वामपंथियों और एवेंजेलिस्ट ईसाईयों को सबक सिखाती, केरल की बर्बर घटना… ...Taliban in Kerala, Threat to Communists and Evangelists
Written by Super User शुक्रवार, 09 जुलाई 2010 18:41
हाल ही में केरल के थोडुपुझा में एक कॉलेज के प्रोफ़ेसर टीजे जोसफ़ पर कुछ मुस्लिम आतंकियों ने दिनदहाड़े हमला किया और उनके हाथ काट दिये। जैसा कि सभी जानते हैं यह मामला उस समय चर्चा में आया था, जब प्रोफ़ेसर जोसफ़ ने कॉलेज के बी कॉम परीक्षा में एक प्रश्नपत्र तैयार किया था जिसमें "मुहम्मद" शब्द का उल्लेख आया था। चरमपंथी मुस्लिमों का आरोप था कि जोसफ़ ने जानबूझकर "मोहम्मद" शब्द का उल्लेख अपमानजनक तरीके से किया और इस वजह से "उन्मादी भीड़ के रेले" ने उन्हें "ईशनिंदा" का दोषी मान लिया गया।
जिस दिन यह प्रश्नपत्र आया था, उसी दिन शाम को थोडुपुझा में मुस्लिम संगठनों ने सड़कों पर जमकर हंगामा और तोड़फ़ोड़ की थी, तथा कॉलेज प्रशासन पर दबाव बनाने के लिये राजनैतिक पैंतरेबाजी शुरु कर दी थी। केरल में पिछले कई वर्षों से या तो कांग्रेस की सरकार रही है अथवा वामपंथियों की, और दोनों ही पार्टियाँ ईसाई और मुस्लिम "वोट बैंक" का समय-समय पर अपने फ़ायदे के लिये उपयोग करती रही हैं (क्योंकि हिन्दू वोट बैंक नाम की कोई चीज़ अस्तित्व में नहीं है)। फ़िलहाल केरल में वामपंथी सत्ता में हैं, जिनके "परम विद्वान मुख्यमंत्री" हैं श्री अच्युतानन्दन (याद आया? जी हाँ, वही अच्युतानन्दन जिन्हें स्वर्गीय मेजर उन्नीकृष्णन के पिता ने घर से बाहर निकाल दिया था)।
पहले समूचे घटनाक्रम पर एक संक्षिप्त नज़र - थोडुपुझा के कॉलेज प्रोफ़ेसर जोसफ़ ने एक प्रश्नपत्र तैयार किया, जो कि विश्वविद्यालय के कोर्स पैटर्न और पाठ्यक्रम पर आधारित था, उसमें पूछे गये एक सवाल पर केरल के एक प्रमुख मुस्लिम संगठन NDF ने यह कहकर बवाल खड़ा किया गया कि इसमें "मुहम्मद" शब्द का अपमानजनक तरीके से प्रयोग किया गया है, तोड़फ़ोड़-दंगा-प्रदर्शन इत्यादि हुए। जहालत की हद तो यह है कि जिस प्रश्न और मोहम्मद के नामोल्लेख पर आपत्ति की गई थी, वह कोई टीजे जोसफ़ का खुद का बनाया हुआ प्रश्न नहीं था, बल्कि पीटी कुंजू मोहम्मद नामक एक CPM विधायक की पुस्तक "थिरकाथायुडु नीथीसास्त्रम" (पेज नम्बर 58) से लिया गया एक पैराग्राफ़ है, कुंजू मोहम्मद खुद एक मुस्लिम हैं और केरल में "मोहम्मद" नाम बहुत आम प्रचलन में है। प्रख्यात अभिनेता ममूटी का नाम भी मोहम्मद ही है, ऐसे में प्रश्न पत्र में पूछे गये सवाल पर इतना बलवा करने की जरूरत ही नहीं थी, लेकिन "तालिबान" को केरल में वामपंथियों और चर्च को अपनी "ताकत" दिखानी थी, और वह दिखा दी गई।
