एक बात समझ में नहीं आती कि यदि ताज "सेवन वंडर्स" में नहीं आ पाया तो पर्यटन कैसे घटेगा, जबकि सरकारी संस्थायें गला फ़ाड़-फ़ाड़कर हमें बता रही हैं कि भारत में पर्यटन पच्चीस प्रतिशत की दर से बढ रहा है, फ़िर ताजमहल उसमें कितना बदलाव ला पायेगा ? क्या विदेशी पर्यटन पचास प्रतिशत तक पहुँच जायेगा ? या विदेशी लोग ताज देखने आना बन्द कर देंगे ? अरे, जब खजुराहो जैसी घटियातम सुविधाओं के बावजूद वे वहाँ जाते हैं तो ताजमहल तो वे देखेंगे ही चाहे वह "अजूबों" में शामिल हो या ना हो । दूसरी बात, ताज के संरक्षण के लिये विदेशी मदद की । जो लाखों मूर्ख रोजाना करोडों एसएमएस भेज रहे हैं, यदि उनसे सिर्फ़ एक रुपया प्रति व्यक्ति लिया जाये (SMS के तीन रुपये लगते हैं) तो भी करोडों रुपया एकत्रित होता है जो ताज के संरक्षण के लिये काम में लिया जा सकता है, और विदेशी मदद मिल भी गई तो क्या कर लेंगे ? विदेशी मदद तो झुग्गी-झोंपडी हटाने के लिये हर साल लाखों डालर मिलती है, झाबुआ के आदिवासियों की दशा सुधारने के लिये भी कई बार विदेशी मदद मिली, उसका क्या होता है पता नहीं है क्या ? हम तो इतने बेशर्म हैं कि अपनी आस्था की केन्द्र गंगा को साफ़ करने / रखने के लिये भी विदेशी मदद ले लेते हैं, और उसी में अपना कूडा़ डालते रहते हैं । एक तरफ़ ताज को स्थान दिलाने के नाम पर कई कम्पनियाँ और ग्रुप नोट छाप रहे हैं, दूसरी तरफ़ राष्ट्रपति चुनाव के लिये सौदेबाजी के तहत माया के खिलाफ़ ताज कॉरीडोर मामले में मुकदमा चलाने की इजाजत नहीं दी गई, ये है हमारे देश का चरित्र....।
और फ़िर ताजमहल को उक्त स्थान दिलाकर उसके साथ क्या करने वाले हो... वहाँ जाकर प्लास्टिक की बोतलें फ़ेंकेगे, जगह-जगह मूतेंगे, दीवारों पर खोद-खोद कर दिल का आकार और "आई लव यू" लिखेंगे, चारों ओर झुग्गियाँ बनाकर जमीनों पर कब्जा करेंगे, यमुना को नाला तो पहले ही बना दिया है, अब कीचड़ भरा डबका बनाओगे... क्या-क्या करोगे ? खोखला देशप्रेम अपने पास ही रहने दो भाईयों, नौजवानों की "अंगूठा-टेक" पीढी़ (एसएमएस के लिये अंगूठा ही लगता है ना !) पैसे का मोल क्या जाने, कईयों को तो आसानी से मिला है, कईयों के बाप अपना-अपना पेट काटकर नौनिहालों के हाथ में मोबाईल सजाये हुए हैं... कल ये लोग कहेंगे कि सूरज पूरब से निकलता है या नहीं SMS भेजो, तुम्हारा बाप तुम्हारा ही है या नहीं, कम से कम सौ SMS भेजो...