desiCNN - Items filtered by date: दिसम्बर 2010
आप सभी को याद होगा कि किस तरह से ऑस्ट्रेलिया में एक डॉक्टर हनीफ़ को वहाँ की सरकार ने जब गलती से आतंकवादी करार देकर गिरफ़्तार कर लिया था, उस समय हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी ने बयान दिया था कि “हनीफ़ पर हुए अत्याचार से उनकी नींद उड़ गई है…”  और उस की मदद के लिये सरकार हरसंभव प्रयास करेगी। डॉक्टर हनीफ़ के सौभाग्य कहिये कि वह ऑस्ट्रेलिया में कोर्ट केस भी जीत गया, ऑस्ट्रेलिया सरकार ने उससे लिखित में माफ़ी भी माँग ली है एवं उसे 10 लाख डॉलर की क्षतिपूर्ति राशि भी मिलेगी…

अब चलते हैं सऊदी अरब… डॉक्टर शालिनी चावला इस देश को कभी भूल नहीं सकतीं… यह बर्बर इस्लामिक देश, रह-रहकर उन्हें सपने में भी डराता रहेगा, भले ही मनमोहन जी चैन की नींद लेते रहें…

डॉक्टर शालिनी एवं डॉक्टर आशीष चावला की मुलाकात दिल्ली के राममनोहर लोहिया अस्पताल में हुई, दोनों में प्रेम हुआ और 10 साल पहले उनकी शादी भी हुई। आज से लगभग 4 वर्ष पहले दोनों को सऊदी अरब के किंग खालिद अस्पताल में नौकरी मिल गई और वे वहाँ चले गये। डॉ आशीष ने वहाँ कार्डियोलॉजिस्ट के रुप में तथा डॉ शालिनी ने अन्य मेडिकल विभाग में नौकरी ज्वाइन कर ली। सब कुछ अच्छा-खासा चल रहा था, लेकिन नियति को कुछ और ही मंज़ूर था…

जनवरी 2010 (यानी लगभग एक साल पहले) में डॉक्टर आशीष चावला की मृत्यु हार्ट अटैक से हो गई, अस्पताल की प्रारम्भिक जाँच रिपोर्ट में इसे Myocardial Infraction बताया गया था अर्थात सीधा-सादा हार्ट अटैक, जो कि किसी को कभी भी आ सकता है। यह डॉ शालिनी पर पहला आघात था। शालिनी की एक बेटी है दो वर्ष की, एवं जिस समय आशीष की मौत हुई उस समय शालिनी गर्भवती थीं तथा डिलेवरी की दिनांक भी नज़दीक ही थी। बेटी का खयाल रखने व गर्भावस्था में आराम करने के लिये शालिनी ने अपनी नौकरी से इस्तीफ़ा पहले ही दे दिया था। इस भीषण शारीरिक एवं मानसिक अवस्था में डॉ शालिनी को अपने पति का शव भारत ले जाना था… जो कि स्थिति को देखते हुए तुरन्त ले जाना सम्भव भी नहीं था…।

फ़िर 10 फ़रवरी 2010 को शालिनी ने एक पुत्र “वेदांत” को जन्म दिया, चूंकि डिलेवरी ऑपरेशन (सिजेरियन) के जरिये हुई थी, इसलिये शालिनी को कुछ दिनों तक बिस्तर पर ही रहना पड़ा… ज़रा इस बहादुर स्त्री की परिस्थिति के बारे में सोचिये… उधर दूसरे अस्पताल में पति का शव पड़ा हुआ है, दो वर्ष की बेटी की देखभाल, नवजात शिशु की देखभाल, ऑपरेशन की दर्दनाक स्थिति से गुज़रना… कैसी भयानक मानसिक यातना सही होगी डॉ शालिनी ने… 

लेकिन रुकिये… अभी विपदाओं का और भी वीभत्स रुप सामने आना बाकी था…

1 मार्च 2010 को नज़रान (सऊदी अरब) की पुलिस ने डॉ शालिनी को अस्पताल में ही नोटिस भिजवाया कि ऐसी शिकायत मिली है कि “आपके पति ने मौत से पहले इस्लाम स्वीकार कर लिया था एवं शक है कि उसने अपने पति को ज़हर देकर मार दिया है”। इन बेतुके आरोपों और अपनी मानसिक स्थिति से बुरी तरह घबराई व टूटी शालिनी ने पुलिस के सामने तरह-तरह की दुहाई व तर्क रखे, लेकिन उसकी एक न सुनी गई। अन्ततः शालिनी को उसके मात्र 34 दिन के नवजात शिशु के साथ पुलिस कस्टडी में गिरफ़्तार कर लिया गया व उससे कहा गया कि जब तक उसके पति डॉ आशीष का दोबारा पोस्टमॉर्टम नहीं होता व डॉक्टर अपनी जाँच रिपोर्ट नहीं दे देते, वह देश नहीं छोड़ सकती। डॉ शालिनी को शुरु में 25 दिनों तक जेल में रहना पड़ा, ज़मानत पर रिहाई के बाद उसे अस्पताल कैम्पस में ही अघोषित रुप से नज़रबन्द कर दिया गया, उसकी प्रत्येक हरकत पर नज़र रखी जाती थी…। चूंकि नौकरी भी नहीं रही व स्थितियों के कारण आर्थिक हालत भी खराब हो चली थी इसलिये दिल्ली से परिवार वाले शालिनी को पैसा भेजते रहे, जिससे उसका काम चलता रहा… लेकिन उन दिनों उसने हालात का सामना बहुत बहादुरी से किया। जिस समय शालिनी जेल में थी तब यहाँ से गई हुईं उनकी माँ ने दो वर्षीय बच्ची की देखभाल की। शालिनी के पिता की दो साल पहले ही मौत हो चुकी है…

डॉ आशीष का शव अस्पताल में ही रखा रहा, न तो उसे भारत ले जाने की अनुमति दी गई, न ही अन्तिम संस्कार की। डॉक्टरों की एक विशेष टीम ने दूसरी बार पोस्टमॉर्टम किया तथा ज़हर दिये जाने के शक में “टॉक्सिकोलोजी व फ़ोरेंसिक विभाग” ने भी शव की गहन जाँच की। अन्त में डॉक्टरों ने अपनी फ़ाइनल रिपोर्ट में यह घोषित किया कि डॉ आशीष को ज़हर नहीं दिया गया है उनकी मौत सामान्य हार्ट अटैक से ही हुई, लेकिन इस बीच डॉ शालिनी का जीवन नर्क बन चुका था। इन बुरे और भीषण दुख के दिनों में भारत से शालिनी के रिश्तेदारों ने सऊदी अरब स्थित भारत के दूतावास से लगातार मदद की गुहार की, भारत स्थित सऊदी अरब के दूतावास में भी विभिन्न सम्पर्कों को तलाशा गया लेकिन कहीं से कोई मदद नहीं मिली, यहाँ तक कि तत्कालीन विदेश राज्यमंत्री शशि थरुर से भी कहलवाया गया, लेकिन सऊदी अरब सरकार ने “कानूनों”(?) का हवाला देकर किसी की नहीं सुनी। मनमोहन सिंह की नींद तब भी खराब नहीं हुई…

शालिनी ने अपने बयान में कहा कि आशीष द्वारा इस्लाम स्वीकार करने का कोई सवाल ही नहीं उठता था, यदि ऐसा कोई कदम वे उठाते तो निश्चित ही परिवार की सहमति अवश्य लेते, लेकिन मुझे नहीं पता कि पति को ज़हर देकर मारने जैसा घिनौना आरोप मुझ पर क्यों लगाया जा रहा है।

इन सारी दुश्वारियों व मानसिक कष्टों के कारण शालिनी की दिमागी हालत बहुत दबाव में आ गई थी एवं वह गुमसुम सी रहने लगी थी, लेकिन उसने हार नहीं मानी और सऊदी प्रशासन से लगातार न्याय की गुहार लगाती रही। अन्ततः 3 दिसम्बर 2010 को सऊदी सरकार ने यह मानते हुए कि डॉ आशीष की मौत स्वाभाविक है, व उन्होंने इस्लाम स्वीकार नहीं किया था, शालिनी चावला को उनका शव भारत ले जाने की अनुमति दी। डॉ आशीष का अन्तिम संस्कार 8 दिसम्बर (बुधवार) को दिल्ली के निगमबोध घाट पर किया गया… आँखों में आँसू लिये यह बहादुर महिला तनकर खड़ी रही, डॉ शालिनी जैसी परिस्थितियाँ किसी सामान्य इंसान पर बीतती तो वह कब का टूट चुका होता…

यह घटनाक्रम इतना हृदयविदारक है कि मैं इसका कोई विश्लेषण नहीं करना चाहता, मैं सब कुछ पाठकों पर छोड़ना चाहता हूँ… वे ही सोचें…

1) डॉ हनीफ़ और डॉ शालिनी के मामले में कांग्रेस सरकार के दोहरे रवैये के बारे में सोचें…

2) ऑस्ट्रेलिया सरकार एवं सऊदी सरकार के बर्ताव के अन्तर के बारे में सोचें…

3) भारत में काम करने वाले, अरबों का चन्दा डकारने वाले, मानवाधिकार और महिला संगठनों ने इस मामले में क्या किया, यह सोचें…

4) डॉली बिन्द्रा, वीना मलिक जैसी छिछोरी महिलाओं के किस्से चटखारे ले-लेकर दिन-रात सुनाने वाले “जागरुक” व “सबसे तेज़” मीडिया ने इस महिला पर कभी स्टोरी चलाई? इस बारे में सोचें…

5) भारत की सरकार का विदेशों में दबदबा(?), भारतीय दूतावासों के रोल और शशि थरुर आदि की औकात के बारे में भी सोचें…

और हाँ… कभी पैसा कमाने से थोड़ा समय फ़्री मिले, तो इस बात पर भी विचार कीजियेगा कि फ़िजी, मलेशिया, पाकिस्तान, बांग्लादेश, सऊदी अरब और यहाँ तक कि कश्मीर, असम, बंगाल जैसी जगहों पर हिन्दू क्यों लगातार जूते खाते रहते हैं? कोई उन्हें पूछता तक नहीं…
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विषय से जुड़ा एक पुराना मामला –

जो लोग “सेकुलरिज़्म” के गुण गाते नहीं थकते, जो लोग “तथाकथित मॉडरेट इस्लाम”(?) की दुहाईयाँ देते रहते हैं, अब उन्हें डॉ शालिनी के साथ-साथ, मलेशिया के श्री एम मूर्ति के मामले (2006) को भी याद कर लेना चाहिये, जिसमें उसकी मौत के बाद मलेशिया की “शरीयत अदालत” ने कहा था कि उसने मौत से पहले इस्लाम स्वीकार कर लिया था। परिवार के विरोध और न्याय की गुहार के बावजूद उन्हें इस्लामी रीति-रिवाजों के अनुसार दफ़नाया गया था। जी नहीं… एम मूर्ति, भारत से वहाँ नौकरी करने नहीं गये थे, मूर्ति साहब मलेशिया के ही नागरिक थे, और ऐसे-वैसे मामूली नागरिक भी नहीं… माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई की थी, मलेशिया की सेना में लेफ़्टिनेंट रहे, मलेशिया की सरकार ने उन्हें सम्मानित भी किया था… लेकिन क्या करें, दुर्भाग्य से वह “हिन्दू” थे…। विस्तार से यहाँ देखें… http://en.wikipedia.org/wiki/Maniam_Moorthy

भारत की सरकार जो “अपने नागरिकों” (वह भी एक विधवा महिला) के लिये ही कुछ नहीं कर पाती, तो मूर्ति जी के लिये क्या करती…? और फ़िर जब “ईमानदार लेकिन निकम्मे बाबू” कह चुके हैं कि “देश के संसाधनों पर पहला हक मुस्लिमों का है…” तो फ़िर एक हिन्दू विधवा का दुख हो या मुम्बई के हमले में सैकड़ों मासूम मारे जायें… वे अपनी नींद क्यों खराब करने लगे?

