और मुस्लिमों के साथ मेलजोल अथवा सहिष्णुता के सम्बन्ध होने वाली चर्चाओं में इस ऊटपटांग शब्द को जोड़ा किसने? किसने इसे यह नाम दिया और इसका मूल क्या है? एक प्रश्न और भी है कि क्या यह संस्कृति भी गंगा यमुना की तरह प्रदूषित हो चुकी है या इसमें अभी भी मूल पवित्रता एवं शुद्धता है?
गंगा एवं यमुना भारत की पवित्र नदियाँ हैं, ये उतनी ही प्राचीन हैं जितना भारत में सभ्यता एवं संस्कृति का विकास. जो ज्ञान की धारा सरस्वती एवं सिन्धु के आंगन में बही, उसी धारा ने ज्ञान विज्ञान एवं उच्चतम आध्यात्मिक अनुभूतियों की बगिया को गंगा एवं यमुना के तटों पर भी विकसित एवं पल्लवित पुष्पित किया है (Ancient Culture of India). वास्तव में जिस “कथित” गंगा जमुनी संस्कृति की बात सेकुलरिज्म के पैरोकार करतें हैं, उसका इतिहास किसी एक अनपढ़ जाहिल के पंथ या उनकी संस्कृतिविहीन जीवनशैली से नहीं जुड़ता है, बल्कि उसका इतिहास जुड़ता है हमारी मूल जड़ों से जिनमें मट्ठा डालने का कार्य किया है, देशद्रोही वामपंथी एवं सत्ता के भूखे राजनीतिबाजों की छत्रछाया में पलने वाले रीढ़ विहीन इतिहासकारों ने.
गंगा की संस्कृति क्या है?? :- सरयू नदी के तट पर बसी अयोध्या नगरी की संस्कृति है गंगा की संस्कृति.... यानि राम की संस्कृति... यानि राम राज्य की संस्कृति.... यानि शत्रुन्जय की संस्कृति... यानि विश्व इतिहास में त्याग, भाईचारे, वीरता, संगठन शक्ति, पारिवारिक सौहार्द एवं अपनी पत्नी को अप्रतिम प्यार के सर्वोच्च मानदंड की प्राचीनतम संस्कृति... फिर वाराणसी की संस्कृति है गंगा की संस्कृति, जहाँ भक्ति एवं ज्ञान साधना का सर्वोच्च संगम आदि काल से होता आया है एवं जिसकी संस्कृति को नष्ट करने का हरसंभव प्रयास आज की गंगा जमुनी संस्कृति के रहनुमाओं, उनके वकीलों एवं दलालों ने करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी, थोड़ा और नजदीक झांकेंगे तो पाएंगे कि स्वामी रामकृष्ण एवं विवेकानंद की संस्कृति है गंगा की संस्कृति.
और यमुना की संस्कृति क्या है? :- यमुना के किनारे बसी मथुरा के कारावास में जन्मे कृष्ण एवं उसके संघर्ष तथा जीवन के प्रत्येक संघर्ष एवं युद्ध में विजय का मंत्र बनी गीता की संस्कृति है यमुना की संस्कृति..... इन्द्रप्रस्थ की संस्कृति है यमुना की संस्कृति... संगम की संस्कृति है यमुना की संस्कृति.... अपने आप को ईश्वर से एकाकार कर देने की संस्कृति है यमुना की संस्कृति. थोडा और पास आएंगे तो पाएंगे कि परमपूज्य बिरजानंद जी एवं महर्षि दयानंद के अप्रतिम वैदिक ज्ञान की संस्कृति है यमुना की संस्कृति.