आये दिन जमाने भर की बौद्धिक जुगालियाँ करने वाले, जब-तब सिद्धान्तों और मार्क्स के उल्लेख की उल्टियाँ करने वाले…… लेकिन हमेशा की तरह मुस्लिम वोटों के लालच के मारे, वामपंथियों ने पहले प्रोफ़ेसर टीजे जोसफ़ को निलम्बित कर दिया, फ़िर भी मुसलमान खुश नहीं हुए… तो प्रोफ़ेसर के खिलाफ़ पुलिस रिपोर्ट कर दी… पढ़ाई-लिखाई करने वाले बेचारे प्रोफ़ेसर साहब घबराकर अपने रिश्तेदार के यहाँ छिप गये, तब भी मुसलमान खुश नहीं हुए, तो जोसफ़ को गिरफ़्तार करने के लिये दबाव बनाने के तहत उनके लड़के को पुलिस ने उठा लिया और थाने में जमकर पिटाई की, बेचारे प्रोफ़ेसर ने आत्मसमर्पण कर दिया, मामला न्यायालय में गया, जहाँ से उन्हें ज़मानत मिल गई, लेकिन वामपंथी सरकार द्वारा इतने "सकारात्मक प्रयास" के बावजूद मुसलमान खुश नहीं हुए। वे लोग तभी खुश हुए, जब उन्होंने "शरीयत" कानून के तहत प्रोफ़ेसर के हाथ काटने का फ़ैसला किया, और जब प्रोफ़ेसर अपने परिवार के साथ चर्च से लौट रहे थे, उस समय इस्लामिक कानून के मानने वालों ने वामपंथी सरकार को ठेंगा दिखाते हुए प्रोफ़ेसर पर हमला कर दिया, उन्हें चाकू मारे और तलवार से उनका हाथ काट दिया और भाग गये……
अब वामपंथी सरकार के शिक्षा मंत्री कह रहे हैं कि "मामला बहुत दुखद है, किसी को भी कानून अपने हाथ में नही लेने दिया जायेगा…"। जबकि देश में ईसाईयों पर होने वाले किसी भी "कथित अत्याचार" के लिये हमेशा भाजपा-संघ-विहिप और मोदी को गरियाने वाले एवेंजेलिस्ट चर्च की बोलती, फ़िलहाल इस मामले में बन्द है। मुस्लिम वोटों के लिये घुटने टेकने और तलवे चाटने की यह वामपंथी परम्परा कोई नई बात नहीं है, तसलीमा नसरीन के मामले में हम इनका दोगलापन पहले भी देख चुके हैं और भारत के भगोड़े, कतर के नागरिक एमएफ़ हुसैन के मामले में भी वामपंथियों और सेकुलरों ने जमकर छातीकूट अभियान चलाया था। अब यदि एक प्रश्नपत्र में सिर्फ़ मोहम्मद के कथित रुप से अपमानजनक नाम आने पर जब एक गरीब प्रोफ़ेसर के हाथ काटे जा सकते हैं, उसके लड़के की थाने में पिटाई की जा सकती है, उसे नौकरी से निलम्बित किया जा सकता है… तो सोचिये दुर्गा-सरस्वती और सीता-हनुमान के अपमानजनक चित्र बनाने वाले एमएफ़ हुसैन के कितने टुकड़े किये जाने चाहिये? लेकिन हिन्दुओं का व्यवहार अधिकतर संयत ही रहा है, इसलिये MF हुसैन को यहाँ से सिर्फ़ लात मारकर बाहर भगाया गया, उसे सलमान रुशदी की तरह दर-दर की ठोकरें नहीं खानी पड़ी।
