नारी का सम्मान, सामाजिक मूल्य और TRP के भूखे भेड़िये… Sach Ka Samna, Star Plus, TRP & Dignity of a Woman
Written by Super User शुक्रवार, 17 जुलाई 2009 17:03
किसी महिला की इज़्ज़त, सम्मान और उसके परिवार के प्रति समर्पण की क्या कीमत तय की जा सकती है? उत्तरप्रदेश में तो रीता बहुगुणा ने मायावती की इज़्ज़त का भाव एक करोड़ लगाया है, लेकिन यहाँ बात दूसरी है। स्टार प्लस ने अपने कार्यक्रम “सच का सामना” में महिला की बेइज़्ज़ती की कीमत सीढ़ी-दर-सीढ़ी तय कर रखी है, कार्यक्रम में प्रतियोगी (चाहे वह मर्द हो या औरत) जिस स्तर तक अपमानित होना चाहता उसे उस प्रकार की कीमत दी जायेगी, यानी 1 लाख, 5 लाख, 10 लाख आदि।
जिन पाठकों ने अभी तक यह कार्यक्रम नहीं देखा है उन्हें ज़रूर देखना चाहिये, ताकि उन्हें भी पता चले कि “बालिका वधू” द्वारा बुरी तरह पिटाई किये जाने के बाद, TRP नामक गन्दगी के लिये इलेक्ट्रानिक मीडियारूपी भेड़िया कितना नीचे गिर सकता है।
कार्यक्रम के निर्माताओं द्वारा दावा किया जा रहा है कि यह कार्यक्रम “पॉलिग्राफ़िक टेस्ट” (झूठ पकड़ने वाली मशीन) के आधार पर तैयार किया गया है। इसमें प्रतियोगी को पहले इस मशीन पर बैठाकर उससे उसकी निजी जिन्दगी से जुड़े 50 सवाल किये जाते हैं, जिसकी रिकॉर्डिंग मशीन में रखी जाती है कि किस सवाल पर उसने सच बोला या झूठ बोला (हालांकि इस मशीन की वैधानिकता कुछ भी नहीं है, शायद न्यायालय ने भी इसे सबूत के तौर पर मानने से इंकार किया हुआ है, क्योंकि व्यक्ति के मन में क्या चल रहा है इस बारे में यह मशीन शरीर में होने वाले परिवर्तनों और उतार-चढ़ावों के आधार पर “सम्भावना” – सिर्फ़ सम्भावना, व्यक्त करती है, इसमें दर्ज जवाबों को पूरी तौर पर सच नहीं माना जा सकता, क्योंकि यदि ऐसा होता तो भारत में सभी अपराधी सजा पा जाते)। प्रतियोगियों को उनके द्वारा दिये गये “मशीन टेस्ट” के उत्तरों के बारे में नहीं बताया जाता, और यही चालबाजी है।
हालांकि कहने के लिये तो इस कार्यक्रम को खेल का नाम दिया गया है, लेकिन हकीकत में यह “दूसरों की इज़्ज़त उतारकर उसे सरेआम नीचा दिखाकर खुश होने” के मानव के आदिम स्वभाव पर आधारित है। इसमें एंकर 21 सवाल पूछेगा और पूरी तरह से नंगा होने वाले आदमी (या औरत) को एक करोड़ रुपये दिये जायेंगे। जिस तरह आज भी दूरस्थ इलाके में स्थित गाँवों में दलितों की स्त्रियों को नंगा किया जाता है और लोग आसपास खड़े होकर तालियाँ पीटते हैं, यह कार्यक्रम “सच का सामना” उसी का “सोफ़िस्टिकेटेड” स्वरूप है। आपकी सास ज्यादा अच्छी है या माँ? क्या आपको अपने भाई से कम प्यार मिला? यह तो हुए आसान सवाल, लेकिन पाँचवां सवाल आते-आते स्टार प्लस अपनी औकात पर आ जाता है…… क्या आप अपने पति की हत्या करना चाहती थीं?, क्या आपने कभी अपने पति से बेवफ़ाई की है? (यहाँ बेवफ़ाई का मतलब पर्स में से रुपये से चुराने से नहीं है), यदि आपके पति को पता ना चले तो क्या आप किसी गैर-मर्द के साथ सो सकती हैं? ऐसे सवाल पूछे जाने लगते हैं, यानी निजी सम्बन्धों और बेडरूम को सार्वजनिक किया जाने लगता है “सच बोलने” के महान नैतिक कर्म(?) के नाम पर।
