desiCNN - Items filtered by date: मई 2007
गुरुवार, 31 मई 2007 15:51

भुतहा संयोग या कुछ और ?

अब्राहम लिंकन कॉंग्रेस के लिये 1846 में चुने गये,
जॉन एफ़ केनेडी कॉंग्रेस के लिये 1946 में चुने गये..

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किसी ने सच ही कहा है कि जिस देश को बरबाद करना हो सबसे पहले उसकी संस्कृति पर हमला करो और वहाँ की युवा पीढी को गुमराह करो (Cultural Brainwash) । जो समाज इनकी रक्षा नहीं कर सकता उसका पतन और सर्वनाश निश्चित हो जाता है । हमारे आसपास घटने वाली काफ़ी बातें समाज के गिरते नैतिक स्तर और खोखले होते सांस्कृतिक माहौल की ओर इशारा कर रही हैं, एक खतरे की घंटी बज रही है, लेकिन समाज और नेता लगातार इसकी अनदेखी करते जा रहे हैं । इसके लिये सामाजिक ढाँचे या पारिवारिक ढाँचे का पुनरीक्षण करने की बात अधिकतर समाजशास्त्री उठा रहे हैं, परन्तु मुख्यतः जिम्मेदार है हमारे आसपास का माहौल और लगातार तेज होती जा रही "भूख" । जी हाँ "भूख" सिर्फ़ पेट की नहीं होती, न ही सिर्फ़ तन की होती है, एक और भूख होती है "मन की भूख" । इसी विशिष्ट भूख को "बाजार" जगाता है, उसे हवा देता है, पालता-पोसता है और उकसाता है। यह भूख पैदा करना तो आसान है, लेकिन क्या हमारा समाज, हमारी राजनीति, हमारा अर्थतन्त्र इतना मजबूत और लचीला है, कि इस भूख को शान्त कर सके ।

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सोमवार, 28 मई 2007 11:02

Indivar : Nadiya Chale Chale re Dhara Chanda Chale

इन्दीवर : नदिया चले, चले रे धारा


यह गीत उन लोगों के लिये है जो हमेशा हिन्दी फ़िल्मी गीतों की यह कर आलोचना करते हैं कि "ये तो चलताऊ गीत होते हैं, इनमें रस-कविता कहाँ", कविता की बात ही कुछ और है, हिन्दी फ़िल्मी गाने तो भांडों - ठलुओं के लिये हैं", लेकिन इन्दीवर एक ऐसे गीतकार हुए हैं जो कविता और शब्दों को हमेशा प्रधानता देते रहे हैं, उनके गीतों में अधिकतर हिन्दी के शब्दों का प्रयोग हुआ है और साहिर, शकील और हसरत के वजनदार उर्दू लफ़्जों की शायरी के बीच भी इन्दीवर हमेशा खम ठोंक कर खडे रहे । इन्दीवर का जन्म झाँसी(उप्र) में हुआ उनका असली नाम था - श्यामलाल राय । इनका शुरुआती गीत "बडे अरमानों से रखा है बलम तेरी कसम" बहुत हिट रहा और कल्याणजी-आनन्दजी के साथ इनकी जोडी खूब जमी ।

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गीतों पर लिखते-लिखते अचानक मन में पैरोडी का ख्याल आया और यह ब्लॉग लिखने की सूझी... आदरणीय मनोजकुमार और गीतकार (शायद इन्दीवर) से माफ़ी के साथ यह कुछ पंक्तियाँ पेश हैं... यह गीत लगभग तीस वर्ष पहले लिखा गया था, लेकिन यह पैरोडी आज के हालात बयाँ करती है.... (Poorab aur Pashchim)

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मंगलवार, 15 मई 2007 11:46

Hindustan ki Kasam - Har Taraf ab Yahi Afsane

हर तरफ़ अब यही अफ़साने हैं... 


यह गीत है फ़िल्म "हिन्दुस्तान की कसम" से, गाया है मन्ना दादा ने, बोल हैं कैफ़ी आजमी के और संगीत है मदनमोहन का... मन्ना डे साहब ने मदनमोहन के लिये काफ़ी कम गाया है, लेकिन यह गीत बेहतरीन बन पडा है । उल्लेखनीय है कि यह एक युद्ध आधारित फ़िल्म है, और इसमें संगीत का कोई खास स्कोप नहीं था, लेकिन मदनमोहन जी ने फ़िर भी अपना जलवा बिखेर ही दिया ।

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शुक्रवार, 11 मई 2007 12:28

Jab Jab tu Mere Samne - Shyam Tere Kitne Naam

जब-जब तू मेरे सामने आये...