इस मामले में पुलिस की जाँच में यह बात सामने आई है और NDF के एक "कार्यकर्ता"(??) अशरफ़ ने बताया कि केरल के अन्दरूनी इलाकों में चल रही तालिबानी स्टाइल की कोर्ट "दारुल खदा" ने "आदेश" दिया था कि न्यूमैन कॉलेज के मलयालम प्रोफ़ेसर के हाथ काटे जायें और इसे अंजाम भी दिया गया (भारत का कानून गया तेल लेने…) यहाँ पढ़ें http://news.rediff.com/report/2010/jul/07/islamic-court-ordered-chopping-of-profs-palm.htm। अशरफ़ ने पुलिस को बताया कि पापुलर फ़्रण्ट (यानी NDF) केरल के मुस्लिमों के पारिवारिक मामलों को भी "दारुल खदा" के माध्यम से निपटाने में लगा हुआ है तथा मुस्लिमों से "आग्रह"(?) किया जा रहा है कि अपने विवादों के निराकरण के लिये वे भारतीय न्यायालयों में न जाकर "दारुल खदा" में आयें। हमेशा की तरह सुलझे हुए तथा शांतिप्रिय मुसलमान चुप्पी साधे हुए हैं, क्योंकि चरमपंथी हमेशा उन्हें धकियाकर मुद्दों पर कब्जा कर ही लेते हैं, जैसा कि शाहबानो मामले में भी हुआ था। हालांकि केरल की "भारतीय मुस्लिम लीग" ने इस घटना की निंदा की है, लेकिन यह सिर्फ़ दिखावा ही है।
केरल में इस्लामिक उग्रवाद तेजी से बढ़ रहा है, जब यह बात संघ-विहिप कहता था तब "सेकुलर जमात" उसे हमेशा "दुष्प्रचार" कहकर टालती रही है, लेकिन आज जब केरल में "तालिबान" अपना सिर उठाकर खुला घूम रहा है, तब मार्क्स के सिद्धांत बघारने वाले तथा उड़ीसा में रो-रोकर अमेरिका से USCIRF को बुलाकर लाने वाले, ईसाई संगठन दुम दबाकर भाग खड़े हुए हैं। एवेंजेलिस्ट ईसाई भले ही सारी दुनिया में मुसलमानों के साथ "क्रूसेड" में लगे हों, लेकिन भारत में इन्होंने हमेशा "हिन्दू-विरोधी" रुख अपनाये रखा है, चाहे वह मुस्लिमों से हाथ मिलाना हो, या नक्सल प्रभावित इलाकों में नक्सलियों से गठजोड़ का मामला हो… या फ़िर मिजोरम और नागालैण्ड जैसे राज्य जहाँ ईसाई बहुसंख्यक हैं वहाँ से अल्पसंख्यक हिन्दुओं को भगाने का मामला हो… हमेशा एवेंजेलिस्ट ईसाईयों ने हिन्दुओं के खिलाफ़ "धर्म-परिवर्तन" और हिन्दू धर्म के दुश्मनों के साथ हाथ मिलाने की रणनीति अपना रखी है।
अब केरल में पहली बार उन्हें इस्लामिक चरमपंथ की "गर्माहट अपने पिछवाड़े में" महसूस हो रही है, तो उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि जिन वामपंथियों को ईसाई संगठन "अपना" समझते थे, अचानक ये लोग अब्दुल मदनी जैसे व्यक्ति के साथ क्यों दिखाई देने लगे हैं? केरल के ईसाईयों को यह वास्तविकता स्वीकार करने में मुश्किल हो रही है कि उनके जिस "वोट बैंक" का उपयोग वामपंथियों ने किया, वही उपयोग अब "दूसरे पक्ष" का भी कर रहे हैं। वे सोच नहीं पा रहे कि बात-बात पर हिन्दू संगठनों को कोसने की आदत कैसे बदलें, क्योंकि इस्लामिक संगठनों की आक्रामकता के सामने "सेकुलरिज़्म" नाम की दाल गलती नहीं है।
