मुम्बई स्टॉक एक्सचेंज में शरीयत आधारित इंडेक्स शुरु… सच्चर कमेटी की सिफ़ारिशें रंग लाने लगीं … Sharia Index, Islamic Bank, Sachchar Committee Reports
Written by Super User रविवार, 09 जनवरी 2011 14:21
भारत में इस्लामिक बैंक की स्थापना के प्रयासों में मुँह की खाने के बाद, एक अन्य “सेकुलर” कोशिश के तहत मुम्बई स्टॉक एक्सचेंज में एक नया इंडेक्स शुरु किया गया है जिसे “मुम्बई शरीया-इंडेक्स” नाम दिया गया है। बताया गया है कि इस इंडेक्स में सिर्फ़ उन्हीं टॉप 50 कम्पनियों को शामिल किया गया है जो “शरीयत” के अनुसार “हराम” की कमाई नहीं करती हैं, यह कम्पनियाँ शरीयत के दिशानिर्देशों के अनुसार पूरी तरह “हलाल” मानी गई हैं जिसमें भारत के मुस्लिम बिना किसी “धार्मिक खता”(?) के अपना पैसा निवेश कर सकते हैं।
एक इस्लामिक आर्थिक संस्था है “तसीस” (TASIS) (Taqwaa Advisory and Shariat Investment Solutions)। यह संस्था एवं इनका शरीयत बोर्ड यह तय करेगा कि कौन सी कम्पनी, शरीयत के अनुसार “हलाल” है और कौन सी “हराम”। इस संस्था के मुताबिक शराब, सिगरेट, अस्त्र-शस्त्र बनाने वाली तथा “ब्याजखोरी एवं जुआ-सट्टा” करने वाली कम्पनियाँ “हराम” मानी गई हैं।
भारत में इस्लामिक बैंक अथवा इस्लामिक फ़ाइनेंस (यानी शरीयत के अनुसार चलने वाले संस्थानों) की स्थापना के प्रयास 2005 से ही शुरु हो गये थे जब रिज़र्व बैंक ने “इस्लामिक बैंक” की उपयोगिता एवं मार्केट के बारे में पता करने के लिये, आनन्द सिन्हा की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया था। इसके बाद राजिन्दर सच्चर की अध्यक्षता में आयोग बनाया गया, जिसने निष्कर्ष निकाला कि भारत के 50% से अधिक मुस्लिम विभिन्न फ़ायनेंस योजनाओं एवं शेयर निवेश के बाज़ार से बाहर हैं, क्योंकि उनकी कुछ धार्मिक मान्यताएं हैं। इस्लामिक बैंक की स्थापना को शुरु में केरल के मलप्पुरम से शुरु करने की योजना थी, लेकिन डॉ सुब्रहमण्यम स्वामी ने केरल हाईकोर्ट में याचिका दायर करके एवं विभिन्न अखबारों में लेख लिखकर बताया कि “इस्लामिक बैंक” की अवधारणा न तो भारतीय रिजर्व बैंक के मानदण्डों पर खरा उतरता है, और न ही एक “सेकुलर” देश होने के नाते संविधान में फ़िट बैठता है, तब “फ़िलहाल” (जी हाँ फ़िलहाल) इसे ठण्डे बस्ते में डाल दिया गया है, परन्तु शरीया-50 इंडेक्स को मुम्बई स्टॉक एक्सचेंज (लिस्ट यहाँ देखें…) में लागू कर ही दिया गया है।
स्वाभाविक तौर पर कुछ सवाल तथाकथित शरीयत आधारित इंडेक्स को लेकर खड़े होते हैं – जैसे,
1) भारत एक घोषित धर्मनिरपेक्ष देश है (ऐसा संविधान में भी लिखा है), फ़िर “शरीयत” एवं धार्मिक आधार पर इंडेक्स शुरु करने का क्या औचित्य है? क्या ऐसा ही कोई “गीता इंडेक्स” या “बाइबल इंडेक्स” भी बनाया जा सकता है?