जिन्होंने पहला एपीसोड देखा है उन्होंने महसूस किया होगा कि किस प्रकार एक मध्यमवर्गीय महिला जो टीचर है और टिफ़िन सेंटर का भी काम करती है, जिसका पति मुश्किल से शराब की लत से बाहर निकला है और उस महिला ने एक बेहद संघर्षमय जीवन जिया है… ऐसी महिला को यह बताया जाना कि पॉलिग्राफ़िक मशीन में उसने यह जवाब दिया था कि, “हाँ वह किसी गैर-मर्द के साथ सो सकती है…” कितना कष्टदायक हो सकता है। प्रतियोगी स्मिता मथाई के चेहरे पर अविश्वास मिश्रित आश्चर्य और आँसू थे, तथा स्टार प्लस अपना TRP मीटर देख रहा था।
सवाल उठाया जा सकता है कि सब कुछ मालूम होते हुए भी प्रतियोगी क्यों ऐसे कार्यक्रम में शामिल होने के लिये राजी होते हैं? इसका जवाब यह है कि जो 50 सवाल उनसे पहले पूछे जाते हैं, उनमें से सिर्फ़ 10 सवाल ही ऐसे होते हैं जो उनके निजी जीवन और अंतरंग सम्बन्धों से जुड़े होते हैं, बाकी के सवाल… क्या आपको रसगुल्ला अच्छा लगता है?, क्या आप बगीचे में घूमते समय फ़ूल तोड़ लाती हैं? इस प्रकार के सवाल होते हैं, प्रतियोगी को पता नहीं होता कि इन 50 सवालों में से कौन से 21 सवाल कार्यक्रम में पूछे जायेंगे, फ़िर साथ में 10-20 लाख के “लालच की गाजर” भी तो लटकी होती है। एक सामान्य व्यक्ति का इस चालबाजी में फ़ँसना स्वाभाविक है। चालबाजी (बल्कि घटियापन कहना उचित है) भी ऐसी कि वह प्रतियोगी पॉलिग्राफ़िक मशीन के टेस्ट को चुनौती तो दे नहीं सकता, अब यदि स्टार प्लस ने कह दिया कि आपने उस समय यह जवाब दिया था, वही सही मानना पड़ेगा। भले ही फ़िर प्रतियोगी बाद में लाख चिल्लाते रहें कि मैंने कभी नहीं कहा था कि “मैं गैर-मर्द के साथ सोने को तैयार हूँ”, कौन सुनने वाला है? प्रतियोगी का तो परिवार बर्बाद हो गया, उसे आने वाले जीवन में ताने, लानत-मलामत सुनना ही है, इस सबसे चैनल को क्या… उस “गंदगी से खेलने वाले चैनल को तो मजा आ गया”, उसका तो मकसद यही था किस तरह से नाली की ढँकी हुई गन्दगी में थूथनी मारकर उसे सड़क पर सबसे सामने फ़ैला दिया जाये। दुख की बात यह है कि बात-बेबात पर नारी सम्मान का झण्डा बुलन्द करने वाले महिला संगठन नारी के इस असम्मान पर अभी तक चुप हैं।
