पुट्टपर्थी में सेकुलर गिद्ध मंडराने लगे हैं… Satya Sai Baba Trust Puttaparthi, Hindu Temples
Written by Super User शनिवार, 09 अप्रैल 2011 11:35
समूची दुनिया में करोड़ों भक्तों के श्रद्धास्थान अनंतपुर जिले में स्थित पुट्टपर्थी के श्री सत्य साईं बाबा का स्वास्थ्य, बेहद नाज़ुक स्थिति में चल रहा है। डॉक्टरों ने उन्हें वेंटिलेटर पर रखा है। 85 वर्षीय सत्य साँई बाबा अब अपने जीवन के आखिरी चरण में पहुँच चुके हैं। बाबा के करोड़ों भक्त उनके स्वास्थ्य हेतु दुआएं माँग रहे हैं और प्रार्थनाएं कर रहे हैं।
एक कहावत का मिलता-जुलता स्वरूप है - “मुर्दा अभी घर से उठा नहीं, और तेरहवीं के भोज की तैयारियाँ शुरु हो गईं…”। लगभग यही “मानसिकता” दर्शाते हुए आंध्रप्रदेश की कांग्रेस सरकार ने 40,000 करोड़ रुपये के विशाल टर्नओवर वाले सत्य साँई ट्रस्ट (Satya Sai Trust) पर राजनेताओं द्वारा कब्जा करने हेतु, पहला पाँसा फ़ेंक दिया है। मुख्यमंत्री किरण कुमार की पहल पर राज्य सरकार ने पाँच सदस्यों का एक विशेष प्रतिनिधिमण्डल पुट्टपर्थी भेजा है, जो इस बात की देखरेख करेगा कि साईं बाबा की मृत्यु के पश्चात सत्य सांई ट्रस्ट कैसे संचालित होगा, इस ट्रस्ट के ट्रस्टियों ने इस विशाल अकूत सम्पत्ति की ठीक से देखभाल एवं विभिन्न सेवा प्रकल्पों के सुचारु संचालन हेतु क्या-क्या कदम उठाए हैं।
पाँच सदस्यों की इस टीम में राज्य के मुख्य सचिव, वित्त सचिव एल वी सुब्रह्मण्यम, स्वास्थ्य सचिव पीवी रमेश, राज्य मेडिकल शिक्षा के निदेशक डॉ रघु राजू, उस्मानिया अस्पताल (Usmania Hospital) के कार्डियोलॉजिस्ट डॉ लक्ष्मण राव एवं डॉ भानु प्रसाद शामिल हैं। इस प्रतिनिधिमण्डल ने (यानी आंध्र की कांग्रेस सरकार ने) अपने बयान में कहा कि, “चूंकि डॉक्टर साईं बाबा के स्वास्थ्य (Satya Sai Baba Health) के बारे में सशंकित हैं, इसलिये हम ट्रस्ट के सभी प्रमुख सदस्यों से चर्चा कर रहे हैं कि साईं बाबा के निधन के पश्चात, क्या ऐसी कोई व्यवस्था है जो उनके सभी “चैरिटी” संस्थानों की ठीक तरह से देखभाल कर सके? क्या ट्रस्ट में कोई “केन्द्रीय व्यवस्था” है जो सभी संस्थाओं को एक छतरी के नीचे ला सके?” राज्य के मुख्य सचिव ने कहा कि चूंकि सत्य साईं ट्रस्ट को विदेशों से भारी मात्रा में चन्दा और दान प्राप्त होता है, इसलिये हमारी टीम यह भी देख रही है कि क्या ट्रस्ट के 40,000 करोड़ के टर्नओवर की विधिवत अकाउंटिंग की गई है अथवा नहीं? यदि ट्रस्ट के अकाउंट्स में कोई गड़बड़ी पाई गई तो राज्य सरकार इस समूचे ट्रस्ट का अधिग्रहण करने पर विचार करेगी”। उल्लेखनीय है कि सत्य साईं केन्द्रीय ट्रस्ट पुट्टपर्थी में एक विश्वविद्यालय, एक सुपर-स्पेशल विश्व स्तरीय सुविधाओं वाला अस्पताल (Satya Sai Super Speciality Hospital), एक वैश्विक धर्म म्यूजियम, एक विशाल तारामण्डल, एक रेल्वे स्टेशन, एक स्टेडियम, एक संगीत महाविद्यालय, एक हवाई अड्डा एवं एक इनडोर स्टेडियम जैसे बड़े-बड़े प्रकल्प संचालित करता है, इसके साथ ही विश्व के 180 से अधिक देशों में सत्य साईं बाबा के नाम पर 1200 से अधिक स्वास्थ्य एवं आध्यात्मिक केन्द्र चल रहे हैं…।