पिछले कुछ वर्षों से उत्तरी केरल के क्षेत्रों में मुस्लिम चरमपंथी, अब ईसाईयों पर हमले बढ़ाने लगे हैं, क्योंकि तीसरी पार्टी यानी "हिन्दू" तो गिनती में ही नहीं हैं या "संगठित वोट बैंक" नहीं है। खुद ईसाई संगठन अपने न्यूज़लेटर मानते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में "लव जेहादियों" ने हजारों ईसाई लड़कियों को प्रेमजाल में फ़ाँसकर उन्हें या तो मुस्लिम बनाया अथवा उन्हें खाड़ी देशों में ले भागे, इसके बावजूद अभी भी एवेंजेलिस्ट ईसाई, हिन्दुओं को अपना प्रमुख निशाना मानते हैं। "धर्म प्रचार" के बहाने अपनी जनसंख्या और राजनैतिक बल बढ़ाने में लगे ईसाई संगठन खुद से सवाल करें कि दुनिया में किस इस्लामी देश में उन्हें भारत की तरह "धर्म-प्रचार"(?) की सुविधाएं हासिल हैं? कितने इस्लामी देशों में वहाँ के "अल्पसंख्यकों" (यानी ईसाई या हिन्दू) के साथ मानवीय अथवा बराबरी का व्यवहार होता है?
यह बात पहले भी कई-कई बार दोहराई जा चुकी है कि हर उस देश-प्रान्त-जिले में जहाँ जब तक मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं, तब तक वे "बहुलतावाद", "सहिष्णुता" और "गंगा-जमनी" आदि की बातें करते हैं, लेकिन जैसे ही वे बहुसंख्यक होते हैं, तत्काल वहाँ के स्थानीय अल्पसंख्यकों पर इस्लाम अपनाने का दबाव बनाने लगते हैं, उन्हें परेशान करने लगते हैं। हमारे सामने पाकिस्तान, बांग्लादेश, सूडान, सऊदी अरब जैसे कई उदाहरण हैं। एक उदाहरण देखिये, यदि सऊदी अरब के इस्लामिक कानून के मुताबिक किसी व्यक्ति की अप्राकृतिक मौत होती है तो उसके परिवार को मिलने वाली मुआवज़ा राशि इस प्रकार है, यदि मुस्लिम है तो 1 लाख रियाल, यदि ईसाई है अथवा यहूदी है तो 50,000 रियाल तथा यदि मरने वाला हिन्दू है तो 6,666 रियाल (सन्दर्भ : http://resistance-to-totalitarianism.blogspot.com/2010/05/koran-says-muslims-and-non-muslims-are.html) ऐसे सैकड़ों उदाहरण दिये जा सकते हैं जहाँ मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में हिन्दुओं के साथ असमान व्यवहार और अत्याचार आम बात है। इस्लाम को और गहराई से समझने के लिये ऊपर दिये गये ब्लॉग के साइड बार में उल्लेखित पुस्तक Islamic Jihad:A Legacy of Forced conversion, Slavery and Imperialism लेखक - MA Khan पढ़ें। इसकी ई-बुक भी उसी ब्लॉग से डाउनलोड की जा सकती है।
वामपंथी तो मुस्लिम वोटों के लिये कहीं भी लेटने को तैयार रहते हैं, क्योंकि उनकी निगाह में "हिन्दू वोटों" की बात करना ही साम्प्रदायिकता(???) है, बाकी नहीं। 30 साल तक पश्चिम बंगाल में यही किया और अब वहाँ ममता बैनर्जी और इनके बीच में होड़ लगी है कि, कौन कितनी अच्छी तरह से मुसलमानों की तेल-मालिश कर सकता है, उधर केरल में प्रोफ़ेसर जोसफ़ के साथ हुए "सरकारी व्यवहार" ने इस बात की पुष्टि कर दी है, कम से कम केरल में ईसाईयों की आँखें तो अब खुल ही जाना चाहिये…