2) भारत या विश्व की कौन सी ऐसी प्रायवेट कम्पनी है, जो “ब्याजखोरी” पर नहीं चलती होगी?
3) पाकिस्तान व सऊदी अरब अपने-आप को इस्लाम का पैरोकार बताते फ़िरते हैं, मैं जानने को उत्सुक हूं (कोई मुझे जानकारी दे) कि क्या पाकिस्तान में सिगरेट बनाने-बेचने वाली कोई कम्पनी कराची स्टॉक एक्सचेंज में शामिल है या नहीं?
4) कृपया जानकारी जुटायें कि क्या सऊदी अरब में किसी अमेरिकी शस्त्र कम्पनी के शेयर लिस्टेड हैं या नहीं?
5) क्या शराब बनाने वाली कोई कम्पनी बांग्लादेश अथवा इंडोनेशिया के स्टॉक एक्सचेंज में शामिल है या नहीं? या वहाँ की किसी “इस्लामिक” व ईमानदारी से शरीयत पर चलने वाली किसी कम्पनी की पार्टनरशिप “ब्याजखोरी” करने वाले किसी संस्थान से तो नहीं है?
इन सवालों के जवाब इस्लामिक जगत के लिये बड़े असहज सिद्ध होंगे और शरीयत का नाम लेकर मुसलमानों को बेवकूफ़ बनाने की उनकी पोल खुल जायेगी। भारत में शरीयत आधारित इंडेक्स शुरु करने का एकमात्र मकसद सऊदी अरब, कतर, शारजाह जैसे खाड़ी देशों से पैसा खींचना है। अभी भारत में अंडरवर्ल्ड का पैसा हवाला के जरिये आता है, फ़िर दाउद इब्राहीम एवं अल-जवाहिरी का पैसा “व्हाइट मनी” बनकर भारत आयेगा। ज़ाहिर है कि इसमें भारतीय नेताओं के भी हित हैं, कुछ के “धार्मिक वोट” आधारित हित हैं, जबकि कुछ के “आर्थिक हित” हैं। भारत से भ्रष्ट तरीकों से जो पैसा कमाकर दुबई भेजा जाता है और सोने में तब्दील किया जाता है, वह अब “रुप और नाम” बदलकर वापस भारत में ही शरीयत आधारित इंडेक्स की कम्पनियों में लगाया जायेगा। बेचारा धार्मिक मुसलमान सोचेगा कि यह कम्पनियाँ और यह शेयर तो बड़े ही “पवित्र” और “शरीयत” आधारित हैं, जबकि असल में यह पैसा भारत में हवाला के पैसों के सुगम आवागमन के लिये होगा और इसमें जिन अपराधियों-नेताओं का पैसा लगेगा, उन्हें न तो इस्लाम से कोई मतलब है और न ही शरीयत से कोई प्रेम है।
कम्पनियाँ शरीयत आधारित मॉडल पर “धंधा” कर रही हैं या नहीं इसे तय करने का पूरा अधिकार सिर्फ़ और सिर्फ़ TASIS को दिया गया है, जिसमें कुरान व शरीयत के विशेषज्ञ(?) लोगों की एक कमेटी है, जो बतायेगी कि कम्पनी शरीयत पर चल रही है या नहीं। यानी इस बात की कोई गारण्टी नहीं है कि भविष्य में देवबन्द से कोई मौलवी अचानक किसी कम्पनी के खिलाफ़ कोई फ़तवा जारी कर दे तो किसकी बात मानी जायेगी, TASIS के पैनल की, या देबवन्द के मौलवी की? मान लीजिये किसी मौलवी ने फ़तवा दिया कि डाबर कम्पनी का शहद खाना शरीयत के अनुसार “हराम” है तो क्या डाबर कम्पनी को शरीया इंडेक्स से बाहर कर दिया जायेगा? क्योंकि देवबन्द का कोई भरोसा नहीं, पता नहीं किस बात पर कौन सा अजीबोगरीब फ़तवा जारी कर दे… (हाल ही में एक फ़तवे में कहा गया है कि यदि शौहर अपनी पत्नी को मोबाइल पर तीन बार तलाक कहे और यदि किसी वजह से, अर्थात नेटवर्क में खराबी या लो-बैटरी के कारण पत्नी “तलाक” न सुन सके, इसके बावजूद वह तलाक वैध माना जायेगा, अब बताईये भला… पश्चिम की आधुनिक तकनीक से बना मोबाइल तो शरीयत के अनुसार “हराम” नहीं है लेकिन उस पर दिया गया तलाक पाक और शुद्ध है, ऐसा कैसे?)
