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मंगलवार, 03 मार्च 2009 12:17
कानून और हिन्दू महिलाओं का मखौल उड़ाता “चाँद-फ़िज़ा” प्रकरण : “सेकुलरिस्ट” और नारी विमर्श की सबलायें कहाँ हैं?
Chand-Fiza Muslim Conversion Hindu Women Concern
गत कुछ समय से हमारे “जागरूक” और “सबसे तेज” चैनलों और अखबारों पर एक मुद्दा चटखारे ले-लेकर परोसा जा रहा है, वह है चन्द्रमोहन-अनुराधा उर्फ़ चाँद-फ़िज़ा का मुहब्बत(?) प्रकरण। टीवी वालों से तो खैर किसी स्वस्थ और गम्भीर बहस की उम्मीद रह नहीं गई है (क्योंकि उनके लिये यह एक “धंधा” है, और जब तय हुआ है कि “धंधा” करेंगे तो फ़िर कोई भी मुद्दा, खासकर जो हिन्दुओं के खिलाफ़ हो, उनका मजाक उड़ाता हो, उस पर सिर्फ़ हल्ला-गुल्ला किया जायेगा, कोई गम्भीर बात नहीं होगी), टीवी चैनल इन दो “अधेड़ों” की छिछोरी हरकत को लैला-मजनू या ससी-पुन्नू जैसी अमरप्रेम कथा बनाने पर तुले हैं तथा व्यक्तिगत एसएमएस, प्रेमपत्रों आदि का घृणित और भौण्डा प्रदर्शन लगातार जारी है (पब भरने वाली रेणुका चौधरी शायद किसी एसी कमरे में आराम कर रही होंगी)। इस हंगामे में अखबारों से कुछ उम्मीद बाकी थी, उन्होंने भी इस प्रकरण में शामिल कुछ मूलभूत सवालों पर कुछ कहना भी मुनासिब नहीं समझा।
जैसा कि सभी जानते हैं भारत में दो-चार अलग-अलग कानून चलते हैं, हिन्दुओं के लिये अलग, मुस्लिमों और अन्य कई धर्मों के लिये अपने-अपने पर्सनल कानून, जहाँ भारत सरकार उनके सामने मेमना बनने में देर नहीं लगाती। मुस्लिमों के पर्सनल कानून उन्हें मुबारक हों, लेकिन जब हिन्दुओं के “एक-पत्नी” कानून को, मुस्लिम शरीयत के जरिये “सिर्फ़ अपनी यौनेच्छा के लिये” तोड़ा जाये और उस पर देश में कोई भी जिम्मेदार व्यक्ति सवाल न उठाये यह आश्चर्यजनक लगता है, हालांकि भारत में इस प्रकार के अजूबे सतत होते ही रहते हैं चाहे कश्मीर का मामला हो या शाहबानो का… “सेकुलरिस्टों” का दोगलापन यदा-कदा नंगा होता ही रहता है। परन्तु यहाँ पर चन्द्रमोहन-अनुराधा मामला सिर्फ़ “सेकुलरों” तक ही सीमित नहीं है, यहाँ एक महिला का पक्ष भी है जो चन्द्रमोहन की पहली शादीशुदा हिन्दू पत्नी है।
जब एक हिन्दू स्त्री विवाह करती है तो वह यह बात जानती है कि कानून के मुताबिक उसका पति उसकी सहमति के बिना न तो उससे आसानी से तलाक ले सकेगा न ही दूसरी शादी कर सकेगा, ऐसे में एक पति के एकतरफ़ा मुस्लिम बन जाने से उस हिन्दू औरत का कानूनी अधिकार कैसे खत्म हो गया? जब विवाह दो पक्षों के बीच हुआ एक समझौता है तो फ़िर कोई एक (पति या पत्नी) अकेले अपनी तरफ़ से एकतरफ़ा निर्णय कैसे ले सकता है? यदि किसी “छैला बाबू” पति को दो-चार औरतें पसन्द आ जायें तो क्या वह धर्म परिवर्तन करके चारों से शादी कर सकता है? फ़िर ऐसे हिन्दू विवाह कानून किस काम के? और “धर्मनिरपेक्ष”(?) सरकार क्या कर रही है? तथा उस पहली हिन्दू पत्नी का क्या? उसके पक्ष में किसी नारी संगठन या महिला मंत्री को बोलते नहीं सुना?