बहरहाल, पहले मुगलों, फ़िर अंग्रेजों, और अब गाँधी परिवार की गुलामी में व्यस्त, "लतखोर" हिन्दुओं को अंग्रेजी नववर्ष की शुभकामनाएं… क्योंकि वे मूर्ख इसी में "खुश" भी हैं…। विश्वास न आता हो तो 31 तारीख की रात को देख लेना…।

डॉ शालिनी चावला, मैं आपको दिल की गहराईयों से सलाम करता हूँ और आपका सम्मान करता हूँ, जिस जीवटता से आपने विपरीत और कठोर हालात का सामना किया, उसकी तारीफ़ के लिये शब्द नहीं हैं मेरे पास…
(…समाप्त)
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सन्दर्भ :-
http://timesofindia.indiatimes.com/india/Falsely-accused-of-killing-spouse-doc-jailed-in-Saudi/articleshow/7154236.cms

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Published in ब्लॉग
केन्द्र सरकार द्वारा हाल ही में जारी की गई एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में कार्यरत विभिन्न NGOs को सन् 2007-08 के दौरान लगभग 10,000 करोड़ का अनुदान विदेशों से प्राप्त हुआ है। इसमें दिमाग हिला देने वाला तथ्य यह है कि पैसा प्राप्त करने वाले टॉप 10 संगठनों में से 8 ईसाई संगठन हैं। अमेरिका, ब्रिटेन व जर्मनी दानदाताओं(?) की लिस्ट में टॉप तीन देश हैं, जबकि सबसे अधिक पैसा पाने वाले संगठन हैं वर्ल्ड विजन इंडिया, रुरल डेवलपमेण्ट ट्रस्ट अनन्तपुर एवं बिलीवर्स चर्च केरल।

राज्यवार सूची के अनुसार सबसे अधिक पैसा मिला है दिल्ली को (1716.57 करोड़), उसके बाद तमिलनाडु को (1670 करोड़) और तीसरे नम्बर पर आंध्रप्रदेश को (1167 करोड़)। जिलावार सूची के मुताबिक अकेले चेन्नै को मिला है 731 करोड़, बंगलोर को मिला 669 करोड़ एवं मुम्बई को 469 करोड़। सुना था कि अमेरिका में मंदी छाई थी, लेकिन “दान”(?) भेजने के मामले में उसने सबको पीछे छोड़ा है, अमेरिका से इन NGOs को कुल 2928 करोड़ रुपया आया, ब्रिटेन से 1268 करोड़ एवं जर्मनी से 971 करोड़… इनके पीछे हैं इटली (514 करोड़) व हॉलैण्ड (414 करोड़)।


दानदाताओं की लिस्ट में एकमात्र हिन्दू संस्था है ब्रह्मानन्द सरस्वती ट्रस्ट (चौथे क्रमांक पर 208 करोड़) इसी प्रकार दान लेने वालों की लिस्ट में भी एक ही हिन्दू संस्था दिखाई दी है, नाम है श्री गजानन महाराज ट्रस्ट महाराष्ट्र (70 करोड़)…एक नाम व्यक्तिगत है किसी डॉ विक्रम पंडित का… 

इस भारी-भरकम और अनाप-शनाप राशि के आँकड़ों को देखकर मूर्ख से मूर्ख व्यक्ति भी समझ सकता है कि इतना पैसा "सिर्फ़ गरीबों-अनाथों की सेवा" के लिये नहीं आता। ऐसे में ईसाई संस्थाओं द्वारा समय-समय पर किये जाने वाले धर्मान्तरण के खिलाफ़ आवाज़ उठाने वालों का पक्ष मजबूत होता है।

यहाँ सवाल उठता है कि गरीबी, बेरोज़गारी एवं अपर्याप्त संसाधन की समस्या दुनिया के प्रत्येक देश में होती है… सोमालिया, यमन, एथियोपिया, बांग्लादेश एवं पाकिस्तान जैसे इस्लामी देशों में भी भारी गरीबी है, लेकिन इन ईसाई संस्थाओं को वहाँ पर न काम करने में कोई रुचि है और न ही वहाँ की सरकारें मिशनरी को वहाँ घुसने देती हैं। मजे की बात यह है कि ढेर सारे ईसाई देशों जैसे पेरु, कोलम्बिया, मेक्सिको, ग्रेनाडा, सूरिनाम इत्यादि देशों में भी भीषण गरीबी है, लेकिन मिशनरी और मदर टेरेसा का विशेष प्रेम सिर्फ़ “भारत” पर ही बरसता है। इसी प्रकार चीन, जापान और इज़राइल भी न तो ईसाई देश हैं न मुस्लिम, लेकिन वहाँ धर्मान्तरण के खिलाफ़ सख्त कानून भी बने हैं, सरकारों की इच्छाशक्ति भी मजबूत है और सबसे बड़ी बात वहाँ के लोगों में अपने धर्म के प्रति सम्मान, गर्व की भावना के साथ-साथ मातृभूमि के प्रति स्वाभिमान की भावना तीव्र है, और यही बातें भारत में हिन्दुओं में कम पड़ती हैं… जिस वजह से अरबों रुपये विदेश से “सेवा” के नाम पर आता है और हिन्दू-विरोधी राजनैतिक कार्यों में लगता है। हिन्दुओं में इसी “स्वाभिमान की भावना की कमी” की वजह से एक कम पढ़ी-लिखी विदेशी महिला भी इस महान प्राचीन संस्कृति से समृद्ध देशवासियों पर आसानी से राज कर लेती है। भारत के अलावा और किसी और देश का उदाहरण बताईये, जहाँ ऐसा हुआ हो कि वहाँ का शासक उस देश में नहीं जन्मा हो, एवं जिसने 15 साल देश में बिताने और यहाँ विवाह करने के बावजूद हिचकिचाते हुए नागरिकता ग्रहण की हो।

बहरहाल… दान देने-लेने वालों की लिस्ट में हिन्दुओं की संस्थाओं का नदारद होना भी कोई आश्चर्य का विषय नहीं है, हिन्दुओं में दान-धर्म-परोपकार की परम्परा अक्सर मन्दिरों-मठों-धार्मिक अनुष्ठानों-भजन इत्यादि तक ही सीमित है। दान अथवा आर्थिक सहयोग का “राजनैतिक” अथवा “रणनीतिक” उपयोग करना हिन्दुओं को नहीं आता, न तो वे इस बात के लिये आसानी से राजी होते हैं और न ही उनमें वह “चेतना” विकसित हो पाई है। मूर्ख हिन्दुओं को तो यह भी नहीं पता कि जिन बड़े-बड़े और प्रसिद्ध मन्दिरों (सबरीमाला, तिरुपति, सिद्धिविनायक इत्यादि) में वे करोड़ों रुपये चढ़ावे के रुप में दे रहे हैं, उन मन्दिरों के ट्रस्टी, वहाँ की राज्य सरकारों के हाथों की कठपुतलियाँ हैं… मन्दिरों में आने वाले चढ़ावे का बड़ा हिस्सा हिन्दू-विरोधी कामों के लिये ही उपयोग किया जा रहा है। कभी सिद्धिविनायक मन्दिर में अब्दुल रहमान अन्तुले ट्रस्टी बन जाते हैं, तो कहीं सबरीमाला की प्रबंधन समिति में एक-दो वामपंथी (जो खुद को नास्तिक कहते हैं) घुसपैठ कर जाते हैं, इसी प्रकार तिरुपति देवस्थानम में भी “सेमुअल” राजशेखर रेड्डी ने अपने ईसाई बन्धु भर रखे हैं… जो गाहे-बगाहे यहाँ आने वाले चढ़ावे में हेरा-फ़ेरी करते रहते हैं… यानी सारा नियन्त्रण राज्य सरकारों का, सारे पैसों पर कब्जा हिन्दू-विरोधियों का… और फ़िर भी हिन्दू व्यक्ति मन्दिरों में लगातार पैसा झोंके जा रहे हैं…
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विषय से अपरोक्ष रुप से जुड़ी एक घटना –

संयोग देखिये कि कुछ ही दिनों पहले मैंने लिखा था कि “क्या हिन्दुत्व के प्रचार-प्रसार के लिये आर्थिक योगदान दे सकते हैं”, इसी सिलसिले में कुछ लोगों से बातचीत चल रही है, ऐसे ही मेरी एक “धन्ना सेठ” से बातचीत हुई। उक्त “धन्ना सेठ” बहुत पैसे वाले हैं, विभिन्न मन्दिरों में हजारों का चढ़ावा देते हैं, कई धार्मिक कार्यक्रम आयोजन समितियों के अध्यक्ष हैं, भण्डारे-कन्या भोज-सुन्दरकाण्ड इत्यादि कार्यक्रम तो इफ़रात में करते ही रहते हैं। मैंने उन्हें अपना ब्लॉग दिखाया, अपने पिछले चार साल के कामों का लेखा-जोखा बताया… सेठ जी बड़े प्रभावित हुए, बोले वाह… आप तो बहुत अच्छा काम कर रहे हैं… हिन्दुत्व जागरण के ऐसे प्रयास और भी होने चाहिये। मैंने मौका देखकर उनके सामने इस ब्लॉग को लगातार चलाने हेतु “चन्दा” देने का प्रस्ताव रख दिया…

बस फ़िर क्या था साहब, “धन्ना सेठ” अचानक इतने व्यस्त दिखाई देने लगे, जितने 73 समितियों के अध्यक्ष प्रणब मुखर्जी भी नहीं होंगे। इसके बावजूद मैं जब एक “बेशर्म लसूड़े” की तरह उनसे चिपक ही गया, तो मेरे हिन्दुत्व कार्य को लेकर चन्दा माँगने से पहले वे जितने प्रभावित दिख रहे थे, अब उतने ही बेज़ार नज़र आने लगे और सवाल-दर-सवाल दागने लगे… इससे क्या होगा? आखिर कैसे होगा? क्यों होगा? यदि हिन्दुत्व को फ़ायदा हुआ भी तो कितना प्रभावशाली होगा? इससे मेरा क्या फ़ायदा है? क्या आप भाजपा के लिये काम करते हैं? जो पैसा आप माँग रहे हैं उसका कैसा उपयोग करेंगे (अर्थात दबे शब्दों में वे पूछ रहे थे कि मैं इसमें से कितना पैसा खा जाउंगा) जैसे ढेरों प्रश्न उन्होंने मुझ पर दागे… मैं निरुत्तर था, क्या जवाब देता?

चन्दा माँगने के बाद अब तो शायद धन्ना सेठ जी मेरे ब्लॉग से दूर ही रहेंगे, परन्तु यदि कभी पढ़ें तो वे विदेशों से ईसाई संस्थाओं को आने वाली यह लिस्ट (और धन की मात्रा) अवश्य देख लें… और खुद विचार करें… कि हिन्दुओं में “बतौर हिन्दू”  कितनी राजनैतिक चेतना है? विदेश से जो लोग भारत में मिशनरीज़ को पैसा भेज रहे हैं क्या उन्होंने कभी इतने सवाल पूछे होंगे? जो लोग सेकुलरिज़्म के भजन गाते नहीं थकते, वे खुद ही सोचें कि क्या अरबों-खरबों की यह धनराशि “सिर्फ़ गरीबी दूर करने”(?)  के लिये भारत भेजी जाती है? यदि मुझ पर विश्वास नहीं है तो खुद ही केरल, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, उड़ीसा के दूरदराज इलाकों में जाकर देख लीजिये कैसे रातोंरात चर्च उग रहे हैं, “क्राइस्ट” की बड़ी-बड़ी मूर्तियाँ लगाई जा रही हैं। याद करें कि मुख्य मीडिया में आपने कितनी बार पादरियों के सेक्स स्कैण्डलों या चर्च के भूमि कब्जे के बारे में खबरें सुनी-पढ़ी हैं?