हालांकि राखी सावन्त या मल्लिका शेरावत का सम्मान भी नारी का सम्मान ही है, लेकिन चूँकि वे लोग “पेज थ्री” नामक कथित सामाजिक स्टेटस(?) से आते हैं इसलिये वे खुद ही चाहती हैं कि लोग उनके निजी सम्बन्धों और गैर-मर्द से रोमांस के बारे में जानें, बातें करें, चिकने पृष्ठों पर उनकी अधनंगी तस्वीरें छपें। फ़िर वे ठहरीं कथित “हाई सोसायटी” की महिलायें, जिनके लिये समलैंगिकता, सरेआम चूमाचाटी या सड़क पर सेक्स करना भी “अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता” हो सकती है। दूसरे एपिसोड में आलोचना से बचने और महिला-पुरुष के बीच “बैलेंस” बनाने के लिये एक मुस्लिम अभिनेता को शो में बुलाया गया और उससे भी वही फ़ूहड़ सवाल पूछे गये कि “आपकी तीन बीवियों में से आप किसे अधिक चाहते हैं?”, “अपनी बेटी को दूसरी पत्नी को सौंपने पर आपको अफ़सोस है?”, “क्या आपकी दूसरी बीबी पैसों की लालची है?”, “क्या आपकी कोई नाजायज़ औलाद है?” आदि-आदि…। वे भी बड़ी बहादुरी(?) और खुशी से इन सवालों के जवाब देते रहे, लेकिन जैसा कि पहले कहा ये लोग “पेज थ्री सेलेब्रिटी”(?) हैं इन लोगों की इज्जत क्या और बेइज़्ज़ती क्या? लेकिन यहाँ मामला है एक आम स्त्री का जो शायद लालच, मजबूरी अथवा स्टार की धोखेबाजी के चलते सार्वजनिक रूप से शर्मिन्दा होने को बाध्य हो गई है।
अब आते हैं इस कार्यक्रम के असली मकसद पर, जैसा सर्वविदित है कि कलर्स चैनल पर आने वाले कार्यक्रम “बालिका वधू” द्वारा TRP के खेल में स्टार प्लस को बुरी तरह खदेड़ दिया गया है। स्टार प्लस पहले भी विदेशी कार्यक्रमों की नकल करके अपनी TRP बढ़ाता रहा है, अथवा एकता कपूर मार्का “घरतोड़क और बहुपतिधारी बीमारी वाले सीरियलों” को बढ़ावा देकर गन्दगी फ़ैलाता रहा है, लेकिन जब उसे एक खालिस देशी “कॉन्सेप्ट” पर आधारित बालिका वधू ने हरा दिया तो बेकरारी और पागलपन में स्टार प्लस को TRP बढ़ाने का सबसे अच्छा तरीका लगा “नंगई का प्रदर्शन”। पहले तो स्टार प्लस ने ओछे हथकण्डे अपनाकर कभी सामाजिक संगठनों, कभी बाल-विवाह विरोधी NGOs को आगे करके और कभी शरद यादव के जरिये संसद में सवाल उठवाकर बालिका वधू को बन्द करवाने / बदनाम करने की कोशिश की, लेकिन फ़िर भी बात नहीं बनी तो “लोकप्रियता”(?) पाने का यह नायाब तरीका ढूँढ निकाला गया। सच का सामना नामक यह कार्यक्रम पूरी तरह से धोखेबाजी पर आधारित है, जिसमें स्टार प्लस जब चाहे बेईमानी कर सकता है (पहले ही एपिसोड में की) (इस बात में कोई दम नहीं है कि इतना बड़ा चैनल और पैसे वाले लोग थोड़े से पैसों के लिये बेईमानी नहीं कर सकते)।
माना कि TRP के भूखे भेड़िये किसी भी हद तक गिर सकते हैं (मुम्बई हमलों के वक्त ये लोग राष्ट्रद्रोही की भूमिका में थे), लेकिन आखिर सेंसर बोर्ड क्या कर रहा है? सूचना-प्रसारण मंत्रालय क्यों सोया हुआ है? महिला आयोग क्या कर रहा है? सुषमा स्वराज, ममता बैनर्जी, गिरिजा व्यास, मीरा कुमार जैसी दबंग महिलायें क्यों हाथ पर हाथ धरे बैठी हैं? क्या मायावती की इज़्ज़त ही इज़्ज़त है, स्मिता मथाई की इज़्ज़त कुछ नहीं है?
