सोमवार, 08 अप्रैल 2013 12:05

Suspected Church Activities in India and Mainstream Media



क्या भारत के चर्च और मदरसे सिर्फ “पवित्रता की प्रतिमूर्ति” हैं?


गत शनिवार को तमिलनाडु के कोयम्बटूर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में उस समय अच्छा ख़ासा हंगामा खड़ा हो गया, जब पोस्टमार्टम के पश्चात एक नन के परिजनों ने उसका शव लेने से इंकार करते हुए जाँच की मांग को लेकर धरना दे दिया. पोस्टमार्टम में पाया गया था कि नन ने जहर खाकर आत्महत्या की है, लेकिन परिजनों का कहना था कि उनकी बेटी ने चर्च अधिकारियों की प्रताड़ना और शोषण से तंग आकर आत्महत्या की है, इसलिए चर्च के वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ भी रिपोर्ट दर्ज करते हुए जाँच की जाए. हालांकि पुलिस अधिकारियों का कहना था कि पोस्टमार्टम में भले ही जहर खाने की बात सामने आई हो, परन्तु शोषण अथवा मानसिक प्रताड़ना के सम्बन्ध में अभी कुछ भी नहीं कहा जा सकता.


२६ वर्ष की निर्मला एंजेलीना, जो कि सौरीपालायम की निवासी थी, वह सं २००४ में “नन” बनी और उसने अपना जीवन रोमन कैथोलिक चर्च और जीसस को समर्पित कर दिया. वह कोयम्बटूर के लओली रोड पर स्थित डी ब्रिटो चर्च परिसर में ही निवास करती थी. शनिवार को नाश्ते के बाद उसने अपनी साथी ननों को बताया कि उसने जहर खा लिया है, उसे तत्काल आरके पुरम के अस्पताल ले जाया गया, जहाँ से उसे पोदानूर के सेंट मैरिस अस्पताल ले जाया गया, वहाँ उसे मृत घोषित कर दिया गया.

रविवार की सुबह सिस्टर एंजेलीना के परिजन एम्बुलेंस के सामने ही धरने पर बैठ गए और उन्होंने चर्च के वरिष्ठ अधिकारियों को गिरफ्तार करने की मांग की. उन्होंने कहा कि चर्च के प्रमुख बिशप स्वयं अस्पताल आएं और एंजेलीना की मौत के बारे में स्पष्टीकरण दें. एंजेलीना की माँ एलीश मेरी ने कहा कि, उनकी बेटी बहुत हिम्मत वाली थी, वह ऐसा कदम उठा ही नहीं सकती. वह अंग्रेजी साहित्य में बीए कर रही थी, और अचानक वह नन बन गई. कुछ ही समय में उसने एक वरिष्ठ नन पर प्रताड़ना का आरोप लगाया था, लेकिन चर्च के अधिकारियों ने कोई ध्यान नहीं दिया. एंजेलीना के भाई चार्ल्स ने कहा कि यह आत्महत्या नहीं, बल्कि हत्या है और इसके पीछे बिशप और कुछ वरिष्ठ ननों का हाथ है, जो मेरी बहन से कुछ गलत काम करवाना चाहते थे. फिलहाल पुलिस ने कुछ ननों से पूछताछ की है और आरके पुरम पुलिस स्टेशन में धारा १७४ (अस्वाभाविक मौत) के तहत मामला दर्ज कर लिया है.