एक हिन्दू पति द्वारा तलाक लेने के लिये अदालत के चक्कर काटते-काटते जूते घिस जाते हैं, लाखों रुपये खर्च हो जाते हैं और समय लगता है वह अलग। ऐसे में जब भारत सरकार ही उसकी “मदद”(?) के लिये हाथ बढ़ाकर खड़ी है तो बेहद आसान रास्ता है “धर्म परिवर्तन”, बस चट से मुसलमान बन जाओ और पट से चार-चार के साथ मजे करो, हिन्दू पत्नी जाये भाड़ में… शायद ऐसा ही कुछ “एंटोनिया माइनो” सरकार चाहती है। हो सकता है कि कल को यह भी सुनने में आये कि कोई मुल्ला सरेआम कहे कि “जो भी हिन्दू व्यक्ति अपनी पत्नी से मुफ़्त में छुटकारा पाना चाहता है, आये और मुसलमान बन जाये…”। “धर्म परिवर्तन माफ़िया” के हाथ में “लम्पट हिन्दू पुरुष” नामक एक और हथियार आ गया है, बस उसके कान में मंत्र फ़ूँकना है कि “तू मुस्लिम बन जा, साथ में एक औरत को भी हिन्दू से मुस्लिम बना दे… सरकार, प्रशासन सब तेरे साथ होंगे… हिन्दू संगठन, नारी संगठन आदि सब बकवास हैं…”।
सरकार (सेकुलरों) का इस सारे झमेले में मुस्लिमपरस्त रुख साफ़ नज़र आ रहा है, वरना फ़िज़ा जो यहाँ-वहाँ सारे मीडिया में चिल्लाती फ़िर रही है कि “चाँद मोहम्मद ने उसकी इस्लामी धार्मिक भावनाओं को चोट पहुँचाई है और अब चन्द्रमोहन वापस हिन्दू कैसे बन सकता है?…” यह सब किसकी शह पर? इसका एक मतलब यह भी निकलता है कि हिन्दू पुरुष बगैर यह चिन्ता किये कि हिन्दू भावनाओं को चोट पहुँचेगी, मुस्लिम बनकर मौज कर सकता है और वही पुरुष अपनी पहली पत्नी-बच्चों की याद आने पर दोबारा हिन्दू नहीं बन सकता। अर्थात धार्मिक भावनायें सिर्फ़ मुस्लिमों की आहत होती हैं? आखिर कौन है इसके पीछे? जाहिर है कि फ़िजा को इस देश के महान सेकुलरों(?) और सरकारी इस्लामिक ताकतों पर पूरा भरोसा है। पुलिस के उच्चाधिकारी लगातार बयान दे रहे हैं कि “चन्दा मामा” लन्दन में हैं, उधर से चन्दा मामा भी टीवी चैनलों (यानी दलालों के मार्फ़त) पर बयान दे रहे हैं कि वे अभी भी “पूरी तरह से मुस्लिम” हैं, इसका मतलब यह होता है कि यदि वे फ़िर से हिन्दू बने तो सरकार और प्रशासनिक मशीनरी उन्हें नहीं छोड़ेगी, यह भी जाँच का विषय हो सकता है कि कहीं फ़िज़ा के मुस्लिम माफ़िया से कोई अन्तर्सम्बन्ध तो नहीं हैं? एक पेंच यह भी है कि यदि चाँद मोहम्मद लन्दन में हैं तो उनके पासपोर्ट पर नाम कौन सा है चन्द्रमोहन या चाँद मोहम्मद? और यह बदलाव इतनी जल्दी कैसे कर लिया गया?