“राजनैतिक चेतना” किसे कहते हैं इसे समझना चाहते हों तो ग्राहम स्टेंस की हत्या, झाबुआ में नन के साथ कथित बलात्कार, डांग जिले में ईसाईयों पर कथित अत्याचार, कंधमाल में धर्मान्तरण विरोधी कथित हिंसा… जैसी इक्का-दुक्का घटनाओं को लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मचे हल्ले को देखिये, सोचिये कि कैसे विश्व के तमाम ईसाई संगठन किसी भी घटना को लेकर तुरन्त एकजुट हो जाते हैं, यूएनओ से प्रतिनिधिमंडल भेज दिये जाते हैं, अखबारों-चैनलों को हिन्दू-विरोधी रंग से पोत दिया जाता है… भले बाद में उसमें से काफ़ी कुछ गलत या झूठ निकले… जबकि इधर कश्मीर में हिन्दुओं का “जातीय सफ़ाया” कर दिया गया है, लेकिन उसे लेकर विश्व स्तर पर कोई हलचल नहीं है… इसे कहते हैं “राजनैतिक चेतना”… मैं इसी “चेतना” को जगाने और एकजुट करने का छोटा सा एकल प्रयास कर रहा हूँ… “धन्ना सेठ” मुझे पैसा नहीं देंगे तब भी करता रहूंगा…

काश… कहीं टिम्बकटू, मिसीसिपी या झूमरीतलैया में मेरा कोई दूरदराज का निःस्संतान चाचा-मामा-ताऊ होता जो करोड़पति होता और मरते समय अपनी सारी सम्पत्ति मेरे नाम कर जाता कि, "जा बेटा, यह सब ले जा और हिन्दुत्व के काम में लगा दे…" तो कितना अच्छा होता!!!  :) :)


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चर्च द्वारा तमिल टाइगर्स को करोड़ों की फ़ण्डिंग करने के मामले में पहले भी कई बार विभिन्न अखबारों में लेख प्रकाशित हो चुके हैं, यह बात भी काफ़ी लोग जान चुके हैं कि प्रभाकरण असल में तमिल नहीं बल्कि धर्मान्तरित ईसाई था। श्रीलंका सरकार द्वारा तमिल चीतों की धुलाई और खात्मे के बावजूद तमिलनाडु में कई ऐसे लोग एवं संस्थाएं आज भी मौजूद हैं जो तमिल टाइगर्स से सहानुभूति रखती हैं, पृथक तमिल राज्य (तमिल ईलम) के लिये भीतर ही भीतर संघर्षरत हैं। द्रविड मुनेत्र कषघम (DMK) पार्टी अपनी राजनैतिक मजबूरियों की वजह से खुले तौर पर भले ही टाइगर्स के समर्थन में नहीं बोलती हो, लेकिन यह बात सभी जानते हैं कि प्रभाकरण के करुणानिधि से कितने “मधुर” सम्बन्ध थे।

हाल ही में 2G स्पेक्ट्रम घोटाले के सिलसिले में CBI द्वारा चेन्नै में मारे गये कई छापों में से एक नाम चौंकाने वाला रहा… ये साहब हैं फ़ादर जेगथ गेस्पर जो कि “तमिल मय्यम” नामक NGO(?) चलाते हैं। केन्द्र सरकार की हाल की रिपोर्ट के अनुसार विदेशी चर्चों द्वारा सबसे अधिक पैसा दिल्ली व तमिलनाडु में भेजा गया है तथा अरबों रुपये दान में पाने वाली टॉप 15 संस्थाओं में से 13 संस्थाएं ईसाई समूह, संस्थाएं अथवा NGO हैं। तमिल मय्यम नाम के इस NGO में फ़ादर गेस्पर सर्वेसर्वा की तरह काम करता है जबकि करुणानिधि की बेटी एवं केन्द्रीय मंत्री कनिमोझि इस NGO के बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर में प्रमुख पद पर है। कनिमोझि के सरकारी और गैर-सरकारी कार्यक्रमों में अक्सर इस फ़ादर गेस्पर को कनिमोझि के पीछे-पीछे कान में फ़ुसफ़ुसाते देखा जाता था।


फ़िलीपीन्स स्थित कैथोलिक रेडियो वेरिटास तथा श्रीलंका के कैथोलिक चर्च की तमिल टाइगर्स के लिये पैसा उगाहने में प्रमुख भूमिका थी, यह फ़ादर गेस्पर भारत में तमिल टाइगर्स को पैसा मुहैया करवाने वाली एक महत्वपूर्ण कड़ी है। रेडियो वेरिटास, मंदारिन, सिंहली, तमिल, फ़िलीपोनो एवं उर्दू जैसी कई भाषाओं में रेडियो कार्यक्रम पेश करता है, इसी के जरिये संगीत, राजनीति और नेताओं से सम्बन्धों के चलते फ़ादर गेस्पर ने करोड़ों रुपये तमिल टाइगर्स की झोली में पहुँचाये।

जयललिता द्वारा संचालित “जया टीवी” ने एक संगीत कार्यक्रम के फ़ुटेज जारी किये जिसमें फ़ादर गेस्पर के साथ मंच पर तमिल टाइगर्स का प्रमुख धन उगाहीकर्ता नचिमुथु सोक्रेटीस नज़र आ रहा है। इस नचिमुथु को अमेरिका के जासूसों ने रंगे हाथों पकड़ा था, जब ये तमिल टाइगर्स को बेचने के लिये मिसाइल का सौदा करने हेतु अमेरिकी अधिकारियों को रिश्वत देने का प्रयास कर रहा था। फ़ादर गेस्पर ने कनिमोझि से चेन्नै में मरीना बीच पर आयोजित होने वाले विभिन्न “सांस्कृतिक कार्यक्रमों”(?) के लिये करोड़ों रुपये का सरकारी अनुदान भी लिया है, ज़ाहिर है कि इसमें से बड़ा हिस्सा तमिल टाइगर्स की जेब में गया। इस करोड़पति फ़ादर गेस्पर ने 1995 में 10,000 रुपये मासिक की तनख्वाह से रेडियो वेरिटास में नौकरी शुरु की थी, निम्न-मध्यम वर्गीय फ़ादर गेस्पर पहले-पहल कन्याकुमारी के सुदूर गाँवों के चर्च में पदस्थ रहा, लेकिन यह व्यक्ति आज न सिर्फ़ करोड़ों में खेल रहा है, बल्कि तमिलनाडु के सबसे भ्रष्ट करुणानिधि परिवार के नज़दीकी व्यक्तियों में से एक है… यह सब “चर्च” की महिमा है।

रेडियो वेरिटास के ईसाई धर्म प्रचार एवं इसके लिट्टे से सहानुभूति को देखते हुए श्रीलंका सरकार ने कई बार इस रेडियो स्टेशन पर आपत्ति जताई, लेकिन फ़िलीपींस से बज रहे रेडियो को वह रोकने में नाकाम रही व जफ़ना में तमिल उग्रवादी एवं भोले-भाले तमिल ग्रामीण इस रेडियो से किये गये दुष्प्रचार में आते रहे, यह फ़ादर जगथ गेस्पर इस रेडियो की नौकरी की वजह से तमिल गुरिल्लाओं में काफ़ी लोकप्रिय हुआ, व बाद में इसे तमिलनाडु में एक NGO खोलकर दे दिया गया ताकि वह वहाँ से पैसा एकत्रित कर सके। फ़र्जी NGO चलाने में “चर्च” को महारत हासिल है… इन्हीं NGO- चर्च और लिट्टे का नेटवर्क इतना जबरदस्त रहा कि फ़ादर गेस्पर ने तमिलनाडु से लिट्टे को करोड़ों रुपये का चन्दा दिलवाया। मनीला की पेरिस बैंक की शाखा से 6 लाख डॉलर का चन्दा इन्होंने श्रीलंकाई सेना के अत्याचारों की कहानियाँ सुना-सुनाकर एकत्रित किया। तमिल अनाथ बच्चों के नाम पर फ़ादर गेस्पर ने कितना पैसा एकत्रित किया है यह आज तक किसी को पता नहीं है, क्योंकि श्रीलंकाई सेना द्वारा सफ़ाया किये जाने के दौरान तमिल चीतों के कई प्रमुख नेता मारे गये थे और फ़ादर का यह राज़ उन्हीं के साथ दफ़न हो गया।

“तमिल मय्यम” नाम के इस NGO की स्थापना 2002 में हुई थी, NGO का लक्ष्य बताया गया “तमिलों की कला-संस्कृति एवं साहित्य को बढ़ावा देना”, इसे तत्काल धारा 80-G के अन्तर्गत टैक्स में छूट की सुविधा भी मिल गई। इसके ट्रस्टियों में खुद फ़ादर गेस्पर के साथ कनिमोझि, फ़ादर लोरदू, फ़ादर जेरार्ड, मिस्टर जोसफ़ ईनोक तथा फ़ादर विन्सेंट आदि शामिल हैं।

अब कुछ "संयोगवश"(?) घटित घटनाओं पर नज़र डालिये –

1) राजीव गाँधी की हत्या श्री पेरुम्बुदूर में हुई…

2) उस दिन राजीव गाँधी की सभा पेरुम्बुदूर में नहीं थी फ़िर भी अन्तिम समय में उन्हें जबरन वहाँ ले जाया गया…

3) तमिल टाइगर्स (जो कि राजीव गाँधी के हत्यारे हैं) से करुणानिधि और द्रमुक के रिश्ते सहानुभूतिपूर्ण हैं इसके बावजूद सोनिया गाँधी ने सत्ता की खातिर उनसे केन्द्र में गठबंधन बनाये रखा…

4) कनिमोझि चर्च पोषित संगठनों की करीबी हैं और ए राजा “दलित” कार्ड खेलते हुए चर्च के नज़दीकी बने हुए हैं… दोनों को ही गम्भीर आरोपों के बावजूद सोनिया गाँधी ने मंत्रिमण्डल में तब तक बनाये रखा… जब तक कि राडिया के टेप्स लीक नहीं हो गये…

5) सोनिया गाँधी की “चर्च” से नज़दीकी जगज़ाहिर है…

इन घटनाओं के “विशिष्ट संयोग”(?) को देखते हुए, मेरे दिमाग के एक कोने में “घण्टी” बज रही है… कहीं मेरे दिमाग में कोई खलल तो नहीं है? अब आगे मैं क्या कहूं…


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हालांकि खबर पुरानी है (13 दिसम्बर की), फ़िर भी अधिकाधिक लोगों तक पहुँचे इसलिये इसे यहाँ भी प्रकाशित किया जा रहा है…। पाठकों ने इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों की सम्भावित धांधली एवं उससे सम्बन्धित समस्त विस्तृत जानकारियों को मेरे ब्लॉग पर काफ़ी पहले पढ़ा है, दो अमेरिकी, एक डच वैज्ञानिक एवं भारत के श्री हरिप्रसाद ने इन मशीनों को सबके सामने “हैक” करके दिखाया था, वहीं दूसरी तरफ़ डॉ सुब्रह्मण्यम स्वामी ने अपनी पुस्तक में कानूनों की व्याख्या से यह साबित किया है कि इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों का इस्तेमाल असंवैधानिक है…

13 दिसम्बर 2010 को इंदिरा गाँधी अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर अमेरिका से आये हुए कम्प्यूटर विज्ञानी एलेक्स हेल्डरमैन को अधिकारियों ने भारत में प्रवेश देने से इंकार कर दिया और उन्हें वापस लौटती फ़्लाइट से जबरन अमेरिका भेज दिया गया, और कोई कारण भी नहीं बताया। प्रोफ़ेसर हेल्डरमैन वही व्यक्ति हैं जिन्होंने एक डच एवं भारतीय हरिप्रसाद के साथ मिलकर वोटिंग मशीनों के फ़र्जीवाड़े को उजागर किया था। एयरपोर्ट से हेल्डरमैन ने अखबारों को फ़ोन लगाया एवं उन्हें इस बात की जानकारी दी। उनके पास वैध वीज़ा एवं सारे वैधानिक कागजात होने के बावजूद अधिकारियों ने उन्हें वहाँ रोके रखा, भारत में घुसने नहीं दिया।


इस सम्बन्ध में अधिकारियों ने उन्हें कोई कारण भी नहीं बताया, सिर्फ़ कहा कि “ऐसे निर्देश”(?) हैं कि आपको भारत में प्रवेश न दिया जाये…। हेल्डरमैन गुजरात मे आयोजित होने वाली एक तकनीकी कान्फ़्रेंस में हिस्सा लेने आये थे…

हेल्डरमैन ने अपने ब्लॉग में लिखा है कि – चुनाव आयोग को कई बार इन मशीनों की गड़बड़ियों के बारे में बताने और चेताने के बावजूद, आयोग ने कभी भी उनका पक्ष सुनना मंजूर नहीं किया, श्री हरिप्रसाद के साथ सभी लोग चुनाव आयोग से पूर्ण सहयोग करने एवं किसी उच्च स्तरीय तकनीकी समिति के समक्ष अपने प्रयोग करके दिखाना चाहते थे, लेकिन उसकी भी अनुमति नहीं दी गई, ऐसा क्यों?