इस घटना से यह स्पष्ट होता है कि दक्षिणी राज्यों में, जहाँ कि “चर्च” अब बेहद मजबूत शक्ति बन चुका है, वहाँ इन परिसरों और कान्वेंट के भीतर स्थितियाँ सही नहीं हैं. आए दिन हम केरल, तमिलनाडु, आंधप्रदेश के चर्चों में इस प्रकार की घटनाओं के बारे में सुनते हैं, परन्तु हमारा तथाकथित मुख्यधारा(??) का मीडिया, जो कि आसाराम बापू के आश्रम में चार बच्चों की मौत की खबर को राष्ट्रीय समस्या बना देता है, जो मीडिया आधी रात को शंकराचार्य की गिरफ्तारी को लेकर पूरी तरह से एकपक्षीय हिन्दू विरोधी मानसिकता के साथ अपनी रिपोर्टिंग करता है, उसे चर्च (और मदरसों) के भीतर चल रही (और पल रही) संदिग्ध गतिविधियों के बारे में रिपोर्टिंग करने की आवश्यकता महसूस नहीं होती??? ऐसा क्यों होता है कि केरल में सिस्टर अभया की बहुचर्चित रहस्यमयी मौत पर न्यायालयों के निर्णय (http://en.wikipedia.org/wiki/Sister_Abhaya_murder_case) आने के बाद भी उस पर कभी राष्ट्रीय बहस नहीं होती?? अक्सर विभिन्न चैनलों पर देश के प्रसिद्ध मंदिरों में आने वाले चढावे, दान पर चर्चाएँ होती हैं, हिन्दू रीती-रिवाजों और संस्कारों की खिल्ली उड़ाने वाले कार्यक्रम अक्सर चैनलों और अखबारों में छाए रहते हैं. तथाकथित बुद्धिजीवी अपना समस्त ज्ञान हिंदुओं को उपदेश झाड़ने में ही खर्च कर देते हैं, परन्तु इस्लाम या ईसाइयत के बारे में बात करते समय उनके मुँह में दही जम जाता है. 

किसी भी चैनल या अखबार में इस बात की चर्चा क्यों नहीं होती कि आज की तारीख में सरकार के बाद “चर्च” ही ऐसी संस्था है जिसके पास देश भर में सर्वाधिक व्यावसायिक जमीन है. कान्वेंट स्कूलों में भारतीय संस्कृति और परम्पराओं पर अपरोक्ष हमले किए जाते हैं, लड़कियों को चूड़ी, बिंदी, मेहंदी लगाने से रोका जाता है, छात्रों को तिलक लगाने और हिन्दी बोलने पर न सिर्फ खिल्ली उड़ाई जाती है, बल्कि सजा भी दी जाती है, चैनल इस बारे में कभी कोई आवाज़ क्यों नहीं उठाते? उन्हें सिर्फ सरस्वती शिशु मंदिरों में होने वाले सूर्य नमस्कार और वन्देमातरम पर विवाद खड़ा करना क्यों अच्छा लगता है? अक्सर विश्व हिन्दू परिषद पर राम मंदिर का पैसा खाने का मनगढंत आरोप लगाने वाले स्वयंभू पत्रकार कभी इस बात पर खोजी पत्रकारिता क्यों नहीं करते, कि चर्च को वेटिकन और विभिन्न NGOs से और मदरसों को खाड़ी देशों से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कितना धन मिल रहा है? यदि ईश्वर को समर्पित “देवदासी” की परम्परा, हिंदुत्व के नाम पर कलंक है, तो जीसस के नाम पर समर्पित होने वाली “नन” की परम्परा क्या है? कभी इनकी भूमिका और ननों के शोषण पर राष्ट्रीय चर्चा हुई है? नहीं... इसी प्रकार ईसाई समूहों द्वारा बड़े पैमाने पर किए जाने वाले धर्मान्तरण पर तो शायद कभी कोई बड़ा कार्यक्रम अब तक बना ही नहीं है, जब भी धर्मान्तरण संबंधी कोई बहस होती है, तो उसका मकसद सिर्फहिन्दू संगठनों को "नकारात्मक रंग" में रंगना ही होता है. क्योंकि ऐसा “सेकुलर सोच”(??) बना दिया गया है कि भारत के सभी चर्च और मदरसे सिर्फ “पवित्रता और ईमानदारी की प्रतिमूर्ति” हैं, जबकि सभी मंदिर-मठ और हिन्दू धर्मगुरु तो लालची-पाखंडी और लुटेरे हैं.