क्या स्टार प्लस किसी IAS अफ़सर को बुलाकर लाई-डिटेक्टर टेस्ट कर सकता है कि उस अफ़सर ने कितने करोड़ रुपये भ्रष्टाचार से बनाये हैं? या क्या स्टार प्लस किसी नेता को बुलाकर पूछ सकता है कि क्या आपने कभी चुनाव में धांधली की है? हरगिज़ नहीं, ऐसा कभी नहीं हो सकता, क्योंकि कार्यक्रम का मकसद सिर्फ़ नंगापन प्रदर्शित करके सनसनी फ़ैलाना है ताकि स्टार प्लस की “परम्परा” के अनुसार परिवारों और समाज में और दरारें पैदा हों… अमेरिका में इस शो के मूल संस्करण ने कई परिवारों को बरबाद कर दिया है (वह भी तब जबकि अमेरिका में परिवार नामक संस्था पहले ही कमजोर है), इसके निहितार्थ भारतीय संस्कृति और समाज पर कितने गहरे हो सकते हैं, इसका अन्दाज़ा शायद अभी किसी को नहीं है।
सुना है कि सिर्फ़ एक पोस्टकार्ड के आधार को भी सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश किसी मामले में जनहित याचिका के तौर पर स्वीकार कर सकते हैं? क्या इस लेख को भी समाज में अनैतिकता फ़ैलाने और एक घरेलू महिला को सार्वजनिक तौर पर अपमानित करने की शिकायत हेतु जनहित याचिका के तौर पर स्वीकार किया जा सकता है???
(नोट – इस लेख के लिये मैं अपनी कॉपीराइट वाली शर्त हटा रहा हूँ, इस लेख को कहीं भी कॉपी-पेस्ट किया जा सकता है। इस बात का भी विश्वास है कि महिला ब्लॉगर्स इस घटिया “खेल” को समझेंगी और इसके खिलाफ़ उचित मंचों से अवश्य आवाज़ उठायेंगी)
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कार्यक्रम के निर्माताओं द्वारा दावा किया जा रहा है कि यह कार्यक्रम “पॉलिग्राफ़िक टेस्ट” (झूठ पकड़ने वाली मशीन) के आधार पर तैयार किया गया है। इसमें प्रतियोगी को पहले इस मशीन पर बैठाकर उससे उसकी निजी जिन्दगी से जुड़े 50 सवाल किये जाते हैं, जिसकी रिकॉर्डिंग मशीन में रखी जाती है कि किस सवाल पर उसने सच बोला या झूठ बोला (हालांकि इस मशीन की वैधानिकता कुछ भी नहीं है, शायद न्यायालय ने भी इसे सबूत के तौर पर मानने से इंकार किया हुआ है, क्योंकि व्यक्ति के मन में क्या चल रहा है इस बारे में यह मशीन शरीर में होने वाले परिवर्तनों और उतार-चढ़ावों के आधार पर “सम्भावना” – सिर्फ़ सम्भावना, व्यक्त करती है, इसमें दर्ज जवाबों को पूरी तौर पर सच नहीं माना जा सकता, क्योंकि यदि ऐसा होता तो भारत में सभी अपराधी सजा पा जाते)। प्रतियोगियों को उनके द्वारा दिये गये “मशीन टेस्ट” के उत्तरों के बारे में नहीं बताया जाता, और यही चालबाजी है।