सवाल उठता है कि चुनाव आयोग एवं सरकार को जब पूरा भरोसा(?) है कि वोटिंग मशीनें एकदम सुरक्षित हैं तब हरिप्रसाद को गिरफ़्तार करके मुम्बई ले जाने, प्रोफ़ेसर को जबरन वापस भेजने जैसी, “आपातकालीन” गिरी हुई हरकतें क्यों की जा रही हैं? यदि सरकार पाक-साफ़ है तो वह क्यों नहीं एक स्वतन्त्र पैनल का गठन करके दूध का दूध और पानी का पानी कर देती? इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों के मतदान का “कागज़ी रिकॉर्ड भी” होना चाहिये – जैसी मामूली माँग भी सरकार क्यों नहीं मान रही?

कल चिदम्बरम साहब कह रहे थे कि कांग्रेस अगले दस साल और शासन करेगी, इस "विश्वास" के पीछे कहीं यही कारण तो नहीं? यही चिदम्बरम साहब बड़ी ही संदेहास्पद परिस्थियों में (यहाँ देखें…) अपनी लोकसभा सीट जीत पाये थे…। आप तैयार रहिये, 2G स्पेक्ट्रम घोटाले से भी बड़ा (अर्थात वोटिंग मशीनों के फ़र्जीवाड़े द्वारा समूची सरकार हथियाने जैसा) घोटाला कभी न कभी सामने आ सकता है… एक ईमानदार वैज्ञानिक वैधानिक तरीके से इस देश में नहीं घुस सकता, लेकिन डेविड हेडली जब चाहे तब यहाँ के "बिकाऊ" अधिकारियों को बोटियाँ चटाकर पूरे भारत में घूम-फ़िर सकता है… वामपंथियों की मेहरबानी से "बांग्लादेशी मासूम", दिल्ली समेत पूरे देश में दनदना सकते हैं…। हे भारतवासियों तुम धन्य हो, धन्य हो…

इस सम्बन्ध में अधिक जानकारी के लिये इस मुद्दे से जुड़े मेरे पुराने लेख अवश्य पढ़ें…

1) वोटिंग मशीनों का “चावलाई”करण (मई 2009)

2) वोटिंग मशीनों का फ़र्जीवाड़ा (जून 2009)

3) हरिप्रसाद की गिरफ़्तारी (अगस्त 2010)



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भाग-1 (यहाँ पढ़ें) से आगे जारी…

मेरा प्रस्ताव यह है कि कुछ लोग (शुरुआत में लगभग 500 व्यक्ति) आर्थिक सहयोग करें एवं एक वेबसाइट की शुरुआत की जाये जो कि पूरी तरह से हिन्दुत्व एवं राष्ट्रवादी विचारों के लिये प्रतिबद्ध हो… इस दिशा में मैंने मोटे तौर पर खर्चों का अनुमान लगाया है, जो कि निम्नानुसार है –

1) वेबसाइट को बनाने एवं स्पेस-सर्वर-डोमेन इत्यादि का खर्च एवं मेंटेनेंस
(मासिक खर्च लगभग 10000 रुपये)

चूंकि मैं तकनीकी जानकार नहीं हूं इसलिये मुझे बताया गया है कि वर्डप्रेस की बनीबनाई स्क्रिप्ट से शुरुआत करके एक अच्छी वेबसाइट बनाई जा सकती है जिसमें समय और श्रम भी कम लगेगा… यह बिन्दु मैं तकनीकी व्यक्तियों पर छोड़ दूंगा वे जैसे चाहें इस वेबसाइट का गठन कर सकते हैं। इस सम्बन्ध में मुझे दो ऐसे तकनीकी व्यक्तियों की आवश्यकता होगी जो इस वेबसाइट पर आने वाली किसी भी तकनीकी समस्या को तुरन्त हल करने में सक्षम हों (दो व्यक्ति इसलिये क्योंकि एक व्यक्ति यदि किसी काम में उलझा हुआ हो तो दूसरा यह काम करेगा), ज़ाहिर है कि मैं सतत इन दोनों तकनीकी व्यक्तियों के सम्पर्क में रहूंगा तथा वेबसाइट के “एडमिनिस्ट्रेटर” के रुप में हम तीनों मिलकर काम करेंगे… उचित फ़ण्ड एकत्रित होने पर इस कार्य हेतु उक्त दोनों व्यक्तियों को “मानदेय” का भुगतान भी किया जा सकेगा…।

2) चूंकि इस वेबसाइट का कार्यकारी मुख्यालय उज्जैन में ही होगा। समस्त डाटा अपडेट करने, सूचनाओं का संकलन करने, उन्हें हिन्दी में टाइप करके वेबसाइट पर चढ़ाने का कार्य यहीं मेरे निर्देशन में किया जायेगा… अतः स्थानीय स्तर पर मुझे दो हिन्दी टाइपिस्टों (जिसमें से एक अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद करने में भी सक्षम हो) की जरुरत होगी…। एक हिन्दी टाइपिस्ट – मासिक 6 से 8 हजार, एवं एक अनुवादक-सह-टाइपिस्ट, मासिक 12 से 15 हजार (दोनों खर्च अनुमानित) होगा… (कुल 20 से 25 हजार के बीच)

3) दो कमरों का छोटा सा ऑफ़िस – किराया 2000 रुपये (शुरुआती अनुमानित)

4) इंटरनेट – बेसिक टेलीफ़ोन खर्च – लगभग 1500 रुपये (शुरुआती अनुमानित)

5) मोबाइल खर्च – 1500 से 2000 रुपये मासिक (शुरुआती अनुमानित)

6) बिजली, स्थापना व्यय एवं अन्य खर्चे – मासिक 3000 रुपये

7) कम से कम दो अंग्रेजी व हिन्दी अखबार, कुछ प्रमुख पत्रिकाएं व अन्य हिन्दुत्ववादी साहित्य – मासिक खर्च लगभग 500-700 रुपये

8) इसके अलावा यात्रा इत्यादि सम्बन्धी अन्य छोटे-मोटे खर्च, पत्रकारों-लेखकों अथवा सूचना देने वालों को मानदेय का भुगतान वगैरह…

9) आये हुए पैसों से एक “आकस्मिक खर्च फ़ण्ड” भी स्थापित किया जायेगा, किसी कानूनी दांवपेंच अथवा नोटिस इत्यादि के जवाब देने हेतु वकील की फ़ीस, सूचना के अधिकार का उपयोग करके जानकारियाँ हासिल करने, वेबसाइट के कानूनी रजिस्ट्रेशन इत्यादि, तथा किसी भी आकस्मिक तकनीकी समाधान, उपकरण खराबी इत्यादि के लिये…

अर्थात यदि मोटे तौर पर देखा जाये तो एक सामान्य वेबसाइट चलाने के लिये अनुमानतः 50,000 रुपये मासिक खर्च आयेगा, अर्थात 6 लाख रुपए सालाना… मेरा प्रस्ताव यह है कि हिन्दुत्व के उत्थान एवं राष्ट्रवादी विचारधारा के प्रसार के लिये यदि 500 व्यक्ति भी अपनी साल भर की कमाई में से एक दिन की कमाई इस कार्य के लिये देने का वादा करें (और निभायें भी) तो एक वेबसाइट शुरु की जा सकती है… दूसरा तरीका यह भी है कि 100 रुपये प्रतिमाह (अर्थात 1200 रुपये साल) भी यदि 500 लोग दें तब भी यह आँकड़ा 6 लाख प्रतिवर्ष हो जाता है। मुझे नहीं लगता कि 100 रुपये प्रतिमाह कोई बड़ी रकम है, बशर्ते इस काम के लिये शुरुआत में 500 लोग राजी हों। ज़ाहिर है कि उस वेबसाइट पर मैं उसी परिश्रम से काम करने के लिये मैं तैयार हूं जिस परिश्रम और जुनून से अपने पिछले चार साल से अपने ब्लॉग पर करता आ रहा हूं…।

इस वेबसाइट पर मेरा काम मुख्यतः “सामग्री” (Content) से सम्बन्धित होगा, खबरें एकत्रित करना, उन्हें संकलित करना, टाइपिस्टों से हिन्दी में टाइप करना और करवाना, उन लेखों-समाचारों को उनकी योग्यतानुसार वेबसाइट पर अपलोड करना, सूचनाएं देने वाले मित्रों-पत्रकारों-ब्लॉगरों से सतत सम्पर्क बनाये रखना… आदि-आदि। ऐसे कामों में कभी भी सारे अधिकार आपस में बाँटकर कार्य करना चाहिये, इसलिये इस काम में मेरा साथ देने के लिये दो अन्य एडमिनिस्ट्रेटर होंगे जिनके पास साइट के अधिकार व पासवर्ड इत्यादि होंगे, कारण – हम सभी घर, परिवार वाले सामान्य लोग हैं, किसी के पास कोई व्यक्तिगत कार्य, शादी-ब्याह में उपस्थिति, यात्रा हेतु शहर से बाहर जाना, बीमारी-दुर्घटना इत्यादि के समय वेबसाइट का काम बन्द नहीं होना चाहिए अतः एक से अधिक व्यक्ति के पास समाचारों के प्रकाशन का अधिकार होना चाहिये और यही सिद्धान्त इस वेबसाइट पर भी लागू होगा…। इसी प्रकार आर्थिक लेनदेन, विभिन्न भुगतानों, पत्रकारों-लेखकों अथवा सूचना देने वालों को मानदेय का भुगतान, उपकरण (मोबाइल-कम्प्यूटर-लेपटॉप) खरीदी हेतु भुगतान इत्यादि करने के लिये भी मेरे सहित एक अन्य व्यक्ति आधिकारिक होगा…

इस काम में सबसे अहम रोल होगा वेबसाइट बनाने और चलाने वाले दो तकनीकी व्यक्तियों का, हो सकता है कि मैंने जो 10,000 रुपये प्रतिमाह का अनुमान लगाया है वह कम या ज्यादा भी हो…। हालांकि एक तकनीकी मित्र इस प्रोजेक्ट में पूरी मदद निशुल्क करने के लिये तैयार हैं, परन्तु डाटा लॉस, वायरस आक्रमण, हैकिंग खतरों अथवा सर्वर बदलने की स्थिति में डाटा ट्रांसफ़र जैसे कार्यों के लिये इन्हें मानदेय भी दिया जायेगा… तात्पर्य यह कि मासिक 50,000 रुपये का अनुमान थोड़ा घट-बढ़ भी सकता है। तीन अलग-अलग समितियाँ (सिर्फ़ 2 या 3 व्यक्तियों की) बनाई जायेंगी… एक तकनीकी मामला देखेगी, दूसरी सामग्री प्रकाशन का व तीसरी आर्थिक मामला देखेगी।