आपने कई बार देखा होगा कि घर में बाप आखिरी साँसें गिन रहा होता है और सबसे नालायक, जुआरी और शराबी बेटा उसके मरने से पहले ही, मिलने वाली सम्पत्ति और बंटवारे के बारे में चिल्लाने लगता है, जुगाड़ फ़िट करने लगता है। कुछ-कुछ ऐसा ही “सेकुलर” गिद्धों से भरी कांग्रेस पार्टी भी कर रही है। तिरुपति देवस्थानम (Tirupati Devasthanam) के ट्रस्टियों में “बाहरी” एवं “सेकुलर” लोगों को भरने तथा तिरुमाला की पवित्र पहाड़ियों पर चर्च निर्माण की अनुमति देकर “सेमुअल” राजशेखर रेड्डी ने जो “रास्ता” दिखाया था, उसी पर चलकर अब कांग्रेस की नीयत, सत्य साईं ट्रस्ट पर भी डोल चुकी है। अब यह तय जानिये कि किसी न किसी बहाने, कोई न कोई कानूनी पेंच फ़ँसाकर इस ट्रस्ट में कांग्रेसी घुसपैठ करके ही दम लेंगे।
आंध्रप्रदेश सरकार का यह तर्क अत्यंत हास्यास्पद और बोदा है कि सरकार सिर्फ़ यह सुनिश्चित करना चाहती है कि साँई बाबा के पश्चात ट्रस्ट का संचालन एवं आर्थिक गतिविधियाँ समुचित ढंग से संचालित हों एवं इसमें कोई गड़बड़ी न हो। सोचने वाली बात है कि सत्य साँई बाबा के भक्तों में ऊँचे दर्जे के बुद्धिजीवी, ऑडिटर्स, चार्टर्ड अकाउंटेंट्स, शिक्षाविद, इंजीनियर एवं डॉक्टर हैं, क्या वह ट्रस्ट साँई बाबा के जाने के बाद अचानक लावारिस हो जायेगा? क्या सत्य साँई बाबा के अधीन काम कर रहे वर्तमान विश्वस्त साथियों ने इस स्थिति के बारे में पहले से कोई योजना अथवा कल्पना करके नहीं रखी होगी? क्या ये लोग इतने निकम्मे हैं? स्वाभाविक है कि कोई न कोई “बैक-अप प्लान” अवश्य ही होगा और वैसे भी आज तक बड़े ही प्रोफ़ेशनल तरीके से सत्य साईं ट्रस्ट का संचालन होता रहा है, कभी कोई समस्या नहीं आई। लेकिन सरकार (यानी कांग्रेस) येन-केन-प्रकारेण सत्य साँई ट्रस्ट में “अपने राजनीतिक लुटेरों” को शामिल करना चाहती है।
उल्लेखनीय है कि सत्य साँई ट्रस्ट द्वारा संचालित अस्पताल विश्वस्तरीय हैं जहाँ मरीजों को लगभग मुफ़्त इलाज दिया जाता है, यह भी जरूरी नहीं है कि मरीज साईं बाबा का भक्त हो। परन्तु सांई बाबा के जाने के बाद यदि इसमें सरकारी कांग्रेसी दखल-अंदाजी शुरु हो गई तो इसकी हालत भी दिल्ली के किसी सरकारी अस्पताल जैसी हो जायेगी। बशर्ते “बाबूगिरी” इसमें अपनी नाक न घुसेड़े…