हालांकि कहने के लिये तो इस कार्यक्रम को खेल का नाम दिया गया है, लेकिन हकीकत में यह “दूसरों की इज़्ज़त उतारकर उसे सरेआम नीचा दिखाकर खुश होने” के मानव के आदिम स्वभाव पर आधारित है। इसमें एंकर 21 सवाल पूछेगा और पूरी तरह से नंगा होने वाले आदमी (या औरत) को एक करोड़ रुपये दिये जायेंगे। जिस तरह आज भी दूरस्थ इलाके में स्थित गाँवों में दलितों की स्त्रियों को नंगा किया जाता है और लोग आसपास खड़े होकर तालियाँ पीटते हैं, यह कार्यक्रम “सच का सामना” उसी का “सोफ़िस्टिकेटेड” स्वरूप है। आपकी सास ज्यादा अच्छी है या माँ? क्या आपको अपने भाई से कम प्यार मिला? यह तो हुए आसान सवाल, लेकिन पाँचवां सवाल आते-आते स्टार प्लस अपनी औकात पर आ जाता है…… क्या आप अपने पति की हत्या करना चाहती थीं?, क्या आपने कभी अपने पति से बेवफ़ाई की है? (यहाँ बेवफ़ाई का मतलब पर्स में से रुपये से चुराने से नहीं है), यदि आपके पति को पता ना चले तो क्या आप किसी गैर-मर्द के साथ सो सकती हैं? ऐसे सवाल पूछे जाने लगते हैं, यानी निजी सम्बन्धों और बेडरूम को सार्वजनिक किया जाने लगता है “सच बोलने” के महान नैतिक कर्म(?) के नाम पर।
जिन्होंने पहला एपीसोड देखा है उन्होंने महसूस किया होगा कि किस प्रकार एक मध्यमवर्गीय महिला जो टीचर है और टिफ़िन सेंटर का भी काम करती है, जिसका पति मुश्किल से शराब की लत से बाहर निकला है और उस महिला ने एक बेहद संघर्षमय जीवन जिया है… ऐसी महिला को यह बताया जाना कि पॉलिग्राफ़िक मशीन में उसने यह जवाब दिया था कि, “हाँ वह किसी गैर-मर्द के साथ सो सकती है…” कितना कष्टदायक हो सकता है। प्रतियोगी स्मिता मथाई के चेहरे पर अविश्वास मिश्रित आश्चर्य और आँसू थे, तथा स्टार प्लस अपना TRP मीटर देख रहा था।
सवाल उठाया जा सकता है कि सब कुछ मालूम होते हुए भी प्रतियोगी क्यों ऐसे कार्यक्रम में शामिल होने के लिये राजी होते हैं? इसका जवाब यह है कि जो 50 सवाल उनसे पहले पूछे जाते हैं, उनमें से सिर्फ़ 10 सवाल ही ऐसे होते हैं जो उनके निजी जीवन और अंतरंग सम्बन्धों से जुड़े होते हैं, बाकी के सवाल… क्या आपको रसगुल्ला अच्छा लगता है?, क्या आप बगीचे में घूमते समय फ़ूल तोड़ लाती हैं? इस प्रकार के सवाल होते हैं, प्रतियोगी को पता नहीं होता कि इन 50 सवालों में से कौन से 21 सवाल कार्यक्रम में पूछे जायेंगे, फ़िर साथ में 10-20 लाख के “लालच की गाजर” भी तो लटकी होती है। एक सामान्य व्यक्ति का इस चालबाजी में फ़ँसना स्वाभाविक है। चालबाजी (बल्कि घटियापन कहना उचित है) भी ऐसी कि वह प्रतियोगी पॉलिग्राफ़िक मशीन के टेस्ट को चुनौती तो दे नहीं सकता, अब यदि स्टार प्लस ने कह दिया कि आपने उस समय यह जवाब दिया था, वही सही मानना पड़ेगा। भले ही फ़िर प्रतियोगी बाद में लाख चिल्लाते रहें कि मैंने कभी नहीं कहा था कि “मैं गैर-मर्द के साथ सोने को तैयार हूँ”, कौन सुनने वाला है? प्रतियोगी का तो परिवार बर्बाद हो गया, उसे आने वाले जीवन में ताने, लानत-मलामत सुनना ही है, इस सबसे चैनल को क्या… उस “गंदगी से खेलने वाले चैनल को तो मजा आ गया”, उसका तो मकसद यही था किस तरह से नाली की ढँकी हुई गन्दगी में थूथनी मारकर उसे सड़क पर सबसे सामने फ़ैला दिया जाये। दुख की बात यह है कि बात-बेबात पर नारी सम्मान का झण्डा बुलन्द करने वाले महिला संगठन नारी के इस असम्मान पर अभी तक चुप हैं।