तात्पर्य यह कि मैं चाहता हूं कि यह वेबसाइट पूरी तरह से आम हिन्दू की, आम जनता की आवाज़ बने, इसीलिये इसे अधिकतम लोगों के आर्थिक सहयोग से ही चलाना उचित होगा, हो सकता है कि कोशिश करने पर कोई उद्योगपति अथवा कोई संगठन इसे प्रायोजित करने को तैयार भी हो जाये, लेकिन फ़िर वे सामग्री के प्रकाशन के लिये “अपनी शर्तें” थोपेंगे, जो मुझे मंजूर नहीं होगा… यदि बिना शर्त कोई उद्योगपति अथवा संगठन इस वेबसाईट को अगले 5 साल तक आंशिक या पूर्ण रुप से प्रायोजित करने को तैयार हो तो उसका स्वागत है। इसलिये पहला लक्ष्य है 500 ऐसे व्यक्ति खोजना जो 100 रुपये प्रतिमाह देने के इच्छुक हों, इसके बाद ही तो बात आगे बढ़ेगी…। जो व्यक्ति थोड़ी अधिक आर्थिक सामर्थ्य रखते हैं, वे चाहें तो शुरुआत में “एकमुश्त राशि” का बन्दोबस्त कर सकते हैं, यह एकमुश्त राशि स्थापना के शुरुआती बड़े खर्चों, जैसे दो कम्प्यूटर अथवा एक कम्प्यूटर/एक लेपटाप, फ़ोन लाइन, फ़र्नीचर इत्यादि…खरीदने (फ़ैक्स-स्कैनर-फ़ोटोकॉपी मशीन मेरे पास पहले से ही है वह काम में आ जायेगी) में समाहित हो जायेगी।

अब बात आती है कि आखिर इस वेबसाइट का मुख्य कार्य एवं उद्देश्य क्या होंगे? ज़ाहिर है कि मीडिया से ब्लैक आउट कर दी गई ऐसी हिन्दू-विरोधी खबरों को प्रमुखता से स्थान देना जिन्हें छापने या साइट पर देने में सेकुलर चैनलों को शर्म आती है, कई पुरानी ऐतिहासिक पुस्तकों को PDF में संजोकर रखना, कई नए-पुराने अंग्रेजी लेखों का हिन्दी में अनुवाद करके हिन्दुत्व से सम्बन्धी सामग्री को अधिक से अधिक मात्रा में नेट पर चढ़ाना इत्यादि…। ज़ाहिर है कि यह कोई एक दिन या एक माह में होने वाला काम नहीं है… परन्तु आरम्भिक लक्ष्य यह है कि आगामी तीन वर्षों में इस वेबसाईट को ऐसे मुकाम पर पहुँचाना कि जब भी किसी को हिन्दुत्व-राष्ट्रवाद-हिन्दू धर्म-भारतीय संस्कृति इत्यादि के बारे में कुछ खोजना हो तो तत्काल सिर्फ़ इसी वेबसाइट का नाम ही याद आये… गूगल सर्च में यह वेबसाइट अधिक से अधिक ऊपर आये, ताकि हिन्दुत्व का प्रचार बेहतर तरीके से हो सके…।

जो लोग इंटरनेट पर लगातार बने रहते हैं, उन्हें पता है कि ईसाई धर्म, धर्म परिवर्तन, बाइबल अथवा इस्लामिक परम्पराएं, जेहाद, कुरान इत्यादि पर लाखों वेबसाइटें मौजूद हैं, परन्तु यदि हिन्दी सामग्री वाली हिन्दुत्व की साइट खोजने जायेंगे तो चुनिंदा ही मिलेंगी… अतः इस प्रस्तावित साइट का लक्ष्य “हिन्दुओं को हिन्दू बनाना” भी होगा…

अधिक लम्बा न खींचते हुए अन्त में इतना ही कहना चाहूंगा कि अभी यह प्रस्ताव आरम्भिक चरण में है, इस पर चर्चाएं हों, आपसी मीटिंग हों तथा गम्भीरतापूर्वक विचार-विमर्श करके इसे शुरु किया जाये तो निश्चित रुप से यह अपने उद्देश्य को प्राप्त करेगी। जो भी सज्जन इस प्रस्ताव से सहमत हों एवं आर्थिक सहयोग देना चाहते हों वे पहले निश्चित मन बना लें, आर्थिक आकलन करें और मुझे ई-मेल द्वारा अपनी स्वीकृति भेजें कि क्या वे अपनी वार्षिक कमाई में से एक दिन की कमाई (अथवा 1200 रुपये प्रतिवर्ष) इस कार्य के लिये दे सकते हैं? ऐसा न हो कि जोश-जोश में सहमति दे दी जाये और बाद में मुझे शर्मिन्दा होना पड़े…। इसीलिये मैं बगैर किसी जल्दबाजी के शान्ति से इस वेबसाइट को शुरु करना चाहता हूँ, यदि आपका उत्तर “हाँ” में हो तो मुझे अपना पूरा नाम, पता, फ़ोन नम्बर इत्यादि भेजें… जब भी यह प्रस्ताव ज़मीनी आकार लेगा, मैं उनसे सम्पर्क करूंगा…। जब कारवां चल पड़ेगा तो फ़िर इस वेबसाइट को भविष्य में प्रकाशन के क्षेत्र में भी उतारा जा सकता है, फ़िलहाल शुरुआती दो वर्षों का लक्ष्य इस वेबसाइट को “हिन्दी” सामग्री से लबालब भरना है, जिसमें छद्म धर्मनिरपेक्षता से सम्बन्धित समाचार, कांग्रेसियों-वामपंथियों के पुराने-नये पाप कर्मों की जानकारी, हिन्दू धर्म और भारतीय संस्कृति से सम्बन्धित ढेर सारी सामग्री हो, ताकि हिन्दी क्षेत्र के जो लोग अंग्रेजी में कमजोर हैं वे भी पढ़ें और जानें कि हिन्दू धर्म और संस्कृति के खिलाफ़ “उच्च स्तर पर” कैसी-कैसी साजिशें चल रही हैं…

यदि यह वेबसाइट योजनानुरुप आकार लेती है तो यह आम जनता के सहयोग से चलने वाला छोटा ही सही, परन्तु पहला मीडिया उपक्रम होगा… प्रस्ताव पर गम्भीरतापूर्वक विचार करें… फ़िर भी यदि यह आकार नहीं लेती तब भी कोई बात नहीं, मेरा ब्लॉग जैसा चल रहा है वह तो चलता ही रहेगा… ध्यान रहे, इस सम्बन्ध में “सहमति” के जो भी पत्राचार हो वह ईमेल अथवा फ़ोन पर ही हो… टिप्पणी के माध्यम से नहीं…

मेरा ईमेल आईडी है suresh.chiplunkar @gmail.com
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कुछ दिनों पूर्व ही मेरे ब्लॉग के 1000 सब्स्क्राइबर्स हो गये, अर्थात पूरे भारत और विदेशों में कुल मिलाकर 1000 से अधिक लोग मेरा ब्लॉग सीधे अपने ई-मेल पर प्राप्त करेंगे… ज़ाहिर है कि जहाँ मेरे लिये पाठकों का यह स्नेह बल देने वाला है, वहीं दूसरी ओर जिम्मेदारी बढ़ाने वाला भी है। इससे सम्बन्धित पोस्ट में मैंने ब्लॉगिंग को विराम देने अथवा एक अवकाश लेने सम्बन्धी बात कही थी, जिसके जवाब में मुझे कई ई-मेल एवं फ़ोन कॉल्स प्राप्त हुए, जिसमें कई मित्रों एवं स्नेहियों ने ब्लॉगिंग को जारी रखने सम्बन्धी अनुरोध किया। आगामी 26 जनवरी 2011 को इस ब्लॉग के चार वर्ष पूर्ण हो जायेंगे, इस अवसर पर मैं एक प्रोजेक्ट आपके सामने रखने का प्रयास कर रहा हूं…

मैंने उस पोस्ट में समय एवं धन सम्बन्धी कमी का ज़िक्र किया था, हालांकि मेरी भी तीव्र इच्छा यह थी कि इस राष्ट्रवादी कार्य को न सिर्फ़ जारी रखा जाये बल्कि और विस्तार किया जाये… परन्तु संकोचवश इस प्रस्ताव को मैंने किसी के समक्ष ज़ाहिर नहीं किया, लेकिन अवकाश लेने सम्बन्धी उस पोस्ट के बाद जिस प्रकार की प्रतिक्रिया मिली, उससे मुझे विश्वास हुआ कि यदि हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद के प्रचार-प्रसार के लिये जनता के सहयोग से ही कोई बड़ा प्रोजेक्ट चलाया जाये तो वह निश्चित रुप से सफ़ल होगा… इस विचार ने ही मेरे उस प्रोजेक्ट को अमलीजामा पहनाने के लिये सभी पाठकों के समक्ष रखने की हिम्मत दी।

प्रस्तावना बहुत हुई… अब आते हैं उस प्रोजेक्ट के मूल बिन्दुओं पर –

सबसे पहले मैं उन सभी सहयोगकर्ताओं को धन्यवाद देना चाहूंगा जिन्होंने पिछले एक वर्ष में अपने आर्थिक सहयोग से मेरे इस ब्लॉग को चलाये रखने में मदद की। अब तक मैंने यह बात किसी को बताई नहीं थी, परन्तु अब खुलकर बिना झिझके यह बात बताने का समय आ गया है, कि दरअसल मैं पिछले साल ही इस ब्लॉग को बन्द करके अपने व्यवसाय में अधिक समय देने का मन बना चुका था, परन्तु मित्रों की सलाह पर मैंने अपने ब्लॉग में DONATE सम्बन्धी पे-पाल साइट का बटन एवं नेट बैंकिंग का खाता क्रमांक दिया (दायें साइड बार में सबसे ऊपर), ताकि कुछ आर्थिक सहयोग मिलता रहे और यह ब्लॉग चलता रहे। वह DONATE का बटन एवं बैंक का खाता क्रमांक लगाने का भी एक वर्ष पूर्ण होने को है और मुझे यह बताते हुए खुशी है कि इस एक वर्ष के दौरान मेरे चाहने वालों ने कुल 20,000 रुपये भेजे। मैं सहयोगकर्ताओं में से नाम किसी का भी नहीं लूंगा, परन्तु मैं सभी का आभारी हूं… (इसमें से भी एक सज्जन ने अकेले ही 5000 रुपये का चेक मेरे घर आकर दिया), एक अन्य सज्जन ने ब्लॉग को डॉट कॉम का स्वरूप दिया एवं इसका जो भी वार्षिक शुल्क लगता है वह चुका दिया, कुछ लोगों ने सीधे बैंक खाते में पैसा ट्रांसफ़र किया, जबकि कुछ अन्य ने अपना नाम गुप्त रखते हुए जितना सहयोग कर सकते थे, किया। इस आर्थिक सहयोग से मैं वाकई चकित भी हूं और अभिभूत भी…। प्राप्त हुए इन 20,000 रुपयों से मेरा वर्ष भर का इंटरनेट का खर्च भी निकला एवं मुझे कुछ पुस्तकें खरीदने का सुअवसर भी प्राप्त हुआ (जो कि ज़ाहिर है कि यदि मुझे जेब से खर्च करके खरीदना होतीं तो नहीं ले पाता…)।

मैं जानता हूँ कि कुछ पाठक क्या सोच रहे होंगे, परन्तु आज इस बात को स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि मैंने आज तक संघ या भाजपा से किसी भी प्रकार की कोई आर्थिक मदद नहीं प्राप्त की है, लोग भले ही यह आरोप लगाते रहे हों कि मैं हिन्दुत्ववादी संगठनों से पैसा लेकर लेख लिखता हूं, लेकिन मेरी आत्मा गवाह है और मेरा क्षुद्र सा बैंक बैलेंस सबूत है, कि मैंने आज तक भाजपा या अन्य किसी संगठन से कोई पैसा नहीं लिया… पिछले चार वर्ष से सिर्फ़ और सिर्फ़ “विचारधारा के प्रसार” के लिये अपने श्रम और समय को स्वाहा किया है। जिस प्रकार किसी महिला से उसकी आयु नहीं पूछनी चाहिये उसी प्रकार किसी पुरुष से उसकी आय नहीं पूछनी चाहिये, इसीलिये मैं सिर्फ़ इतना बताना चाहूंगा कि मेरे “तथाकथित सायबर कैफ़े” के सिर्फ़ दो कम्प्यूटरों (जिसमें से एक पर तो मैं ही ब्लॉगिंग के लिये कब्जा किये रहता हूं) एवं एक फ़ोटोकॉपी मशीन पर एक अकेला व्यक्ति 10 घण्टे काम करके जितना कमा सकता है उतना ही मैं कमाता हूं, इस बात के गवाह कई ब्लॉगर्स एवं कई पाठक हैं जो मेरे कार्यस्थल पर आकर मुझसे रूबरु मिल चुके हैं।