बहरहाल, बात हो रही थी इस्लामिक बैंकिंग व शरई इंडेक्स की – हमारे देश में एक तो वैसे ही बैंकिंग सिस्टम पर निगरानी बेहद घटिया है एवं बड़े आर्थिक अपराधों के मामले में सजा का प्रतिशत लगभग शून्य है। एक उदाहरण देखें – देश के सर्वोच्च पद पर आसीन प्रतिभादेवी सिंह पाटिल के खिलाफ़ उनके गृह जिले में आर्थिक अपराध के मामले पंजीबद्ध हैं। प्रतिभा पाटिल एवं उनके रिश्तेदारों ने एक समूह बनाकर “सहकारी बैंक” शुरु किया था, प्रतिभा पाटिल इस बैंक की अध्यक्षा थीं उस समय इनके रिश्तेदारों को बैंक ने फ़र्जी और NPA लोन जमकर बाँटे। ऑडिट रिपोर्ट में जब यह बात साबित हो गई, तो रिज़र्व बैंक ने इस बैंक की मान्यता समाप्प्त कर दी। रिपोर्ट के अनुसार बैंक के सबसे बड़े 10 NPA कर्ज़दारों में से 6 प्रतिभा पाटिल के नज़दीकी रिश्तेदार हैं, जिन्होंने बैंक को चूना लगाया… (सन्दर्भ- The Difficulty of Being Good : on the Subtle art of Dharma, Chapter Draupadi -- Page 59-60 – लेखक गुरुचरण दास)
ऐसी स्थिति में अरब देशों से शरीयत इंडेक्स के नाम पर आने वाला भारी पैसा कहाँ से आयेगा, कहाँ जायेगा, उसका क्या और कैसा उपयोग किया जायेगा, उसे कैसे व्हाइट में बदला जायेगा, इत्यादि की जाँच करने की कूवत भारतीय एजेंसियों में नहीं है। असल में यह सिर्फ़ भारत के मुसलमानों को भरमाने और बेवकूफ़ बनाने की चाल है, ज़रा सोचिये किंगफ़िशर एयरलाइन्स के नाम से माल्या की कम्पनी किसी इस्लामी देश के शेयर बाज़ार में लिस्टेड होती है या फ़िर ITC होटल्स नाम की कम्पनी शरीयत इंडेक्स में शामिल किसी कम्पनी की मुख्य भागीदार बनती है तो क्या यह शरीयत का उल्लंघन नहीं होगा? विजय माल्या भारत के सबसे बड़े शराब निर्माता हैं और ITC सबसे बड़ी सिगरेट निर्माता कम्पनी, तब इन दोनों कम्पनियों के शेयर, भागीदारी, संयुक्त उपक्रम इत्यादि जिस भी कम्पनी में हों उसे तो “हराम” माना जाना चाहिये, लेकिन ऐसा होता नहीं है, देश के कई मुस्लिम व्यक्ति इनसे जुड़ी कम्पनियों के शेयर भी लेते ही हैं, परन्तु शरीया इंडेक्स, अरब देशों से पैसा खींचने, यहाँ का काला पैसा सफ़ेद करने एवं भारत के मुस्लिमों को “बहलाने” का एक हथियार भर है। मुस्लिमों को शेयर मार्केट में पैसा लगाकर लाभ अवश्य कमाना चाहिये, भारतीय मुस्लिमों की आर्थिक स्थिति सुधरे, ऐसा कौन नहीं चाहता… लेकिन इसके लिए शरीयत की आड़ लेना, सिर्फ़ मन को बहलाने एवं धार्मिक भावनाओं से खेलना भर है। हर बात में “धर्म” को घुसेड़ने से अन्य धर्मों के लोगों के मन में इस्लाम के प्रति शंका आना स्वाभाविक है…
