भारतीय समाज, सच का सामना, TRP की भूख और कुछ महत्वपूर्ण सवाल… Sach Ka Samna, TRP Rating & Indian Society

Written by सोमवार, 20 जुलाई 2009 17:37
“सच का सामना”(?) नामक फ़ूहड़ टीवी कार्यक्रम से सम्बन्धित मेरी पिछली पोस्ट “नारी का सम्मान और TRP के भूखे…” पर आई हुई विभिन्न टिप्पणियों से एक नई बहस का जन्म होने जा रहा है… वह ऐसे कि उनमें से कई टिप्पणियों का भावार्थ यह था कि “यदि स्मिता (या कोई अन्य प्रतियोगी) को पहले से ही पता था कि उससे ऐसे सवाल पूछे जायेंगे तो तब वह वहाँ गई ही क्यों…?”, “यदि प्रतियोगी को पैसों का लालच है और वह पैसों के लिये सब कुछ खोलने के लिये तैयार है तब क्या किया जा सकता है, यह तो उसकी गलती है”… “चैनलों का तो काम यही है कि किस तरह से अश्लीलता और विवाद पैदा किया जाये, लोग उसमें क्यों फ़ँसते हैं?”… “स्मिता ने अपनी इज़्ज़त खुद ही लुटवाई है, इसे बलात्कार नहीं कहा जा सकता, बलात्कार और स-सहमति शयन में अन्तर है…”।

कुछ टिप्पणियों का भावार्थ यह भी था कि “फ़िर क्यों ऐसे चैनल देखते हो?”, “यह कार्यक्रम वयस्कों के लिये है, क्यों इसे परिवार के साथ देखा जाये?”, “टीवी बन्द करना तो अपने हाथ है, फ़िर इतनी हायतौबा क्यों?”… ज़ाहिर है कि मुण्डे-मुण्डे मतिर्भिन्नाः की तर्ज़ पर हरेक व्यक्ति के अपने विचार है, और यही स्वस्थ लोकतन्त्र की निशानी भी है।

अब ज़रा निम्नलिखित घटनाओं पर संक्षेप में विचार करें –

1) सोना दोगुना करने का लालच देकर कई ठग “अच्छी खासी पढ़ी-लिखी” शहरी महिलाओं को भी अपना शिकार बना लेते हैं, वह महिला लालच के शिकार में उस ठग की बातों में आ जाती है और अपना सोना लुटवा बैठती है। इस “लुट जाने के लिये” वह महिला अधिक जिम्मेदार है या वह ठग? सजा उस “ठग” को मिलनी चाहिये अथवा नहीं, सोना गँवाकर महिला तो सजा पा चुकी।

2)शेयर बाज़ार में पैसा निवेश करते समय निवेशक को यह पता होता है कि वह एक “सट्टा” खेलने जा रहा है और इसमें धोखाधड़ी और “मेनिपुलेशन” भी सम्भव है, ऐसे में यदि कोई हर्षद मेहता या केतन पारेख उसे लूट ले जाये तो क्या मेहता और पारेख को छोड़ देना चाहिये?

3) मान लें यदि कोई पागल व्यक्ति आपके घर के सामने कूड़ा-करकट फ़ैला रहा है, सम्भव है कि वह कूड़ा-करकट आपके घर को भी गन्दा कर दे, तब आप क्या करेंगे? A) पागल को रोकने की कोशिश करेंगे, B) अपने घर के दरवाजे बन्द कर लेंगे कि, मुझे क्या करना है? (यह बिन्दु शंकर फ़ुलारा जी के ब्लॉग से साभार)

4) इसी से मिलता जुलता तर्क कई बार बलात्कार/छेड़छाड़ के मामले में भी दे दिया जाता है, कि अकेले इतनी रात को वह उधर गई ही क्यों थी, या फ़िर ऐसे कपड़े ही क्यों पहने कि छेड़छाड़ हो?

इन तर्कों में कोई दम नहीं है, क्योंकि यह पीड़ित को दोषी मानते हैं, अन्यायकर्ता को नहीं। मेरे ब्लॉग पर आई हुई टिप्पणियों को इन सवालों से जोड़कर देखें, कि यदि स्मिता लालच में फ़ँसकर अपनी इज़्ज़त लुटवा रही है तो आलोचना किसकी होना चाहिये स्टार प्लस की या स्मिता की? सामाजिक जिम्मेदारी किसकी अधिक बनती है स्मिता की या स्टार प्लस की? “चैनलों का काम ही है अश्लीलता फ़ैलाना और बुराई दिखाना…” यह कहना बेतुका इसलिये है कि ऐसा करने का अधिकार उन्हें किसने दिया है? और यदि वे अश्लीलता फ़ैलाते हैं और हम अपनी आँखें या टीवी बन्द कर लें तो बड़ा दोष किसका है? आँखें (टीवी) बन्द करने वाले का या उस चैनल का? इस दृष्टि से तो हमें केतन पारिख को रिहा कर देना चाहिये, क्योंकि स्मिता की तरह ही निवेशक भी लालच में फ़ँसे हैं सो गलती भी उन्हीं की है, वे लोग क्यों शेयर बाजार में घुसे, केतन पारेख का तो काम ही है चूना लगाना? शराब बनाने वालों को छोड़ देना चाहिये क्योंकि यह तो “चॉइस” का मामला है, सिगरेट कम्पनियों को कानून के दायरे से बाहर कर देना चाहिये क्योंकि पीने वाला खुद ही अपनी जिम्मेदारी से वह सब कर रहा है? यह भी तो एक प्रकार का “स-सहमति सहशयन” ही है, बलात्कार नहीं।