“गंगा जमुनी संस्कृति” शब्द को क्रूर, बर्बर, बलात्कारी, दरिंदों से जोड़ना इस संस्कृति को प्रदूषित एवं हमें मानसिक रूप से भ्रमित करने के षड़यंत्र के अलावा कुछ भी नहीं है. जिन लोगों के यहाँ संस्कृति के नाम पर अशिक्षा, अपनी ही बहनों से विवाह, मांस भक्षण, मदिरापान, क्रूरता एवं अय्याशी की पराकाष्ठा के अलावा कभी कुछ था ही नहीं, जहाँ आध्यात्म, भक्ति, संगीत, शिल्प, चिकित्सा शास्त्र, विज्ञान आदि का दूर दूर तक कोई सम्बन्ध नहीं था उस इतिहास के अन्धकारपूर्ण काले अध्याय को “संस्कृति” का नाम देना सिवाय एक सोचे समझे षड़यंत्र के क्या हो सकता है? कौन लाया था भारत में तहजीब और संस्कृति जिसकी वकालत ये भाड़े के टट्टू करते फिरते हैं? क्या गजनवी की संस्कृति है यहाँ? क्या मोहम्मद गौरी संस्कृति लेकर आया था? क्या बाबर की लोंडेबाज़ी, अफीम एवं शराबखोरी की संस्कृति है यहाँ? क्या बहादुरशाह जफ़र की कायरता की संस्कृति है यहाँ?
खिलजी, लोधी, गुलाम ये सब बर्बर दरिन्दे लाये थे कोई संस्कृति अपने साथ? या फिर जहाँगीर जैसा बादशाह लाया था, जिसने गद्दी पर बैठते ही सबसे पहले काशी का मंदिर तुडवाया एवं लूटा? डरपोक एवं कायर हुमायूँ की संस्कृति या फिर कट्टर हिन्दू द्रोही अकबर की संस्कृति?? या फिर बाप एवं भाइयों के हत्यारे औरंगजेब की संस्कृति? आखिर क्या इतिहास है इस वामपंथी तथाकथित गंगा जमनी संस्कृति का? क्या उस शाहजहाँ के प्यार की संस्कृति की वकालत हम कर रहें हैं, जिसने हिन्दू मंदिर पर कब्ज़ा कर अपनी अनगिनत औरतों में से एक के लिए कब्र बनवा दी, एवं उसके तथाकथित प्यार में उसकी ही छोटी बहन को अपने हरम में अपनी वासना की भूख मिटने के लिए रख छोड़ा.
ये लोग वकालत कर रहें हैं उस संस्कृति की, जिसकी मूल अवधारणा ही संस्कृति एवं ज्ञान को नष्ट करने, ऐयाशी को धर्म का नाम देने एवं वीभत्सता की नित नयी इबारतें लिखने की रही है. ध्वस्त मंदिरों, करोड़ों हिन्दुओं के सिर काट कर बनाई गयी मीनारों, धोखा, गद्दारी, इतिहास को नष्ट करने एवं ज्ञान विज्ञान के नष्ट कर देने के कुचक्रों को यदि “संस्कृति” कहते हो, तो धिक्कार है तुम्हें एवं तुम्हारी तथाकथित गंगा जमुनी संस्कृति पर. क्या कुछ पादरी और धर्मप्रचारक, जिन्होंने छद्म वेश में व्यापारियों के लिए जगह बनायीं एवं उन व्यापारियों ने इस देश पर कब्ज़ा कर लिया उनकी संस्कृति के वाहक हैं हम? हजारों वर्षों से परिपक्व हुई हमारी संस्कृति जिसमें जीवन के प्रत्येक रंग को शामिल एवं परिभाषित किया गया, जिस संस्कृति के वाहकों ने आरम्भ से पूर्व एवं अंत के अनंतर को अपनी मेधा एवं ज्ञान के बल पर जाना एवं उसके रहस्यों को सुलझाया, उस संस्कृति के वंशज आज वापस उस काल को गंगा जमुनी संस्कृति कहते नहीं अघाते... जो कि वास्तव में इस संस्कृति के विनाश का संक्रमण काल था. जिसने हमारे इतिहास एवं संस्कृति को नष्ट करने का पुरजोर प्रयत्न किया, क्या हो गया है हमें? किसने पर्दा डाल दिया है हमारी आँखों पर?