एक अन्य उदाहरण :- यदि तुम जिन्दा रहे तो हम तुम्हें इतना पैसा देंगे, और यदि तुम तय समय से पहले मर गये तो हम तुम्हारे परिवार को इतने गुना पैसा देंगे…। या फ़िर ऐसा करो कि कम किस्त भरो… जिन्दा रहे तो सारा पैसा हमारा, मर गये तो कई गुना हम तुम्हें देंगे… जीवन बीमा कम्पनियाँ जो पॉलिसी बेचती हैं, वह भी तो एक प्रकार से “मानव जीवन पर खेला गया सट्टा” ही है, तो क्या भारत के मुसलमान जीवन बीमा करवाते ही नहीं हैं? बिलकुल करवाते हैं, भारी संख्या में करवाते हैं, तो क्या वे सभी के सभी शरीयत के आधार पर “कुकर्मी” हो गये? नहीं। तो फ़िर इस शरीयत आधारित इंडेक्स की क्या जरुरत है?
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की शाखाएं चुन-चुनकर और जानबूझकर मुस्लिम बहुल इलाकों (बंगाल के मुर्शिदाबाद, बिहार के किशनगंज एवं केरल के मलप्पुरम ) में खोलने की कवायद जारी है, कांग्रेस शासित राज्यों में से कुछ ने नौकरियों में 5% आरक्षण मुसलमानों को दे दिया है, केन्द्र सरकार भी राष्ट्रीय सिविल परीक्षाओं में मुसलमानों के लिये 5% आरक्षण पर विचार कर रही है, केरल-बंगाल-असम के अन्दरूनी इलाकों में अनधिकृत शरीयत अदालतें अपने फ़ैसले सुनाकर, कहीं प्रोफ़ेसर के हाथ काट रही हैं तो कहीं देगंगा में हिन्दुओं को बस्ती खाली करने के निर्देश दे रही हैं…। ये क्या हो रहा है, समझने वाले सब समझ रहे हैं…
“एकजुट जनसंख्या” और “मजबूत वोट बैंक” की ताकत… मूर्ख हिन्दू इन दोनों बातों के बारे में क्या जानें… उन्हें तो यही नहीं पता कि OBC एवं SC-ST के आरक्षण कोटे में से ही कम करके, “दलित ईसाईयों”(?) (पता नहीं ये क्या चीज़ है) और मुसलमानों को आरक्षण दे दिया जायेगा… और वे मुँह तकते रह जायेंगे।
बहरहाल, सरकार तो कुछ करेगी नहीं और भाजपा सोती रहेगी… लेकिन अब कम से कम हिन्दुओं को यह तो पता है कि शरीयत इंडेक्स में शामिल उन 50 कम्पनियों के शेयर “नहीं” खरीदने हैं… शायद तंग आकर कम्पनियाँ खुद ही कह दें, कि भई हमें शरीयत इंडेक्स से बाहर करो… हम पहले ही खुश थे…। बड़ा सवाल यह है कि क्या मुनाफ़े के भूखे, “व्यापारी मानसिकता वाले, राजनैतिक रुप से बिखरे हुए हिन्दू” ऐसा कर पाएंगे?