इसी प्रकार यदि कहीं पर कोई अपसंस्कृति (कूड़ा-करकट) फ़ैला रहा है तब अपने दरवाजे बन्द कर लेना सही है अथवा उसकी आलोचना करके, उसकी शिकायत करके (फ़िर भी न सुधरे तो ठुकाई करके) उसे ठीक करना सही है। दरवाजे बन्द करना, आँखें बन्द करना अथवा टीवी बन्द करना कोई इलाज नहीं है, यह तो बीमारी को अनदेखा करना हुआ। ऐसे चैनल क्यों देखते हो का जवाब तो यही है कि वरना पता कैसे चलेगा कि कौन-कौन, कहाँ-कहाँ, कैसी-कैसी गन्दगी फ़ैला रहा है? न्यूज़ चैनल देखकर ही तो पता चलता है कि कितने न्यूज़ चैनल भाजपा-संघ-हिन्दुत्व विरोधी हैं?, कौन सा चैनल एक परिवार विशेष का चमचा है, कौन सा चैनल “तथाकथित प्रगतिशीलता” का झण्डाबरदार बना हुआ है। अतः इस “अपसंस्कृति” (यदि कोई इसे अपसंस्कृति नहीं मानता तो यह उसकी विचारधारा है) की आलोचना करना, इसका विरोध करना, इसे रोकने की कोशिश करना, एक जागरूक नागरिक का फ़र्ज़ बनता है (भले ही इस कोशिश में उसे दकियानूसी या पिछड़ा हुआ घोषित कर दिया जाये)।

यदि यह शो वयस्कों के लिये है तब इस प्रकार की वैधानिक चेतावनी क्यों नहीं जारी की गई और इसका समय 10.30 की बजाय रात 12.30 क्यों नहीं रखा गया? कांबली-सचिन के फ़ुटेज दिखा-दिखाकर इसका प्रचार क्यों किया जा रहा है? क्योंकि पहले भी कंडोम के प्रचार में राहुल द्रविड और वीरेन्द्र सहवाग को लिया जा चुका है और कई घरों में बच्चे पूछते नज़र आये हैं कि पापा क्रिकेट खेलते समय मैं भी राहुल द्रविड जैसा कण्डोम पहनूंगा… क्या यह कार्यक्रम बनाने वाला चाहता है कि कुछ और ऐसे ही सवाल बच्चे घरों में पूछें?

बहरहाल, यह बहस तो अन्तहीन हो सकती है, क्योंकि भारत में “आधुनिकता”(?) के मापदण्ड बदल गये हैं (बल्कि चालबाजी द्वारा मीडिया ने बदल दिये गये हैं), एक नज़र इन खबरों पर डाल लीजिये जिसमें इस घटिया शो के कारण विभिन्न देशों में कैसी-कैसी विडम्बनायें उभरकर सामने आई हैं, कुछ देशों में इस शो को प्रतिबन्धित कर दिया गया है, जबकि अमेरिका जैसे “खुले विचारों”(?) वाले देश में भी इसके कारण तलाक हो चुके हैं और परिवार बिखर चुके हैं…।

प्रकरण – 1 : मोमेंट ऑफ़ ट्रुथ का ग्रीक संस्करण प्रतिबन्धित किया गया…

मीडिया मुगल रूपर्ट मर्डोक जिन्होंने अपनी पोती की उम्र की लड़की वेंडी से शादी की है और मीडिया के जरिये “बाजारू क्रान्ति” लाने के लिये विख्यात हैं उनकी पुत्री एलिज़ाबेथ मर्डोक द्वारा निर्मित यह शो कई देशों में बेचा गया है और इसकी हू-ब-हू नकल कई देशों में जारी है, का ग्रीक संस्करण ग्रीस सरकार ने प्रतिबन्धित कर दिया है। ग्रीस के सरकारी चैनल “एण्टेना” द्वारा इस शो में विभिन्न भद्दी स्वीकृतियों और परिवार पर पड़ने वाले बुरे असर के चल्ते यह शो बन्द कर दिया गया। इसके फ़रवरी वाले एक शो में एक माँ से उसकी बेटी-दामाद के सामने पूछा गया था कि “क्या वह अपनी बेटी की शादी एक अमीर दामाद से करना चाहती थी”, उसने हाँ कहा और उसके गरीब दामाद-बेटी के घर में दरार पड़ गई। मार्च में हुए एक शो में पति के सामने महिला से पूछा गया था कि क्या वह पैसों के लिये किसी गैर-मर्द के साथ सो सकती है?
खबर का स्रोत यहाँ है http://www.guardian.co.uk/world/2009/jun/24/greek-quiz-show-confessions-banned