इसलिये जब 1000 सब्स्क्राइबर्स होने के उपलक्ष्य में लिखी गई पोस्ट के दौरान यह विचार बना कि हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद के प्रचार-प्रसार के लिये एक सक्रिय और समर्पित वेबसाइट हिन्दी में होना बेहद आवश्यक हो गया है। आज के दौर में जबकि हिन्दुत्व और राष्ट्रवाद पर चौतरफ़ा हमले हो रहे हों, देश की स्थिति बद से बदतर होती जा रही हो, सेकुलर सूचनाओं का विस्फ़ोट हो रहा है, हिन्दू धर्म के खिलाफ़ साजिशें रची जा रही हैं… तब हिन्दुओं के लिये एक सतत चलने और जल्दी-जल्दी अपडेट होने वाली एक विस्तृत वेबसाईट की सख्त आवश्यकता है। जिस प्रकार से मीडिया 6M (मार्क्स, मुल्ला, मिशनरी, मैकाले, मार्केट और माइनों) के हाथों में खेल रहा है, तब इंटरनेट ही एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा इनके कुचक्र को तोड़ने का प्रयास किया जा सकता है।

विगत चार साल से मैंने अपने ब्लॉग के माध्यम से अपने स्तर और अपने सामर्थ्य के अनुसार हिन्दुत्व जागरण करने की छोटी सी कोशिश की है, परन्तु मेरी भी कुछ सीमाएं हैं, आर्थिक संसाधन-मानव संसाधनों की कमी की वजह से यह कार्य करना मेरे अकेले के बूते से बाहर है… अतः जो प्रस्ताव मैं पेश करने जा रहा हूं उस पर सभी पाठक गम्भीरतापूर्वक विचार करें और अपनी प्रतिक्रिया मुझे ईमेल पर दें, न कि यहाँ टिप्पणियों के माध्यम से…

एक “हिन्दू मीडिया समूह” (जिसका एकमात्र लक्ष्य हिन्दू जागरण एवं सेकुलरों-वामपंथियों को बेनकाब करना हो) का निर्माण करने की दिशा में इसे पहला कदम माना जा सकता है। हालांकि पूरे तौर पर हिन्दू हित की बात करने वाले चन्द ही अखबार बचे हैं जैसे पायोनियर, ऑर्गेनाइज़र, पांचजन्य, स्वदेश अथवा कभीकभार जागरण… लेकिन न तो इन अखबारों की पहुँच व्यापक जनसमूह तक है और न ही युवा पीढ़ी जो इंटरनेट की व्यसनी है उस वर्ग तक इनकी पहुँच है। इधर पिछले कुछ वर्षों में कुछेक वेबसाइटें इस दिशा में काम करने के लिये शुरु की गईं, परन्तु या तो वे धनाभाव के कारण जारी न रह सकीं, अथवा “पोलिटिकली करेक्ट” बनने को अभिशप्त हो गईं अथवा उनका “सामग्री” (कण्टेण्ट) का स्तर वैसा नहीं रहा जिसे हम “हिन्दूवादी” कह सकें…

(भाग-2 में जारी रहेगा…)
(भाग-2 में कार्ययोजना के बारे में विस्तार से…)
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कुछ दिनों पहले, मध्यप्रदेश को “अंधेरे में धकेलने वाले इंजीनियर पूर्व मुख्यमंत्री” श्री दिग्विजय सिंह के “श्रीमुख” से कुछ शब्द उचरे, जिसमें उन्होंने कहा कि शहीद हेमन्त करकरे को हिन्दू संगठनों की तरफ़ से जान का खतरा था, और यह बात खुद हेमन्त करकरे ने उन्हें मृत्यु से दो घण्टे पहले फ़ोन करके बताई थी…। अब आप सोच लीजिये कि दिग्विजय सिंह का दर्जा कितना महान है… यानी अपनी जान पर खतरे और धमकियों के बारे में, पुलिस का एक उच्च अधिकारी इस बात को, न तो अपने विभाग के अधिकारियों, न ही महाराष्ट्र के गृहमंत्री, न ही देश के गृहमंत्री और न ही प्रधानमंत्री को बताता है… वरन तड़ से सीधे दिग्विजय सिंह को फ़ोन लगाता है। इस हिसाब से तो दिग्विजय सिंह साहब, श्रीमती कविता करकरे से भी ज्यादा महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि सामान्यतः इस प्रकार की बातें व्यक्ति सबसे पहले अपनी पत्नी से शेयर करता है…

अब एक वीडियो देखिये जिसमें एक जोकरनुमा मसखरा जिसका नाम ज़ैद हामिद है, वह कल्पना की कैसी ऊँची उड़ाने भर रहा है… इस वीडियो मे ज़ैद हामिद नामक यह विदूषक (जिसे पाकिस्तान के चैनल “विचारक” बताते हैं…) फ़रमाता है कि – अज़मल कसाब एक काल्पनिक नाम है, और जिस व्यक्ति को मुम्बई पुलिस ने 26/11 को गिरफ़्तार किया है उसका नाम “अमर सिंह” है और जो आतंकवादी मारा गया है उसका नाम हीरालाल है… यानी कि 26/11 का हमला हिन्दू संगठनों की मिलीभगत से हुआ है… इस वीडियो में यह जोकर यह भी कहता है कि इसे यह सूचना “भारत के खुफ़िया विभाग और पाकिस्तान से सहानुभूति रखने वाले लोगों से हासिल हुई है…” (यह काफ़ी पहले स्पष्ट हो चुका है कि पाकिस्तान के थिंक टैंक के “करीबी लोग” भारत में कौन-कौन हैं…)।



डायरेक्ट लिंक :- http://www.youtube.com/watch?v=0xbrCaTebL0&feature=player_embedded

26/11 हमले के तुरन्त बाद पाकिस्तान से भारत तक फ़ैली हुई यह “सेकुलर”(?) गैंग इस हमले को “इस्लामी हमला” मानने से इंकार करने में जुट गई थी। अज़ीज़ बर्नी नामक एक उर्दू लेखक हैं, इन्होंने 26/11 “संघ का षडयन्त्र” नामक की इस कथित “थ्योरी” को एक पुस्तक लिखकर हवा दी, ज़ाहिर है कि एक अल्पसंख्यक द्वारा लिखी गई ऐसी किसी भी पुस्तक के विमोचन में कोई न कोई “सेकुलर” अवश्य उपस्थित होगा ही, सो दिग्विजय सिंह आगे रहे (चित्र देखिये…) उस पुस्तक विमोचन के “हैंग-ओवर” का ही असर था कि ठाकुर साहब ने अपने “पाकिस्तानी मित्र” को सपोर्ट करने के लिये यह बयान दे मारा…।



हालांकि फ़ोन रिकॉर्ड्स से यह बात साफ़ हो चुकी है कि दिग्विजय सिंह की करकरे से कोई बात उस दिन हुई ही नहीं थी… लेकिन "सेकुलर्स" लोगों की फ़ितरत होती है पहले झूठ बोलने की, फ़िर पकड़ा जाने के बावजूद न मानने की…। जिस प्रकार पहले पाकिस्तान ने अज़मल कसाब को पाकिस्तानी मानने से ही इंकार कर दिया, फ़िर सबूत दिए तो मान लिया, करगिल में अपने सैनिकों को पाकिस्तानी सैनिक मानने से ही इंकार कर दिया, फ़िर कुछ सालों बाद बेशर्मी से न सिर्फ़ मान लिया बल्कि उनके नाम सेना की वेबसाइट पर भी चढ़ा दिये…अभी बाबरी ढाँचे को "एक लुटेरे द्वारा किया गया अतिक्रमण" नहीं मान रहे, फ़िर बाद में मान जायेंगे… 

आतंकवादियों तथा इस्लामी उग्रवादियों को बचाने और उनके पक्ष में आवाज़ उठाने के लिये विश्वव्यापी स्तर पर एक गठजोड़ बना हुआ है। किसी भी आतंकवादी घटना या पुलिस मुठभेड़ के बाद सेकुलरों और देशद्रोहियों की यह गैंग एक सुर में उसे फ़र्जी करार देने में जुट जाती है… आईये सिलसिलेवार तरीके से कुछ घटनाओं और संदिग्ध बयानों तथा कार्रवाईयों को देखें…

1) अमेरिका पर हुए 9/11 के हमले के बाद इस गैंग ने यह प्रचार करना शुरु कर दिया था कि यह हमला अमेरिका ने खुद करवाया है, इस विषय पर किताबें लिखी गईं, सेमिनार आयोजित किये गये, विभिन्न उर्दू अखबारों और ब्लॉग्स पर इस सम्बन्ध में बेतुकी और मूर्खतापूर्ण बातें कही गईं… जिनमें से अधिकतर का सार यह था कि अमेरिका ने ही अपने देश के 3000 से अधिक नागरिकों को मार दिया, सिर्फ़ इसलिये कि उसे अफ़गानिस्तान और ईराक पर हमला करना था। यानी जो देश अपने एक नागरिक या एक सैनिक की मौत का बदला लेने के लिये पूरी दुनिया हिला डालता है, वह खुद अपने 3000 नागरिकों की हत्या कर देगा…

2) दिल्ली में शहीद मोहनचन्द्र शर्मा द्वारा बाटला हाउस में कुछ आतंकवादियों का एनकाउंटर किया गया, तो भारत में उपस्थित इस गैंग के लोग चारों तरफ़ से पुलिस-सरकार और मीडिया पर टूट पड़े, जिनका साथ कांग्रेस और सपा ने दिया… बाद में यह सिद्ध हो गया कि वे लड़के आतंकवादी ही थे और उनका आज़मगढ़ से सम्बन्ध था तो तड़ से दिग्विजय सिंह आज़मगढ़ के दौरे पर चले गये और मरहम(?) लगाने का प्रयास करने लगे… ये बात और है कि मुस्लिमों ने ही दिग्गी राजा को वहाँ से भागने पर मजबूर कर दिया था…

3) 26/11 के हमले के तुरन्त बाद अब्दुल रहमान अन्तुले ने भी दिग्विजय सिंह से मिलता-जुलता बयान दिया था कि इस हमले में हिन्दूवादी संगठनों का हाथ हो सकता है, जबकि इस बात को पूरी तरह से गोल कर दिया गया था कि ताज होटल में मौजूद एक सऊदी अरब के नागरिक को बचाने के लिये खुद महाराष्ट्र के मंत्री वहाँ क्यों घुसे? जबकि पुलिस उन्हें रोकने की कोशिश कर रही थी… असल में उस “सेकुलर मंत्री” को डर था कि कहीं पुलिस और आतंकवादियों की “क्रॉस-फ़ायरिंग” मे उसके “अज़ीज़ मेहमान” की जान न चली जाये…

4) आदतन अपराधी सोहराबुद्दीन के एनकाउण्टर के मामले पर तो इतना बवाल मचाया गया कि नरेन्द्र मोदी को बदनाम करने के लिये मामला जानबूझकर मानवाधिकार संगठनों और न्यायालय तक ले जाया गया…

5) इस गैंग की एक माननीय सदस्या तीस्ता सीतलवाड, फ़र्जी दस्तावेजों और अपने ही सहयोगियों से धोखाधड़ी के आरोप में सर्वोच्च न्यायालय की लताड़ खाती रहती हैं, लेकिन उन्हें शर्म आना तो दूर, NDTV उनके बयान अभी भी दिखाता रहता है…

