आगामी छः मार्च को भारत का सबसे पुराना समुद्री युद्धपोत भारतीय नौसेना की सेवा से रिटायर होने जा रहा है, और 58 वर्ष पुराने इस विशाल युद्धपोत पर “कबाड़ माफिया” की निगाहें टिक गई हैं.

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वामपंथी इतिहासकारों ने इतिहास को लिखा नहीं है, उसे अपनी इच्छानुसार ‘गढ़ा’ है l नालंदा बौद्ध विहारों की क्षति में हिन्दुओं का हाथ दिखा देने के लिए और तुर्क आक्रमणकारियों पर पर्दा डाल देने के लिए क्या क्या फरेब नहीं किये गए... आगे पढ़िए... 

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ट्रंप की जीत : राष्ट्रवाद की “वैश्विक धमक”


दुनिया भर में खुद को स्वघोषित बुद्धिजीवी, तथाकथित रूप से प्रगतिशील और उदारवादी समझने वाले और वैसा कहलाने का शौक रखने वाले तमाम इंटेलेक्चुअल्स तथा मीडिया में बैठे धुरंधरों को लगातार एक के बाद एक झटके लगते जा रहे हैं, परन्तु उनकी बेशर्मी कहें या नादानी कहें वे लोग अभी भी अपनी स्वरचित आभासी मधुर दुनिया में न सिर्फ खोए हुए हैं, बल्कि उसी को पूरी दुनिया का प्रतिबिंब मानकर दूसरों को लगातार खारिज किए जा रहे हैं. वास्तव में हुआ यह है कि जिस प्रकार अफीम के नशे में व्यक्ति सारी दुनिया को पागल लेकिन स्वयं को खुदा समझता है, उसी प्रकार भारत सहित दुनिया भर में पसरा हुआ यह “बुद्धिजीवी और मीडियाई वर्ग” भी खुद को जमीन से चार इंच ऊपर समझता रहा है. इन कथित बुद्धिमानों को पता ही नहीं चल रहा है की दुनिया किस तरफ मुड़ चुकी है और ये लोग बिना स्टीयरिंग की गाडी लिए गर्त की दिशा में चले जा रहे हैं.

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गैरों पे करम और विचारधारा से भटकाव – भाजपा का नया अवतार

 

मारवाड़ में एक कहावत है -- "मरण में मेड़तिया और राजकरण में जोधा". इसका अर्थ होता है :- मरने के लिए तो मेड़तिया और राजतिलक के लिए जोधा राठौड़, अर्थात जब युद्ध होता है, तब लड़ने और बलिदान के लिए मेड़तिया आगे किये जाते हैं, लेकिन जब राजतिलक का समय आता है तो जोधा राठौड़ों को अवसर मिलता है.

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पिछले कुछ वर्षों में चर्च के पादरियों द्वारा बाल यौन शोषण की घटनाएँ पश्चिम में अत्यधिक मात्रा में बढ़ गई हैं. समूचा वेटिकन प्रशासन एवं स्वयं पोप पादरियों की इस “मानसिक समस्या” से बहुत त्रस्त हैं. ऐसे ही एक यौनपिपासु पादरी को वेटिकन ने भारत में नियुक्त किया है... विस्तार से पढ़िए...

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शुक्रवार, 29 अप्रैल 2016 18:26

भारत में राष्ट्रवादी लहर...

आखिर तिरंगा फहराने और भारत माता की जय बोलने जैसे मुद्दों में धर्म और विचारधारा कहाँ से घुस आई. देश की जनता यह सोचने पर मजबूर हो गई कि आखिर देश के विश्वविद्यालयों में तथा राजनीति में यह कैसा ज़हर भर गया है, कि मोदी और भाजपा से घृणा करने वाले अब तिरंगे और भारत माता से भी घृणा करने लगे? आगे पढ़िए...

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इस देश में अल्पसंख्यकों (Minorities) और बहुसंख्यकों (Majority) का वैमर्शिक ताना बाना कितना बेमेल और बेडौल हो चुका है उसकी बानगी कभी कभी बहुत साधारण लोगों की बातचीत एक अजनबी के रूप में दूर से पढ़ने सुनने पर प्रतीत मिलती है !! 

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मुस्लिम वोट बैंक के लिए काँग्रेस द्वारा खामख्वाह टीपू सुलतान की जयंती मनाने के भद्दे विवाद के समय प्रसिद्ध लेखक एवं कलाकार गिरीश कर्नाड ने भी अपनी कथित “सेकुलर उपयोगिता” को दर्शाने एवं अपने महामहिमों को खुश करने के लिए एक बयान दिया था कि बंगलौर के अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे का नाम केम्पेगौडा टर्मिनल से बदलकर टीपू सुलतान के नाम पर कर दिया जाना चाहिए. हालाँकि एक दिन में ही गिरीश कर्नाड को अक्ल आ गई और वे अपने बयान से पलट गए. ऐसा क्यों हुआ, यह हम लेख में आगे देखेंगे.

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आजकल देश के साहित्यकारों-लेखकों में सम्मान-पुरस्कार लौटाने की होड़ बची हुई है. बड़े ही नाटकीय अंदाज़ में देश को यह बताने की कोशिश की जा रही है कि भारत में “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता खतरे में है”, “लेखकों को दबाया जा रहा है”, “कलम को रोका जा रहा है”... आदि-आदि-आदि.

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किसी भी समाज में विचार बरसों बरस के लिए कैसे स्थापित होते हैं इसको समझना है तो भारत में वामपंथ को समझिए , आज गंभीर "राष्ट्रवादियों" का एक बहुत बड़ा तबका वामपंथियों को कोसने में अपना समय खर्च करता है , क्यों ? क्या वामपंथी एक दो राज्य छोड़कर कहीं सत्ता में हैं ? क्या उनका कोई व्यापक जनाधार है ? क्या उनका काडर बेस है ? क्या यूवा उनके विचार की तरफ तरफ आकर्षित हैं ? नहीं , सबका जवाब नहीं में ही आएगा , ऐसा कुछ भी नहीं है फिर भी देश के केंद्र में और आधे राज्यों में राज करने वाली विचारधारा के लोग वामपंथ से भयाक्रांत हैं ? क्यों ?

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