(इस चित्र में देखिये "कथित गंगा-जमुनी संस्कृति की वास्तविकता... यरूशलम के लिए भारत में प्रदर्शन कर रहे हैं... ये वही लोग हैं जो म्यांमार में होने वाले मुस्लिम विरोधी दंगों पर भारत के मुम्बई में दंगा करते हैं और ये वो लोग भी हैं जो सुदूर डेनमार्क में बने एक कार्टून को लेकर भारत में तोड़फोड़ मचाते हैं.... ऐसी है वामपंथ के बुद्धिजीवियों की गंगा-जमुनी संस्कृति)
इस तथाकथित “गंगा-जमुनी संस्कृति” की दुहाई देते हुए वामपंथियों और छद्म सेकुलरों के कंठ अवरुद्ध हो जाते हैं. ये आवाजें बहुत ही “सिलेक्टिव” होती हैं. रोजों के समय न जाने कितने मंदिरों के द्वार नमाज के लिए खोल दिए जाते हैं, तब स्वाभाविक है कि उस समय ये गंगा-जमुनी तहजीब जमकर हिलोरें ले रही होती है. मगर लव जिहाद के दुष्चक्र में फंसी लड़कियों के दर्द की बात करते ही, यह गंगा जमुनी तहजीब खतरे में पड़ जाती है. गंगा-जमुनी तहजीब के पैरोकार हिन्दुओं की “असहिष्णुता”(?) के विषय में लिखते समय कलम तोड़ देते हैं, मगर उनका कलम-तोड़ लेखन उस समय हाँफने लगता है जब बात आती है केरल में रोज़ बढ़ते पादरियों के द्वारा बच्चों के यौन शोषण की. जब भी कोई पादरी यौन शोषण के आरोप में पकड़ा जाता है, ये गंगा-जमनी वाली फर्जी स्याही सूख जाती है. इसी तरह जब कोई नन चर्च में यौन शोषण की सच्चाई सामने लाती है, तब यही गंगा-जमुनी संस्कृति अचानक सूख कर छुआरा हो जाती है.
दुर्भाग्य ये है कि विश्व को सबसे पुरातन एवं समृद्ध विज्ञान एवं साहित्य देने वाला यह देश जाहिलों एवं बर्बर, धर्मांध लुटेरों या फिर सांस्कृतिक चोरों की यादों को गले से लगाए अपने मूल को भूल इस मिथ्या भ्रम को ही अंतिम सत्य समझ बैठा है? यहाँ महावीर एवं बुद्ध का दर्शन है, तो नानक देव जी की संस्कृति में जन्मे गुरु गोबिंद सिंह जी, गुरु तेग बहादुर जी आदि की वीरता पूर्ण परंपरा है, संस्कृति का विकास एक अनवरत परम्परा है उसमें कुछ समय के लिए तत्कालीन समाज के विकास में आये हुए ठहराव से जड़ता आ सकती है लेकिन वह कभी भी लुप्त या विकृत नहीं हो सकती. ज्ञान -विज्ञान मूलक विकास का पहिया वापस घूमना आरम्भ होते ही, संस्कृति पुनः अपना मूल प्राप्त कर लेती है. प्रत्येक भारतीय को गर्व होना चाहिए की वह “वास्तविक” गंगा-जमुनी संस्कृति में जन्मा है, एवं उसे इस संस्कृति को समझ कर पूरी तरह आत्मसात करते हुए इस संस्कृति की रक्षा करनी चाहिए. हमें हमारी सभ्यता एवं संस्कृति के स्वर्णिम अध्याय को समरण करना चाहिए, एवं उस काले अध्याय को भुलाना चाहिए जिसका अस्तित्व मात्र कुछ सौ वर्षों तक ही रहा. क्या हजारों वर्षों की अति विकसित संस्कृति के उत्तराधिकारी इतने बुद्धि, ज्ञान, आत्मबल एवं शौर्यहीन हो गए कि हमें जो चाहे मूर्खतापूर्ण पढ़ा दिया जाए, या धूर्तता से जो चाहे समझा दिया जाये और हम सत्य का अन्वेषण किए बिना उसे स्वीकार कर लें?
एक बात अपने दिमाग में अच्छे से अंकित कर लें, कि जब भी कोई गंगा जमुनी संस्कृति की बात करे उसे राम एवं कृष्ण की ही संस्कृति समझें एवं परिभाषित कर समुचित उत्तर देवें, किसी धूर्त और कामी की बातों में आने की कोई आवश्यकता नहीं हैं. जो विदेशी थे, वे विदेशी हैं एवं रहेंगे तथा उनकी संस्कृति के ध्वजवाहक कभी भी हमारी संस्कृति के साथ मेल नहीं हो सकते. वे हमेशा हमें नष्ट करने का ही प्रयास करते रहें हैं एवं रहेंगे.
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