6) महाराष्ट्र में अबू आज़मी नामक सेकुलर ने कुछ दिन पहले ही विधानसभा में कहा कि “संघ के लोग अल-कायदा से भी अधिक खतरनाक हैं…” इसी अबू आज़मी ने काफ़ी समय पहले “भारत माता एक डायन का नाम है…” भी कहा था…। इसी अबू आज़मी को राज ठाकरे की मनसे ने विधानसभा के भीतर थप्पड़ से नवाज़ा था…

7) फ़िर अज़ीज़ बर्नी साहब एक “काल्पनिक पुस्तक” लेकर आते हैं, दिग्विजय सिंह उसके विमोचन समारोह में मौजूद रहते हैं, बाहर आकर करकरे सम्बन्धी बयान देते हैं और खामखा का बखेड़ा खड़ा करते हैं जिससे पाकिस्तान को फ़ायदा पहुँचे…।

एक बात तो कोई नासमझ भी बता सकता है कि जो कांग्रेसी छींकने और जम्हाई लेने के लिये मुँह खोलने से पहले हाईकमान की अनुमति का इंतज़ार करते हों, वह ऐसा “दुष्प्रभावकारी बयान” सोनिया अम्मा से पूछे बिना कैसे दे सकते हैं? ज़ाहिर है कि असम और पश्चिम बंगाल के आगामी चुनावों को देखते हुए “ऊपर” से ऐसा बयान जारी करने के निर्देश हुए, फ़िर बदली हवा को देखते हुए तुरन्त दिग्गी राजा से पल्ला झाड़ने का बयान भी जारी हो गया… लेकिन देश की आज़ादी (यानी टुकड़े करके बँटवारा करने) में प्रमुख भूमिका निभाने वाली सौ साल पुरानी “सेकुलरिज़्मग्रस्त” पार्टी को “जो संदेश” - “जिन लोगों तक” पहुँचाना था, वह पहुँचाने में सफ़ल रही… यह बात विकीलीक्स भी मान चुका है कि कांग्रेस पार्टी वोटों (खासकर अल्पसंख्यक वोटों) के लिये किसी भी निचले स्तर तक जा सकती है… फ़िर दिग्विजय सिंह की पीड़ा और बेताबी भी समझी जा सकती है कि मध्यप्रदेश में उनकी छवि वैसे भी “अंधेरा करने वाले और ऊबड़-खाबड़ सड़कों वाले” नेता की है, केन्द्र में उनके पास दिखावे को महासचिव का पद जरुर है लेकिन काम कुछ खास है नहीं…फ़िर राष्ट्रीय परिदृश्य से एक अन्य ठाकुर अमर सिंह के गायब हो जाने के बाद वह जगह खाली है, जिसे दिग्गी राजा भरना चाहते हैं… सो उनके ऐसे बयान आते ही रहेंगे…

अतः अज़मल कसाब को अमर सिंह बताने वाला भले ही ज़ैद हामिद हो… परन्तु यह तीव्र भावना दिग्गी राजा की भी है… वैसे भी ज़ैद हामिद बोलें या दिग्विजय सिंह बोलें, एक ही बात है… क्या फ़र्क पड़ता है।

पेश हैं, दिग्विजय सिंह द्वारा भविष्य में समय-समय पर दिये जाने वाले बयान, जिन्हें पढ़कर-सुनकर आप चौंकियेगा बिलकुल नहीं…

1) संसद पर हमले का मुख्य आरोपी अफ़ज़ल गुरु है ही नहीं…

2) संसद पर हमले की साजिश नागपुर में रची गई…

3) अपनी मौत से पहले राजीव गाँधी ने उन्हें फ़ोन करके बताया था कि नलिनी के सम्बन्ध साध्वी प्रज्ञा से हैं…

4) वॉरेन एण्डरसन ने दिग्गी के साथ लंच करते हुए उनसे कहा था कि भोपाल गैस काण्ड के जिम्मेदार प्रवीण तोगड़िया हैं…

5) यहाँ तक कि ज्ञानी जैल सिंह साहब ने मरने से पहले फ़ोन पर कहा था कि सिखों के नरसंहार के लिये शिवसेना जिम्मेदार है…

6) ब्ला ब्ला ब्ला ब्ला ब्ला ब्ला…

7) बड़ बड़ बड़ बड़ बड़ बड़ बड़ बड़…

इन "अखण्ड सेकुलरों" की बातें एक कान से सुनिये और दूसरे से निकाल दीजिये… दिमाग में रखने लायक होती ही नहीं ये बातें…। हाँ लेकिन, अपने मित्रों और जनता के एक बड़े हिस्से तक इन्हें पहुँचा जरुर दीजिये ताकि वे भी इनके मानसिक स्तर का अनुमान लगा सकें…


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सामान्य तौर पर एक “दलाल” का काम होता है, दो पार्टियों के बीच समुचित सौदा करवाना जिसमें दोनों पार्टियाँ सन्तुष्ट हों एवं बीच में रहकर दोनों से दलाली (या कमीशन) शुल्क लेना। नीरा राडिया क्या थी? टाटा जैसे कई उद्योगपतियों एवं नीतिगत निर्णय ले सकने वाले प्रभावशाली राजनेताओं के बीच दलाली का कार्य करने वाली एक “दलाल” (जिसे आजकल सभ्य भाषा में पब्लिक रिलेशन मैनेजर, लायज़निंग एजेंसी अथवा कमीशन एजेण्ट कह दिया जाता है, जबकि असल में होता वह “दलाल” ही है)। नीरा राडिया का काम था कि जिन उद्योगपतियों को नेताओं से मधुर सम्बन्ध(?) बनाने थे और अपना गैरकानूनी काम निकलवाना था, उनसे सही और सटीक सम्पर्क स्थापित करना और नीतियों को प्रभावित करके उनके बेशुमार फ़ायदे का सौदा करवाना… अब आप ही बताईये कि क्या नीरा राडिया “अपने काम” में उस्ताद नहीं है? क्या उसने उसका “पेशा” और “पेशेगत कार्य” ठीक से नहीं किया? बिलकुल किया, 100% से भी अधिक किया…


दिक्कत यह हुई है कि, जिन नेताओं और पत्रकारों का “जो काम” था वह उन्होंने ईमानदारी से नहीं किया…। नेताओं, नीतिगत निर्णय लेने वाली संस्था के अफ़सरों एवं सरकारी मशीनरी का यह फ़र्ज़ था कि वे यह देखते कि देश को सबसे अधिक फ़ायदा किसमें है? कौन सी प्रक्रिया अपनाने से देश का खजाना अधिक भरेगा? लाइसेंस लेने वाले किसी उद्योगपति के साथ न तो अन्याय हो और न ही किसी के साथ पक्षपात हो… परन्तु प्रधानमंत्री सहित राजा बाबू से लेकर सारे अफ़सरों ने अपना काम ठीक से नहीं किया…।

प्रधानमंत्री को तो विश्व बैंक से उनकी सेवाओं हेतु मोटी पेंशन मिलती है, इसके अलावा उन्हें कोई चुनाव भी नहीं लड़ना पड़ता… इसलिये माना जा सकता है कि उन्होंने स्पेक्ट्रम मामले में पैसा नहीं खाया होगा, परन्तु सोनिया गाँधी-राहुल गाँधी को कांग्रेस जैसी महाभ्रष्ट पार्टी चलाना और बढ़ाना है, ऐसे में कोई कहे कि अरबों-खरबों के इस घोटाले में से गाँधी परिवार को कुछ भी नहीं मिला होगा, तो वह महामूर्ख है… रही बात राजा बाबू एवं अन्य अफ़सरों की, तो वे भी अरबों रुपये की इस “बहती गंगा” में नहा-धो लिये….। गृह सचिव पिल्लई ने कहा है कि लगभग 8000 टेप किये गये हैं और अभी जितना मसाला बाहर आया है वह सिर्फ़ 10% ही है, आप सोच सकते हैं कि अभी और कितने लोग नंगे होना बाकी है। आज सीबीआई कह रही है कि राडिया विदेशी एजेण्ट है, तो पिछले 5 साल से इसके काबिल(?) अफ़सर सो रहे थे क्या? प्रधानमंत्री तो अभी भी अपनी चुप्पी तोड़ने के लिये तैयार नहीं हैं, उनकी नाक के नीचे इतना बड़ा घोटाला होता रहा और वे अपनी “ईमानदारी” का ढोल बजाते रहे? भ्रष्ट आचरण के लिये न सही, “निकम्मेपन” के लिये ही शर्म के मारे इस्तीफ़ा दे देते? लेकिन जिस व्यक्ति ने आजीवन हर काम अपने “बॉस” (चाहे रिज़र्व बैंक हो, विश्व बैंक हो, IMF हो या सोनिया हों) से पूछकर किया हो वह अपने मन से इस्तीफ़ा कैसे दे सकता है।

1) नीरा राडिया और वीर संघवी के टेप का हिस्सा सुनने के लिये यहाँ क्लिक करें… (इसमें महान पत्रकार राडिया से अपने लिखे हुए को अप्रूव करवाता है)

2) इस टेप में राडिया कहती है बरखा ने कांग्रेस से वह बयान दिलवा ही दिया… थैंक गॉड… (यहाँ क्लिक करें )

3) इस टेप में वह किसी को आश्वस्त करती है कि राजा और सुनील मित्तल में वह सुलह करवा देगी और राजा वही करेगा जो वह समझायेगी…

4) राडिया और तरुण दास का टेप जिसमें कमलनाथ और मोंटेक सिंह अहलूवालिया के बारे में बातचीत की गई है…

ऐसे बहुत सारे टेप्स इधर-उधर बिखरे पड़े हैं, चारों तरफ़ इन कारपोरेटों-नेताओं और दल्लों के कपड़े उतारे जा रहे हैं,पूरा देश इनके कारनामे जान चुका है, जनता गुस्से में भी है और खुद पर ही शर्मिन्दा भी है…


सबूतों और टेप से यह बात भी सामने आई है कि “स्पेक्ट्रम की लूट” में दुबई की कम्पनी एटिसलाट डीबी को भी 15 सर्कल में लाइसेंस दिया गया है, यह कम्पनी पाकिस्तान की सरकारी टेलीकॉम कम्पनी PTCL की आधिकारिक पार्टनर है और इसके कर्ताधर्ताओं के मधुर और निकट सम्बन्ध ISI और दाऊद इब्राहीम से हैं। एटिलसाट के शाहिद बलवास के सम्बन्ध केन्द्र के कई मंत्रियों से हैं, यह बात गृह मंत्रालय भी मानता है… एटिसलाट के साथ-साथ टेलीनॉर कम्पनी का कार्यकारी मुख्यालय भी पाकिस्तान में बताया जाता है। इस सारे झमेले में एक नाम है फ़रीदा अताउल्लाह का, जो दुबई में रहती है और बेनज़ीर भुट्टो व सोनिया गाँधी की करीबी मित्र बताई जाती हैं… ये मोहतरमा प्रियंका गाँधी के विवाह में खास अतिथि थीं… लेकिन सोनिया-मनमोहन का रवैया क्या है – चाहे जो हो जाये न तो हम इन कम्पनियों के लाइसेंस निरस्त करेंगे, न तो इन कम्पनियों के शीर्ष लोगों पर छापे मारेंगे, न ही जेपीसी से जाँच करवायेंगे… जो बन पड़े सो उखाड़ लो…। अब आप सोच सकते हैं कि राष्ट्रीय सुरक्षा और भारत के उद्योगपतियों की निजता कितनी खतरे में है… आयकर विभाग द्वारा टेप किये गये फ़ोन पर टाटा-मित्तल इतने लाल-पीले हो रहे हैं, जब दाऊद इनके फ़ोन कॉल्स सुनेगा तो ये क्या कर लेंगे?