इसका वीडियो लिंक यहाँ है http://www.youtube.com/watch?v=yMvuQugBKCE

प्रकरण 2 – पति की हत्या के लिये भाड़े का हत्यारा लेना स्वीकार करने पर कोलम्बिया में भी इस शो पर प्रतिबन्ध (मूल रिपोर्ट जोशुआ गुडमैन APP)

कोलम्बिया में गेम शो “नथिंग बट ट्रूथ” को बैन कर दिया गया, जब एक प्रतिभागी ने 25,000 डालर के इनाम के लिये यह स्वीकार कर लिया कि उसने अपने पति की हत्या के लिये एक भाड़े के हत्यारे को पैसा दिया था। कोलम्बिया में प्रसारित इस शो में सभी प्रतिभागियों ने ड्रग स्मगलिंग, समलैंगिक सम्बन्धों और शादीशुदा होने के बावजूद रोज़ाना वेश्यागमन को स्वीकार किया। लेकिन 2 अक्टूबर 2007 को रोज़ा मारिया द्वारा यह स्वीकार किये जाने के बाद कि उसने अपने पति की हत्या की सुपारी दी थी लेकिन ऐन वक्त पर उसका पति हमेशा के लिये कहीं भाग गया और यह काम पूरा न हो सका, के बाद यह शो बन्द कर दिया गया।
खबर का स्रोत यहाँ देखें http://www.textually.org/tv/archives/2007/10/017595.htm

प्रकरण 3 – लॉरेन क्लेरी : मोमेंट ऑफ़ ट्रुथ ने उसका तलाक करवा दिया…

इस शो में लॉरेन क्लेरी नामक महिला ने यह स्वीकार कर लिया कि वह अपने पति को धोखा दे रही है और अपने पूर्व मित्र से शादी करना चाहती है। लॉरेन ने स्वीकार किया किया कि वह यह सब पैसे के लिये कर रही है। उसके पति फ़्रैंक क्लेरी ने कहा कि उसे शक था कि उसकी पत्नी उसके प्रति वफ़ादार नहीं है और शायद मामला धीरे-धीरे सुलझ जायेगा, लेकिन इस तरह सार्वजनिक रूप से पत्नी के यह स्वीकार करने के बाद उसे बेहद शर्मिन्दगी हुई है। लॉरेन क्लेरी इस कार्यक्रम से कुछ पैसा ले गई, लेकिन शायद यह उसे तलाक दिलवाने से नहीं रोक सकेगा।

इसका वीडियो लिंक देखने के लिये यहाँ चटका लगायें…
Video link : http://www.transworldnews.com/NewsStory.aspx?id=38398&cat=14

प्रकरण 4 – अमेरिका में इस शो के सातवें एपीसोड में एक कारपेंटर ने स्वीकार किया कि वह अपनी पत्नी की बहन और उसकी सहेलियों के साथ सोता रहा है और कई बार उसने एक माह में विभिन्न 25 महिलाओं के साथ सेक्स किया है। एपीसोड क्रमांक 9 में पॉल स्कोन ने एक लाख डालर में यह सच(?) कहा कि वह प्रत्येक सेक्स की जाने वाली महिला की अंडरवियर संभालकर रखता है, और कई महिलाओं से उसने सेक्स करने के पैसे भी लिये हैं।

खबर का स्रोत देखने के लिये यहाँ चटका लगायें http://en.wikipedia.org/wiki/List_of_The_Moment_of_Truth_episodes#Episode_7

अब कहिये… इतना सब हो चुकने के बावजूद फ़िर भी यदि हम भारत में इस शो को जारी रखने पर उतारू हैं तब तो वाकई हमारा भयानक नैतिक पतन हो चुका है। एक बात और है कि “नाली में गन्दगी दिखाई दे रही है तो उसे साफ़ करने की कोशिश करना चाहिये, यदि नहीं कर सकते तो उसे ढँकना चाहिये, लेकिन यह जाँचने के लिये, कि नाली की गन्दगी वाकई गन्दगी है या नहीं, उसे हाथ में लेकर घर में प्रवेश करना कोई जरूरी नहीं…”।

(नोट – इस लेख के लिये भी मैं अपनी कॉपीराइट वाली शर्त हटा रहा हूँ, इस लेख को कहीं भी कॉपी-पेस्ट किया जा सकता है।)

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