चलते-चलते : मजे की बात तो यह है कि, हर काम शरीयत और फ़तवे के आधार पर करने को लालायित मुस्लिम संगठनों ने अभी तक यह माँग नहीं की है कि अबू सलेम को पत्थर मार-मार कर मौत की सजा दी जाये अथवा अब्दुल तेलगी को ज़मीन में जिन्दा गाड़ दिया जाये… या सूरत के MMS काण्ड के चारों मुस्लिम लड़कों के हाथ काट दिये जायें…। ज़ाहिर है कि शरीयत अथवा फ़तवे का उपयोग (अक्सर मर्दों द्वारा) सिर्फ़ “अपने फ़ायदे” के लिये ही किया जाता है, सजा पाने के लिये नहीं… उस समय तो भारतीय कानून ही बड़े “फ़्रेण्डली” लगते हैं…।
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एक इस्लामिक आर्थिक संस्था है “तसीस” (TASIS) (Taqwaa Advisory and Shariat Investment Solutions)। यह संस्था एवं इनका शरीयत बोर्ड यह तय करेगा कि कौन सी कम्पनी, शरीयत के अनुसार “हलाल” है और कौन सी “हराम”। इस संस्था के मुताबिक शराब, सिगरेट, अस्त्र-शस्त्र बनाने वाली तथा “ब्याजखोरी एवं जुआ-सट्टा” करने वाली कम्पनियाँ “हराम” मानी गई हैं।
भारत में इस्लामिक बैंक अथवा इस्लामिक फ़ाइनेंस (यानी शरीयत के अनुसार चलने वाले संस्थानों) की स्थापना के प्रयास 2005 से ही शुरु हो गये थे जब रिज़र्व बैंक ने “इस्लामिक बैंक” की उपयोगिता एवं मार्केट के बारे में पता करने के लिये, आनन्द सिन्हा की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया था। इसके बाद राजिन्दर सच्चर की अध्यक्षता में आयोग बनाया गया, जिसने निष्कर्ष निकाला कि भारत के 50% से अधिक मुस्लिम विभिन्न फ़ायनेंस योजनाओं एवं शेयर निवेश के बाज़ार से बाहर हैं, क्योंकि उनकी कुछ धार्मिक मान्यताएं हैं। इस्लामिक बैंक की स्थापना को शुरु में केरल के मलप्पुरम से शुरु करने की योजना थी, लेकिन डॉ सुब्रहमण्यम स्वामी ने केरल हाईकोर्ट में याचिका दायर करके एवं विभिन्न अखबारों में लेख लिखकर बताया कि “इस्लामिक बैंक” की अवधारणा न तो भारतीय रिजर्व बैंक के मानदण्डों पर खरा उतरता है, और न ही एक “सेकुलर” देश होने के नाते संविधान में फ़िट बैठता है, तब “फ़िलहाल” (जी हाँ फ़िलहाल) इसे ठण्डे बस्ते में डाल दिया गया है, परन्तु शरीया-50 इंडेक्स को मुम्बई स्टॉक एक्सचेंज (लिस्ट यहाँ देखें…) में लागू कर ही दिया गया है।
स्वाभाविक तौर पर कुछ सवाल तथाकथित शरीयत आधारित इंडेक्स को लेकर खड़े होते हैं – जैसे,
1) भारत एक घोषित धर्मनिरपेक्ष देश है (ऐसा संविधान में भी लिखा है), फ़िर “शरीयत” एवं धार्मिक आधार पर इंडेक्स शुरु करने का क्या औचित्य है? क्या ऐसा ही कोई “गीता इंडेक्स” या “बाइबल इंडेक्स” भी बनाया जा सकता है?
2) भारत या विश्व की कौन सी ऐसी प्रायवेट कम्पनी है, जो “ब्याजखोरी” पर नहीं चलती होगी?
3) पाकिस्तान व सऊदी अरब अपने-आप को इस्लाम का पैरोकार बताते फ़िरते हैं, मैं जानने को उत्सुक हूं (कोई मुझे जानकारी दे) कि क्या पाकिस्तान में सिगरेट बनाने-बेचने वाली कोई कम्पनी कराची स्टॉक एक्सचेंज में शामिल है या नहीं?
