शनिवार, 17 नवम्बर 2012 12:26
Double Standards of Media and Secularism : Gujarat Elections
मीडिया, सेकुलरिज़्म और गुजरात चुनाव… (एक माइक्रो-पोस्ट)
भारत के चुनाव आयोग ने गुजरात में मकसूद काज़ी (अल्पसंख्यक सेल सूरत), तथा दो अन्य कांग्रेसी नेताओं कादिर पीरज़ादा व रिज़वान उस्मानी के खिलाफ़ चुनाव प्रचार के दौरान "भड़काऊ भाषण देने, घृणा फ़ैलाने, धार्मिक विद्वेष पैदा करने" समेत कई धाराओं में FIR दर्ज की है।
केन्द्रीय मंत्री शंकर सिंह वाघेला भी पीछे नहीं हैं, इनके खिलाफ़ भी चुनाव आयोग ने "आपत्तिजनक और उकसाने वाली भाषा" को लेकर FIR दर्ज कर दी है…। चूंकि सभी भाषणों की वीडियो रिकॉर्डिंग हो रही है, इसलिए चुनाव आयोग स्वयं संज्ञान से यह कार्रवाई कर रहा है। अधिकांश उत्तेजक भाषणों में गोधरा के दंगों और मुसलमानों के साथ अन्याय इत्यादि को लेकर ही भड़काने वाले भाषण दिए जा रहे हैं।
(हालांकि "सेक्यूलर वेश्यावृत्ति" से ग्रस्त मीडिया में इस सम्बन्ध में कोई खबर नहीं है)
यहाँ पर सवाल यह नहीं है कि ये लोग ऐसा क्यों कर रहे हैं? क्योंकि हम तो जानते ही हैं "कांग्रेस ही इस देश की सबसे बड़ी साम्प्रदायिक पार्टी है", लेकिन जब नरेन्द्र मोदी समेत गुजरात के सभी मंत्री "विकास" के मुद्दे पर चुनाव लड़ रहे हैं, साम्प्रदायिक मुद्दों को पीछे छोड़ चुके हैं… तो फ़िर कांग्रेसी बार-बार गोधरा-गोधरा कहकर आग में घी क्यों डाल रहे हैं। विकास के मुद्दों पर चुनाव क्यों नहीं लड़ते?
इसी
"नकली" मीडिया ने असम और हैदराबाद की घटनाओं पर अभी तक एक शब्द भी नहीं
कहा है… जबकि आपको याद होगा कि वरुण गाँधी द्वारा "हाथ काटने" वाले बयान पर
सभी सेकुलरों ने अपने कपड़े तार-तार कर लिए थे…
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अब कल्पना कीजिए कि यदि इनकी हरकतों की वजह से नरेन्द्र मोदी या किसी अन्य भाजपा नेता के मुँह से कोई गलत-सलत बात निकल गई तो यह "नेशनल मीडिया" और तथाकथित "सिक-यू-लायर" कैसी दुर्गन्ध मचाएंगे…
तात्पर्य यह है कि, जब हम "सेक्यूलरों, कांग्रेसियों और मीडिया" को (________), तथा (__________) और (_________) कहते हैं… तो हम बिलकुल सही कहते हैं…।
स्रोत :- http://deshgujarat.com/2012/11/15/so-who-exactly-is-communal-in-gujarat-in-this-election-season/
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