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जिस दिन यह प्रश्नपत्र आया था, उसी दिन शाम को थोडुपुझा में मुस्लिम संगठनों ने सड़कों पर जमकर हंगामा और तोड़फ़ोड़ की थी, तथा कॉलेज प्रशासन पर दबाव बनाने के लिये राजनैतिक पैंतरेबाजी शुरु कर दी थी। केरल में पिछले कई वर्षों से या तो कांग्रेस की सरकार रही है अथवा वामपंथियों की, और दोनों ही पार्टियाँ ईसाई और मुस्लिम "वोट बैंक" का समय-समय पर अपने फ़ायदे के लिये उपयोग करती रही हैं (क्योंकि हिन्दू वोट बैंक नाम की कोई चीज़ अस्तित्व में नहीं है)। फ़िलहाल केरल में वामपंथी सत्ता में हैं, जिनके "परम विद्वान मुख्यमंत्री" हैं श्री अच्युतानन्दन (याद आया? जी हाँ, वही अच्युतानन्दन जिन्हें स्वर्गीय मेजर उन्नीकृष्णन के पिता ने घर से बाहर निकाल दिया था)।
पहले समूचे घटनाक्रम पर एक संक्षिप्त नज़र - थोडुपुझा के कॉलेज प्रोफ़ेसर जोसफ़ ने एक प्रश्नपत्र तैयार किया, जो कि विश्वविद्यालय के कोर्स पैटर्न और पाठ्यक्रम पर आधारित था, उसमें पूछे गये एक सवाल पर केरल के एक प्रमुख मुस्लिम संगठन NDF ने यह कहकर बवाल खड़ा किया गया कि इसमें "मुहम्मद" शब्द का अपमानजनक तरीके से प्रयोग किया गया है, तोड़फ़ोड़-दंगा-प्रदर्शन इत्यादि हुए। जहालत की हद तो यह है कि जिस प्रश्न और मोहम्मद के नामोल्लेख पर आपत्ति की गई थी, वह कोई टीजे जोसफ़ का खुद का बनाया हुआ प्रश्न नहीं था, बल्कि पीटी कुंजू मोहम्मद नामक एक CPM विधायक की पुस्तक "थिरकाथायुडु नीथीसास्त्रम" (पेज नम्बर 58) से लिया गया एक पैराग्राफ़ है, कुंजू मोहम्मद खुद एक मुस्लिम हैं और केरल में "मोहम्मद" नाम बहुत आम प्रचलन में है। प्रख्यात अभिनेता ममूटी का नाम भी मोहम्मद ही है, ऐसे में प्रश्न पत्र में पूछे गये सवाल पर इतना बलवा करने की जरूरत ही नहीं थी, लेकिन "तालिबान" को केरल में वामपंथियों और चर्च को अपनी "ताकत" दिखानी थी, और वह दिखा दी गई।
आये दिन जमाने भर की बौद्धिक जुगालियाँ करने वाले, जब-तब सिद्धान्तों और मार्क्स के उल्लेख की उल्टियाँ करने वाले…… लेकिन हमेशा की तरह मुस्लिम वोटों के लालच के मारे, वामपंथियों ने पहले प्रोफ़ेसर टीजे जोसफ़ को निलम्बित कर दिया, फ़िर भी मुसलमान खुश नहीं हुए… तो प्रोफ़ेसर के खिलाफ़ पुलिस रिपोर्ट कर दी… पढ़ाई-लिखाई करने वाले बेचारे प्रोफ़ेसर साहब घबराकर अपने रिश्तेदार के यहाँ छिप गये, तब भी मुसलमान खुश नहीं हुए, तो जोसफ़ को गिरफ़्तार करने के लिये दबाव बनाने के तहत उनके लड़के को पुलिस ने उठा लिया और थाने में जमकर पिटाई की, बेचारे प्रोफ़ेसर ने आत्मसमर्पण कर दिया, मामला न्यायालय में गया, जहाँ से उन्हें ज़मानत मिल गई, लेकिन वामपंथी सरकार द्वारा इतने "सकारात्मक प्रयास" के