यहाँ पर स्वाभाविक सा प्रश्न खड़ा होता है, कि जिस समय मदर टेरेसा (Mother Teresa) गम्भीर हालत में थीं और अन्तिम साँसें गिन रही थीं, तब सरकार “मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी” (Missionaries of Charity) को मिलने वाले अरबों के चन्दे और उस ट्रस्ट के संचालन तथा रखरखाव के बारे में इतनी चिंतित क्यों नहीं थी? ये सारे सवाल साईं बाबा के ट्रस्ट के समय ही क्यों खड़े किये जा रहे हैं? और वह भी निष्ठुरता की इस पराकाष्ठा के साथ, कि अभी सत्य साँई बाबा मरे नहीं हैं, सिर्फ़ गम्भीर हैं। साईं बाबा ट्रस्ट से सम्बन्धित सभी “कांग्रेसी सेकुलर आशंकाएं” उस समय कभी सामने क्यों नहीं आईं, जब बाबा पूर्णतः स्वस्थ थे और उनके कार्यक्रमों में शंकरदयाल शर्मा, टीएन शेषन, अब्दुल कलाम, नरसिंहराव इत्यादि सार्वजनिक रूप से शिरकत करते थे? अब जबकि बाबा अपनी मृत्यु शैया पर हैं तब कांग्रेस को यह याद आ रहा है? साईं बाबा ने हमेशा आध्यात्म और भक्ति-प्रार्थना को ही अपना औज़ार बनाया है, साँई बाबा पर ढोंग करने, पाखण्ड करने सम्बन्धी आरोप लगते रहे हैं और विवाद होते रहे हैं, परन्तु साँई बाबा पर घोर कांग्रेसी भी “साम्प्रदायिकता फ़ैलाने” का आरोप नहीं लगा सकते… परन्तु साँई बाबा द्वारा खड़े किये गये 40,000 करोड़ के साम्राज्य पर “सेकुलर गिद्धों” की बुरी निगाह है, यह बात आईने की तरह साफ़ है। ये बात और है कि केन्द्र सरकार के बाद, पूरे देश में सबसे अधिक जमीनों और रियल एस्टेट पर कब्जा यदि किसी का है तो दूसरे नम्बर पर “चर्च” और मिशनरी ही हैं, लेकिन याद नहीं पड़ता कि कभी कोई सरकार इस बारे कभी चिन्तित हुई हो… क्या उस अकूत सम्पत्ति के अधिग्रहण के बारे में कभी किसी ने विचार किया है? किसी की हिम्मत नहीं है (खासकर सोनिया गाँधी के रहते)।
महाराष्ट्र की कांग्रेस सरकार ने वहाँ के सभी प्रसिद्ध और बड़े मंदिरों के ट्रस्टों का पिछले दरवाजे से अधिग्रहण कर रखा है, मंदिरों में आने वाला भारीभरकम चढ़ावा सरकारों के लिये “दूध देती गाय” के समान है (लेकिन सिर्फ़ और सिर्फ़ हिन्दू मन्दिर ही)। मन्दिरों की दुर्दशा पर किसी का ध्यान नहीं जाता, लेकिन वहाँ से आने वाली 85% कमाई सरकार की जेब में जाती है। हाल ही में महाराष्ट्र सरकार ने हिन्दू, सिख एवं जैन धार्मिक स्थलों के अधिग्रहण हेतु एक प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेजा है, जो कि “उचित माहौल और समय” आने पर पारित कर लिया जायेगा। आम हिन्दू ऐसे मुद्दों पर समर्थन और ठोस कार्रवाई के लिये भाजपा की तरफ़ देखता है, लेकिन उसे निराशा ही हाथ लगती है। भाजपाई, हिन्दुओं के हितो का सिर्फ़ “दिखावा” करते हैं, और तय जानिये कि सेकुलर “दिखाई देने” के चक्कर में, वे न घर के रहेंगे और न घाट के…। विकल्पहीनता के अभाव में फ़िलहाल हिन्दू भाजपा को वोट दे रहे हैं… लेकिन यह स्थिति हमेशा रहेगी, ऐसा नहीं कहा जा सकता…। जब सत्य साँई बाबा और शंकराचार्य जैसे हिन्दुओं के बड़े आस्था पुंज पर अथवा लक्ष्मणानन्द सरस्वती की हत्या से लेकर साध्वी प्रज्ञा को जेल में ठूंसने पर भी भाजपा सिर्फ़ तात्कालिक हो-हल्ला करके चुप्पी साध लेती हो तब तो निश्चित रूप से भविष्य अंधकारमय ही है, हिन्दुओं का भी और भाजपा का भी…