4) कृपया जानकारी जुटायें कि क्या सऊदी अरब में किसी अमेरिकी शस्त्र कम्पनी के शेयर लिस्टेड हैं या नहीं?
5) क्या शराब बनाने वाली कोई कम्पनी बांग्लादेश अथवा इंडोनेशिया के स्टॉक एक्सचेंज में शामिल है या नहीं? या वहाँ की किसी “इस्लामिक” व ईमानदारी से शरीयत पर चलने वाली किसी कम्पनी की पार्टनरशिप “ब्याजखोरी” करने वाले किसी संस्थान से तो नहीं है?
इन सवालों के जवाब इस्लामिक जगत के लिये बड़े असहज सिद्ध होंगे और शरीयत का नाम लेकर मुसलमानों को बेवकूफ़ बनाने की उनकी पोल खुल जायेगी। भारत में शरीयत आधारित इंडेक्स शुरु करने का एकमात्र मकसद सऊदी अरब, कतर, शारजाह जैसे खाड़ी देशों से पैसा खींचना है। अभी भारत में अंडरवर्ल्ड का पैसा हवाला के जरिये आता है, फ़िर दाउद इब्राहीम एवं अल-जवाहिरी का पैसा “व्हाइट मनी” बनकर भारत आयेगा। ज़ाहिर है कि इसमें भारतीय नेताओं के भी हित हैं, कुछ के “धार्मिक वोट” आधारित हित हैं, जबकि कुछ के “आर्थिक हित” हैं। भारत से भ्रष्ट तरीकों से जो पैसा कमाकर दुबई भेजा जाता है और सोने में तब्दील किया जाता है, वह अब “रुप और नाम” बदलकर वापस भारत में ही शरीयत आधारित इंडेक्स की कम्पनियों में लगाया जायेगा। बेचारा धार्मिक मुसलमान सोचेगा कि यह कम्पनियाँ और यह शेयर तो बड़े ही “पवित्र” और “शरीयत” आधारित हैं, जबकि असल में यह पैसा भारत में हवाला के पैसों के सुगम आवागमन के लिये होगा और इसमें जिन अपराधियों-नेताओं का पैसा लगेगा, उन्हें न तो इस्लाम से कोई मतलब है और न ही शरीयत से कोई प्रेम है।
कम्पनियाँ शरीयत आधारित मॉडल पर “धंधा” कर रही हैं या नहीं इसे तय करने का पूरा अधिकार सिर्फ़ और सिर्फ़ TASIS को दिया गया है, जिसमें कुरान व शरीयत के विशेषज्ञ(?) लोगों की एक कमेटी है, जो बतायेगी कि कम्पनी शरीयत पर चल रही है या नहीं। यानी इस बात की कोई गारण्टी नहीं है कि भविष्य में देवबन्द से कोई मौलवी अचानक किसी कम्पनी के खिलाफ़ कोई फ़तवा जारी कर दे तो किसकी बात मानी जायेगी, TASIS के पैनल की, या देबवन्द के मौलवी की? मान लीजिये किसी मौलवी ने फ़तवा दिया कि डाबर कम्पनी का शहद खाना शरीयत के अनुसार “हराम” है तो क्या डाबर कम्पनी को शरीया इंडेक्स से बाहर कर दिया जायेगा? क्योंकि देवबन्द का कोई भरोसा नहीं, पता नहीं किस बात पर कौन सा अजीबोगरीब फ़तवा जारी कर दे… (हाल ही में एक फ़तवे में कहा गया है कि यदि शौहर अपनी पत्नी को मोबाइल पर तीन बार तलाक कहे और यदि किसी वजह से, अर्थात नेटवर्क में खराबी या लो-बैटरी के कारण पत्नी “तलाक” न सुन सके, इसके बावजूद वह तलाक वैध माना जायेगा, अब बताईये भला… पश्चिम की आधुनिक तकनीक से बना मोबाइल तो शरीयत के अनुसार “हराम” नहीं है लेकिन उस पर दिया गया तलाक पाक और शुद्ध है, ऐसा कैसे?)