साफ़ दिखाई दे रहा है कि “धर्म-परिवर्तन” की ताकतें इस सारे खेल में एक मजबूत भूमिका बनाये हुए हैं। “शर्मनिरपेक्ष” सरकार खुल्लमखुल्ला एक विशेष धर्म के प्रति अपना झुकाव जाहिर कर रही है। शायद लोगों को अभी भी कोलकाता के रिज़वान-उल-हक का मामला याद होगा, जिसमें रिज़वान की हत्या हो गई थी, लगातार सन्देह व्यक्त किया जाता है कि रिज़वान की हत्या भी धर्मान्ध मुस्लिमों ने ही की थी क्योंकि अपुष्ट सूत्रों के मुताबिक रिज़वान अपनी प्रेमिका की खातिर हिन्दू बनने को तैयार हो गया था, जबकि हत्या का आरोप लगा और केस चला उस प्रेमिका के परिजनों पर… देखा!!! कितना महान है हमारे भारत का सेकुलरिज़्म…
कई-कई सवाल अनछुए-अनकहे रह गये हैं, चैनलों और सेकुलरों(?) की बात जाने दीजिये, वे तो हैं ही शर्मनिरपेक्ष, लेकिन “गुलाबी चड्डी” पर हजारों पन्ने काले करने वाली प्रगतिशील महिलायें(?) उसका बीस प्रतिशत भी चन्द्रमोहन की परित्यक्ता हिन्दू औरत के पक्ष में लिखतीं तो कुछ संतोष होता, लेकिन अफ़सोस…
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जैसा कि सभी जानते हैं भारत में दो-चार अलग-अलग कानून चलते हैं, हिन्दुओं के लिये अलग, मुस्लिमों और अन्य कई धर्मों के लिये अपने-अपने पर्सनल कानून, जहाँ भारत सरकार उनके सामने मेमना बनने में देर नहीं लगाती। मुस्लिमों के पर्सनल कानून उन्हें मुबारक हों, लेकिन जब हिन्दुओं के “एक-पत्नी” कानून को, मुस्लिम शरीयत के जरिये “सिर्फ़ अपनी यौनेच्छा के लिये” तोड़ा जाये और उस पर देश में कोई भी जिम्मेदार व्यक्ति सवाल न उठाये यह आश्चर्यजनक लगता है, हालांकि भारत में इस प्रकार के अजूबे सतत होते ही रहते हैं चाहे कश्मीर का मामला हो या शाहबानो का… “सेकुलरिस्टों” का दोगलापन यदा-कदा नंगा होता ही रहता है। परन्तु यहाँ पर चन्द्रमोहन-अनुराधा मामला सिर्फ़ “सेकुलरों” तक ही सीमित नहीं है, यहाँ एक महिला का पक्ष भी है जो चन्द्रमोहन की पहली शादीशुदा हिन्दू पत्नी है।
जब एक हिन्दू स्त्री विवाह करती है तो वह यह बात जानती है कि कानून के मुताबिक उसका पति उसकी सहमति के बिना न तो उससे आसानी से तलाक ले सकेगा न ही दूसरी शादी कर सकेगा, ऐसे में एक पति के एकतरफ़ा मुस्लिम बन जाने से उस हिन्दू औरत का कानूनी अधिकार कैसे खत्म हो गया? जब विवाह दो पक्षों के बीच हुआ एक समझौता है तो फ़िर कोई एक (पति या पत्नी) अकेले अपनी तरफ़ से एकतरफ़ा निर्णय कैसे ले सकता है? यदि किसी “छैला बाबू” पति को दो-चार औरतें पसन्द आ जायें तो क्या वह धर्म परिवर्तन करके चारों से शादी कर सकता है? फ़िर ऐसे हिन्दू विवाह कानून किस काम के? और “धर्मनिरपेक्ष”(?) सरकार क्या कर रही है? तथा उस पहली हिन्दू पत्नी का क्या? उसके पक्ष में किसी नारी संगठन या महिला मंत्री को बोलते नहीं सुना?