मैं न तो साँई बाबा का भक्त हूँ और न ही साईं बाबा के “तथाकथित चमत्कारों”(?) का कायल हूँ, परन्तु यह तो मानना ही होगा कि उन्होंने अनन्तपुर जिले के कई गाँवों के पीने के पानी की समस्या से लेकर अस्पताल, स्कूल जैसे कई-कई पारमार्थिक काम सफ़लतापूर्वक किये हैं। निश्चित रूप से उनका भक्त वर्ग बहुत बड़ा है, श्रद्धा अथवा अंधश्रद्धा जैसे प्रश्नों को यदि फ़िलहाल दरकिनार भी कर दिया जाए, तब भी इस बात में कोई शक नहीं है कि हिन्दुओं के आस्था केन्द्रों पर सेकुलर हमलों की लम्बी सीरिज की यह एक और कड़ी है…
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चलते-चलते :- अभी कुछ दिनों पहले गोआ के एक मंत्री को मुम्बई एयरपोर्ट पर एक लाख से अधिक अवैध डॉलर के साथ पकड़ा गया था (Goa Minister Held with Dollars), साफ़ है कि वह पैसा ड्रग्स से कमाया गया था और देश के बाहर ले जाया जा रहा था। लेकिन 65 लाख रुपये के लिये राहत फ़तेह अली खान पर हंगामा करने वाले मीडिया ने भी गोआ के इस “ईसाई मंत्री” के कुकर्म पर आँखें मूंदे रखीं, जबकि कस्टम विभाग ने भी उसे बगैर जाँच के छोड़ दिया है… कहा गया है कि गोवा के मंत्री को छोड़ने का आदेश “ऊपर से” आया था…। यानी लुटेरों(कलमाडी) और डाकुओं (ए राजा) के साथ-साथ, अब दिल्ली में “ड्रग स्मगलरों” की भी सरकार काम कर रही है…
देश का ध्यान जब अण्णा हजारे की तरफ़ लगा हुआ है, तब भी “सेकुलर गैंग” अपने घिनौने “हिन्दुओं को दबाओ, अल्पसंख्यकों को उठाओ” अभियान में लगी हुई है… जन-लोकपाल बिल यदि पास हो भी गया, तब भी वह सेकुलरों-वामपंथियों के इस “सतत जारी नीचकर्म” का क्या उखाड़ लेगा?
एक कहावत का मिलता-जुलता स्वरूप है - “मुर्दा अभी घर से उठा नहीं, और तेरहवीं के भोज की तैयारियाँ शुरु हो गईं…”। लगभग यही “मानसिकता” दर्शाते हुए आंध्रप्रदेश की कांग्रेस सरकार ने 40,000 करोड़ रुपये के विशाल टर्नओवर वाले सत्य साँई ट्रस्ट (Satya Sai Trust) पर राजनेताओं द्वारा कब्जा करने हेतु, पहला पाँसा फ़ेंक दिया है। मुख्यमंत्री किरण कुमार की पहल पर राज्य सरकार ने पाँच सदस्यों का एक विशेष प्रतिनिधिमण्डल पुट्टपर्थी भेजा है, जो इस बात की देखरेख करेगा कि साईं बाबा की मृत्यु के पश्चात सत्य सांई ट्रस्ट कैसे संचालित होगा, इस ट्रस्ट के ट्रस्टियों ने इस विशाल अकूत सम्पत्ति की ठीक से देखभाल एवं विभिन्न सेवा प्रकल्पों के सुचारु संचालन हेतु क्या-क्या कदम उठाए हैं।