बहरहाल, बात हो रही थी इस्लामिक बैंकिंग व शरई इंडेक्स की – हमारे देश में एक तो वैसे ही बैंकिंग सिस्टम पर निगरानी बेहद घटिया है एवं बड़े आर्थिक अपराधों के मामले में सजा का प्रतिशत लगभग शून्य है। एक उदाहरण देखें – देश के सर्वोच्च पद पर आसीन प्रतिभादेवी सिंह पाटिल के खिलाफ़ उनके गृह जिले में आर्थिक अपराध के मामले पंजीबद्ध हैं। प्रतिभा पाटिल एवं उनके रिश्तेदारों ने एक समूह बनाकर “सहकारी बैंक” शुरु किया था, प्रतिभा पाटिल इस बैंक की अध्यक्षा थीं उस समय इनके रिश्तेदारों को बैंक ने फ़र्जी और NPA लोन जमकर बाँटे। ऑडिट रिपोर्ट में जब यह बात साबित हो गई, तो रिज़र्व बैंक ने इस बैंक की मान्यता समाप्प्त कर दी। रिपोर्ट के अनुसार बैंक के सबसे बड़े 10 NPA कर्ज़दारों में से 6 प्रतिभा पाटिल के नज़दीकी रिश्तेदार हैं, जिन्होंने बैंक को चूना लगाया… (सन्दर्भ- The Difficulty of Being Good : on the Subtle art of Dharma, Chapter Draupadi -- Page 59-60 – लेखक गुरुचरण दास)
ऐसी स्थिति में अरब देशों से शरीयत इंडेक्स के नाम पर आने वाला भारी पैसा कहाँ से आयेगा, कहाँ जायेगा, उसका क्या और कैसा उपयोग किया जायेगा, उसे कैसे व्हाइट में बदला जायेगा, इत्यादि की जाँच करने की कूवत भारतीय एजेंसियों में नहीं है। असल में यह सिर्फ़ भारत के मुसलमानों को भरमाने और बेवकूफ़ बनाने की चाल है, ज़रा सोचिये किंगफ़िशर एयरलाइन्स के नाम से माल्या की कम्पनी किसी इस्लामी देश के शेयर बाज़ार में लिस्टेड होती है या फ़िर ITC होटल्स नाम की कम्पनी शरीयत इंडेक्स में शामिल किसी कम्पनी की मुख्य भागीदार बनती है तो क्या यह शरीयत का उल्लंघन नहीं होगा? विजय माल्या भारत के सबसे बड़े शराब निर्माता हैं और ITC सबसे बड़ी सिगरेट निर्माता कम्पनी, तब इन दोनों कम्पनियों के शेयर, भागीदारी, संयुक्त उपक्रम इत्यादि जिस भी कम्पनी में हों उसे तो “हराम” माना जाना चाहिये, लेकिन ऐसा होता नहीं है, देश के कई मुस्लिम व्यक्ति इनसे जुड़ी कम्पनियों के शेयर भी लेते ही हैं, परन्तु शरीया इंडेक्स, अरब देशों से पैसा खींचने, यहाँ का काला पैसा सफ़ेद करने एवं भारत के मुस्लिमों को “बहलाने” का एक हथियार भर है। मुस्लिमों को शेयर मार्केट में पैसा लगाकर लाभ अवश्य कमाना चाहिये, भारतीय मुस्लिमों की आर्थिक स्थिति सुधरे, ऐसा कौन नहीं चाहता… लेकिन इसके लिए शरीयत की आड़ लेना, सिर्फ़ मन को बहलाने एवं धार्मिक भावनाओं से खेलना भर है। हर बात में “धर्म” को घुसेड़ने से अन्य धर्मों के लोगों के मन में इस्लाम के प्रति शंका आना स्वाभाविक है…
एक अन्य उदाहरण :- यदि तुम जिन्दा रहे तो हम तुम्हें इतना पैसा देंगे, और यदि तुम तय समय से पहले मर गये तो हम तुम्हारे परिवार को इतने गुना पैसा देंगे…। या फ़िर ऐसा करो कि कम किस्त भरो… जिन्दा रहे तो सारा पैसा हमारा, मर गये तो कई गुना हम तुम्हें देंगे… जीवन बीमा कम्पनियाँ जो पॉलिसी बेचती हैं, वह भी तो एक प्रकार से “मानव जीवन पर खेला गया सट्टा” ही है, तो क्या भारत के मुसलमान जीवन बीमा करवाते ही नहीं हैं? बिलकुल करवाते हैं, भारी संख्या में करवाते हैं, तो क्या वे सभी के सभी शरीयत के आधार पर “कुकर्मी” हो गये? नहीं। तो फ़िर इस शरीयत आधारित इंडेक्स की क्या जरुरत है?