विविध भारती पर गीतकार "अंजान" के जीवन-वृत्त पर एक कार्यक्रम आ रहा है जिसमे उनके पुत्र गीतकार "समीर" अपनी कुछ यादें श्रोताओं के सामने रख रहे हैं...अंजान ने वैसे तो कई बढिया-बढिया गीत लिखे हैं, जैसे "छूकर मेरे मन को.. (याराना)", "ओ साथी से तेरे बिना भी क्या जीना (मुकद्दर का सिकन्दर)", "मंजिलें अपनी जगह हैं रास्ते अपनी जगह. (शराबी)" आदि बहुत से...

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आजकल जमाना मीडिया और विज्ञापन का है, चाहे वह प्रिंट मीडिया हो अथवा इलेक्ट्रानिक मीडिया, चहुँओर विज्ञापनों की धूम है (TV Commercials in India)। इन विज्ञापनों ने सभी आय वर्गों के जीवन में अच्छा हो या बुरा, आमूलचूल परिवर्तन जरूर किया है । कई विज्ञापन ऐसे हैं जो बच्चों के अलावा बडों कि जुबान पा भी आ जाते हैं । शोध से यह ज्ञात हुआ है कि विज्ञापनों से बच्चे ही सर्वाधिक प्रभावित होते हैं, उसके बाद टीनएजर्स और फ़िर युवा ।

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बुधवार, 09 मई 2007 12:42

India Pakistan Atomic War

भारत-पाकिस्तान परमाणु युद्ध...

अब चूँकि अमेरिका की लाख कोशिशों के बावजूद भारत-पाकिस्तान दोनो के पास परमाणु मिसाईल तकनीक मौजूद है, ऐसे में यदि भारत-पाकिस्तान के बीच परमाणु युद्ध छिड जाये तो क्या मंज़र होगा इसका अध्ययन किया गया, और चूंकि अध्ययन एक अमेरिकी एजेन्सी ने किया है, इसलिये वह सही ही होगा (ऐसा मानने वाले अमेरिका से भारत में ज्यादा हैं)। उक्त अध्ययन के निष्कर्ष इस प्रकार हैं -

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शुक्रवार, 04 मई 2007 12:00

Marathi Actors and Characters in Hindi Films

हिन्दी फ़िल्मों में मराठी चरित्र : कितने वास्तविक ?

हिन्दी फ़िल्में हमारे यहाँ थोक में बनती हैं, और जाहिर है कि फ़िल्म है तो विभिन्न चरित्र और पात्र होंगे ही, और उन चरित्रों के नाम भी होंगे । हिन्दी फ़िल्मों पर हम जैसे फ़िल्म प्रेमियों ने अपने कई-कई घंटे बिताये हैं (हालांकि पिताजी कहते हैं कि मेरी आज की बरबादी के लिये हिन्दी फ़िल्में और क्रिकेट ही जिम्मेदार हैं), लेकिन कहते हैं ना प्यार तो अंधा होता है ना, तो अंधेपन के बावजूद फ़िल्में देखना और क्रिकेट खेलना नहीं छोडा तो नहीं छोडा...

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बुधवार, 02 मई 2007 18:34

Tu Chanda Mai Chandni - Reshma aur Shera (Bal Kavi Bairagi)

तू चंदा.. मैं चाँदनी (Reshma aur Shera) : बालकवि बैरागी


आज जिस गीत के बारे में मैं लिखने जा रहा हूँ, वह गीत लिखा है बालकवि बैरागी जी ने, फ़िल्म है "रेशमा और शेरा" (निर्माता - सुनील दत्त) । ये गीत रेडियो पर कम बजता है, और बजता भी है तो अधूरा (दो अन्तरे ही), इस गीत का तीसरा अंतरा बहुत कम सुनने को मिलता है, जाहिर है कि रेडियो की अपनी मजबूरियाँ हैं, वे इतना लम्बा गीत हमेशा नहीं सुनवा सकते (जैसे कि फ़िल्म "बरसात की रात" की मशहूर कव्वाली "ये इश्क-इश्क है इश्क-इश्क" भी हमें अक्सर अधूरी ही सुनने को मिलती है, जिसके बारे में अगली किसी पोस्ट में लिखूँगा)...

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