पाँच सदस्यों की इस टीम में राज्य के मुख्य सचिव, वित्त सचिव एल वी सुब्रह्मण्यम, स्वास्थ्य सचिव पीवी रमेश, राज्य मेडिकल शिक्षा के निदेशक डॉ रघु राजू, उस्मानिया अस्पताल (Usmania Hospital) के कार्डियोलॉजिस्ट डॉ लक्ष्मण राव एवं डॉ भानु प्रसाद शामिल हैं। इस प्रतिनिधिमण्डल ने (यानी आंध्र की कांग्रेस सरकार ने) अपने बयान में कहा कि, “चूंकि डॉक्टर साईं बाबा के स्वास्थ्य (Satya Sai Baba Health) के बारे में सशंकित हैं, इसलिये हम ट्रस्ट के सभी प्रमुख सदस्यों से चर्चा कर रहे हैं कि साईं बाबा के निधन के पश्चात, क्या ऐसी कोई व्यवस्था है जो उनके सभी “चैरिटी” संस्थानों की ठीक तरह से देखभाल कर सके? क्या ट्रस्ट में कोई “केन्द्रीय व्यवस्था” है जो सभी संस्थाओं को एक छतरी के नीचे ला सके?” राज्य के मुख्य सचिव ने कहा कि चूंकि सत्य साईं ट्रस्ट को विदेशों से भारी मात्रा में चन्दा और दान प्राप्त होता है, इसलिये हमारी टीम यह भी देख रही है कि क्या ट्रस्ट के 40,000 करोड़ के टर्नओवर की विधिवत अकाउंटिंग की गई है अथवा नहीं? यदि ट्रस्ट के अकाउंट्स में कोई गड़बड़ी पाई गई तो राज्य सरकार इस समूचे ट्रस्ट का अधिग्रहण करने पर विचार करेगी”। उल्लेखनीय है कि सत्य साईं केन्द्रीय ट्रस्ट पुट्टपर्थी में एक विश्वविद्यालय, एक सुपर-स्पेशल विश्व स्तरीय सुविधाओं वाला अस्पताल (Satya Sai Super Speciality Hospital), एक वैश्विक धर्म म्यूजियम, एक विशाल तारामण्डल, एक रेल्वे स्टेशन, एक स्टेडियम, एक संगीत महाविद्यालय, एक हवाई अड्डा एवं एक इनडोर स्टेडियम जैसे बड़े-बड़े प्रकल्प संचालित करता है, इसके साथ ही विश्व के 180 से अधिक देशों में सत्य साईं बाबा के नाम पर 1200 से अधिक स्वास्थ्य एवं आध्यात्मिक केन्द्र चल रहे हैं…।
आपने कई बार देखा होगा कि घर में बाप आखिरी साँसें गिन रहा होता है और सबसे नालायक, जुआरी और शराबी बेटा उसके मरने से पहले ही, मिलने वाली सम्पत्ति और बंटवारे के बारे में चिल्लाने लगता है, जुगाड़ फ़िट करने लगता है। कुछ-कुछ ऐसा ही “सेकुलर” गिद्धों से भरी कांग्रेस पार्टी भी कर रही है। तिरुपति देवस्थानम (Tirupati Devasthanam) के ट्रस्टियों में “बाहरी” एवं “सेकुलर” लोगों को भरने तथा तिरुमाला की पवित्र पहाड़ियों पर चर्च निर्माण की अनुमति देकर “सेमुअल” राजशेखर रेड्डी ने जो “रास्ता” दिखाया था, उसी पर चलकर अब कांग्रेस की नीयत, सत्य साईं ट्रस्ट पर भी डोल चुकी है। अब यह तय जानिये कि किसी न किसी बहाने, कोई न कोई कानूनी पेंच फ़ँसाकर इस ट्रस्ट में कांग्रेसी घुसपैठ करके ही दम लेंगे।
आंध्रप्रदेश सरकार का यह तर्क अत्यंत हास्यास्पद और बोदा है कि सरकार सिर्फ़ यह सुनिश्चित करना चाहती है कि साँई बाबा के पश्चात ट्रस्ट का संचालन एवं आर्थिक गतिविधियाँ समुचित ढंग से संचालित हों एवं इसमें कोई गड़बड़ी न हो। सोचने वाली बात है कि सत्य साँई बाबा के भक्तों में ऊँचे दर्जे के बुद्धिजीवी, ऑडिटर्स, चार्टर्ड अकाउंटेंट्स, शिक्षाविद, इंजीनियर एवं डॉक्टर हैं, क्या वह ट्रस्ट साँई बाबा के जाने के बाद अचानक लावारिस हो जायेगा? क्या सत्य साँई बाबा के अधीन काम कर रहे वर्तमान विश्वस्त साथियों ने इस स्थिति के बारे में पहले से कोई योजना अथवा कल्पना करके नहीं रखी होगी? क्या ये लोग इतने निकम्मे हैं? स्वाभाविक है कि कोई न कोई “बैक-अप प्लान” अवश्य ही होगा और वैसे भी आज तक बड़े ही प्रोफ़ेशनल तरीके से सत्य साईं ट्रस्ट का संचालन होता रहा है, कभी कोई समस्या नहीं आई। लेकिन सरकार (यानी कांग्रेस) येन-केन-प्रकारेण सत्य साँई ट्रस्ट में “अपने राजनीतिक लुटेरों” को शामिल करना चाहती है।