बावजूद मुसलमान खुश नहीं हुए। वे लोग तभी खुश हुए, जब उन्होंने "शरीयत" कानून के तहत प्रोफ़ेसर के हाथ काटने का फ़ैसला किया, और जब प्रोफ़ेसर अपने परिवार के साथ चर्च से लौट रहे थे, उस समय इस्लामिक कानून के मानने वालों ने वामपंथी सरकार को ठेंगा दिखाते हुए प्रोफ़ेसर पर हमला कर दिया, उन्हें चाकू मारे और तलवार से उनका हाथ काट दिया और भाग गये……
अब वामपंथी सरकार के शिक्षा मंत्री कह रहे हैं कि "मामला बहुत दुखद है, किसी को भी कानून अपने हाथ में नही लेने दिया जायेगा…"। जबकि देश में ईसाईयों पर होने वाले किसी भी "कथित अत्याचार" के लिये हमेशा भाजपा-संघ-विहिप और मोदी को गरियाने वाले एवेंजेलिस्ट चर्च की बोलती, फ़िलहाल इस मामले में बन्द है। मुस्लिम वोटों के लिये घुटने टेकने और तलवे चाटने की यह वामपंथी परम्परा कोई नई बात नहीं है, तसलीमा नसरीन के मामले में हम इनका दोगलापन पहले भी देख चुके हैं और भारत के भगोड़े, कतर के नागरिक एमएफ़ हुसैन के मामले में भी वामपंथियों और सेकुलरों ने जमकर छातीकूट अभियान चलाया था। अब यदि एक प्रश्नपत्र में सिर्फ़ मोहम्मद के कथित रुप से अपमानजनक नाम आने पर जब एक गरीब प्रोफ़ेसर के हाथ काटे जा सकते हैं, उसके लड़के की थाने में पिटाई की जा सकती है, उसे नौकरी से निलम्बित किया जा सकता है… तो सोचिये दुर्गा-सरस्वती और सीता-हनुमान के अपमानजनक चित्र बनाने वाले एमएफ़ हुसैन के कितने टुकड़े किये जाने चाहिये? लेकिन हिन्दुओं का व्यवहार अधिकतर संयत ही रहा है, इसलिये MF हुसैन को यहाँ से सिर्फ़ लात मारकर बाहर भगाया गया, उसे सलमान रुशदी की तरह दर-दर की ठोकरें नहीं खानी पड़ी।
इस मामले में पुलिस की जाँच में यह बात सामने आई है और NDF के एक "कार्यकर्ता"(??) अशरफ़ ने बताया कि केरल के अन्दरूनी इलाकों में चल रही तालिबानी स्टाइल की कोर्ट "दारुल खदा" ने "आदेश" दिया था कि न्यूमैन कॉलेज के मलयालम प्रोफ़ेसर के हाथ काटे जायें और इसे अंजाम भी दिया गया (भारत का कानून गया तेल लेने…) यहाँ पढ़ें http://news.rediff.com/report/2010/jul/07/islamic-court-ordered-chopping-of-profs-palm.htm। अशरफ़ ने पुलिस को बताया कि पापुलर फ़्रण्ट (यानी NDF) केरल के मुस्लिमों के पारिवारिक मामलों को भी "दारुल खदा" के माध्यम से निपटाने में लगा हुआ है तथा मुस्लिमों से "आग्रह"(?) किया जा रहा है कि अपने विवादों के निराकरण के लिये वे भारतीय न्यायालयों में न जाकर "दारुल खदा" में आयें। हमेशा की तरह सुलझे हुए तथा शांतिप्रिय मुसलमान चुप्पी साधे हुए हैं, क्योंकि चरमपंथी हमेशा उन्हें धकियाकर मुद्दों पर कब्जा कर ही लेते हैं, जैसा कि शाहबानो मामले में भी हुआ था। हालांकि केरल की "भारतीय मुस्लिम लीग" ने इस घटना की निंदा की है, लेकिन यह सिर्फ़ दिखावा ही है।
