येसुदास के दो मधुर गीत

Written by गुरुवार, 07 जून 2007 10:36

दक्षिण भारत के एक और महान गायक डॉ. के.जे.येसुदास (KJ Yesudas) के दो अनमोल गीत यहाँ पेश कर रहा हूँ । पहला गीत है फ़िल्म "आलाप" का - बोल हैं "कोई गाता मैं सो जाता...", गीत लिखा है हरिवंशराय बच्चन ने, संगीत है जयदेव का । यह एक बेहतरीन गीत है और जयदेव जो कि कम से कम वाद्यों का प्रयोग करते हैं, इस गीत में भी उन्होंने कमाल किया है । प्रस्तुत दोनों गीत यदि रात के अँधेरे में अकेले में सुने जायें तो मेरा दावा है कि अनिद्रा के रोगी को भी नींद आ जायेगी ।

अन्तरों के बीच में जयदेव कम वाद्यों के कारण गायक की पूरी रेंज का उपयोग कर लेते हैं और येसुदास की पवित्र सी लगने वाली आवाज गजब ढाती है...सबसे बडे़ बच्चन साहब के शब्द तो खैर बढिया हैं ही, फ़िल्म में आज के बडे़ बच्चन साहब की अदाकारी भी उम्दा है (जैसी कि हृषिकेश मुखर्जी की फ़िल्मों में हमेशा वे करते रहे हैं चाहे वह नमकहराम हो, चुपके-चुपके हो या मिली हो) । इस फ़िल्म में उन्होंने एक संघर्षशील संगीतकार की भूमिका बखूबी निभाई है । गीत इस प्रकार है -

कोई गाता मैं सो जाता....

(१) संस्रिति के विस्तृत सागर में
सपनों की नौका के अन्दर,
दुख-सुख की लहरों में उठ गिर
बहता जाता, मैं सो जाता ....
(२) आँखों में लेकर प्यार अमर
आशीष हथेली में भरकर
कोई मेरा सिर गोदी में रख
सहलाता, मैं सो जाता....
(३) मेरे जीवन का कारा जल
मेरे जीवन का हालाहल
कोई अपने स्वर में मृदुमय कर
दोहराता, मैं सो जाता....
कोई गाता मैं सो जाता...


इस गीत को यहाँ क्लिक करके सुना जा सकता है ।

येसुदास ने हिन्दी फ़िल्मों में कम ही गाया है, हिन्दी फ़िल्म उद्योग उनकी असीमित प्रतिभा का उपयोग नहीं कर सका यह बडे़ खेद की बात है, एसपी बालासुब्रमण्यम को तो भी कई मौके मिले और उन्होंने भी खूब गाया, लेकिन शास्त्रीय़ संगीत की गहरी समझ रखने वाले येसुदास और सुरेश वाडकर का हिन्दी फ़िल्मों और गीतों को अधिक लाभ नहीं मिल पाया, इसका कारण शायद यह हो सकता है कि इन दोनों की आवाजें एक विशिष्ट प्रकार की है (जैसे कि भूपेन्द्र की भी है), इसलिये हिन्दी फ़िल्मों के "मुँछमुण्डे" और "बनियान-ब्रिगेड" के हीरो (?) पर उनकी आवाज फ़िट नहीं बैठती । कारण जो भी हो येसुदास और सुरेश वाडकर के गीतों से श्रोताओं को वंचित होना पडा है । बहरहाल....
दूसरा गीत भी उतना ही प्रभावशाली है - फ़िल्म है "सदमा", गीत लिखा है गुलजार ने और संगीत दिया है दक्षिण की एक और जबरदस्त प्रतिभा इलैया राजा ने (इनका उम्दा संगीत तो छोडिये, हो सकता है कि इनका नाम भी कई हिन्दीभाषियों ने नहीं सुना होगा)। इसका फ़िल्मांकन भी बहुत बढिया है, फ़िल्म में श्रीदेवी सारा श्रेय लूट ले गई हैं, जबकि कमल हासन ने भी मनोभावों के द्वन्द्व को बेहतरीन तरीके से पेश किया है... गीत इस प्रकार है -

सुरमई अँखियों में नन्हा-मुन्ना एक सपना दे जा रे
निन्दिया के उडते पाखी रे
अँखियों मे आ जा साथी रे
रारी रारी ओ रारी रुम, रारी रारी ओ रारी रुम..


(१) अच्छा सा कोई सपना दे जा
मुझको कोई अपना दे जा
अन्जाना सा मगर कुछ पहचाना सा
हल्का-फ़ुल्का शबनमी, रेशम से भी रेशमी..
सुरमई अँखियों में नन्हा-मुन्ना एक सपना दे जा रे .....
(२) रात के रथ पर जाने वाले
नींद का रस बरसाने वाले
इतना कर दे, के मेरी आँखें भर दे
आँखों में बसता रहे, सपना ये हँसता रहे...

सुरमई अँखियों में नन्हा-मुन्ना एक सपना दे जा रे ....
निन्दिया के उडते पाखी रे
अँखियों मे आ जा साथी रे
रारी रारी ओ रारी रुम, रारी रारी ओ रारी रुम..

यह गीत यहाँ क्लिक करके सुना जा सकता है ।

इस गीत में जब येसुदास "रारी रारी ओ रारी रुम..." गाते हैं और साथ में "टिंग" की जो मधुर ध्वनि आती है, मानो ऐसा लगता है कि कोई मासूम बच्चे को झूला झुला रहा है । "धीरे से आ जा री अँखियन में.." की टक्कर में इस लोरी को रखा जा सकता है । वैसे भी आजकल फ़िल्मों में लोरियाँ लुप्तप्राय हो चली हैं, इसी बहाने इन दो मधुर गीतों को सुनकर हम अपनी प्यास बुझा लें ।

Read 1241 times Last modified on बुधवार, 26 जून 2019 13:22