उल्लेखनीय है कि सत्य साँई ट्रस्ट द्वारा संचालित अस्पताल विश्वस्तरीय हैं जहाँ मरीजों को लगभग मुफ़्त इलाज दिया जाता है, यह भी जरूरी नहीं है कि मरीज साईं बाबा का भक्त हो। परन्तु सांई बाबा के जाने के बाद यदि इसमें सरकारी कांग्रेसी दखल-अंदाजी शुरु हो गई तो इसकी हालत भी दिल्ली के किसी सरकारी अस्पताल जैसी हो जायेगी। बशर्ते “बाबूगिरी” इसमें अपनी नाक न घुसेड़े…
यहाँ पर स्वाभाविक सा प्रश्न खड़ा होता है, कि जिस समय मदर टेरेसा (Mother Teresa) गम्भीर हालत में थीं और अन्तिम साँसें गिन रही थीं, तब सरकार “मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी” (Missionaries of Charity) को मिलने वाले अरबों के चन्दे और उस ट्रस्ट के संचालन तथा रखरखाव के बारे में इतनी चिंतित क्यों नहीं थी? ये सारे सवाल साईं बाबा के ट्रस्ट के समय ही क्यों खड़े किये जा रहे हैं? और वह भी निष्ठुरता की इस पराकाष्ठा के साथ, कि अभी सत्य साँई बाबा मरे नहीं हैं, सिर्फ़ गम्भीर हैं। साईं बाबा ट्रस्ट से सम्बन्धित सभी “कांग्रेसी सेकुलर आशंकाएं” उस समय कभी सामने क्यों नहीं आईं, जब बाबा पूर्णतः स्वस्थ थे और उनके कार्यक्रमों में शंकरदयाल शर्मा, टीएन शेषन, अब्दुल कलाम, नरसिंहराव इत्यादि सार्वजनिक रूप से शिरकत करते थे? अब जबकि बाबा अपनी मृत्यु शैया पर हैं तब कांग्रेस को यह याद आ रहा है? साईं बाबा ने हमेशा आध्यात्म और भक्ति-प्रार्थना को ही अपना औज़ार बनाया है, साँई बाबा पर ढोंग करने, पाखण्ड करने सम्बन्धी आरोप लगते रहे हैं और विवाद होते रहे हैं, परन्तु साँई बाबा पर घोर कांग्रेसी भी “साम्प्रदायिकता फ़ैलाने” का आरोप नहीं लगा सकते… परन्तु साँई बाबा द्वारा खड़े किये गये 40,000 करोड़ के साम्राज्य पर “सेकुलर गिद्धों” की बुरी निगाह है, यह बात आईने की तरह साफ़ है। ये बात और है कि केन्द्र सरकार के बाद, पूरे देश में सबसे अधिक जमीनों और रियल एस्टेट पर कब्जा यदि किसी का है तो दूसरे नम्बर पर “चर्च” और मिशनरी ही हैं, लेकिन याद नहीं पड़ता कि कभी कोई सरकार इस बारे कभी चिन्तित हुई हो… क्या उस अकूत सम्पत्ति के अधिग्रहण के बारे में कभी किसी ने विचार किया है? किसी की हिम्मत नहीं है (खासकर सोनिया गाँधी के रहते)।