हालांकि राखी सावन्त या मल्लिका शेरावत का सम्मान भी नारी का सम्मान ही है, लेकिन चूँकि वे लोग “पेज थ्री” नामक कथित सामाजिक स्टेटस(?) से आते हैं इसलिये वे खुद ही चाहती हैं कि लोग उनके निजी सम्बन्धों और गैर-मर्द से रोमांस के बारे में जानें, बातें करें, चिकने पृष्ठों पर उनकी अधनंगी तस्वीरें छपें। फ़िर वे ठहरीं कथित “हाई सोसायटी” की महिलायें, जिनके लिये समलैंगिकता, सरेआम चूमाचाटी या सड़क पर सेक्स करना भी “अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता” हो सकती है। दूसरे एपिसोड में आलोचना से बचने और महिला-पुरुष के बीच “बैलेंस” बनाने के लिये एक मुस्लिम अभिनेता को शो में बुलाया गया और उससे भी वही फ़ूहड़ सवाल पूछे गये कि “आपकी तीन बीवियों में से आप किसे अधिक चाहते हैं?”, “अपनी बेटी को दूसरी पत्नी को सौंपने पर आपको अफ़सोस है?”, “क्या आपकी दूसरी बीबी पैसों की लालची है?”, “क्या आपकी कोई नाजायज़ औलाद है?” आदि-आदि…। वे भी बड़ी बहादुरी(?) और खुशी से इन सवालों के जवाब देते रहे, लेकिन जैसा कि पहले कहा ये लोग “पेज थ्री सेलेब्रिटी”(?) हैं इन लोगों की इज्जत क्या और बेइज़्ज़ती क्या? लेकिन यहाँ मामला है एक आम स्त्री का जो शायद लालच, मजबूरी अथवा स्टार की धोखेबाजी के चलते सार्वजनिक रूप से शर्मिन्दा होने को बाध्य हो गई है।
अब आते हैं इस कार्यक्रम के असली मकसद पर, जैसा सर्वविदित है कि कलर्स चैनल पर आने वाले कार्यक्रम “बालिका वधू” द्वारा TRP के खेल में स्टार प्लस को बुरी तरह खदेड़ दिया गया है। स्टार प्लस पहले भी विदेशी कार्यक्रमों की नकल करके अपनी TRP बढ़ाता रहा है, अथवा एकता कपूर मार्का “घरतोड़क और बहुपतिधारी बीमारी वाले सीरियलों” को बढ़ावा देकर गन्दगी फ़ैलाता रहा है, लेकिन जब उसे एक खालिस देशी “कॉन्सेप्ट” पर आधारित बालिका वधू ने हरा दिया तो बेकरारी और पागलपन में स्टार प्लस को TRP बढ़ाने का सबसे अच्छा तरीका लगा “नंगई का प्रदर्शन”। पहले तो स्टार प्लस ने ओछे हथकण्डे अपनाकर कभी सामाजिक संगठनों, कभी बाल-विवाह विरोधी NGOs को आगे करके और कभी शरद यादव के जरिये संसद में सवाल उठवाकर बालिका वधू को बन्द करवाने / बदनाम करने की कोशिश की, लेकिन फ़िर भी बात नहीं बनी तो “लोकप्रियता”(?) पाने का यह नायाब तरीका ढूँढ निकाला गया। सच का सामना नामक यह कार्यक्रम पूरी तरह से धोखेबाजी पर आधारित है, जिसमें स्टार प्लस जब चाहे बेईमानी कर सकता है (पहले ही एपिसोड में की) (इस बात में कोई दम नहीं है कि इतना बड़ा चैनल और पैसे वाले लोग थोड़े से पैसों के लिये बेईमानी नहीं कर सकते)।