इस दोहरे रवैये के कारण ही सोशल मीडिया आम जनता में धीरे-धीरे न सिर्फ लोकप्रिय हो रहा है, बल्कि अब स्थिति यहाँ तक पहुँचने लगी है कि लोग चैनलों या अखबारों की ख़बरों पर आसानी से भरोसा नहीं करते. “पार्टी विशेष”, “परिवार विशेष” और “कारपोरेट विशेष” की चमचागिरी कर-करके मीडिया ने अपनी छवि इतनी खराब कर ली है कि अब उस पर सहज विश्वास करना कठिन है. फिलहाल मीडिया के पक्ष में सिर्फ दो बातें हैं, पहली है इनकी व्यापक पहुँच और दूसरी इनके पास प्रचुर धन की उपलब्धता. जिस दिन यह दोनों बातें सोशल मीडिया के पास भी होंगी, उस दिन देश में वास्तविक लोकतंत्र दिखाई देगा. 

इस संक्षिप्त लेख का मकसद यही है कि जब तक मीडिया सभी धर्मों, धर्मगुरुओं और धर्मस्थानो की कुरीतियों, शोषण, अत्याचार व लूट के बारे में बड़े ही रहस्यमयी तरीके से सिर्फ “एकपक्षीय रिपोर्टिंग” करता रहेगा, बारम्बार सिर्फ हिन्दू धर्म को ही टारगेट किया जाता रहेगा, जनता में उसके प्रति घृणा और उपेक्षा का भाव बढ़ता ही जाएगा. यह कोई अच्छी बात नहीं बल्कि एक खतरनाक संकेत है, क्योंकि मुख्यधारा के मीडिया का अपना स्थान है, उसे सोशल मीडिया कभी विस्थापित नहीं कर सकता... परन्तु चाहे भ्रष्टाचार की खबरें हो या धार्मिक या सामाजिक... सभी ख़बरों में प्रत्येक वर्ग और समूह के बीच "संतुलन" बनाना बेहद जरूरी है, जो कि अभी नहीं हो रहा.
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शनिवार, 03 नवम्बर 2012 12:03

Secularism in Kerala (Vishal from ABVP)

केरल का "सेकुलरिज़्म"…(एक माइक्रो-पोस्ट)


क्या आपको 19 वर्षीय युवक "विशाल" की याद है? ABVP का युवा नेता विशाल जो कि केरल के एक कॉलेज के गेट पर इस्लामिक गुण्डों द्वारा सरेआम मार दिया गया था, क्योंकि विशाल ने सिमी के आधुनिक रूप PFI और "लव जेहाद" के खिलाफ़ सक्रिय आवाज़ उठाई थी…





विशाल का कत्ल करने वाले हत्यारों की गैंग में से एक "शमीम अहमद" केरल पुलिस की हिरासत में है… और "सेकुलरिज़्म" का उम्दा प्रदर्शन करते हुए केरल के मुख्यमंत्री उम्मन चाण्डी ने परसों शमीम के घर जाकर उसके परिजनों को सांत्वना दी…। मुख्यमंत्री के साथ विधायक विष्णुनाथ भी थे, जिन्होंने हाल ही में कृष्ण जन्मोत्सव पर "बाल गोपाल" का रूप धारण किए हुए बच्चों के परिजनों को यह कहते हुए चेताया था कि "ऐसा करने से बच्चे बड़े होकर हिन्दू आतंकवादी बनते हैं…"।

शमीम अहमद का भाई युवा कांग्रेस का नेता है, जो हाल ही में संघ कार्यकर्ताओं के साथ हुए संघर्ष में घायल हुआ था…। अतः (एक हत्या के आरोप में जेल में तथा दूसरा घायल) ऐसे दोनों ही "सदगुणी" भाईयों को "नैतिक समर्थन" देने के लिए चाण्डी साहब उनके घर पर पधारे थे…

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उल्लेखनीय है कि लव जेहाद के खिलाफ़ हुई विशाल की इस नृशंस हत्या के बाद मुख्यमंत्री की तरफ़ से उसके परिजनों को सांत्वना संदेश तक नहीं भेजा गया था…

"शेखूलरिज़्म की जय हो…" Sick-U-Liar Rocking...
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