पत्रकारों और मीडिया का काम था भ्रष्टाचार पर निगाह रखना, लेकिन प्रभु चावला से लेकर बरखा दत्त, वीर संघवी जैसे “बड़े”(?) पत्रकार न सिर्फ़ कारपोरेट के “दल्ले” बनकर काम करते रहे, बल्कि राडिया के निर्देशों पर लेख लिखना, प्रश्न पूछना, प्रधानमंत्री तक सलाह पहुँचाना, मंत्रिमण्डल गठन में विभिन्न हितों और गुटों की रखवाली करने जैसे घिनौने कामों में लगे रहे। वीर संघवी तो बाकायदा अपना लेख छपने से पहले राडिया को पढ़कर सुनाते रहे, पता नहीं हिन्दुस्तान टाइम्स की नौकरी करते थे या टाटा-राजा की? मजे की बात तो यह है कि इस “हमाम के सभी नंगे” एक-दूसरे को बचाने के लिये एकजुट हो रहे हैं… चाहे जो भी हो “बुरका दत्त” पर आँच न आने पाये, कहीं किसी अखबार या चैनल पर “पवित्र परिवार” के बारे में कोई बुरी खबर न प्रकाशित हो जाये, इस बात का ध्यान मिलजुलकर रखा जा रहा है। क्या यही मीडिया का काम है?

एक दलाल होता है और दूसरा “दल्ला” होता है। दलाल को सिर्फ़ अपने कमीशन से मतलब होता है, जबकि “दल्ला” देश की इज्जत बेच सकता है, पैसों के लिये जितना चाहे उतना नीचे गिर सकता है… तात्पर्य यह कि नीरा राडिया तो “दलाल” है, लेकिन बाकी के लोग “दल्ले” हैं…
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मूल विषय से थोड़ा हटकर एक बात - ध्यान रहे कि “वर्णसंकर रक्त” बेहद खतरनाक चीज़ होती है…यह अशुद्ध रक्त बेहद गिरा हुआ चरित्र निर्माण करती है, खण्डित व्यक्तित्व वाला बचपन, बड़ा होकर देश तोड़ने में एक मिनट का भी विचार नहीं करता… बाकी आप समझदार हैं… कोई मुझसे सहमत हो या न हो, मैं “जीन थ्योरी” (Genes Theory) में विश्वास करता हूं…

जो पाठक इस घोटाले के बारे में और जानना चाहते हैं, तो निम्न लिंक्स को एक-एक करके पढ़ डालिये…

राजा बाबू और नीरा राडिया… (भाग-1)


राजा बाबू और नीरा राडिया… (भाग-2)

राजा बाबू और नीरा राडिया… (भाग-3) 

3G स्पेक्ट्रम नीलामी से राजा बाबू के पेट पर लात… 


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कुछ दिनों पहले एक पोस्ट में सूचना दी थी, कि भारत के कुछ सेकुलर और वामपंथी संगठनों के छँटे हुए लोग फ़िलीस्तीन के प्रति एकजुटता(?) दिखाने और इज़राइल की “अमानवीय”(?) गतिविधियों के प्रति विरोध जताने के लिये एशिया के विभिन्न सड़क मार्गों से होते हुए गाज़ा (फ़िलीस्तीन) पहुँचेंगे, जहाँ वे कुछ लाख रुपये की दवाईयाँ और एम्बुलेंस दान में देंगे… (यहाँ क्लिक करके पढ़ें)

अन्ततः वह दिन भी आ गया जब 50 से अधिक बौद्धिक खतना करवा चुके कथित बुद्धिजीवी नई दिल्ली के राजघाट से प्रस्थान कर गये। जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि ये लोग पाकिस्तान-ईरान-तुर्की-सीरिया-जोर्डन-लेबनान-मिस्त्र होते हुए गाज़ा पहुँचने वाले थे, लेकिन इस्लाम का सबसे बड़ा पैरोकार होने का दम्भ भरने वाले और तमाम आतंकवादियों को पाल-पोसकर बड़ा करने वाले पाकिस्तान ने इन लोगों को इस लायक नहीं समझा कि उन्हें वीज़ा दिया जाये। पाकिस्तान ने कहा कि “सुरक्षा कारणों” से वह इन लोगों को वीज़ा नहीं दे सकता (यहाँ देखें…) (यानी एक तरह से कहा जाये तो फ़िलीस्तीन के मुस्लिमों के प्रति, तथाकथित सॉलिडेरिटी दिखाने निकले इस प्रतिनिधिमण्डल की औकात पाकिस्तान ने दिखा दी, औकात शब्द का उपयोग इसलिये, क्योंकि प्रतिनिधिमण्डल में शामिल जापान के व्यक्ति को तुरन्त वीज़ा दे दिया गया)। झेंप मिटाने के लिये, इस दल के मुखिया असीम रॉय ने कहा कि “हमारी योजना लाहौर-कराची-क्वेटा और बलूचिस्तान होते हुए जाने की थी, लेकिन चूंकि अब पाकिस्तान ने वीज़ा देने से मना कर दिया है तो हम तेहरान तक हवाई रास्ते से जायेंगे और फ़िर वहाँ से सड़क मार्ग से आगे जायेंगे…”।



बहरहाल, कारवाँ-टू-फ़िलीस्तीन के सदस्यों द्वारा गिड़गिड़ाने और अन्तर्राष्ट्रीय मुस्लिम बिरादरी का हवाला दिये जाने की वजह से पाकिस्तान ने इन लोगों को भीख में लाहौर तक (सिर्फ़ लाहौर तक) आने का वीज़ा प्रदान कर दिया है। अभी सिर्फ़ 34 लोगों को लाहौर तक का वीज़ा दिया है बाकी लोगों को बाद में दिया जायेगा (यहाँ देखें...), प्रतिनिधिमण्डल वाघा सीमा के द्वारा लाहौर जायेगा। इनकी योजना 28 दिसम्बर को गाज़ा पहुँचकर नौटंकी करने की है। “नौटंकी कलाकारों की इस गैंग” को, राजघाट से मणिशंकर अय्यर (जी हाँ, वीर सावरकर को गरियाने वाले अय्यर) एवं दिग्विजयसिंह (जी हाँ, आज़मगढ़ को मासूम बताकर वहाँ मत्था टेकने वाले ठाकुर साहब) ने हरी झण्डी दिखाकर रवाना किया।

ऐसा कहा और माना जाता है कि सत्कर्मों और चैरिटी की शुरुआत अपने घर से करना चाहिये… लेकिन सेकुलरों की यह गैंग भारत के कश्मीरी पण्डितों को “अपना” नहीं मानती, इसलिये सुदूर फ़िलीस्तीन के लिये, दिल्ली में पाकिस्तानी दूतावास के सामने गिड़गिड़ाने में इन्हें शर्म नहीं आई, जबकि दिल्ली में ही झुग्गियों में बसर कर रहे, कश्मीर से विस्थापित होकर आये पण्डितों का दर्द जानने की फ़ुरसत इन्हें नहीं मिलती…, बांग्लादेश और पाकिस्तान में हिन्दुओं पर होने वाले अत्याचारों को लेकर कभी ये बौद्धिक खतने, चटगाँव या पेशावर तक अपना कारवाँ नहीं ले जाते…। विदेश न सही, भारत के असम में बांग्लादेशी शरणार्थी(?) जिस प्रकार की दबंगई  दिखा रहे हैं उसके लिये कभी कारवां निकालने की ज़हमत नहीं उठायेंगे… और जैसा कि पिछले लेख में कहा था कि सेकुलरों-वामपंथियों का यह गुट न तो गोधरा जायेगा जहाँ 56 हिन्दू जलाकर मार दिये गये, न तो यह गुट उड़ीसा जायेगा जहाँ धर्मान्तरण के खिलाफ़ आवाज़ उठाने वाले वयोवृद्ध स्वामी लक्षमणानन्द की हत्या कर दी जाती है… लेकिन यह सभी लोग भाईचारा दर्शाने(?) फ़िलीस्तीन अवश्य जाएंगे…। कारण भी साफ़ है कि असम हो या कन्याकुमारी, फ़िजी हो या कैलीफ़ोर्निया… हिन्दुओं के पक्ष में आवाज़ उठाने से न तो “मोटा विदेशी चन्दा” मिलता है, न ही राजनीति चमकती है, न ही कोई पुरस्कार वगैरह मिलता है… और इतना सब करने के बावजूद पाकिस्तान की निगाह में इन लोगों की हैसियत “मुहाजिरों” जैसी है, इसीलिये इन्हें सुरक्षा देना तो दूर, वीज़ा तक नहीं दिया, बावजूद इसके, “बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना” की तर्ज पर उनके तलवे चाटने से बाज आने वाले नहीं हैं ये लोग…।

ऐ इज़राइल वालों… भारत से एक सेकुलर पार्सल आ रहा है “उचित” साज-संभाल कर लेना… अर्ज़ करते हैं कि पसन्द आये या न आये आप अपने यहाँ रख ही लो, वापस भेजने की जरुरत नहीं… इधर पहले ही बहुत सारे पड़े हैं…
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बौद्धिक खतना :- बड़ी देर से पाठक सोच रहे होंगे कि यह “बौद्धिक खतना” कौन सा नया शब्द है। मुस्लिमों के धार्मिक कर्म “खतना” के बारे में आप सभी लोग जानते ही होंगे, उसके पीछे कई वैज्ञानिक एवं धार्मिक कारण गिनाये जाते रहे हैं, मैं उनकी डीटेल्स में जाना नहीं चाहता…। खतना करवाने वाले मुस्लिम तो अपने धर्म का ईमानदारी से पालन करते हैं, उनमें से बड़ी संख्या में भारतीय संस्कृति एवं हिन्दुओं के खिलाफ़ दुर्भावना नहीं रखते…। जबकि “बौद्धिक खतना” सिर्फ़ हिन्दुओं का किया जाता है, यह एक ऐसी प्रक्रिया होती है, जिसमें हिन्दुओं के दिमाग की एक नस गायब कर दी जाती है जिससे वह हिन्दू अपने ही हिन्दू भाईयों, भारतीय संस्कृति, भारत की अखण्डता, भारत के स्वाभिमान, राष्ट्रवाद… जैसी बातों को या तो भूल जाता है या उसके खिलाफ़ काम करने लगता है…। इस प्रक्रिया को एक दूसरा नाम भी दिया जा सकता है - “मानसिक बप्तिस्मा”, यह भी सिर्फ़ हिन्दुओं का ही किया जाता है और बचपन से ही “सेंट” वाले स्कूलों में किया जाता है।

जिस प्रकार “बौद्धिक खतना” होने के बाद ही व्यक्ति को “ग” से गणेश कहने में शर्म महसूस होती है, और वह “ग” से गधा कहता है… उसी प्रकार मानसिक बप्तिस्मा हो चुकने की वजह से ही सरकार में बैठे लोग, सिस्टर अल्फ़ोंसा की तस्वीर वाला सिक्का जारी करते हैं… या फ़िर कांची के शंकराचार्य को ठीक दीपावली के दिन गिरफ़्तार करते हैं… रामसेतु को तोड़ने के लिये ज़मीन-आसमान एक करते हैं, ताकि हिन्दुओं में हीन-भावना निर्माण की जा सके। नगालैण्ड में “नागालैण्ड फ़ॉर क्राइस्ट” का खुल्लमखुल्ला अलगाववादी नारा लगाने वाले एवं जगह-जगह इसके बोर्ड लगाने के बावजूद यदि कोई कार्रवाई नहीं होती…, तिरंगा जलाने वाले  हुर्रियत के देशद्रोही नेता भारत भर में घूम-घूमकर प्रवचन दे पाते हैं…, भारत की गरीबी बेचकर रोटी कमाने वाली अरुंधती रॉय भारत को “भूखे-नंगों का देश” कहती है… एक छिछोरा चित्रकार नंगी कलाकृतियों को सरस्वती-लक्ष्मी नाम देता है और बचकर निकल जाता है… यह सब बौद्धिक खतना या मानसिक बप्तिस्मा के ही लक्षण हैं…

(इन शब्दों की व्याख्या तो कर ही दी है, उम्मीद करता हूँ कि “शर्मनिरपेक्षता” और “भोन्दू युवराज” की तरह ही यह दोनों शब्द भी जल्दी ही प्रचलन में आ जायेंगे…)


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