एक हिन्दू पति द्वारा तलाक लेने के लिये अदालत के चक्कर काटते-काटते जूते घिस जाते हैं, लाखों रुपये खर्च हो जाते हैं और समय लगता है वह अलग। ऐसे में जब भारत सरकार ही उसकी “मदद”(?) के लिये हाथ बढ़ाकर खड़ी है तो बेहद आसान रास्ता है “धर्म परिवर्तन”, बस चट से मुसलमान बन जाओ और पट से चार-चार के साथ मजे करो, हिन्दू पत्नी जाये भाड़ में… शायद ऐसा ही कुछ “एंटोनिया माइनो” सरकार चाहती है। हो सकता है कि कल को यह भी सुनने में आये कि कोई मुल्ला सरेआम कहे कि “जो भी हिन्दू व्यक्ति अपनी पत्नी से मुफ़्त में छुटकारा पाना चाहता है, आये और मुसलमान बन जाये…”। “धर्म परिवर्तन माफ़िया” के हाथ में “लम्पट हिन्दू पुरुष” नामक एक और हथियार आ गया है, बस उसके कान में मंत्र फ़ूँकना है कि “तू मुस्लिम बन जा, साथ में एक औरत को भी हिन्दू से मुस्लिम बना दे… सरकार, प्रशासन सब तेरे साथ होंगे… हिन्दू संगठन, नारी संगठन आदि सब बकवास हैं…”।
सरकार (सेकुलरों) का इस सारे झमेले में मुस्लिमपरस्त रुख साफ़ नज़र आ रहा है, वरना फ़िज़ा जो यहाँ-वहाँ सारे मीडिया में चिल्लाती फ़िर रही है कि “चाँद मोहम्मद ने उसकी इस्लामी धार्मिक भावनाओं को चोट पहुँचाई है और अब चन्द्रमोहन वापस हिन्दू कैसे बन सकता है?…” यह सब किसकी शह पर? इसका एक मतलब यह भी निकलता है कि हिन्दू पुरुष बगैर यह चिन्ता किये कि हिन्दू भावनाओं को चोट पहुँचेगी, मुस्लिम बनकर मौज कर सकता है और वही पुरुष अपनी पहली पत्नी-बच्चों की याद आने पर दोबारा हिन्दू नहीं बन सकता। अर्थात धार्मिक भावनायें सिर्फ़ मुस्लिमों की आहत होती हैं? आखिर कौन है इसके पीछे? जाहिर है कि फ़िजा को इस देश के महान सेकुलरों(?) और सरकारी इस्लामिक ताकतों पर पूरा भरोसा है। पुलिस के उच्चाधिकारी लगातार बयान दे रहे हैं कि “चन्दा मामा” लन्दन में हैं, उधर से चन्दा मामा भी टीवी चैनलों (यानी दलालों के मार्फ़त) पर बयान दे रहे हैं कि वे अभी भी “पूरी तरह से मुस्लिम” हैं, इसका मतलब यह होता है कि यदि वे फ़िर से हिन्दू बने तो सरकार और प्रशासनिक मशीनरी उन्हें नहीं छोड़ेगी, यह भी जाँच का विषय हो सकता है कि कहीं फ़िज़ा के मुस्लिम माफ़िया से कोई अन्तर्सम्बन्ध तो नहीं हैं? एक पेंच यह भी है कि यदि चाँद मोहम्मद लन्दन में हैं तो उनके पासपोर्ट पर नाम कौन सा है चन्द्रमोहन या चाँद मोहम्मद? और यह बदलाव इतनी जल्दी कैसे कर लिया गया?
साफ़ दिखाई दे रहा है कि “धर्म-परिवर्तन” की ताकतें इस सारे खेल में एक मजबूत भूमिका बनाये हुए हैं। “शर्मनिरपेक्ष” सरकार खुल्लमखुल्ला एक विशेष धर्म के प्रति अपना झुकाव जाहिर कर रही है। शायद लोगों को अभी भी कोलकाता के रिज़वान-उल-हक का मामला याद होगा, जिसमें रिज़वान की हत्या हो गई थी, लगातार सन्देह व्यक्त किया जाता है कि रिज़वान की हत्या भी धर्मान्ध मुस्लिमों ने ही की थी क्योंकि अपुष्ट सूत्रों के मुताबिक रिज़वान अपनी प्रेमिका की खातिर हिन्दू बनने को तैयार हो गया था, जबकि हत्या का आरोप लगा और केस चला उस प्रेमिका के परिजनों पर… देखा!!! कितना महान है हमारे भारत का सेकुलरिज़्म…
कई-कई सवाल अनछुए-अनकहे रह गये हैं, चैनलों और सेकुलरों(?) की बात जाने दीजिये, वे तो हैं ही शर्मनिरपेक्ष, लेकिन “गुलाबी चड्डी” पर हजारों पन्ने काले करने वाली प्रगतिशील महिलायें(?) उसका बीस प्रतिशत भी चन्द्रमोहन की परित्यक्ता हिन्दू औरत के पक्ष में लिखतीं तो कुछ संतोष होता, लेकिन अफ़सोस…
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