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की शाखाएं चुन-चुनकर और जानबूझकर मुस्लिम बहुल इलाकों (बंगाल के मुर्शिदाबाद, बिहार के किशनगंज एवं केरल के मलप्पुरम ) में खोलने की कवायद जारी है, कांग्रेस शासित राज्यों में से कुछ ने नौकरियों में 5% आरक्षण मुसलमानों को दे दिया है, केन्द्र सरकार भी राष्ट्रीय सिविल परीक्षाओं में मुसलमानों के लिये 5% आरक्षण पर विचार कर रही है, केरल-बंगाल-असम के अन्दरूनी इलाकों में अनधिकृत शरीयत अदालतें अपने फ़ैसले सुनाकर, कहीं प्रोफ़ेसर के हाथ काट रही हैं तो कहीं देगंगा में हिन्दुओं को बस्ती खाली करने के निर्देश दे रही हैं…। ये क्या हो रहा है, समझने वाले सब समझ रहे हैं…
“एकजुट जनसंख्या” और “मजबूत वोट बैंक” की ताकत… मूर्ख हिन्दू इन दोनों बातों के बारे में क्या जानें… उन्हें तो यही नहीं पता कि OBC एवं SC-ST के आरक्षण कोटे में से ही कम करके, “दलित ईसाईयों”(?) (पता नहीं ये क्या चीज़ है) और मुसलमानों को आरक्षण दे दिया जायेगा… और वे मुँह तकते रह जायेंगे।
बहरहाल, सरकार तो कुछ करेगी नहीं और भाजपा सोती रहेगी… लेकिन अब कम से कम हिन्दुओं को यह तो पता है कि शरीयत इंडेक्स में शामिल उन 50 कम्पनियों के शेयर “नहीं” खरीदने हैं… शायद तंग आकर कम्पनियाँ खुद ही कह दें, कि भई हमें शरीयत इंडेक्स से बाहर करो… हम पहले ही खुश थे…। बड़ा सवाल यह है कि क्या मुनाफ़े के भूखे, “व्यापारी मानसिकता वाले, राजनैतिक रुप से बिखरे हुए हिन्दू” ऐसा कर पाएंगे?
चलते-चलते : मजे की बात तो यह है कि, हर काम शरीयत और फ़तवे के आधार पर करने को लालायित मुस्लिम संगठनों ने अभी तक यह माँग नहीं की है कि अबू सलेम को पत्थर मार-मार कर मौत की सजा दी जाये अथवा अब्दुल तेलगी को ज़मीन में जिन्दा गाड़ दिया जाये… या सूरत के MMS काण्ड के चारों मुस्लिम लड़कों के हाथ काट दिये जायें…। ज़ाहिर है कि शरीयत अथवा फ़तवे का उपयोग (अक्सर मर्दों द्वारा) सिर्फ़ “अपने फ़ायदे” के लिये ही किया जाता है, सजा पाने के लिये नहीं… उस समय तो भारतीय कानून ही बड़े “फ़्रेण्डली” लगते हैं…।
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