फ़िल्म का नाम है "कुँवारा बाप", और गीत फ़िल्माया गया है मेहमूद और अन्य कलाकारों पर जिसमें विशेष तौर पर शामिल हैं चन्द वृहन्नला (जिसे आम बोलचाल की भाषा में हिजडे़ कहा जाता है)। दरअसल इस जमात, "हिजडा़", को सामाजिक तौर पर लगभग बॉयकॉट कर दिया गया है । इन्हें हेय दृष्टि से देखा जाता है, इनका मजाक उडा़या जाता है और कई बार इनका गाहे-बगाहे अपमान भी कर दिया जाता है, जबकि इनकी शारीरिक बनावट में यदि किसी का दोष है तो वह है ईश्वर का, लेकिन फ़िर भी कोई दोष ना होते हुए इन्हें जिल्लत सहनी पडती है । फ़िल्मों में अधिकतर इनका उपयोग किसी गाने या किसी फ़ूहड़ दृश्य को फ़िल्माने के लिये किया जाता है ।
लेकिन मेहमूद ने इस गीत में कहीं भी अश्लीलता नहीं आने दी, बल्कि वही फ़िल्माया जैसा कि भारत के कुछ हिस्सों में मान्यता है कि हिजडों की दुआ लेने से नवजात शिशु को बीमारियाँ नहीं घेरतीं और वह सुखी रहता है । कुछ महिलायें इनसे डरती भी हैं, जिसकी कोई आवश्यकता नहीं है, बल्कि ये लोग बच्चे को दिल से दुआयें देते हैं... (यदि पर्याप्त नेग मिले तो..) हालांकि आजकल इनमें भी कई फ़र्जी संगठन खडे़ हो गये हैं जो नपुंसक ना होते हुए भी सिर्फ़ पैसा कमाने के लिये हिजडा़ बनने का स्वांग रचते हैं...। मध्यप्रदेश वालों ने इस वर्ग का खयाल रखते हुए इनमें से एक बार महापौर और एक बार विधायक चुन लिया है । बहरहाल, यह पता नहीं चल सका कि हिजडे़ की आवाज में किसने गाया है, क्योंकि हू-ब-हू आवाज निकाली गई है (हो सकता है कि मेहमूद साहब ने रिकॉर्डिंग के वक्त सचमुच हिजडों से गवा लिया हो)... गीत की शुरुआत में और अन्त में रफ़ी साहब द्वारा दो-दो लाईने गाई गईं हैं... कुछ हिस्सा हिजडों की आवाज में है, और गीत की असली जान है मेहमूद की मार्मिक आवाज, खासकर उस वक्त जब वे अंतिम पंक्तियाँ (फ़िर बारिश आई, अंधियारी छाई, जब बिजली कड़की, मेरी छाती धडकी..) गाते हैं..और सारा गीत लूट ले जाते हैं... एक कॉमेडियन होते हुए सुपर स्टार का दर्जा पाने वाले मेहमूद पहले कलाकार थे, उनके लिये अलग से कहानी बनाई जाती थी और कई फ़िल्मों में वे हीरो-हीरोईनों पर भारी पडे़...गीत की पंक्तियाँ इस प्रकार हैं...
रफ़ी साहब की आवाज में गीत प्रारम्भ होता है...
सुनहरी गोटे में रुपहरी गोटे में...
सज रही गली मेरी माँ, सुनहरी गोटे में.. (२)
सज रही गली मेरी माँ, सुनहरी गोटे में..(२)
सुनहरी गोटे में रुपहरी गोटे में...(४)
अम्मा तेरे मुन्ने की अजब है बात (४)
ओ चन्दा जैसा मुखडा़ किरन जैसे हाथ (३)
सज रही गली मेरी माँ..... (२)
एक इंटरल्यूड के बाद हिजडों की आवाज शुरु होती है..जिसमें कोरस में "हाँ जी" का लगातार टेका लगाया जाता है..
तू माँ का बच्चा, हाँ जी, ना बाप ना जच्चा हाँ जी
बिन खेत का बन्दा हाँ जी, बिन मुर्गी अंडा हाँ जी
बिन पहिये गाडी़ हाँ जी, बिन औरत साडी़ हाँ जी,
बिन आम की गुठली हाँ जी
होय आम से हमको मतेलब गुठली से क्या लेना
मिल जाये हक अपना, दूजे से क्या लेना
सज रही गली मेरी अम्मा, चुनेरी गोटे में.. (२)
इसके बाद हिजडा़ मेहमूद से पूछता है कि उसे यह बच्चा कहाँ से मिला... और फ़िर मेहमूद साहब की आवाज शुरु होती है..इस अन्तरे में भी सभी हिजडों की ओर से "हाँ जी" की टेक जारी रहती है, जो एक विशेष माहौल तैयार करती है..
मैं मन्दिर पहुँचा हाँ जी, एक बच्चा देखा हाँ जी
ना कोई आगे हाँ जी, ना कोई पीछे हाँ जी
मैं तरस में आके हाँ जी, ले चला उठा के हाँ जी
के माँ को दे दूँ हाँ जी, मन्दिर में रख दूँ हाँ जी
पंडे ने देखा हाँ जी, वो जालिम समझा हाँ जी
ये पाप है मेरा हाँ जी, बस मुझको घेरा हाँ जी
फ़िर पोलीस आई हाँ जी, दी लाख दुहाई हाँ जी
वो एक ना माना हाँ जी, पड़ गया ले जाना हाँ जी
सोचा ले जाकर हाँ जी, फ़ेंकूँगा बाहर हाँ जी
सौ जतन लगाया हाँ जी, कोई काम ना आया हाँ जी
सड़कों पर देखा हाँ जी, गाड़ी में फ़ेंका हाँ जी
बन गया ये बन्दा हाँ जी, इस गले का फ़न्दा
मैं फ़िर भी टाला हाँ जी, कचरे में डाला हाँ जी
फ़िर बारिश आई हाँ जी, अँधियारी छाई हाँ जी
बिजली जब कड़की हाँ जी, मेरी छाती धड़की हाँ जी
एक तीर सा लागा हाँ जी, मैं वापस भागा हाँ जी
फ़िर बच्चे को उठाया, गले से यूँ लगाया
आगे क्या बोलूं यारा, मैं पापी दिल से हारा..
फ़िर रफ़ी साहब की आवाज आती है..
बेटा तेरे किस्से पे दिल मेरा रोये..
जिये तेरा मुन्ना.. जिये तेरा मुन्ना नसीबों वाला होये..
सज रही गली मेरी माँ, सुनहरी गोटे में..
सज रही गली मेरी अम्मा, रुपेहरी गोटे में..