केरल में इस्लामिक उग्रवाद तेजी से बढ़ रहा है, जब यह बात संघ-विहिप कहता था तब "सेकुलर जमात" उसे हमेशा "दुष्प्रचार" कहकर टालती रही है, लेकिन आज जब केरल में "तालिबान" अपना सिर उठाकर खुला घूम रहा है, तब मार्क्स के सिद्धांत बघारने वाले तथा उड़ीसा में रो-रोकर अमेरिका से USCIRF को बुलाकर लाने वाले, ईसाई संगठन दुम दबाकर भाग खड़े हुए हैं। एवेंजेलिस्ट ईसाई भले ही सारी दुनिया में मुसलमानों के साथ "क्रूसेड" में लगे हों, लेकिन भारत में इन्होंने हमेशा "हिन्दू-विरोधी" रुख अपनाये रखा है, चाहे वह मुस्लिमों से हाथ मिलाना हो, या नक्सल प्रभावित इलाकों में नक्सलियों से गठजोड़ का मामला हो… या फ़िर मिजोरम और नागालैण्ड जैसे राज्य जहाँ ईसाई बहुसंख्यक हैं वहाँ से अल्पसंख्यक हिन्दुओं को भगाने का मामला हो… हमेशा एवेंजेलिस्ट ईसाईयों ने हिन्दुओं के खिलाफ़ "धर्म-परिवर्तन" और हिन्दू धर्म के दुश्मनों के साथ हाथ मिलाने की रणनीति अपना रखी है।
अब केरल में पहली बार उन्हें इस्लामिक चरमपंथ की "गर्माहट अपने पिछवाड़े में" महसूस हो रही है, तो उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि जिन वामपंथियों को ईसाई संगठन "अपना" समझते थे, अचानक ये लोग अब्दुल मदनी जैसे व्यक्ति के साथ क्यों दिखाई देने लगे हैं? केरल के ईसाईयों को यह वास्तविकता स्वीकार करने में मुश्किल हो रही है कि उनके जिस "वोट बैंक" का उपयोग वामपंथियों ने किया, वही उपयोग अब "दूसरे पक्ष" का भी कर रहे हैं। वे सोच नहीं पा रहे कि बात-बात पर हिन्दू संगठनों को कोसने की आदत कैसे बदलें, क्योंकि इस्लामिक संगठनों की आक्रामकता के सामने "सेकुलरिज़्म" नाम की दाल गलती नहीं है।
पिछले कुछ वर्षों से उत्तरी केरल के क्षेत्रों में मुस्लिम चरमपंथी, अब ईसाईयों पर हमले बढ़ाने लगे हैं, क्योंकि तीसरी पार्टी यानी "हिन्दू" तो गिनती में ही नहीं हैं या "संगठित वोट बैंक" नहीं है। खुद ईसाई संगठन अपने न्यूज़लेटर मानते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में "लव जेहादियों" ने हजारों ईसाई लड़कियों को प्रेमजाल में फ़ाँसकर उन्हें या तो मुस्लिम बनाया अथवा उन्हें खाड़ी देशों में ले भागे, इसके बावजूद अभी भी एवेंजेलिस्ट ईसाई, हिन्दुओं को अपना प्रमुख निशाना मानते हैं। "धर्म प्रचार" के बहाने अपनी जनसंख्या और राजनैतिक बल बढ़ाने में लगे ईसाई संगठन खुद से सवाल करें कि दुनिया में किस इस्लामी देश में उन्हें भारत की तरह "धर्म-प्रचार"(?) की सुविधाएं हासिल हैं? कितने इस्लामी देशों में वहाँ के "अल्पसंख्यकों" (यानी ईसाई या हिन्दू) के साथ मानवीय अथवा बराबरी का व्यवहार होता है?