माना कि TRP के भूखे भेड़िये किसी भी हद तक गिर सकते हैं (मुम्बई हमलों के वक्त ये लोग राष्ट्रद्रोही की भूमिका में थे), लेकिन आखिर सेंसर बोर्ड क्या कर रहा है? सूचना-प्रसारण मंत्रालय क्यों सोया हुआ है? महिला आयोग क्या कर रहा है? सुषमा स्वराज, ममता बैनर्जी, गिरिजा व्यास, मीरा कुमार जैसी दबंग महिलायें क्यों हाथ पर हाथ धरे बैठी हैं? क्या मायावती की इज़्ज़त ही इज़्ज़त है, स्मिता मथाई की इज़्ज़त कुछ नहीं है?
क्या स्टार प्लस किसी IAS अफ़सर को बुलाकर लाई-डिटेक्टर टेस्ट कर सकता है कि उस अफ़सर ने कितने करोड़ रुपये भ्रष्टाचार से बनाये हैं? या क्या स्टार प्लस किसी नेता को बुलाकर पूछ सकता है कि क्या आपने कभी चुनाव में धांधली की है? हरगिज़ नहीं, ऐसा कभी नहीं हो सकता, क्योंकि कार्यक्रम का मकसद सिर्फ़ नंगापन प्रदर्शित करके सनसनी फ़ैलाना है ताकि स्टार प्लस की “परम्परा” के अनुसार परिवारों और समाज में और दरारें पैदा हों… अमेरिका में इस शो के मूल संस्करण ने कई परिवारों को बरबाद कर दिया है (वह भी तब जबकि अमेरिका में परिवार नामक संस्था पहले ही कमजोर है), इसके निहितार्थ भारतीय संस्कृति और समाज पर कितने गहरे हो सकते हैं, इसका अन्दाज़ा शायद अभी किसी को नहीं है।
सुना है कि सिर्फ़ एक पोस्टकार्ड के आधार को भी सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश किसी मामले में जनहित याचिका के तौर पर स्वीकार कर सकते हैं? क्या इस लेख को भी समाज में अनैतिकता फ़ैलाने और एक घरेलू महिला को सार्वजनिक तौर पर अपमानित करने की शिकायत हेतु जनहित याचिका के तौर पर स्वीकार किया जा सकता है???
(नोट – इस लेख के लिये मैं अपनी कॉपीराइट वाली शर्त हटा रहा हूँ, इस लेख को कहीं भी कॉपी-पेस्ट किया जा सकता है। इस बात का भी विश्वास है कि महिला ब्लॉगर्स इस घटिया “खेल” को समझेंगी और इसके खिलाफ़ उचित मंचों से अवश्य आवाज़ उठायेंगी)
Sach Ka Samna, Star Plus, TRP of TV Programmes, Dignity of a Woman on Indian TV Shows, Reality Shows and TRP, Balika Vadhu, Ekta Kapoor and Star Plus, Rakhi Sawant, Mallika Sherawat, सच का सामना, स्टार प्लस, टीआरपी का खेल और भारतीय मीडिया, नारी का सम्मान और भारतीय चैनल, बालिका वधू, राखी सावन्त, मल्लिका शेरावत, Blogging, Hindi Blogging, Hindi Blog and Hindi Typing, Hindi Blog History, Help for Hindi Blogging, Hindi Typing on Computers, Hindi Blog and Unicode
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