भारतीय "जाति व्यवस्था" में दुनिया की दिलचस्पी क्यों?
भारत की जाति व्यवस्था और ‘छुआ-छूत’ बड़ी संख्या में सामाजिक विज्ञान शोधकर्ताओं, इतिहासकारों और यहां तक कि आधुनिक समय में आम जनता के लिए गहरी रुचि का विषय रहा है। भारत में व्याप्त कास्ट की धारणाओं ने गैर-भारतीयों के दिमाग में ऐसी गहरी जड़ें जमा ली हैं कि मुझे अक्सर पश्चिमी लोगों के साथ अनौपचारिक बातचीत के दौरान पूछा जाता है कि क्या मैं अगड़ी जाति की हूँ?
भारत की "वर्ण व्यवस्था" विश्व की सर्वोत्तम व्यवस्था थी
यह निर्विवाद है कि भारत की अति प्राचीन सामाजिक व्यवस्था पूरी दुनिया की तुलना में अधिक विकसित तथा वैज्ञानिक थी। उस समय भारत वैज्ञानिक मामलों में भी दुनिया में उपर था, सामाजिक मामलों में तो था ही।
इस्लाम में भीषण भेदभाव : अहमदिया मुस्लिमों से अछूत बर्ताव
पाकिस्तान में पैदा हुई पैंतीस वर्षीय एक औरत ताहिरा मकबूल ने अपने जीवन में पहली बार मतदान किया, वो भी भारत में. आप सोच रहे होंगे, इसमें हैरान करने वाली क्या बात है?? बात यह है कि ताहिरा मकबूल एक "अहमदिया मुसलमान" हैं.
मुस्लिमों का नकली दलित प्रेम
इस्लाम में तमाम तरह की ऊँच-नीच और जाति प्रथा होने के बावजूद अपना घर सुधारने की बजाय, उन्हें हिन्दू दलितों की “नकली चिंता” अधिक सताती है. विभिन्न फोरमों एवं सोशल मीडिया में असली-नकली नामों तथा वामपंथी बुद्धिजीवियों के फेंके हुए बौद्धिक टुकड़ों के सहारे ये मुस्लिम बुद्धिजीवी हिंदुओं में दरार बढ़ाने की लगातार कोशिश करते रहते हैं. जबकि इनके खुद के संस्थानों में इन्होंने दलितों के लिए दरवाजे बन्द कर रखे हैं.