेकिन वामपंथियों के दिल बाग-बाग उठते हैं. इसीलिए सुजॉय घोष जैसे बाहरी लोग भी सरकार की नीति को गरियाकर, बड़े आराम से इस्तीफा देकर चलते बनते हैं, क्योंकि तब तक उनका उद्देश्य पूरा हो चुका होता है. लेकिन जब तक “गैरों पे करम... अपनों पे सितम...” की मूर्खतापूर्ण नीति रहेगी, तो “बाहरी” लोग रायता फैलाएँगे ही. यदि भाजपा को तीन-सवा तीन साल में मानव संसाधन और सूचना प्रसारण जैसे महत्त्वपूर्ण मंत्रालयों का उपयोग “अपने हित में, अपने लोगों के लिए, अपनी विचारधारा के लिए” करना भी नहीं आया, तो फिर इस सरकार की छीछालेदर होती ही रहेगी, और वामपंथी मजे मारते रहेंगे, दूर खड़े होकर हँसते रहेंगे और दुनिया भर में इस सरकार को “असहिष्णु” और “कट्टरवादी” के रूप में पेश करते रहेंगे. 

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