यह बात पहले भी कई-कई बार दोहराई जा चुकी है कि हर उस देश-प्रान्त-जिले में जहाँ जब तक मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं, तब तक वे "बहुलतावाद", "सहिष्णुता" और "गंगा-जमनी" आदि की बातें करते हैं, लेकिन जैसे ही वे बहुसंख्यक होते हैं, तत्काल वहाँ के स्थानीय अल्पसंख्यकों पर इस्लाम अपनाने का दबाव बनाने लगते हैं, उन्हें परेशान करने लगते हैं। हमारे सामने पाकिस्तान, बांग्लादेश, सूडान, सऊदी अरब जैसे कई उदाहरण हैं। एक उदाहरण देखिये, यदि सऊदी अरब के इस्लामिक कानून के मुताबिक किसी व्यक्ति की अप्राकृतिक मौत होती है तो उसके परिवार को मिलने वाली मुआवज़ा राशि इस प्रकार है, यदि मुस्लिम है तो 1 लाख रियाल, यदि ईसाई है अथवा यहूदी है तो 50,000 रियाल तथा यदि मरने वाला हिन्दू है तो 6,666 रियाल (सन्दर्भ : http://resistance-to-totalitarianism.blogspot.com/2010/05/koran-says-muslims-and-non-muslims-are.html) ऐसे सैकड़ों उदाहरण दिये जा सकते हैं जहाँ मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में हिन्दुओं के साथ असमान व्यवहार और अत्याचार आम बात है। इस्लाम को और गहराई से समझने के लिये ऊपर दिये गये ब्लॉग के साइड बार में उल्लेखित पुस्तक Islamic Jihad:A Legacy of Forced conversion, Slavery and Imperialism लेखक - MA Khan पढ़ें। इसकी ई-बुक भी उसी ब्लॉग से डाउनलोड की जा सकती है।
वामपंथी तो मुस्लिम वोटों के लिये कहीं भी लेटने को तैयार रहते हैं, क्योंकि उनकी निगाह में "हिन्दू वोटों" की बात करना ही साम्प्रदायिकता(???) है, बाकी नहीं। 30 साल तक पश्चिम बंगाल में यही किया और अब वहाँ ममता बैनर्जी और इनके बीच में होड़ लगी है कि, कौन कितनी अच्छी तरह से मुसलमानों की तेल-मालिश कर सकता है, उधर केरल में प्रोफ़ेसर जोसफ़ के साथ हुए "सरकारी व्यवहार" ने इस बात की पुष्टि कर दी है, कम से कम केरल में ईसाईयों की आँखें तो अब खुल ही जाना चाहिये…
Kerala Professor Case, Kerala Thodupujha College Question Paper Row, Islamic Terrorism in Kerala, Professor TJ Joseph, Church and Islamic Fundamentalism, Sharia Law in India, Mohammed Name Blasphemy, Religious Freedom in India, Communists and Muslim Appeasement, Abdul Madani, MF Hussain, NDF, Muslim League and Popular Front, केरल प्रोफ़ेसर काण्ड, इस्लामिक उग्रवाद, केरल कॉलेज प्रश्नपत्र मामला, केरल में तालिबानी, प्रोफ़ेसर टीजे जोसफ़, इस्लामिक चरमपंथ और चर्च, शरीयत कानून और भारत की न्याय व्यवस्था, भारत में धार्मिक स्वतन्त्रता, वामपंथ और मुस्लिम तुष्टिकरण, एमएफ़ हुसैन, अब्दुल मदनी, मुस्लिम लीग और पापुलर फ़्रण्ट, Blogging, Hindi Blogging, Hindi Blog and Hindi Typing, Hindi Blog History, Help for Hindi Blogging, Hindi Typing on Computers, Hindi Blog and Unicode
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