महाराष्ट्र की कांग्रेस सरकार ने वहाँ के सभी प्रसिद्ध और बड़े मंदिरों के ट्रस्टों का पिछले दरवाजे से अधिग्रहण कर रखा है, मंदिरों में आने वाला भारीभरकम चढ़ावा सरकारों के लिये “दूध देती गाय” के समान है (लेकिन सिर्फ़ और सिर्फ़ हिन्दू मन्दिर ही)। मन्दिरों की दुर्दशा पर किसी का ध्यान नहीं जाता, लेकिन वहाँ से आने वाली 85% कमाई सरकार की जेब में जाती है। हाल ही में महाराष्ट्र सरकार ने हिन्दू, सिख एवं जैन धार्मिक स्थलों के अधिग्रहण हेतु एक प्रस्ताव केन्द्र सरकार को भेजा है, जो कि “उचित माहौल और समय” आने पर पारित कर लिया जायेगा। आम हिन्दू ऐसे मुद्दों पर समर्थन और ठोस कार्रवाई के लिये भाजपा की तरफ़ देखता है, लेकिन उसे निराशा ही हाथ लगती है। भाजपाई, हिन्दुओं के हितो का सिर्फ़ “दिखावा” करते हैं, और तय जानिये कि सेकुलर “दिखाई देने” के चक्कर में, वे न घर के रहेंगे और न घाट के…। विकल्पहीनता के अभाव में फ़िलहाल हिन्दू भाजपा को वोट दे रहे हैं… लेकिन यह स्थिति हमेशा रहेगी, ऐसा नहीं कहा जा सकता…। जब सत्य साँई बाबा और शंकराचार्य जैसे हिन्दुओं के बड़े आस्था पुंज पर अथवा लक्ष्मणानन्द सरस्वती की हत्या से लेकर साध्वी प्रज्ञा को जेल में ठूंसने पर भी भाजपा सिर्फ़ तात्कालिक हो-हल्ला करके चुप्पी साध लेती हो तब तो निश्चित रूप से भविष्य अंधकारमय ही है, हिन्दुओं का भी और भाजपा का भी…
मैं न तो साँई बाबा का भक्त हूँ और न ही साईं बाबा के “तथाकथित चमत्कारों”(?) का कायल हूँ, परन्तु यह तो मानना ही होगा कि उन्होंने अनन्तपुर जिले के कई गाँवों के पीने के पानी की समस्या से लेकर अस्पताल, स्कूल जैसे कई-कई पारमार्थिक काम सफ़लतापूर्वक किये हैं। निश्चित रूप से उनका भक्त वर्ग बहुत बड़ा है, श्रद्धा अथवा अंधश्रद्धा जैसे प्रश्नों को यदि फ़िलहाल दरकिनार भी कर दिया जाए, तब भी इस बात में कोई शक नहीं है कि हिन्दुओं के आस्था केन्द्रों पर सेकुलर हमलों की लम्बी सीरिज की यह एक और कड़ी है…
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चलते-चलते :- अभी कुछ दिनों पहले गोआ के एक मंत्री को मुम्बई एयरपोर्ट पर एक लाख से अधिक अवैध डॉलर के साथ पकड़ा गया था (Goa Minister Held with Dollars), साफ़ है कि वह पैसा ड्रग्स से कमाया गया था और देश के बाहर ले जाया जा रहा था। लेकिन 65 लाख रुपये के लिये राहत फ़तेह अली खान पर हंगामा करने वाले मीडिया ने भी गोआ के इस “ईसाई मंत्री” के कुकर्म पर आँखें मूंदे रखीं, जबकि कस्टम विभाग ने भी उसे बगैर जाँच के छोड़ दिया है… कहा गया है कि गोवा के मंत्री को छोड़ने का आदेश “ऊपर से” आया था…। यानी लुटेरों(कलमाडी) और डाकुओं (ए राजा) के साथ-साथ, अब दिल्ली में “ड्रग स्मगलरों” की भी सरकार काम कर रही है…
देश का ध्यान जब अण्णा हजारे की तरफ़ लगा हुआ है, तब भी “सेकुलर गैंग” अपने घिनौने “हिन्दुओं को दबाओ, अल्पसंख्यकों को उठाओ” अभियान में लगी हुई है… जन-लोकपाल बिल यदि पास हो भी गया, तब भी वह सेकुलरों-वामपंथियों के इस “सतत जारी नीचकर्म” का क्या उखाड़ लेगा?
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